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संयुक्त राष्ट्र के 80 वर्ष पूर्ण

Lokesh Pal October 27, 2025 02:35 5 0

संदर्भ

24 अक्टूबर, 2025 को संयुक्त राष्ट्र दिवस और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की 80वीं वर्षगाँठ मनाई गई।

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का इतिहास

  • शांति के लिए प्रारंभिक प्रयास (1899-1902)
    • वर्ष 1899: हेग में आयोजित अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन का उद्देश्य युद्धों को रोकना, संकटों का शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा करना तथा युद्ध नियमों की स्थापना करना था।
    • वर्ष 1902: स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना की गई, जो बाद में संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के रूप में सामने आया।
  • लीग ऑफ नेशंस (1919)
    • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वर्साय की संधि के तहत अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और शांति सुनिश्चित करने के लिए इसकी स्थापना की गई थी।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना भी इसी संधि के तहत एक संबद्ध एजेंसी के रूप में की गई थी।
  • संयुक्त राष्ट्र नाम की उत्पत्ति (1942)
    • अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट द्वारा गढ़ा गया।
    • संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र (1942) पर 26 देशों ने हस्ताक्षर किए थे, जिसमें धुरी राष्ट्रों (इटली-जर्मनी-जापान) के विरुद्ध लड़ने और अलग-अलग शांति संधियों पर रोक लगाने का संकल्प लिया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र का गठन (1945) 
    • यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन’ (सैन फ्राँसिस्को, संयुक्त राज्य अमेरिका) के परिणामस्वरूप ‘यूनाइटेड नेशन चार्टर’ पर हस्ताक्षर हुए, जो एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र की आधारभूत संधि है।

संयुक्त राष्ट्र में प्रमुख सुधारों की समय-सीमा

  • वर्ष 1997: कोफी अन्नान ने दो सुधार पैकेजों के साथ संयुक्त राष्ट्र सुधार की अपनी योजना की घोषणा की: ट्रैक वन’ (संरचनात्मक परिवर्तन) और ट्रैक टू’ (प्रबंधन सुधार) ताकि दक्षता तथा प्रभावशीलता में वृद्धि की जा सके।
  • वर्ष 2000: सहस्राब्दी शिखर सम्मेलन और सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (MDG): संयुक्त राष्ट्र ने गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए वैश्विक लक्ष्य निर्धारित करते हुए MDG को अपनाया।
  • वर्ष 2005: कोफी अन्नान ने अपनी रिपोर्ट ‘इन लार्जर फ्रीडम’ के साथ अपना सबसे व्यापक सुधार और नीतिगत एजेंडा प्रस्तुत किया।
    • शांति निर्माण आयोग (PBC) की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2006: मानवाधिकार परिषद ने पूर्व संयुक्त राष्ट्र आयोग का स्थान लिया।
  • वर्ष 2007-2016: संयुक्त राष्ट्र के आठवें महासचिव बान की-मून के कार्यकाल के दौरान सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा की शुरुआत और पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के साथ सुधार जारी रहे।
  • वर्ष 2015 – सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को अपनाना: SDGs ने MDG का स्थान लिया और 2030 तक वैश्विक विकास के लिए 17 लक्ष्य निर्धारित किए।
  • वर्ष 2017-2020: संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा परिकल्पित सुधार जारी हैं, जिनका ध्यान संयुक्त राष्ट्र के शांति और सुरक्षा स्तंभ पर केंद्रित है।

संयुक्त राष्ट्र (UN) के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को शांति, सुरक्षा, मानवाधिकारों और विकास को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। वर्तमान में इसके 193 सदस्य देश हैं और यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • वर्ष 1945 का संयुक्त राष्ट्र चार्टर, एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र की आधारभूत संधि है।
  • संयुक्त राष्ट्र के मुख्य अंग
    • महासभा (UNGA): मुख्य विचार-विमर्श निकाय है, जिसमें सभी सदस्य देश भाग लेते हैं।
    • सुरक्षा परिषद (UNSC): पाँच स्थायी सदस्यों (P5) और दस निर्वाचित सदस्यों के साथ, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखता है।
    • आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC): वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय नीतियों का समन्वय करता है।
    • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ): राज्यों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करता है।
    • सचिवालय: महासचिव के नेतृत्व में, यह दिन-प्रतिदिन के कार्यों का संचालन करता है।

भारत और संयुक्त राष्ट्र

  • संस्थापक सदस्य: संयुक्त राष्ट्र घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर (1942) और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के लिए सैन फ्राँसिस्को सम्मेलन (1945) में भाग लिया।
  • उपनिवेशवाद-विरोध में नेतृत्व: वर्ष 1960 की स्वतंत्रता घोषणा का सह-प्रायोजक और उपनिवेशवाद-विरोध समिति की अध्यक्षता की।
  • रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष: संयुक्त राष्ट्र में रंगभेद का मुद्दा उठाने वाला पहला देश (1946) और वर्ष 1965 के नस्लीय भेदभाव-विरोधी सम्मेलन का समर्थन किया।
  • विकासशील देशों के समर्थक: गुटनिरपेक्ष आंदोलन और G77 के संस्थापक सदस्य, एक अधिक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था के लिए प्रयासरत है।
  • शांति स्थापना में अग्रणी: वर्ष 1948 से अब तक 49 अभियानों में 2,44,500 से अधिक कर्मियों के साथ सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्ता है।
  • शांति स्थापना में महिलाएँ: एक सर्व-महिला पुलिस इकाई (वर्ष 2007, लाइबेरिया) तैनात करने वाला पहला देश, जिसने सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा दिया।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य: भारत कई अवसरों पर, विशेष रूप से वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 और 2021-22 की अवधियों के दौरान, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रहा है।

वर्त्तमान में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता

  • संयुक्त राष्ट्र की स्थायी प्रासंगिकता: अपनी कमियों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र संवाद, कूटनीति और सहयोग के एक मंच के रूप में अपरिहार्य बना हुआ है, जो राष्ट्रों को विचार-विमर्श करने और कभी-कभी आम सहमति तक पहुँचने में सक्षम बनाता है।
    • यह एकमात्र वैश्विक मंच बना हुआ है, जहाँ विरोधी पक्ष जलवायु परिवर्तन और डिजिटल नैतिकता जैसे मुद्दों पर बातचीत कर सकते हैं, आम सहमति का निर्माण कर सकते हैं और बहुपक्षवाद को आगे बढ़ा सकते हैं।
  • मानवीय प्रभाव: शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनिसेफ जैसी एजेंसियाँ दुनिया भर के संघर्ष क्षेत्रों तथा आपदा प्रभावित क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सहायता (भोजन, आश्रय और चिकित्सा सहायता) प्रदान करना जारी रखे हुए हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र ने मई 2025 में अफगानिस्तान में सूखे की आशंका से निपटने के लिए 16.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर की धनराशि जारी की, जिससे कमजोर समुदायों को शीघ्र सहायता मिल सकी।
  • शांति स्थापना प्रयास: संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक, हालाँकि अत्यधिक व्यस्तता से ग्रस्त रहते हैं, संवेदनशील देशों में स्थिरता बनाए रखते हैं, नागरिकों की रक्षा करते हैं और संघर्ष के बाद पुनर्निर्माण का समर्थन करते हैं।
  • मानक प्रभाव: घोषणाओं, संधियों और सम्मेलनों के माध्यम से मानवाधिकार, लैंगिक समानता, निरस्त्रीकरण और सतत् विकास पर अंतरराष्ट्रीय मानदंड स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका रही है।
  • सामूहिक उत्तरदायित्व: संयुक्त राष्ट्र सामूहिक जिम्मेदारी का प्रतीक बना हुआ है, तथा छोटे और विकासशील देशों को वैश्विक शासन में अपने मुद्दों को रखने का अवसर दे रहा है।
  • SDGs जैसे वैश्विक ढाँचे: वर्ष 2015 के सतत् विकास लक्ष्य समावेशी, न्यायसंगत और पर्यावरणीय रूप से उत्तरदायी विकास के लिए एक दूरदर्शी एजेंडा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • UNSD की ‘सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट 2025’ इस बात पर प्रकाश डालती है कि प्रगति असमान होने के बावजूद SDG किस प्रकार एक वैश्विक मानक ढाँचे के रूप में कार्य करते हैं।
  • सहयोग और आशा का प्रतीक: संयुक्त राष्ट्र एक नैतिक और संस्थागत अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है अर्थात् मानवता संबंधी विवादों को संवाद के माध्यम से सुलझा सकती है, न कि प्रभुत्व के माध्यम से, जो पूर्णता का नहीं, बल्कि ‘संभावना का प्रतीक’ है।

संयुक्त राष्ट्र की सफलताएँ

  • नामीबिया की स्वतंत्रता (1990): संयुक्त राष्ट्र ने दक्षिण अफ्रीकी से नामीबिया को स्वतंत्रता दिलाने में अहम् भूमिका निभाई।
  • पूर्वी तिमोर (1999): संयुक्त राष्ट्र ने इंडोनेशिया से अलग होने के बाद देश को स्थिर किया और शासन एवं शांति स्थापित करने में सहायता की।

संयुक्त राष्ट्र सुधारों की आवश्यकता

  • प्राचीन संरचना: संयुक्त राष्ट्र की स्थापना वर्ष 1945 में 51 सदस्य देशों के साथ हुई थी, लेकिन अब इसकी संख्या 193 हो गई है।
    • वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणालियों में अत्यधिक परिवर्तन आया है, जिसके लिए संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
  • वैश्विक असमानताएँ: विकासशील राष्ट्र बढ़ते ऋण और असमानता का सामना कर रहे हैं, जिससे उनकी प्रगति सीमित हो रही है। मौजूदा वैश्विक प्रणालियाँ सतत् विकास की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने में विफल रही हैं।
  • वैधता और विश्वसनीयता के मुद्दे: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुछ स्थायी सदस्यों का प्रभुत्व, विश्वास को कमजोर करता है।
  • असमान प्रतिनिधित्व: सुरक्षा परिषद में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। सीटों के अधिक न्यायसंगत वितरण से वैश्विक निर्णय लेने और वैधता में सुधार होगा।
    • उदाहरण: ‘सर्वसम्मति के लिए एकजुट होना’ (UfC) इटली, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, कनाडा, मेक्सिको, अर्जेंटीना, कोलंबिया, तुर्किए, स्पेन और इंडोनेशिया का एक समूह है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीटों के विस्तार का विरोध करता है।

संयुक्त राष्ट्र का वित्तपोषण

  • अनिवार्य योगदान: प्रत्येक संयुक्त राष्ट्र सदस्य को संगठन के बजट में योगदान देना अनिवार्य है।
    • योगदान किसी देश की आर्थिक क्षमता पर आधारित होते हैं।
    • ये निधियाँ मुख्यतः प्रशासनिक लागतों और शांति अभियानों के लिए होती हैं।
  • स्वैच्छिक योगदान: कई देश विशिष्ट संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रमों के लिए अतिरिक्त धनराशि प्रदान करते हैं। ये योगदान मानवीय सहायता, विकास और अन्य वैश्विक पहलों का समर्थन करते हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका: वर्ष 1945 में अपनी स्थापना के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा योगदानकर्ता रहा है।

  • वित्तीय और प्रशासनिक सुधार: शांति स्थापना और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने के कारण संयुक्त राष्ट्र को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण: विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) जैसी कई संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को लगातार पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिल रही है।
  • वैश्विक सुरक्षा चुनौतियाँ: संघर्ष, आतंकवाद और मानवीय संकटों के लिए संयुक्त राष्ट्र की एक मजबूत प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। एक सुधारित सुरक्षा परिषद निवारक कूटनीति और शांति स्थापना प्रयासों को बढ़ावा देगी।

संयुक्त राष्ट्र में निर्णयन प्रक्रिया

  • साधारण बहुमत: संयुक्त राष्ट्र में अधिकांश निर्णय सभी सदस्यों के साधारण बहुमत से लिए जाते हैं।
  • दो-तिहाई बहुमत: सदस्यता संबंधी मुद्दों जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए आवश्यक है।
  • सर्वसम्मति-आधारित निर्णय: निरस्त्रीकरण सम्मेलन जैसे कुछ निकायों में पूर्ण सहमति की आवश्यकता होती है, जिससे प्रभावी रूप से प्रत्येक सदस्य को वीटो का अधिकार मिल जाता है।
  • सुरक्षा परिषद वीटो शक्ति: P5 (चीन, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका) के पास वीटो शक्ति है, जिससे वे किसी भी महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव को रोक सकते हैं।
    • प्रत्येक P5 सदस्य के पास वीटो शक्ति है, जिसका अर्थ है कि वे किसी भी महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव को रोक सकते हैं, भले ही अन्य सभी सदस्य उसका समर्थन करें।
    • यह प्रतिबंधों, सैन्य हस्तक्षेपों और शांति अभियानों जैसे मुद्दों पर लागू होता है।
    • उदाहरण:
      • इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष: संयुक्त राज्य अमेरिका ने इजरायल की आलोचना करने वाले प्रस्तावों को रोकने के लिए अक्सर अपनी वीटो शक्ति का प्रयोग किया है, भले ही व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन हो, इस प्रकार परिषद को लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को हल करने के लिए कार्रवाई करने से रोका है।

वर्तमान चुनौतियाँ

  • युद्धोत्तर आम सहमति का ह्रास: उदार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था, जो मुक्त व्यापार, साझा शासन और सामूहिक कार्रवाई पर आधारित थी, राष्ट्रवादी तथा लोकलुभावनवादी दबावों के कारण कमजोर पड़ रही है। बहुपक्षवाद को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।
  • वैश्विक संकटों से निपटने में विफलता: संयुक्त राष्ट्र को कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों से निपटने में संघर्ष करना पड़ा है। भारत इस संगठन को और अधिक प्रभावी तथा प्रासंगिक बनाने के लिए तत्काल सुधारों का आह्वान करता है।
  • अनुचित वीटो शक्ति संरचना: वर्तमान, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देश हैं और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के केवल पंद्रह सदस्य हैं (सदस्य देशों के 8% से भी कम)।
    • पाँच स्थायी सदस्यों (P-5) के पास वीटो शक्ति निर्णय लेने में असंतुलन उत्पन्न करती है।
    • शक्तिशाली राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते रहते हैं और अपने सहयोगियों को बचाने के लिए अपने वीटो का इस्तेमाल करते हैं, जिससे संकट के समय संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई बाधित होती है और इसकी नैतिक विश्वसनीयता कमजोर होती है।
    • उदाहरण के लिए: P5 सदस्यों द्वारा बार-बार वीटो लगाने से यूक्रेन, गाजा और सीरिया जैसे संकटों पर सामूहिक कार्रवाई में बाधा आती है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुधारों की धीमी प्रगति: अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सुधार सुस्त रहे हैं। भारत इस बात पर जोर देता है कि आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करने के लिए सुधार प्रयासों में तेजी लाई जानी चाहिए।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ता में G4 देशों के एक भाग के रूप में भारत ने महासभा द्वारा लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित स्थायी सदस्यों की वकालत करते हुए एक विस्तृत मॉडल का प्रस्ताव रखा, साथ ही वीटो पावर के मुद्दे पर लचीलापन भी प्रदर्शित किया।
  • विकासात्मक और आर्थिक विषमताएँ: भारत ने आर्थिक विकास और जलवायु वार्ताओं में उत्तर-दक्षिण विभाजन पर चिंता व्यक्त की है।
  • राष्ट्रवाद का उदय: कभी मुक्ति की एक शक्ति रहा राष्ट्रवाद, सहयोग के विरुद्ध एक हथियार बन गया है, जिससे संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं में विश्वास कम हो रहा है और सामूहिक समस्या-समाधान कमजोर हो रहा है।
  • राजनीतीकरण से उत्पन्न वित्त पोषण और संसाधन संकट: बजट की कमी और अमेरिका सहित प्रमुख सदस्यों द्वारा बकाया राशि रोके जाने से संयुक्त राष्ट्र सचिवालय कमजोर हो गया है, जिसके परिणामस्वरूप कर्मचारियों की संख्या में कटौती हुई है।
    • उदाहरण: विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने जून 2025 में सूडान में 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी की चेतावनी दी थी, जिसके कारण संकट के दौरान खाद्य में 30% की कटौती करनी पड़ी।

प्रमुख योगदानकर्ता और भुगतान अनिश्चितता

संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में अमेरिका और चीन शीर्ष योगदानकर्ता हैं:-

  • अमेरिका का हिस्सा: 22% (सबसे बड़ा योगदानकर्ता) लेकिन उस पर 1.5 अरब डॉलर का बकाया है।
  • चीन का हिस्सा: 20% (वर्ष 2025 में 5% की वृद्धि)। चीन ने पूर्ण भुगतान का आश्वासन दिया है, लेकिन समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं की है।
  • 7 मार्च, 2025 तक, केवल 73 सदस्य देशों ने ही अपना पूरा कर-भुगतान किया था।

  • वित्तीय संकट और बजट की कमी: संयुक्त राष्ट्र लगातार सातवें वर्ष नकदी संकट का सामना कर रहा है।
    • वर्ष 2025 का संयुक्त राष्ट्र बजट 3.7 बिलियन डॉलर का है, जिसमें राजनीतिक, मानवीय, निरस्त्रीकरण, आर्थिक और सामाजिक मामले शामिल हैं।
  • नौकरशाही की कठोरता: संयुक्त राष्ट्र आंतरिक अक्षमताओं और धीमी निर्णय प्रक्रिया से जूझ रहा है, जिसके कारण जलवायु परिवर्तन और साइबर खतरों जैसी तेजी से बदलती वैश्विक चुनौतियों का समय पर जवाब देना जटिल हो रहा है।
  • नैतिक मुद्दों का ह्रास: दुष्प्रचार और ध्रुवीकरण के इस दौर में, संयुक्त राष्ट्र की ‘नीतिगत क्षमता कमजोर हो गई है; सदस्य-राज्यों की राजनीति अक्सर नैतिक स्थिरता से समझौता करती है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की वकालत करने वाले समूह

  • G4 (भारत, ब्राजील, जर्मनी, जापान): विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए स्थायी सदस्यता और विस्तारित UNSC प्रतिनिधित्व की माँग करता है।
  • L69 (विकासशील राष्ट्र समूह): ग्लोबल साउथ में प्रतिनिधित्व और व्यापक UNSC सुधारों की वकालत करता है।
    • सदस्य: इसमें एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरेबियन और प्रशांत (लघु द्वीपीय विकासशील देश) के 42 विकासशील देश (भारत सहित) शामिल हैं।
    • नामकरण: वर्ष 2007-08 में प्रस्तुत मसौदा दस्तावेज संख्या ‘L.69’ पर आधारित, जिसके कारण अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया शुरू हुई।
  • C-10 (अफ्रीकी राष्ट्र समूह): दस अफ्रीकी देशों का एक समूह, अर्थात् अल्जीरिया, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, केन्या, लीबिया, नामीबिया, सेनेगल, सिएरा लियोन, युगांडा और जांबिया।
    • UNSC में अफ्रीकी देशों की मजबूत उपस्थिति के लिए साझा अफ्रीकी स्थिति (CAP) का समर्थन करता है।
  • IBSA (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका): G4 और L69 की माँगों के अनुरूप, व्यापक संयुक्त राष्ट्र सुधारों का आह्वान करता है।

आगे की राह

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिए वकालत को मजबूत करना: भारत को विकासशील देशों के समान प्रतिनिधित्व वाली एक सुधारित सुरक्षा परिषद के लिए प्रयास जारी रखना चाहिए।
    • उदाहरण: G4 और अफ्रीकी संघ के साथ गठबंधनों को मजबूत करने से परिवर्तन के लिए कूटनीतिक दबाव बन सकता है।
  • बहुपक्षीय वित्तीय योगदान को बढ़ाना: संयुक्त राष्ट्र आरक्षित निधि जैसे स्थायी वित्तपोषण तंत्रों की वकालत करने से प्रमुख योगदानकर्ताओं पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में सुधार: द्विसदनीय संसदीय प्रणाली का प्रस्ताव UNGA की निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ा सकता है। UNGA प्रस्तावों के कार्यान्वयन को मजबूत करने से बेहतर वैश्विक प्रभाव सुनिश्चित होगा।
  • संस्थागत सक्रियता बढ़ाना: निर्णय लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना, क्षेत्रीय कार्यों को सशक्त बनाना, और संयुक्त राष्ट्र को संकटों और जटिल वैश्विक चुनौतियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाना।
  • संयुक्त राष्ट्र के नैतिक अधिकार को पुनः प्राप्त करना: संगठन को न्याय, मानवाधिकार और समानता के मुद्दों को निर्भीकता से रखना चाहिए, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक नैतिक दिशा-निर्देश के रूप में इसकी विश्वसनीयता मजबूत हो।
  • समावेशी बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना: वैश्विक सहयोग को प्रतिनिधित्व और अनुभव की विविधता को प्रतिबिंबित करने के लिए पुनर्परिभाषित करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ ‘बहुत से लोगों द्वारा, न कि कुछ लोगों द्वारा’ आकार लेती हैं।
  • संवाद के उत्प्रेरक के रूप में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को सुदृढ़ करना: विरोधियों के मध्य भी सहयोग को सुगम बनाकर और कूटनीति के माध्यम से वैश्विक संकटों को रोककर संयुक्त राष्ट्र को राष्ट्रों के लिए एक मंच तथा मानवता के लिए एक अभिनेता के रूप में स्थापित करना।
  • संयुक्त राष्ट्र सचिवालय पारदर्शिता सुधार: प्रस्तावों में शामिल हैं:-
    • क्षेत्रीय कोटा के बजाय योग्यता-आधारित पदोन्नति।
    • वरिष्ठ सचिवालय पदों पर शक्तिशाली राष्ट्रों के प्रभुत्व को समाप्त करना।
  • लोकतंत्र सुधार: संयुक्त राष्ट्र को अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि बनाने की वकालत। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:-
    • महासचिव और महासभा के प्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष चुनाव।
    • प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र तंत्रों का मिश्रण।
    • सत्ता के अति-केंद्रीकरण को रोकने के लिए सहायकता सिद्धांत (Subsidiarity Principle) पर विचार।

UN80 पहल के बारे में 

  • सुधार प्रयास: UN80 पहल, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा वित्तीय चुनौतियों और वैश्विक अनिश्चितता के बीच 80 वर्ष पुराने संयुक्त राष्ट्र की दक्षता, लागत-प्रभावशीलता और रणनीतिक संरेखण में सुधार के लिए शुरू किया गया एक सुधारात्मक प्रयास है।
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • परिचालन दक्षताओं की पहचान: बेहतर प्रदर्शन के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
    • अधिदेशों के कार्यान्वयन की समीक्षा: सदस्य देशों के निर्देशों का कितनी प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन हो रहा है, इसका आकलन करना।
    • रणनीतिक और संरचनात्मक सुधार: संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों और प्रणालियों का गहन पुनर्गठन करना।
  • निहितार्थ
    • एक समर्पित कार्यबल इन सुधारों के लिए प्रस्ताव तैयार करेगा।
    • इस पहल का उद्देश्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वित्तीय बाधाओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र प्रभावशाली बना रहे।

निष्कर्ष 

संयुक्त राष्ट्र पूर्णता का नहीं, बल्कि संभावना का एक अनिवार्य प्रतीक बना हुआ है। जैसा कि डैग हैमरशॉल्ड ने कहा था, इसका उद्देश्य मानवता को स्वर्ग ले जाना नहीं, बल्कि मानवता को नरक से बचाना है’। अपनी 80वीं वर्षगाँठ के अवसर पर, इसकी चुनौती एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था के लिए उत्तरदायी बनाना है, जो पहले से कहीं अधिक सैद्धांतिक वैश्विक सहयोग पर आधारित हो।

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