हाल ही में गुजरात के सूरत निर्वाचन क्षेत्र से एक उम्मीदवार को निर्विरोध चुना गया।
संबंधित तथ्य
गौरतलब है कि कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन पत्र को खारिज कर दिया गया एवं अन्य उम्मीदवारों ने नामांकन वापस ले लिया। इस प्रकार 7 मई को सूरत में होने वाला मतदान नहीं होगा।
मतदान से पहले उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित करने का प्रावधान
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 53 (3): यह निर्विरोध चुनावों की प्रक्रिया से संबंधित है।
इसके अनुसार, यदि ऐसे उम्मीदवारों की संख्या भरी जाने वाली सीटों की संख्या से कम है, तो रिटर्निंग ऑफिसर (RO)ऐसे सभी उम्मीदवारों को निर्वाचित घोषित करेगा।
इस संबंध में RO की कार्रवाई अधिनियम की धारा 33 द्वारा शासित होती है जो नामांकन पत्रों की प्रस्तुति एवं वैध नामांकन के लिए आवश्यकताओं से संबंधित है।
चुनाव आयोग (EC) द्वारा जारी रिटर्निंग अधिकारियों के लिए हैंडबुक (संस्करण 2): इसमें कहा गया है कि ‘यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक ही चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार है, तो उस उम्मीदवार को नाम वापसी के अंतिम घंटे के तुरंत बाद विधिवत उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया जाना चाहिए।
उस स्थिति में मतदान आवश्यक नहीं है। इसके अलावा, वे सभी उम्मीदवार, जो निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं एवं जिनका आपराधिक इतिहास है, उन्हें समय-सीमा के अनुसार निर्धारित प्रारूप में विवरण सार्वजनिक करना होगा।
चुनाव प्रणाली में नकारात्मक मतदान की संभावना
NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) विकल्प: उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के माध्यम से प्रस्तुत किया गया NOTA का विकल्प नवंबर 2013 से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) पर उपलब्ध है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘मतदाता को गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करते हुए किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का अधिकार देना लोकतंत्र में बेहद महत्त्वपूर्ण है। ऐसा विकल्प मतदाता को पार्टियों द्वारा खड़े किए जा रहे उम्मीदवारों के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने का अधिकार देता है।
कुल वैध वोटों की गणना से NOTA वोटों को बाहर करना: RO हैंडबुक के अनुसार, सुरक्षा जमा की वापसी के लिए डाले गए कुल वैध वोटों की गणना के लिए NOTA वोटों को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए।
चुनाव आयोग का दृष्टिकोण: चुनाव आयोग का दृष्टिकोण यह रहा है कि किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक वोट पाने वाले व्यक्ति को अभी भी विजेता घोषित किया जाएगा, भले ही NOTA वोटों की संख्या कितनी भी हो।
स्थानीय निकाय चुनावों में दृष्टिकोण: स्थानीय निकाय चुनावों के संबंध में, विशेष रूप से महाराष्ट्र में, दृष्टिकोण भिन्न है।
नवंबर 2018 में जारी एक निर्देश में, महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने कहा कि NOTA को शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों में एक काल्पनिक चुनावी उम्मीदवार के रूप में माना जाएगा।
ऐसे मामलों में जहाँ NOTA को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, आयोग पुनर्मतदान की व्यवस्था करेगा।
चुनाव संचालन नियम, 1961 के तहत नियम 49 (O): यह मतदाताओं को नियम 49 (O) के माध्यम से मतदान न करने का निर्णय लेने की अनुमति देता है।
इस आशय की एक टिप्पणी कि निर्वाचक ने अपना वोट दर्ज नहीं करने का निर्णय लिया है, पीठासीन अधिकारी द्वारा मतदाता रजिस्टर में निर्वाचक से संबंधित प्रविष्टि के सामने ‘टिप्पणी कॉलम’ में की जानी चाहिए।
फिर, ऐसी टिप्पणी के विरुद्ध निर्वाचक के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लेना होगा।
निर्वाचक कार्य नियम 49(O) और NOTA विकल्प के बीच अंतर
गोपनीयता से समझौता: नियम 49(O) के मामले में, एक मतदाता द्वारा अपनी गोपनीयता से समझौता करने की संभावना अधिक है, क्योंकि यह मतदान केंद्र पर ‘मैन्युअल’ रूप से पालन की जाने वाली एक प्रक्रिया है।
हालाँकि, NOTA के मामले में, ऐसा कोई मुद्दा नहीं है।
NOTA के बाद का घटनाक्रम:
वोटिंग संख्या में NOTA ने राजनीतिक दलों को पीछे छोड़ दिया: कई बार ऐसा हुआ है जब राजनीतिक दलों को NOTA से कम वोट मिले हैं।
पिछले पाँच वर्षों में राज्य विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में इसे मिलाकर 1.29 करोड़ से अधिक वोट मिले।
आलोचना: कुछ कार्यकर्ता एवं संवैधानिक विशेषज्ञ NOTA की आलोचना करते रहे हैं और इसे ‘शक्तिहीन’ करार देते हैं, जिसका चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ता है।
उच्चतम न्यायालय की प्रतिक्रिया: हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग से उन निर्वाचन क्षेत्रों में नए सिरे से चुनाव कराने की मांग करने वाली याचिका पर जवाब देने को कहा, जहाँ NOTA वोट बहुमत में थे।
उच्चतम न्यायालय ने पहले चुनाव आयोग को यह निर्देश देने से इनकार कर दिया था कि यदि अधिकांश मतदाता NOTA का प्रयोग करते हैं तो नए सिरे से चुनाव कराएँ।
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