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भारत की हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता को अनलॉक करना

Lokesh Pal November 15, 2025 05:05 20 0

संदर्भ

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में हरित हाइड्रोजन पर तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICGH-2025) को संबोधित किया।

हरित हाइड्रोजन पर तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICGH-2025) की प्रमुख पहल

  • संपूर्ण भारत में चार ‘हाइड्रोजन वैली इनोवेशन क्लस्टर’ (HVIC) की घोषणा की गई
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा परिकल्पित और अब नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM) के अंतर्गत एकीकृत किया गया है।

    • महत्त्व: इन्हें भारत की पहली बड़े पैमाने की हाइड्रोजन प्रदर्शन परियोजनाओं को प्रदर्शित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
      • ये नवाचार, मानकीकरण और नीति विकास के लिए जीवंत प्रयोगशालाओं के रूप में कार्य करते हैं।
    • उद्देश्य: उत्पादन और भंडारण से लेकर परिवहन और उपयोग तक हाइड्रोजन की संपूर्ण मूल्य शृंखला को प्रदर्शित करने के लिए संपूर्ण देश में चार हाइड्रोजन वैली विकसित की जा रही हैं।
    • कुल निवेश: ₹485 करोड़, जिसमें शामिल हैं:-
      • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM) के तहत ₹169.89 करोड़
      • उद्योग और कंसोर्टियम भागीदारों से ₹315.43 करोड़।
  • ₹1 लाख करोड़ की अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) योजना के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा
    • नवंबर 2025 में प्रारंभ की गई अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) योजना एक बड़े संरचनात्मक परिवर्तन का प्रतीक है।
    • संरचना: ₹1 लाख करोड़, जिसमें से ₹20,000 करोड़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) को आवंटित किए गए है।
    • उद्देश्य: इस योजना का उद्देश्य स्टार्ट-अप्स और उद्योग जगत की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए गहन तकनीक और स्वच्छ ऊर्जा नवाचार को मजबूत करना है।
    • नीतिगत बदलाव: यह पहल सरकार द्वारा संचालित वित्तपोषण से एक अधिक सहयोगात्मक, सतत् मॉडल की ओर बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है, जो दीर्घकालिक वैज्ञानिक और आर्थिक लचीलापन सुनिश्चित करता है।
  • अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) के माध्यम से संस्थागत एकीकरण 
    • अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को एक ऐतिहासिक सुधार के रूप में रेखांकित किया गया है।
    • वैधानिक निकाय: अनुसंधान राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान विधेयक, 2023 के अंतर्गत स्थापित किया गया।
    • ANRF देश में वैज्ञानिक अनुसंधान को उच्च-स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करने हेतु एक शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करता है।
    • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय।
    • पूर्ववर्ती: विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान बोर्ड (SERB) का स्थान लेता है।
    • कार्य: शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं और उद्योगों में अनुसंधान एवं नवाचार को वित्तपोषित, प्रोत्साहित और समन्वित करना।
  • MAHA-EV मिशन स्वदेशी हाइड्रोजन और गतिशीलता प्रौद्योगिकियों को मजबूत कर रहा है:
    • MAHA-EV (उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों में उन्नति हेतु मिशन – इलेक्ट्रिक वाहन): स्वदेशी बैटरियों, ईंधन सेल, EV घटकों और हाइड्रोजन-आधारित गतिशीलता को बढ़ावा देता है।
    • स्केलेबल चार्जिंग और हाइड्रोजन ईंधन भरने के बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करता है।
    • हरित गतिशीलता में आत्मनिर्भर भारत को सुदृढ़ करता है।
  • मिशन इनोवेशन 2.0: ‘मिशन इनोवेशन’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।
    • मिशन इनोवेशन 2.0 के अंतर्गत, भारत स्वच्छ हाइड्रोजन की लागत को 2 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम तक कम करने और वर्ष 2030 तक अपने हाइड्रोजन वैली मॉडल को वैश्विक स्तर पर दोहराने के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।
  • वैश्विक हाइड्रोजन परिवर्तन में भारत की स्थिति: भारत को आत्मनिर्भर हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की ओर वैश्विक बदलाव का एक प्रमुख वाहक माना जा रहा है।
    • स्वच्छ ऊर्जा को अब केवल एक पर्यावरणीय विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि एक आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक अनिवार्यता के रूप में देखा जा रहा है।
    • भारत का लक्ष्य हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों को न केवल अपनाना है, बल्कि उनका आविष्कार और नेतृत्व करना भी है।

ग्रीन हाइड्रोजन के बारे में

  • इसका उत्पादन जीवाश्म ईंधन के बजाय सौर या पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके किया जाता है।
  • इस विधि से निर्मित हाइड्रोजन को ‘हरित’ माना जाता है, यदि इस प्रक्रिया से होने वाला कुल उत्सर्जन बहुत कम हो, यानी उत्पादित प्रत्येक 1 किलोग्राम हाइड्रोजन के लिए 2 किलोग्राम CO₂ समतुल्य से अधिक न हो।

  • हरित हाइड्रोजन का उत्पादन बायोमास (जैसे कृषि अपशिष्ट) को हाइड्रोजन में परिवर्तित करके भी किया जा सकता है, बशर्ते उत्सर्जन उसी सीमा से नीचे रहे।
  • हरित हाइड्रोजन का उत्पादन कैसे किया जाता है?
    • हरित हाइड्रोजन का उत्पादन इलेक्ट्रोलिसिस पर निर्भर करता है, एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके इलेक्ट्रोलाइजर के माध्यम से विद्युत धारा प्रवाहित करके जल (H₂O) को हाइड्रोजन (H₂) और ऑक्सीजन (O₂) में विभाजित किया जाता है, जबकि ग्रे हाइड्रोजन के लिए कार्बन दहन की आवश्यकता होती है।
    • इसके उत्पादन में प्रमुख कारक शामिल हैं
      • इलेक्ट्रोलाइजर: ऐसे उपकरण, जो जल के अणुओं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करते हैं।
      • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: सौर, पवन और जल विद्युत अपघटन के लिए आवश्यक विद्युत प्रदान करते हैं, जिससे शून्य कार्बन उत्सर्जन सुनिश्चित होता है।
      • जल संसाधन: पर्याप्त जल आपूर्ति आवश्यक है, क्योंकि एक टन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए लगभग नौ टन जल की आवश्यकता होती है।

हाइड्रोजन के प्रकार

हरित हाइड्रोजन का महत्त्व

  • शून्य कार्बन उत्सर्जन: ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके किया जाता है, जो उपोत्पाद के रूप में केवल जल वाष्प उत्सर्जित करता है, जबकि जीवाश्म ईंधन बड़ी मात्रा में CO₂ उत्सर्जित करते हैं।
    • उदाहरण: 1 किलोग्राम ग्रे हाइड्रोजन (जो 9 किलोग्राम CO₂ उत्सर्जित करता है) को ग्रीन हाइड्रोजन से बदलने से रिफाइनिंग और अमोनिया उत्पादन जैसे क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में बहुमुखी प्रतिभा: ग्रीन हाइड्रोजन, इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, शिपिंग और विमानन जैसे क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधनों का स्थान ले सकता है।
    • उदाहरण: स्टील उद्योग, जो जीवाश्म ईंधन का एक प्रमुख उपभोक्ता है, ग्रीन हाइड्रोजन को अपनाकर ग्रीन स्टील का उत्पादन कर सकता है, जिससे पारंपरिक तरीकों की तुलना में उत्सर्जन में 90% तक की कमी आ सकती है।
  • कृषि क्षेत्र में उपयोग: ग्रीन हाइड्रोजन उर्वरक उत्पादन में प्राकृतिक गैस से प्राप्त ग्रे हाइड्रोजन की जगह लेकर कृषि क्षेत्र को कार्बन-मुक्त कर सकता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आती है।
    • उदाहरण: ग्रीन हाइड्रोजन, उर्वरक के एक प्रमुख घटक, अमोनिया का उत्पादन कर सकता है, साथ ही स्थायित्व सुनिश्चित करता है और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करता है।
  • ऊर्जा स्वतंत्रता और सुरक्षा: आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करता है, जिससे प्रचुर नवीकरणीय संसाधनों वाले देशों की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ती है।
    • उदाहरण: भारत, जिसका वार्षिक ऊर्जा आयात बिल 185 अरब डॉलर है, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत हरित हाइड्रोजन को अपनाकर वर्ष 2030 तक ₹1 लाख करोड़ बचाने का लक्ष्य रखता है।
  • स्थायी परिवहन समाधान: हरित हाइड्रोजन भारी वाहनों, जहाजों और ट्रेनों में ईंधन सेल को शक्ति प्रदान करता है, जिससे डीजल और प्राकृतिक गैस का एक स्वच्छ विकल्प मिलता है।
    • उदाहरण: जापान द्वारा हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनों का विकास और भारत द्वारा लेह और नोएडा में NTPC द्वारा हाइड्रोजन से चलने वाली बसों का प्रायोगिक परीक्षण।
  • दीर्घकालिक ऊर्जा भंडारण: हाइड्रोजन लंबी अवधि के लिए नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण की अनुमति देता है, जिससे सीमित जीवाश्म ईंधन के विपरीत, सौर और पवन ऊर्जा की कमी दूर होती है।
    • उदाहरण: यूरोप और अमेरिका में ग्रिडों को स्थिर करने के लिए हाइड्रोजन भंडारण समाधानों का परीक्षण किया जा रहा है, जिससे उच्च माँग के समय विश्वसनीय ऊर्जा सुनिश्चित हो सके।
  • वैश्विक व्यापार और निर्यात की संभावनाएँ: अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा वाले देश निर्यात के लिए हरित हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे आर्थिक अवसर उत्पन्न होंगे और जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक निर्भरता कम होगी।
    • उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया-जापान की हाइड्रोजन ऊर्जा आपूर्ति शृंखला परियोजना का उद्देश्य जापान के डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हरित हाइड्रोजन का निर्यात करना है।

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM)

  • उद्देश्य: भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन, उपयोग और निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाना।
  • मुख्य लक्ष्य
    • वर्ष 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन वार्षिक हरित हाइड्रोजन उत्पादन।
    • हाइड्रोजन उत्पादन के लिए 125 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ना।
    • जीवाश्म ईंधन के आयात में ₹1 लाख करोड़ की बचत करना और प्रतिवर्ष 50 मिलियन मीट्रिक टन CO₂ उत्सर्जन कम करना।

  • इस मिशन से वर्ष 2030 तक 6 लाख से अधिक रोजगार उत्पन्न होने, जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की कमी आने तथा प्रत्येक वर्ष लगभग 50 MMT ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से बचने की संभावना है।

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत क्षेत्रीय नवाचार और कार्यान्वयन 

  • यह मिशन चार प्रमुख स्तंभों पर केंद्रित है, जिनमें नीति और नियामक ढाँचा, माँग सृजन, अनुसंधान एवं विकास एवं नवाचार, तथा सक्षम अवसंरचना और पारिस्थितिकी तंत्र विकास शामिल हैं।

  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के अंतर्गत उप-योजनाएँ
    • हरित हाइड्रोजन संक्रमण कार्यक्रम के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप (SIGHT): वर्ष 2029-30 तक ₹17,490 करोड़ के परिव्यय वाला एक वित्तीय प्रोत्साहन तंत्र, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन हेतु उपयोग किए जाने वाले इलेक्ट्रोलाइजर के निर्माण हेतु प्रोत्साहन प्रदान करता है।
      • इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक 4 गीगावाट की घरेलू इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण क्षमता को बढ़ावा देना और 10 लाख टन हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में सहायता प्रदान करना है।
    • हरित हाइड्रोजन केंद्रों का विकास: अक्टूबर 2025 में, केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने NGHM के तहत तीन प्रमुख बंदरगाहों को हरित हाइड्रोजन केंद्रों के रूप में मान्यता देने की घोषणा की।
      • तीन प्रमुख बंदरगाह: दीनदयाल बंदरगाह प्राधिकरण (गुजरात), वी. ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण (तमिलनाडु) और पारादीप बंदरगाह प्राधिकरण (ओडिशा)।
      • ये तटीय प्रवेश द्वार उत्पादन, उपभोग और भविष्य के निर्यात के लिए एकीकृत केंद्रों के रूप में कार्य करेंगे।
    • हरित हाइड्रोजन केंद्र: हाइड्रोजन के बड़े पैमाने पर उत्पादन और/या उपयोग में सक्षम राज्यों और क्षेत्रों की पहचान की जाएगी और उन्हें हरित हाइड्रोजन केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा।
      • गुजरात, ओडिशा और तमिलनाडु में हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं की योजना बनाई गई है।

उद्योग, गतिशीलता और बुनियादी ढाँचे में NGHM अनुप्रयोग

  • औद्योगिक
    • उर्वरक: जीवाश्म ईंधन आधारित फीडस्टॉक्स को ग्रीन अमोनिया से प्रतिस्थापित करना।
      • उर्वरक इकाइयों को ग्रीन अमोनिया की दीर्घकालिक आपूर्ति के लिए हाल ही में नीलामी हुई है, जिसकी कुल खरीद क्षमता 7.24 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष है और इसकी कीमत ₹55.75 प्रति किलोग्राम है।
    • पेट्रोलियम शोधन: यह मिशन रिफाइनरियों में जीवाश्म आधारित हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन से प्रतिस्थापित करने में सुगमता प्रदान कर रहा है, जिससे इस आवश्यक उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट में प्रत्यक्ष रूप से कमी आ रही है।
    • इस्पात: लौह अनुप्रयोगों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग का मूल्यांकन करने हेतु सार्वजनिक और निजी इस्पात उत्पादकों के सहयोग से पाँच पायलट परियोजनाएँ शुरू की गई हैं।
    • ये पायलट परियोजनाएँ भारतीय परिचालन स्थितियों में हाइड्रोजन आधारित इस्पात निर्माण की तकनीकी व्यवहार्यता, आर्थिक व्यवहार्यता और सुरक्षा का आकलन करने के लिए डिजाइन की गई हैं।
  • गतिशीलता और परिवहन
    • सड़क परिवहन: मार्च में, 37 हाइड्रोजन वाहनों (बसों एवं ट्रकों) और 10 विभिन्न मार्गों पर 9 ईंधन भरने वाले स्टेशनों को शामिल करते हुए पाँच प्रमुख पायलट परियोजनाएँ प्रारंभ की गईं।
    • नौवहन: सितंबर 2025 में वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह पर एक बंदरगाह-आधारित हरित हाइड्रोजन पायलट परियोजना शुरू की गई, जिसमें 10 NM³/घंटा क्षमता वाली सुविधा शामिल है, जो स्ट्रीट लाइटिंग और EV चार्जिंग स्टेशन जैसे अनुप्रयोगों के लिए हरित हाइड्रोजन की आपूर्ति करेगी।
      • दीनदयाल बंदरगाह प्राधिकरण, कांडला ने लगभग 140 मीट्रिक टन की वार्षिक उत्पादन क्षमता वाली एक मेगावाट-स्तरीय, स्वदेशी हरित हाइड्रोजन सुविधा प्रारंभ की है।
      • 750 घन मीटर हरित मेथेनॉल बंकरिंग और ईंधन भरने की सुविधा का विकास स्वच्छ समुद्री संचालन को बढ़ावा देने और कांडला तथा तूतीकोरिन के बीच एक तटीय हरित शिपिंग कॉरिडोर स्थापित करने के लिए किया जा रहा है।
    • हाई-एल्टिट्यूड मोबिलिटी: NTPC ने नवंबर 2024 में लेह में विश्व की सबसे ऊँची (3,650 मीटर) हरित हाइड्रोजन मोबिलिटी परियोजना प्रारंभ की है, जिसमें 5 हाइड्रोजन इंट्रा-सिटी बसें और एक फ्यूल फिलिंग स्टेशन शामिल है, जो चरम स्थितियों में ईंधन की विश्वसनीयता सिद्ध करता है।
      • यह स्टेशन लगभग 350 मीट्रिक टन/वर्ष कार्बन उत्सर्जन को कम करेगा और वायुमंडल में 230 मीट्रिक टन/वर्ष शुद्ध ऑक्सीजन का योगदान देगा, जो लगभग 13,000 पेड़ लगाने के बराबर है।
  • सक्षमकारी ढाँचा: प्रत्यक्ष प्रोत्साहनों के अलावा, निवेशों के जोखिम को कम करने और विकास में तेजी लाने के लिए एक व्यापक सक्षमकारी ढाँचा स्थापित किया जा रहा है।
    • नीतिगत ढाँचा: हाइड्रोजन उत्पादन के लिए कम लागत वाली नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति को सुगम बनाने के लिए, सरकार ने अंतरराज्यीय पारेषण शुल्क में छूट प्रदान की है और समयबद्ध ओपन एक्सेस अनुदान सुनिश्चित किया है।
    • कौशल विकास: एक समन्वित कौशल विकास कार्यक्रम लागू किया जा रहा है, जिसके तहत हाइड्रोजन से संबंधित योग्यताओं में 5,600 से अधिक प्रशिक्षुओं को पहले ही प्रमाणन मिल चुका है, जिससे भविष्य के लिए तैयार कार्यबल का निर्माण हो रहा है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • विश्व हाइड्रोजन शिखर सम्मेलन: वर्ष 2024 में, भारत ने रॉटरडैम में आयोजित विश्व हाइड्रोजन शिखर सम्मेलन में अपने पहले भारत मंडप के उद्घाटन के साथ अंतरराष्ट्रीय हाइड्रोजन समुदाय में अपनी शुरुआत की।
    • यह भारत को वैश्विक निवेश के लिए एक प्रमुख भागीदार और उभरती वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करता है।
  • यूरोपीय संघ-भारत सहयोग: यूरोपीय संघ-भारत व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद के अंतर्गत सहयोग का विस्तार हो रहा है तथा अपशिष्ट से हाइड्रोजन उत्पादन पर 30 से अधिक संयुक्त प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं।
  • भारत-UK साझेदारी: हाइड्रोजन मानकीकरण पर सहयोग को मजबूत करने के लिए वर्ष 2025 में एक समर्पित मानक साझेदारी कार्यशाला आयोजित की गई।
  • फोकस:: व्यापार को बढ़ाने के लिए सुरक्षित, मापनीय और वैश्विक रूप से सुसंगत विनियम, संहिताएँ और मानक (RCS)।
  • H2Global के साथ साझेदारी: वर्ष 2024 में, सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने बाजार-आधारित तंत्र और संयुक्त निविदा डिजाइनों पर सहयोग करने के लिए जर्मनी की H2Global स्टिफ्टंग के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय हरित हाइड्रोजन के निर्यात को सुगम बनाया जा सके।
  • सिंगापुर: वर्ष 2025 में, सेम्बकॉर्प इंडस्ट्रीज ने उत्पादन, भंडारण और निर्यात के लिए एकीकृत हरित-हाइड्रोजन और अमोनिया केंद्र विकसित करने हेतु वी.ओ. चिदंबरनार और पारादीप बंदरगाह प्राधिकरणों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए।

हरित हाइड्रोजन उत्पादन की चुनौतियाँ

  • हरित हाइड्रोजन उत्पादन की उच्च लागत: हरित हाइड्रोजन उत्पादन की लागत दो महत्त्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करती है जो हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को महँगा बनाते हैं:-
    • विद्युत की स्तरीय लागत (LCOE): यह किसी परियोजना के पूरे जीवनकाल में नवीकरणीय विद्युत उत्पादन की औसत लागत है।
      • उच्च LCOE सीधे तौर पर हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत को बढ़ाता है, क्योंकि नवीकरणीय विद्युत इसके उत्पादन का प्राथमिक इनपुट है।
      • वर्तमान में, हरित हाइड्रोजन उत्पादन लागत ($5.30–$6.70 प्रति किलोग्राम) और पारंपरिक ग्रे/ब्लू हाइड्रोजन उत्पादन लागत ($1.90–$2.40 प्रति किलोग्राम) के बीच काफी अंतर है।
    • इलेक्ट्रोलाइजर की लागत: इलेक्ट्रोलाइजर ऐसे उपकरण हैं, जिनका उपयोग इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने के लिए किया जाता है।
      • ये प्रणालियाँ उन्नत तकनीक पर आधारित हैं, लेकिन अपेक्षाकृत कम माँग के कारण, इलेक्ट्रोलाइजर की लागत ऊँची बनी हुई है।
      • क्षारीय इलेक्ट्रोलाइजर की लागत लगभग 500-1,400 डॉलर प्रति किलोवाट (kW) होती है।
      • प्रोटॉन एक्सचेंज मेंब्रेन (PEM) प्रणालियाँ और भी महँगी हैं, जिनकी कीमत 1,100 डॉलर से लेकर 1,800 डॉलर प्रति किलोवाट तक है।
  • उच्च उधार लागत: पूँजी की लागत, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील बाजारों में, अक्सर अधिक होती है।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि भारित औसत पूँजी लागत (WACC) में 10% से 20% की वृद्धि हाइड्रोजन की लागत में 73% तक की वृद्धि कर सकती है।
    • चूँकि नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश लागत LCOE में 50-80% का योगदान करती है, इसलिए WACC में सामान्य वृद्धि भी उत्पादन लागत में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकती है।
  • बुनियादी ढाँचे की सीमाएँ: परिवहन और औद्योगिक उपयोग के लिए पाइपलाइनों, भंडारण सुविधाओं और हाइड्रोजन ईंधन भरने वाले स्टेशनों का अभाव है।
    • वर्तमान में, भारत में फरीदाबाद और गुरुग्राम में केवल कुछ ही हाइड्रोजन ईंधन भरने वाले स्टेशन कार्यरत हैं, जो बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए अपर्याप्त हैं।
  • ऊर्जा और जल की माँग: इलेक्ट्रोलाइजर प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन में 9 लीटर जल की खपत करते हैं, जिससे जल की कमी वाले क्षेत्रों में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • मीठे पानी के संसाधनों पर निर्भरता मापनीयता को सीमित करती है, जिससे समुद्री जल इलेक्ट्रोलिसिस एक मुख्य विकल्प बन जाता है।
  • भंडारण और परिवहन चुनौतियाँ: हाइड्रोजन अत्यधिक ज्वलनशील है और भंडारण एवं परिवहन के लिए उच्च दाब वाले टैंकों या क्रायोजेनिक तापमान की आवश्यकता होती है।
    • द्रव हाइड्रोजन के भंडारण के लिए -252.8°C से कम तापमान की आवश्यकता होती है, जिसके लिए महँगे क्रायोजेनिक बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।
  • मानकीकरण और प्रमाणन का अभाव: हाइड्रोजन उत्पादन, कार्बन तीव्रता और सुरक्षा प्रोटोकॉल के लिए सुसंगत वैश्विक मानकों का अभाव है।
    • “हरित हाइड्रोजन” की भिन्न परिभाषाएँ बायोमास आधारित हाइड्रोजन को भी योग्य बनाती हैं, जो अभी भी कुछ कार्बन उत्सर्जित करता है।
  • ऊर्जा ग्रिड में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता: जब नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्ध न हो (जैसे, रात में) तो इलेक्ट्रोलाइजर संचालन के लिए कोयला-प्रधान ग्रिड का उपयोग करने का जोखिम बना रहता है।
    • भारत का ग्रिड 70% कोयला-आधारित विद्युत पर निर्भर है, जो हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं की कार्बन तटस्थता को कमजोर करता है।
  • नवोदित प्रौद्योगिकी और कार्यबल कौशल: कुशल, कम लागत वाले इलेक्ट्रोलाइजर और लवणीय जल आधारित उत्पादन विधियों में अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता है।
    • हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और बुनियादी ढाँचे के विकास में कार्यबल कौशल का अंतर बना हुआ है।
    • कौशल विकास एवं शिक्षा मंत्रालय (MSDE) का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक हरित हाइड्रोजन उत्पादन इकाइयों के लिए उत्पादन और भंडारण में 2.83 लाख रोजगार की आवश्यकता होगी, साथ ही इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण में 11,000 पदों की भी आवश्यकता होगी।
  • प्रतिस्पर्द्धी नवीकरणीय ऊर्जा आवश्यकताएँ: ग्रिड डीकार्बोनाइजेशन से हरित हाइड्रोजन उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग समग्र ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को धीमा कर सकता है।
    • भारत की वर्ष 2030 की हरित हाइड्रोजन योजना के लिए पेरिस समझौते के तहत 500 गीगावाट के लक्ष्य के अतिरिक्त 125 गीगावाट अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता है।

रेगुलेटरी सैंडबॉक्स  (RS) क्या है?

  • यह एक लाइव परीक्षण वातावरण को संदर्भित करता है, जहाँ नए उत्पादों, सेवाओं, प्रक्रियाओं और व्यावसायिक मॉडलों को सीमित उपयोगकर्ताओं पर, एक निश्चित अवधि के लिए, दूरसंचार अधिनियम 2023 के प्रावधानों के अनुसार कुछ छूटों के साथ, लागू किया जा सकता है।
  • उद्देश्य: रेगुलेटरी सैंडबॉक्स, नवप्रवर्तकों, सेवा प्रदाताओं और ग्राहकों को क्षेत्र परीक्षण करने और नए उत्पाद नवाचारों के लाभों तथा जोखिमों पर साक्ष्य एकत्र करने की अनुमति देता है, साथ ही उनके जोखिमों की सावधानीपूर्वक निगरानी एवं नियंत्रण भी करता है।

भारत में हरित हाइड्रोजन के लिए आगे की राह

  • व्यापक नीतिगत ढाँचा: वित्तपोषण संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए उत्पादन प्रोत्साहनों से आगे बढ़कर एक व्यापक नीतिगत ढाँचा विकसित करना।
    • निवेशकों की अनिश्चितता को कम करने के लिए दीर्घकालिक हाइड्रोजन खरीद समझौते और आंशिक ऋण गारंटी लागू करना।
    • वित्तीय प्रौद्योगिकी नवाचारों का लाभ उठाते हुए, नए व्यावसायिक मॉडलों के साथ सुरक्षित और कुशलतापूर्वक प्रयोग करने के लिए “रेगुलेटरी सैंडबॉक्स” स्थापित करना।
  • नवीन वित्तपोषण तंत्र: भारतीय बैंकों को हाइड्रोजन की विशिष्ट चुनौतियों, जैसे अनिश्चित माँग और लंबी परियोजना समय-सीमा, के अनुरूप गैर-पारंपरिक वित्तपोषण संरचनाएँ अपनानी चाहिए।
    • मॉड्यूलर परियोजना वित्तपोषण सुविधाओं के चरणबद्ध विस्तार की अनुमति दे सकता है, जिससे अग्रिम पूँजी आवश्यकताओं में कमी आ सकती है।
    • “एंकर-प्लस” वित्तपोषण मॉडल औद्योगिक ग्राहकों से आधार क्षमता निवेश प्राप्त कर सकते हैं, और लचीले उपकरण अतिरिक्त क्षमता का वित्तपोषण कर सकते हैं।
    • इलेक्ट्रोलाइजर के लिए उपकरण पट्टे पर देने से निषेधात्मक अग्रिम लागतों को प्रबंधनीय परिचालन व्यय में बदला जा सकता है, जो सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्रों की सफलता की नकल है।
  • पायलट परियोजनाओं और लागत-प्रभावी व्यावसायिक मॉडलों पर ध्यान केंद्रित करना: ऐसे औद्योगिक केंद्रों में प्रारंभिक परियोजनाएँ शुरू करना, जो वित्तीय संरचना को एकीकृत करें और लागत-व्यवहार्य व्यावसायिक मॉडल प्रदर्शित करें।
    • इस्पात और अमोनिया उत्पादन जैसे उद्योगों के लिए प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर हरित हाइड्रोजन उपलब्ध कराने पर जोर देना।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: एकीकृत उत्पादन, भंडारण और वितरण प्रणालियों वाले हाइड्रोजन केंद्र स्थापित करना।
    • बड़े पैमाने पर अपनाने को सुगम बनाने के लिए पाइपलाइन, ईंधन भरने वाले स्टेशन और अन्य लाजिस्टिक सुविधाएँ विकसित करना।
    • क्षेत्रीय आत्मनिर्भर हाइड्रोजन कॉरिडोर को बढ़ावा देने के लिए ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में स्थानीय औद्योगिक क्लस्टर स्थापित करना।
  • अनुसंधान एवं विकास तथा कौशल विकास को बढ़ावा देना: इलेक्ट्रोलाइजर और वैकल्पिक हाइड्रोजन उत्पादन विधियों के लिए स्वदेशी तकनीकों में निवेश करना।
    • हाइड्रोजन उत्पादन और बुनियादी ढाँचा प्रबंधन के लिए कुशल कार्यबल तैयार करने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, बाजार पहुँच और निर्यात सुविधा के लिए जापान तथा यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख आयातक देशों के साथ साझेदारी बनाना।
  • जीवाश्म ईंधनों के लिए कार्बन मूल्य निर्धारण: हरित हाइड्रोजन को प्रतिस्पर्द्धी बनाने और औद्योगिक क्षेत्रों में ग्रे हाइड्रोजन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र लागू करना।

निष्कर्ष

हरित हाइड्रोजन भारत की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति के केंद्र में है, जो कम कार्बन और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव को गति दे रहा है। विश्व के सबसे प्रतिस्पर्द्धी नवीकरणीय ऊर्जा आधारों में से एक पर आधारित, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन घरेलू उत्पादन का विस्तार कर रहा है, नवाचार को बढ़ावा दे रहा है और हरित हाइड्रोजन और उसके व्युत्पन्नों के लिए वैश्विक बाजार खोल रहा है।

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