संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत वर्ष 2023 में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है।
संबंधित तथ्य
वित्त वर्ष 2023 में आर्थिक विकास दर 6.8% है, औपचारिक बेरोजगारी 12 वर्ष के निचले स्तर 4.1% पर है।
सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष
भारत की अर्थव्यवस्था
सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था: भारत ने वित्त वर्ष 2023 में 6.8% की प्रभावशाली आर्थिक विकास दर हासिल की, जिससे यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गई, हालाँकि आर्थिक पुनरुद्धार कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रित था।
घरेलू स्तर पर संचालित विकास: भारत की आर्थिक सफलता मुख्य रूप से घरेलू कारकों से प्रेरित है, जिसमें विकसित देशों एवं चीन द्वारा उत्पन्न बाह्य जोखिम पर निर्भरता कम है।
बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा: बुनियादी ढाँचे पर सरकारी खर्च ने विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, सकल स्थिर पूँजी निर्माण में 6% की वृद्धि हुई, जो वित्त वर्ष 2023 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 34% तक पहुँच गया।
अनुकूल जनसांख्यिकी: भारत की युवा आबादी (15-24 वर्ष की आयु के 600 मिलियन युवा) घरेलू माँग को बढ़ावा देने का एक प्रभावी अवसर प्रस्तुत करती है।
यह जनसांख्यिकीय लाभ चीन, जापान एवं दक्षिण कोरिया जैसी कुछ क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से वृद्ध होती आबादी के विपरीत है।
लैंगिक समानता का अंतर: संयुक्त राष्ट्र भारत से लैंगिक समानता में सुधार करने एवं कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को एकीकृत करने का आग्रह करता है, विशेष रूप से विनिर्माण तथा पर्यटन जैसे क्षेत्रों में।
लैंगिक-समावेशी आर्थिक नीतियों को सूचित करने के लिए बेहतर डेटा संग्रह एवं विश्लेषण की आवश्यकता है।
GST सुधार की सफलता: संयुक्त राष्ट्र ने अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाने तथा अनुपालन बोझ को कम करने के लिए भारत के वस्तु एवं सेवा कर (GST) सुधार की सराहना की।
चावल निर्यात प्रतिबंध का प्रभाव: जुलाई 2023 में, भारत ने कुछ चावल निर्यात पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया, जिससे क्षेत्र में खाद्य पदार्थों की कीमतें और भी अधिक बढ़ गईं।
यह ऐसे समय में हुआ जब अल-नीनो के कारण मौसम संबंधी समस्याओं के कारण खाद्य कीमतें पहले से ही उच्च थीं।
जलवायु परिवर्तन की चिंताएँ: संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि भारत वर्ष 2030 तक हीट स्ट्रेस के कारण दैनिक कामकाजी घंटों का 5.8% नुकसान उठा सकता है, विशेष रूप से कृषि एवं निर्माण में बाहरी श्रमिकों को प्रभावित करेगा।
यह जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy)
अन्य अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन वृद्धि: उच्च जीवन लागत, आर्थिक अनिश्चितता में वृद्धि एवं कमजोर बाहरी माँग के कारण अन्य अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन की वृद्धि धीमी थी।
आय असमानता/लोगों की क्रय शक्ति में असमानता: उच्च मुद्रास्फीति एवं अपर्याप्त नौकरी के अवसरों ने व्यक्ति की खरीदारी क्षमता तथा आर्थिक संकट का सामना करने की उनकी क्षमता को कम कर दिया है।
बढ़ती आय असमानता के पीछे कोविड 19 महामारी एवं जीवन यापन की उच्च लागत प्रमुख कारक हैं। इनसे लगभग 42 मिलियन से अधिक लोग गरीबी चक्र में फँस गए हैं।
वैश्विक निकट अवधि आर्थिक दृष्टिकोण: मुद्रास्फीति अभी भी ऊँची है एवं इसके अतिरिक्त राजकोषीय स्थितियाँ भी अनुकूल नहीं हैं। इसके अलावा, चीन की आर्थिक मंदी का प्रभाव, भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि एवं एशिया-प्रशांत क्षेत्र में व्यापार व्यवधान जैसे कई जोखिम भी हैं।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उच्च उधार लागत: वर्ष 2019 से 2022 के दौरान, सरकार का ब्याज भुगतान शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक खर्च का लगभग 28 तथा 38 प्रतिशत था।
ESCAP विश्लेषण: इस विश्लेषण के अनुसार, निरंतर व्यापक आर्थिक एवं मुद्रास्फीति स्थिरता, मजबूत राजकोषीय स्थिति तथा वित्तीय बाजार तरलता को प्रबंधित करने की आवश्यकता है क्योंकि ये कम उधार दरों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण हैं।
वैश्विक कार्य घंटों का नुकसान
वैश्विक स्तर पर, बढ़ते तापमान के कारण लगभग 2.2% कामकाजी घंटों का नुकसान होने का अनुमान है।
विकासशील देशों में, हीट स्ट्रेस के कारण कुल उत्पादन हानि सालाना सकल घरेलू उत्पाद का 1.5% से 4.0% तक होने का अनुमान है।
श्रम उत्पादकता और सामाजिक कल्याण रणनीतियाँ: सीमित बचत वाले देशों को शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी अपनाने एवं बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करके उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
यह एहतियाती बचत को कम करने एवं वित्तीय पहुँच तथा साक्षरता को बढ़ावा देने में सहायता करेगा।
वर्ष 2023 में भारत के मजबूत आर्थिक प्रदर्शन के लाभ (संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार)
कम बेरोजगारी: भारत की प्रभावशाली विकास दर अधिक नौकरियाँ, निवेश एवं समग्र समृद्धि पैदा करेगी, जिससे बेरोजगारी दर में गिरावट आएगी।
मजबूत घरेलू माँग: भारत में एक बड़ी युवा आबादी खरीदने की क्षमता के साथ एक मजबूत घरेलू बाजार का गठन करती है।
बाहरी कारकों पर कम निर्भरता: भारत की आर्थिक सफलता अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में वैश्विक मंदी या व्यापार मुद्दों के प्रति कम संवेदनशील है।
सरल कर प्रणाली: GST सुधार ने कर प्रणाली को सुव्यवस्थित कर दिया है, जिससे व्यवसायों के लिए संचालन करना आसान हो गया है।
भारत के लिए संबोधित करने योग्य चुनौतियाँ:
जलवायु परिवर्तन: बढ़ता हीट स्ट्रेस श्रमिकों की उत्पादकता पर काफी असर डाल सकता है, विशेषकर बाहरी नौकरियों में।
लैंगिक समानता का अंतर: आर्थिक क्षमता बढ़ाने के लिए कार्यबल में महिलाओं की प्रतिभा के पूर्ण उपयोग हेतु लैंगिक समानता में सुधार एवं कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को एकीकृत करने की आवश्यकता है।
खाद्य सुरक्षा: चावल निर्यात प्रतिबंध भारत की अपनी आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
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