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सार्वभौमिक बुनियादी आय

Lokesh Pal September 14, 2024 02:31 128 0

संदर्भ

जब से अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) की नवीनतम विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य (World Employment and Social Outlook) रिपोर्ट में नौकरियों में गिरावट एवं बढ़ती असमानता को ऑटोमेशन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते दायरे से जोड़ा गया है, तब से सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income) की अवधारणा  पर चर्चा शुरू हो गई है।

भारत में सार्वभौमिक बुनियादी आय की लोकप्रियता बढ़ने के प्रमुख कारण

  • बजट 2024: पूँजी निवेश में वृद्धि पूँजी-गहन क्षेत्रों (जैसे रेलवे, राजमार्ग, विद्युत) की ओर निर्देशित की जा रही है।
    • भारत सरकार पूँजी गहन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए 11.11 लाख करोड़ रुपये के पूँजीगत निवेश को प्रोत्साहन दे रही है।
  • रोजगार पर प्रभाव: रेलवे कॉरिडोर और राजमार्ग निर्माण जैसी पूँजी-गहन परियोजनाएँ सीमित प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करती हैं।
    • आधुनिक निर्माण तकनीकें पारंपरिक तरीकों की तुलना में नौकरियों की संख्या कम कर देती हैं।
  • ई-कॉमर्स प्रभाव: ई-कॉमर्स वृद्धि फुटकर वस्तुओं वाली दुकानों को विस्थापित कर रही है, जिससे व्यापार क्षेत्र में रोजगार प्रभावित हो रहा है।
  • रोजगार संकट: बेरोजगारी में वृद्धि से रोजगार हानि बढ़ोतरी में बदलाव का तात्पर्य है कि विस्थापित श्रमिकों को नया रोजगार खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जिससे निम्न आय स्तर पर स्वरोजगार में वृद्धि होती है।
  • मौजूदा कार्यक्रम: भारत ने किसानों, महिलाओं और बेरोजगार युवाओं के लिए नकद हस्तांतरण सहित विभिन्न सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) जैसी योजनाओं को लागू किया है।
    • ये कार्यक्रम सार्वभौमिक न होकर अर्द्ध-UBI के रूप हैं।

सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) के बारे में

  • सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI): यह एक सामाजिक-आर्थिक नीति है, जिसके तहत सभी नागरिकों को सरकार से नियमित, बिना शर्त धनराशि मिलती है, चाहे उनकी रोजगार स्थिति या आय कुछ भी हो।
  • उद्देश्य: सभी के लिए एक बुनियादी आय स्तर सुनिश्चित करके वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना और गरीबी को कम करना।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • बिना शर्त (Unconditional): UBI बिना किसी शर्त के सभी को दिया जाता है, जैसे कि रोजगार की स्थिति या धन।
    • सार्वभौमिक (Universal): प्रत्येक नागरिक पात्र है, चाहे उनकी वित्तीय पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
    • नियमित और आवर्ती (Regular and Recurring): UBI आमतौर पर नियमित आधार पर प्रदान किया जाता है, जैसे कि मासिक या वार्षिक।
    • नकद भुगतान (Cash Payments): इसका भुगतान नकद में किया जाता है, न कि वस्तुगत लाभों (जैसे भोजन या आवास सहायता) में, जिससे लोगों को यह तय करने की अनुमति मिलती है कि वे पैसे कैसे खर्च करें?

भारत में सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) लागू करने की आवश्यकता

अपनी विशाल जनसंख्या, आय असमानता और बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के कारण भारत को UBI से कई तरह से लाभ हो सकता है।

  • असमानता को कम करना: UBI अमीर और गरीब के बीच आय के अंतर को पाटने में मदद कर सकता है, यह सुनिश्चित करके कि हर किसी को, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना, वित्तीय सहायता मिलती है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के विश्व रोजगार और सामाजिक परिदृश्य अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2024 में दुनिया की लगभग एक-तिहाई युवा महिलाएँ (28.2%) रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं होंगी, ऐसा अनुमान है, जो युवा पुरुषों (13.1%) से दोगुना है।
  • श्रमिकों के लिए सुरक्षा जाल: भारत की लगभग 80% श्रम शक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक लाभ दुर्लभ हैं।
    • UBI अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए सुरक्षा जाल के रूप में कार्य कर सकता है तथा उन्हें वित्तीय स्थिरता प्रदान कर सकता है।
  • अकुशल कल्याण कार्यक्रम: भारत में एक जटिल और विखंडित कल्याणकारी प्रणाली है, जो अक्सर अकुशलता, भ्रष्टाचार और अनुत्पादक लक्ष्य निर्धारण से प्रभावित है।
    • UBI सभी को प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण प्रदान करके कल्याणकारी प्रणाली को सरल बनाएगी, बिचौलियों की आवश्यकता को समाप्त करेगी और धन की चोरी को कम करेगी।
  • उद्यमिता और नवाचार: बुनियादी आय प्रदान करके, UBI लोगों (गरीबी के दुश्चक्र में फँसने के बजाय) को जोखिम उठाने के लिए सशक्त बना सकता है, जैसे कि व्यवसाय शुरू करना, शिक्षा प्राप्त करना, या रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होना।
  • कृषि संकट: UBI कम आय, कर्ज और फसल विफलताओं के कारण संघर्ष कर रहे किसानों को वित्तीय बफर प्रदान कर सकता है, जिससे उन्हें खेती में अनिश्चितताओं से निपटने में मदद मिलेगी।
  • महिलाओं और कमजोर समूहों का समर्थन: UBI महिलाओं को, विशेष रूप से ग्रामीण और कम आय वाले परिवारों को, सीधे नकद हस्तांतरण प्रदान कर सकता है, जिससे उनकी वित्तीय स्वतंत्रता तथा निर्णय लेने की शक्ति में सुधार करने में मदद मिलेगी।
  • प्रवास और ग्रामीण गरीबी: UBI ग्रामीण गरीबी को संबोधित कर सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी केंद्रों में संकटपूर्ण प्रवास को कम कर सकता है, जिससे लोगों को अपने गृह क्षेत्रों में आर्थिक सुरक्षा का एक बुनियादी स्तर मिल सकता है।

भारत में सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) को लागू करने में कई चुनौतियाँ हैं:

  • उच्च लागत: भारत की आबादी बहुत अधिक है और प्रत्येक नागरिक को बुनियादी आय प्रदान करने के लिए पर्याप्त वित्तीय व्यय की आवश्यकता होगी। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया था कि प्रत्येक भारतीय के लिए प्रति वर्ष 7,620 रुपये की UBI की लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.9% होगी।
  • सार्वभौमिक बनाम लक्षित: सार्वभौमिक दृष्टिकोण उन लोगों पर संसाधनों को बर्बाद कर सकता है जिन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है, जबकि लक्षित दृष्टिकोण मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं में देखी गई बहिष्करण त्रुटियों जैसे मुद्दों को वापस ला सकता है।
  • मूल्य वृद्धि: अर्थव्यवस्था में बड़ी मात्रा में नकदी डालने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, विशेष रूप से खाद्य और आवश्यक वस्तुओं में।
    • इससे गरीबों के लिए UBI के सकारात्मक प्रभाव समाप्त हो सकते हैं, जो मूल्य वृद्धि से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
  • असमान पहुँच: यदि UBI को सावधानीपूर्वक डिजाइन नहीं किया गया तो यह लैंगिक असमानता के मुद्दों को हल करने में विफल हो सकता है।
    • पितृसत्तात्मक परिवारों में पुरुषों का वित्तीय संसाधनों पर अधिक नियंत्रण हो सकता है, जिससे महिलाएँ हाशिये पर चली जाती हैं।
  • निर्भरता जोखिम: ऐसी चिंता है कि UBI ‘निर्भरता की संस्कृति’ उत्पन्न कर सकती है, जहाँ लोग शिक्षा या रोजगार के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करने का प्रयास किए बिना केवल बुनियादी आय पर निर्भर हो सकते हैं।
  • श्रम बाजार विकृति (Labour Market Distortion): आलोचकों का तर्क है कि गारंटीकृत आय से कार्य करने का प्रोत्साहन कम हो सकता है, जिससे कृषि एवं अनौपचारिक नौकरियों जैसे श्रम-गहन क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का गठन करते हैं।

वैश्विक उदाहरण

  • फिनलैंड: फिनलैंड ने बेरोजगार नागरिकों पर UBI के प्रभावों पर एक प्रयोग पूरा किया, जो जनवरी 2017 में शुरू हुआ।
  • कनाडा: इससे पहले, कनाडा ने एक तरह की बिना शर्त आय गारंटी का परीक्षण करने की योजना की घोषणा की थी और तीन वर्ष तक की गारंटी वाली आय के लिए प्रांत के तीन क्षेत्रों में प्रतिभागियों को नामांकित किया था।
  • नीदरलैंड: नीदरलैंड के कुछ शहरों ने UBI के लिए नगरपालिका स्तर पर परीक्षण शुरू किए हैं।

भारत में UBI के कार्यान्वयन की आगे की राह

सफल कार्यान्वयन के लिए सतर्क, चरणबद्ध और सुनियोजित दृष्टिकोण आवश्यक है।

  • स्थानीयकृत प्रयोग: वैश्विक उदाहरणों (जैसे, फिनलैंड, कनाडा) के समान भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पायलट परियोजनाओं का संचालन करने से UBI की व्यवहार्यता का आकलन करने में मदद मिल सकती है।
    • सरकार को गरीबी उन्मूलन, उपभोग पैटर्न, मुद्रास्फीति और श्रम भागीदारी पर UBI के प्रभावों का आकलन करने के लिए व्यापक डेटा एकत्र करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

  • प्रारंभ में लक्षित कार्यान्वयन: UBI को सार्वभौमिक रूप से लागू करने के बजाय, सरकार सबसे कमजोर आबादी, जैसे छोटे किसान, अनौपचारिक श्रमिक, महिलाएँ और हाशिये पर पड़े समुदायों को लक्षित करके शुरुआत कर सकती है।
    • इससे राजकोषीय बोझ कम होगा और यह सुनिश्चित होगा कि अत्यंत जरूरतमंद लोगों को तत्काल सहायता मिलेगी।
  • मौजूदा सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना: ऐसे कल्याणकारी कार्यक्रम, जो ओवरलैप करते हैं या समान उद्देश्य को पूरा करते हैं, उन्हें UBI के संदर्भ में तर्कसंगत बनाया जा सकता है।
  • कर सुधार: सरकार राजकोषीय घाटे को असंतुलित किए बिना UBI को स्थायी रूप से वित्तपोषित करने के लिए धन कर या कार्बन कर जैसे राजस्व के नए स्रोतों की खोज कर सकती है।
  • मौद्रिक नीति समन्वय: नकद हस्तांतरण से उत्पन्न होने वाले मुद्रास्फीति संबंधी दबावों को प्रबंधित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को सरकार के साथ समन्वय करने की आवश्यकता होगी।
    • समय के साथ UBI फंड के वितरण को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने से, बड़ी एकमुश्त राशि के बजाय, मुद्रास्फीति के तत्काल जोखिम को कम किया जा सकता है, विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं में।
  • आधार और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): भारत के मौजूदा बुनियादी ढाँचे, जैसे आधार और DBT प्रणालियों को लाभार्थियों को कुशल, पारदर्शी और प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण सुनिश्चित करने के लिए मजबूत किया जा सकता है, जिससे भ्रष्टाचार और धन का रिसाव कम हो सकता है।
  • UBI को आर्थिक सशक्तीकरण से जोड़ना: 2000 के दशक के मध्य में सुरक्षा जाल प्रदान करने के प्रयासों से पता चला कि बिना कार्य के पैसा देने से सामाजिक विभाजन और सम्मान की हानि हो सकती है।
    • बेरोजगारों के लिए अलगाव और नकारात्मक लेबल को रोकने के लिए कार्य उपलब्ध कराना महत्त्वपूर्ण है।
    • यह व्यक्तियों को UBI द्वारा प्रदान की गई वित्तीय सुरक्षा का उपयोग शिक्षा प्राप्त करने, व्यवसाय शुरू करने और उत्पादक गतिविधियों में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

निष्कर्ष

वैश्विक अनुभवों से सीख लेकर, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर तथा भारत के विविध सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य द्वारा प्रस्तुत अद्वितीय चुनौतियों का समाधान करके, UBI को इस तरह से लागू किया जा सकता है, जिससे जोखिम को न्यूनतम करते हुए देश की कल्याणकारी संरचना को मजबूती मिले।

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