100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

संयुक्त राष्ट्र सुधार

Lokesh Pal March 17, 2025 02:20 14 0

संदर्भ 

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने UN80 पहल की घोषणा की है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र वर्ष 2025 में अपनी 80वीं वर्षगांठ मना रहा है।

संयुक्त राष्ट्र का वित्तपोषण

  • अनिवार्य योगदान: प्रत्येक संयुक्त राष्ट्र सदस्य को संगठन के बजट में योगदान देना आवश्यक है।
    • ये योगदान किसी देश की आर्थिक क्षमता पर आधारित होते हैं।
    • ये फंड मुख्य रूप से प्रशासनिक लागत तथा शांति अभियानों को कवर करते हैं।
  • स्वैच्छिक योगदान: कई देश विशिष्ट संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रमों के लिए अतिरिक्त धन प्रदान करते हैं। ये योगदान मानवीय सहायता, विकास तथा अन्य वैश्विक पहलों का समर्थन करते हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका: वर्ष 1945 में अपनी स्थापना के बाद से संयुक्त राष्ट्र को सबसे अधिक दान देने वाला देश अमेरिका रहा है।

पृष्ठभूमि

  • वित्तीय संकट और बजट की कमी: संयुक्त राष्ट्र लगातार सातवें वर्ष वित्तीय संकट का सामना कर रहा है।
    • वर्ष 2025 का संयुक्त राष्ट्र बजट 3.7 बिलियन डॉलर है, जिसमें राजनीतिक, मानवीय, निरस्त्रीकरण, आर्थिक और सामाजिक मामले शामिल हैं।
      • अमेरिका ने अभी तक यह पुष्टि नहीं की है कि वह वर्ष 2025 के बजट में कितना योगदान देगा।
  • प्रमुख योगदानकर्ता और भुगतान अनिश्चितता
    • संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट में अमेरिका और चीन सबसे ज्यादा योगदानकर्ता हैं:-
      • अमेरिका का हिस्सा: 22% (सबसे बड़ा योगदानकर्ता) लेकिन उस पर 1.5 बिलियन डॉलर बकाया है।
      • चीन का हिस्सा: 20% (वर्ष 2025 में 5% की वृद्धि)। चीन ने पूर्ण भुगतान का आश्वासन दिया है लेकिन समयसीमा निर्दिष्ट नहीं की है।
    • 7 मार्च, 2025 तक, केवल 73 सदस्य देशों ने अपने पूर्ण मूल्यांकन का भुगतान किया था।
  • खर्च में कटौती एवं भर्ती पर रोक: वित्तीय अनिश्चितता के कारण, संयुक्त राष्ट्र ने:
    • खर्च में 20% तक की कमी की गई।
    • भर्ती पर रोक लगाई गई।
    • जनवरी से अगस्त 2025 के बीच वित्तीय नियोजन को लेकर सतर्क रहा है।

संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का इतिहास

  • शांति के लिए प्रारंभिक प्रयास (वर्ष 1899-1902)
    • वर्ष 1899: हेग में अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन का उद्देश्य युद्धों को रोकना, संकटों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाना और युद्ध के नियम स्थापित करना था।
    • वर्ष 1902: स्थायी मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना की गई, जिसने बाद में संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को प्रभावित किया।
  • लीग ऑफ नेशंस (वर्ष 1919)
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और शांति सुनिश्चित करने के लिए प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्साय की संधि के तहत बनाया गया।
    • इस संधि के तहत एक संबद्ध एजेंसी के रूप में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की भी स्थापना की गई।
  • संयुक्त राष्ट्र के नाम की उत्पत्ति (वर्ष 1942)
    • इसे अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट द्वारा गढ़ा गया।
    • संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषणा (वर्ष 1942) पर 26 देशों ने हस्ताक्षर किए, जिसमें धुरी शक्तियों (इटली-जर्मनी-जापान धुरी) के खिलाफ लड़ने और अलग-अलग शांति संधियों पर रोक लगाने का संकल्प लिया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र का गठन (वर्ष 1945): अंतरराष्ट्रीय संगठन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सैन फ्रांसिस्को, यूएसए) के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए, जो एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र की आधारभूत संधि है।

UN80 पहल के बारे में

  • सुधार प्रयास: UN80 पहल संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा वित्तीय चुनौतियों तथा वैश्विक अनिश्चितता के बीच 80 वर्षीय संयुक्त राष्ट्र की दक्षता, लागत-प्रभावशीलता तथा रणनीतिक संरेखण में सुधार करने के लिए शुरू किया गया एक सुधार प्रयास है।
  • मुख्य फोकस क्षेत्र
    • परिचालन दक्षताओं की पहचान करना: बेहतर प्रदर्शन के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
    • अधिदेशों के कार्यान्वयन की समीक्षा करना: यह आकलन करना कि सदस्य राज्यों के निर्देशों को कितनी प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जा रहा है।
    • रणनीतिक एवं संरचनात्मक सुधार: संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों और प्रणालियों का गहन पुनर्गठन करना।
  • कार्यान्वयन
    • एक समर्पित टास्क फोर्स इन सुधारों के लिए प्रस्ताव विकसित करेगी।
    • इस पहल का उद्देश्य संसाधनों को अधिकतम करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वित्त पोषण की कमी के बावजूद संयुक्त राष्ट्र प्रभावशाली बना रहे।

संयुक्त राष्ट्र में प्रमुख सुधारों की समय-सीमा

  • वर्ष 1997: कोफी अन्नान ने दो सुधार पैकेजों के साथ संयुक्त राष्ट्र सुधार के लिए अपनी योजना की घोषणा की: ‘ट्रैक वन’ (संरचनात्मक परिवर्तन) और ‘ट्रैक टू’ (प्रबंधन सुधार) दक्षता तथा प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए।
  • वर्ष 2000: सहस्राब्दि शिखर सम्मेलन और सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (MDG): संयुक्त राष्ट्र ने गरीबी में कमी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए वैश्विक लक्ष्य निर्धारित करते हुए MDG को अपनाया।
  • वर्ष 2004: सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिए दो मॉडल प्रस्तावित किए गए।
  • वर्ष 2005: कोफी अन्नान ने अपनी रिपोर्ट ‘इन लार्जर फ्रीडम’ के साथ अपना सबसे व्यापक सुधार एवं नीतिगत एजेंडा प्रस्तुत किया।
    • शांति स्थापना आयोग (Peacebuilding Commission- PBC) की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2006: मानवाधिकार परिषद ने पूर्व संयुक्त राष्ट्र आयोग की जगह ली।
  • वर्ष 2007-2016: बान की मून के कार्यकाल के दौरान सतत् विकास के लिए 2030 एजेंडा की शुरूआत और पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के साथ सुधार जारी रहे।
  • वर्ष 2015: सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को अपनाना: SDG ने MDG की जगह ली, वर्ष 2030 तक वैश्विक विकास के लिए 17 लक्ष्य निर्धारित किए।
  • वर्ष 2017-2020: संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा परिकल्पित सुधार जारी रहे हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के शांति और सुरक्षा स्तंभ पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र (UN) के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार और विकास को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। वर्तमान में इसके 193 सदस्य देश हैं और यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • वर्ष 1945 का UN चार्टर एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में संयुक्त राष्ट्र की आधारभूत संधि है।
  • UN के मुख्य अंग
    • महासभा (UNGA): मुख्य विचार-विमर्श निकाय जिसमें सभी सदस्य देश भाग लेते हैं।
    • सुरक्षा परिषद (UNSC): पाँच स्थायी सदस्यों (P5) और दस निर्वाचित सदस्यों के साथ अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखता है।
    • आर्थिक और सामाजिक परिषद (ECOSOC): वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण नीतियों का समन्वय करता है।
    • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ): राज्यों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करता है।
    • सचिवालय: महासचिव के नेतृत्व में, यह दिन-प्रतिदिन के कार्यों को अंजाम देता है।

संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता

  • पुरानी संरचना: संयुक्त राष्ट्र की स्थापना वर्ष 1945 में 51 सदस्य देशों के साथ की गई थी, लेकिन अब इसमें 193 देश हैं, जिससे इसका कार्यान्वयन ढाँचा पुराना हो गया है।
    • वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणालियों में भारी बदलाव आया है, जिसके लिए संरचनात्मक अपडेट की आवश्यकता है।
  • वैश्विक असमानताएँ: विकासशील राष्ट्र बढ़ते कर्ज और असमानता का सामना कर रहे हैं, जिससे उनकी प्रगति सीमित हो रही है। मौजूदा वैश्विक प्रणालियाँ सतत विकास चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने में विफल हैं।
  • वैधता एवं विश्वसनीयता के मुद्दे: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुछ स्थायी सदस्यों का प्रभुत्व विश्वास को कमजोर करता है।
  • असमान प्रतिनिधित्व: सुरक्षा परिषद में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का प्रतिनिधित्व कम है। सीटों का अधिक न्यायसंगत वितरण वैश्विक निर्णय लेने और वैधता में सुधार करेगा।
    • उदाहरण: ‘यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस’ (Uniting for Consensus-UfC) इटली, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, कनाडा, मैक्सिको, अर्जेंटीना, कोलंबिया, तुर्की, स्पेन और इंडोनेशिया से मिलकर बना एक समूह है जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीटों के विस्तार का विरोध करता है।
  • वित्तीय और प्रशासनिक सुधार: शांति स्थापना और विकास की माँग बढ़ने के कारण संयुक्त राष्ट्र को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण: विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) तथा शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) जैसी कई संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों को लगातार कम वित्त पोषण का सामना करना पड़ रहा है।
  • वैश्विक सुरक्षा चुनौतियाँ: संघर्ष, आतंकवाद और मानवीय संकटों के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से अधिक मजबूत प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। सुधारित सुरक्षा परिषद निवारक कूटनीति और शांति स्थापना प्रयासों को बढ़ाएगी।

संयुक्त राष्ट्र में निर्णय लेना

  • साधारण बहुमत मत: संयुक्त राष्ट्र में अधिकांश निर्णय सभी सदस्यों के साधारण बहुमत मत द्वारा लिए जाते हैं।
  • दो-तिहाई बहुमत: सदस्यता संबंधी मुद्दों जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए आवश्यक है।
  • सर्वसम्मति-आधारित निर्णय: निरस्त्रीकरण सम्मेलन जैसे कुछ निकायों में पूर्ण सहमति की आवश्यकता होती है, जिससे प्रत्येक सदस्य को प्रभावी रूप से वीटो मिल जाता है।
  • सुरक्षा परिषद वीटो शक्ति: P5 (चीन, फ्रांस, रूस, यूके और अमेरिका) के पास वीटो शक्ति है, जिससे वे किसी भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव को रोक सकते हैं।
    • प्रत्येक P5 सदस्य के पास वीटो शक्ति है, जिसका अर्थ है कि वे किसी भी महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव को रोक सकते हैं, भले ही अन्य सभी सदस्य उसका समर्थन करना।
    • यह प्रतिबंधों, सैन्य हस्तक्षेप और शांति अभियानों जैसे मुद्दों पर लागू होता है।
    • उदाहरण: इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दा: संयुक्त राज्य अमेरिका ने अक्सर अपने वीटो पावर का इस्तेमाल इजराइल की आलोचना करने वाले प्रस्तावों को रोकने के लिए किया है, भले ही व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन हो, इस प्रकार परिषद को लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को संबोधित करने के लिए कार्रवाई करने से रोका जाता है।

संयुक्त राष्ट्र के लिए सुधार संबंधी विचार

  • सुरक्षा परिषद सुधार: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता वर्ष 1945 की विश्व व्यवस्था को दर्शाती है और इसमें उभरती शक्तियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • सुधार के प्रस्तावों में शामिल हैं:
    • G4 राष्ट्रों का प्रस्ताव: ब्राजील, जर्मनी, भारत और जापान स्थायी सीटें चाहते हैं।
    • सर्वसम्मति के लिए एकजुट होना समूह: नए स्थायी सदस्यों का विरोध करता है, गैर-स्थायी सीटों के विस्तार की वकालत करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सचिवालय पारदर्शिता सुधार: प्रस्तावों में शामिल हैं:-
    • क्षेत्रीय कोटा के बजाय योग्यता आधारित पदोन्नति।
    • वरिष्ठ सचिवालय पदों पर शक्तिशाली राष्ट्रों के प्रभुत्व को समाप्त करना।
  • लोकतंत्र सुधार: संयुक्त राष्ट्र को और अधिक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि बनाने की वकालत करता है। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
    • महासचिव और महासभा के प्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष चुनाव।
    • प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र तंत्रों का मिश्रण।
    • सत्ता के अति-केंद्रीकरण को रोकने के लिए सहायकता सिद्धांत पर विचार।
  • वित्त पोषण सुधार: संयुक्त राष्ट्र को स्वतंत्र रूप से वित्त पोषित करने के लिए प्रस्तावित तंत्र।
  • हथियार बिक्री पर कर प्रस्ताव: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना और मानवीय प्रयासों को वित्त पोषित करने के लिए हथियारों की बिक्री पर कर लगाना।
  • वैश्विक संसाधन लाभांश: स्थायी वित्त पोषण सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक संसाधन उपयोग पर कर।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार की वकालत करने वाले समूह

  • G4 (भारत, ब्राजील, जर्मनी, जापान): स्थायी सदस्यता और विस्तारित UNSC प्रतिनिधित्व, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए, की माँग करता है।
  • L69 (विकासशील राष्ट्र समूह): वैश्विक दक्षिण प्रतिनिधित्व और व्यापक UNSC सुधारों की वकालत करता है।
    • सदस्य: इसमें एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, कैरिबियन और प्रशांत (छोटे द्वीपीय विकासशील राष्ट्र) के 42 विकासशील देश (भारत सहित) शामिल हैं।
    • नामकरण: वर्ष 2007-08 में प्रस्तुत मसौदा दस्तावेज संख्या ‘L.69’ पर आधारित, जिसके कारण अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया की शुरुआत हुई।
  • C-10 (अफ्रीकी राष्ट्र समूह): दस अफ्रीकी देशों का समूह, अर्थात् अल्जीरिया, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, केन्या, लीबिया, नामीबिया, सेनेगल, सिएरा लियोन, युगांडा और जाम्बिया।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मजबूत अफ्रीकी उपस्थिति के लिए आम अफ्रीकी स्थिति (CAP) का समर्थन करता है।
  • IBSA (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका): G4 और L69 मांगों के साथ संरेखित करते हुए व्यापक संयुक्त राष्ट्र सुधारों का आह्वान करता है।

भारत तथा संयुक्त राष्ट्र

  • संस्थापक सदस्य: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषणापत्र पर हस्ताक्षर (वर्ष 1942) तथा संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के लिए सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन (वर्ष 1945) में भाग लिया।
  • उपनिवेशवाद के उन्मूलन में नेतृत्व: स्वतंत्रता पर वर्ष 1960 की घोषणा को सह-प्रायोजित किया तथा उपनिवेशवाद उन्मूलन समिति की अध्यक्षता की।
  • रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई: संयुक्त राष्ट्र में रंगभेद को उठाने वाला पहला देश (वर्ष 1946) तथा वर्ष 1965 के नस्लीय भेदभाव विरोधी सम्मेलन का समर्थन किया।
  • विकासशील देशों के लिए अधिवक्ता: NAM तथा G77 के संस्थापक सदस्य, एक निष्पक्ष वैश्विक व्यवस्था के लिए प्रयासरत।
  • शांति स्थापना में अग्रणी: वर्ष 1948 से 49 मिशनों में 244,500 से अधिक कर्मियों के साथ सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्ता।
  • शांति स्थापना में महिलाएँ: सभी महिलाओं वाली पुलिस इकाई (वर्ष 2007, लाइबेरिया) तैनात करने वाला पहला देश, जिसने सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका को बढ़ावा दिया।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य: भारत कई मौकों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में कार्य कर चुका है, विशेष रूप से निम्नलिखित अवधियों के दौरान:- 
    • वर्ष 1950-51, वर्ष 1967-68, वर्ष 1972-73, वर्ष 1977-78, वर्ष 1984-85, वर्ष 1991-92, वर्ष 2011-12 और वर्ष 2021-22

संयुक्त राष्ट्र के बारे में भारत की चिंताएँ

  • वैश्विक संकटों से निपटने में विफलता: संयुक्त राष्ट्र कोविड-19, रूस-यूक्रेन युद्ध, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों से निपटने में संघर्ष कर रहा है। भारत संगठन को अधिक प्रभावी और प्रासंगिक बनाने के लिए तत्काल सुधारों की माँग करता है।
  • अनुचित वीटो पावर संरचना: आज, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य-देश हैं और UNSC के केवल पंद्रह सदस्य हैं (सदस्य देशों के 8% से भी कम)।
    • पाँच स्थायी सदस्यों (P-5) के पास वीटो पावर निर्णय लेने में असंतुलन उत्पन्न करती है।
    • भारत सुरक्षा परिषद में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया जैसे क्षेत्रों के अधिक प्रतिनिधित्व की वकालत करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुधारों पर धीमी प्रगति: अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र सुधार निष्क्रिय रहे हैं। भारत जोर देता है कि आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करने के लिए सुधार प्रयासों को तेज किया जाना चाहिए।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर-सरकारी वार्ता में G-4 देशों के हिस्से के रूप में भारत ने वीटो पावर के मुद्दे पर लचीलापन प्रदर्शित करते हुए महासभा द्वारा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित स्थायी सदस्यों की वकालत करते हुए एक विस्तृत मॉडल प्रस्तावित किया।
  • विकासात्मक और आर्थिक विषमताएँ: भारत ने आर्थिक विकास और जलवायु वार्ता में उत्तर-दक्षिण विभाजन पर चिंता व्यक्त की है।

आगे की राह 

  • UNSC विस्तार के लिए वकालत को मजबूत करना: भारत को विकासशील देशों के लिए समान प्रतिनिधित्व के साथ सुधारित सुरक्षा परिषद के लिए दबाव बनाना जारी रखना चाहिए।
    • उदाहरण: G4 तथा अफ्रीकी संघ के साथ गठबंधन को मजबूत करना बदलाव के लिए कूटनीतिक दबाव बना सकता है।
  • बहुपक्षीय वित्तीय योगदान को बढ़ाना: संयुक्त राष्ट्र आरक्षित निधि जैसे स्थायी वित्तपोषण तंत्र की वकालत करने से प्रमुख दाताओं पर निर्भरता कम हो सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुधार (UNGA): द्विसदनीय संसदीय प्रणाली का प्रस्ताव UNGA की निर्णय लेने की प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है। UNGA प्रस्तावों के कार्यान्वयन को मजबूत करने से बेहतर वैश्विक प्रभाव सुनिश्चित होगा।
    • क्षेत्रीय और विषयगत गठबंधनों का लाभ उठाना ब्रिक्स, क्वाड और ग्लोबल साउथ के साथ जुड़ना संयुक्त राष्ट्र सुधारों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है।
    • वैश्विक शासन को आकार देने के लिए भारत को संयुक्त राष्ट्र से परे बहुपक्षीय मंचों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।
    • NAM, WTO और व्यापार ब्लॉकों में कूटनीतिक पहुँच का विस्तार सुनिश्चित करेगा कि भारत के हितों की रक्षा हो।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र वैश्विक शांति, सुरक्षा और विकास को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन आधुनिक चुनौतियों का सामना करने के लिए इसकी संरचनाओं को विकसित किया जाना चाहिए। निर्णय लेने में अधिक समावेशिता, प्रभावशीलता और वैधता सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में सुधार आवश्यक है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.