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विश्व खुशहाली रिपोर्ट का विश्लेषण

Lokesh Pal November 21, 2025 04:37 21 0

संदर्भ

फिनलैंड के लगातार 8वें वर्ष “सबसे खुशहाल देश” के रूप में रैंक प्राप्त होने और भारत के 118वें स्थान पर रहने से यह प्रश्न उभरता है कि वैश्विक “खुशहाली” मापने की पद्धति कितनी धारणा-आधारित, सांस्कृतिक रूप से पक्षपाती है।

विश्व खुशहाली रिपोर्ट, 2025 के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समाधान नेटवर्क (UNSDSN) ने 20 मार्च (विश्व खुशहाली दिवस) पर विश्व खुशहाली रिपोर्ट, 2025 प्रकाशित की है।
  • रिपोर्ट: यह रिपोर्ट ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वेलबीइंग रिसर्च सेंटर द्वारा, गैलप तथा संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समाधान नेटवर्क (UNSDSN) के सहयोग से प्रकाशित की गई है।
  • शीर्ष प्रदर्शनकर्ता: फिनलैंड तथा अन्य नॉर्डिक देश (डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीडन) लगातार शीर्ष पर बने हुए हैं।
  • भारत बनाम पाकिस्तान: पाकिस्तान 109वें और भारत 118वें स्थान पर है।
  • आर्थिक विरोधाभास: भारत की अर्थव्यवस्था (3.7 ट्रिलियन) पाकिस्तान (375 बिलियन) से लगभग 10 गुना बड़ी है।
    • भारत डिजिटल और भौतिक अवसंरचना में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुभव कर रहा है, फिर भी रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की जनता स्वयं को अधिक “खुशहाल” मानती है।
  • भारत का स्कोर: भारत ने 10 में से 4.389 स्कोर प्राप्त किया। इस अंतर का मुख्य कारण मनोविज्ञान में है, अर्थव्यवस्था में नहीं।
  • पद्धति
    • कैंट्रिल लैडर आधारित आत्म-मूल्यांकन: यह रिपोर्ट गैलप वर्ल्ड पोल की कैंट्रिल लैडर का उपयोग करती है, जहाँ व्यक्ति 0–10 के पैमाने पर अपने जीवन का मूल्यांकन करते हैं।
      • (0-सबसे खराब जीवन, 10-सबसे अच्छा जीवन) यह पूरी तरह व्यक्तिगत धारणा पर आधारित है, न कि वस्तुनिष्ठ व्यवहार पर।
    • छह-चर सहसंबंध मॉडल: खुशहाली के अंक सांख्यिकीय रूप से छह कारकों से जुड़े होते हैं, तथा इन्हें प्रत्यक्ष कारण निर्धारकों के बजाय सहसंबंधी माना जाता है।
      • छह कारक: प्रति व्यक्ति GDP, सामाजिक सहयोग, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, चुनने की स्वतंत्रता, उदारता, भ्रष्टाचार की धारणा।
    • विश्वास और कल्याण पर विशेष जोर: रिपोर्ट स्वयं स्वीकार करती है कि सामाजिक विश्वास और सामुदायिक कल्याण में विश्वास, आय या आर्थिक प्रदर्शन से अधिक खुशहाली का अनुभव करते हैं।

भारत की खुशहाली संबंधी प्रवृत्तियाँ

  • रैंक में उतार-चढ़ाव: राजनीतिक स्थिति, संकट या कल्याणकारी योजनाओं के आधार पर भारत की रैंकिंग 94 से 144 के बीच व्यापक रूप से परिवर्तित करती रही है।
  • यह अस्थिरता दर्शाती है कि खुशहाली अल्पकालिक भावनाओं के प्रति संवेदनशील होती है, दीर्घकालिक विकास के प्रति नहीं।
  • कल्याणकारी योजनाओं के दौरान उच्च स्कोर: कोविड-19 महामारी के बाद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) जैसी योजनाओं से नागरिकों का विश्वास बढ़ा।
  • घोटालों या मंदी के दौरान तीव्र गिरावट: वर्ष 2012 की भ्रष्टाचार जैसी घटनाओं ने निराश किया।
  • खुशी के दृष्टिकोण का GDP से प्रत्यक्ष संबंध नहीं: विश्वास, निष्पक्षता और समुदाय GDP से अधिक महत्त्व रखते हैं।

खुशहाली मापन की सीमाएँ

  • उच्च धारणा पूर्वाग्रह: भारत जैसे लोकतंत्रों का स्कोर अपेक्षाकृत कम दिखाई देता है, क्योंकि स्वतंत्र मीडिया, व्यापक आलोचना तथा बढ़ती आकांक्षाएँ जनसंख्या में असंतोष की भावना को बढ़ावा देती हैं।
    • इससे उन समाजों को अनपेक्षित दंड मिलता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं।
  • कम-अपेक्षा लाभ: जिन समाजों में निरंतर कठिनाइयाँ या सीमित आकांक्षाएँ होती हैं, वहाँ प्रायः खुशहाली के उच्च अंक दर्ज हो जाते हैं, क्योंकि लोग प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुकूल हो जाते हैं और अपेक्षाएँ कम रखकर जीते हैं, जिससे उनके स्कोर कृत्रिम रूप से बढ़े हुए प्रतीत होते हैं।
  • सूचकांक की व्यक्तिपरक प्रकृति: विश्व खुशहाली रिपोर्ट वस्तुनिष्ठ परिणामों के स्थान पर आत्म-मूल्यांकन की गई संतुष्टि पर आधारित है।
  • सांस्कृतिक पूर्वाग्रह: यह ढाँचा पश्चिमी, शिक्षित, औद्योगिक, समृद्ध, लोकतांत्रिक मान्यताओं को दर्शाता है, जो व्यक्तिगत स्वायत्तता और संस्थागत विश्वास को प्राथमिकता प्रदान करता है, जबकि सामूहिक विश्वास संरचना (परिवार, जाति, समुदाय) की अनदेखी करता है, जो भारत जैसे देशों में कल्याण का आधार है।
  • अपारदर्शी विशेषज्ञ-आधारित अनुक्रमण: फ्रीडम हाउस और वी-डेम (V-Dem) की आलोचनाओं के समान, यह रिपोर्ट पश्चिमी विशेषज्ञों के छोटे समूहों द्वारा तैयार किए गए आकलन पर आधारित है, जिससे वैश्विक तुलनाओं में प्रणालीगत विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • सत्तावादी स्थिरता का भ्रम: उपेक्षित असहमति एवं नियंत्रित मीडिया-संरचना आधारित व्यवस्थाएँ सतही रूप से अधिक “संतुष्ट” परिलक्षित हो सकती हैं, क्योंकि वहाँ शिकायतों के औपचारिक प्रकटीकरण की प्रवृत्ति न्यूनतम होती है; फलतः, वास्तविक लोकतांत्रिक विमर्श वाले देशों की तुलना में उनकी “खुशहाली रैंकिंग” भ्रामक रूप से उच्च प्रदर्शित होती है।
  • अनौपचारिक विश्वास नेटवर्क की उपेक्षा: भारत के ग्रामीण और पारिवारिक सुरक्षा-जाल (जो कोविड-19 महामारी के दौरान विपरीत प्रवास के दौरान दिखाई दिए) केवल राज्य संस्थानों पर केंद्रित मापन में शामिल नहीं हैं।

नॉर्डिक देशों के लगातार शीर्ष पर रहने के कारण

  • उच्च संस्थागत विश्वास: नागरिकों का मानना ​​है कि सार्वजनिक प्रणालियाँ पूर्वानुमानित रूप से कार्य करती हैं, जिससे सामाजिक विश्वास में वृद्धि होती है।
  • मजबूत सामाजिक कल्याण ढाँचा: सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा, रोजगार संरक्षण और राज्य समर्थित बाल देखभाल एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण करते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से खुशी में परिवर्तित होता है।
  • कम असमानता और उच्च सामाजिक सामंजस्य: नॉर्डिक देश कम आय असमानता और आवश्यक सेवाओं की निरंतर आपूर्ति बनाए रखते हैं, जिससे स्थिरता और व्यक्तिपरक कल्याण दोनों में सुधार होता है।
  • स्थिर अपेक्षाएँ और कम आकांक्षात्मक अस्थिरता: नागरिकों को शासन या सेवा वितरण में कम समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका सकारात्मक आत्म-मूल्यांकन स्थिर रहता है।
  • पारदर्शी और भ्रष्टाचार-रोधी शासन: उच्च प्रणालीगत पारदर्शिता सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास को सुदृढ़ करती है, जो खुशहाली सूचकांक में एक प्रमुख और अत्यधिक महत्त्व दिया जाने वाला कारक है।

लोकतंत्रों में “अपेक्षा का विरोधाभास”

  • बढ़ती आकांक्षाएँ: भारत जैसे स्वतंत्र समाजों में नागरिकों की अपेक्षाएँ निरंतर बढ़ रही हैं और सार्वजनिक संस्थाओं की सतत् जाँच-परख जारी रहती है, जिसके परिणामस्वरूप संतुष्टि का स्तर अपेक्षाकृत निम्न प्रतीत होता है।
  • मीडिया की भूमिका: मीडिया द्वारा समस्याओं और असंतोष की खुली चर्चा लोकतांत्रिक समाजों को सतही रूप से कम खुशहाल प्रदर्शित करती है।
  • कठिनाई के अनुरूप मानसिक अनुकूलन: कठिन परिस्थितियों में लोग स्वयं को संतुष्ट मान लेते हैं, जिससे ऐसे समाजों में अपेक्षाकृत उच्च खुशहाली अंक दर्ज हो सकते हैं।

भारत की मुख्य चुनौती

  • सामाजिक सामंजस्य में कमी: भारत का विकास तेजी से हो रहा है, लेकिन प्रवास, शहरीकरण और डिजिटल जीवन शैली के कारण सामाजिक बंधन कमजोर हो रहे हैं।
    • यह अलगाव सामाजिक समर्थन को कम करता है, जो खुशहाली का एक प्रमुख संकेतक है।
    • शहरीकृत समाज में संपर्क की कमी: तेज डिजिटल जीवन और प्रवासन वास्तविक दुनिया के रिश्तों पर दबाव डाल रहे हैं।
  • उच्च आकांक्षा असंतोष: भारत की लोकतांत्रिक जीवंतता, मीडिया की जाँच-पड़ताल और नागरिकों की बढ़ती अपेक्षाएँ असंतोष की एक स्थायी भावना उत्पन्न करती हैं, जो दुख के बजाय महत्त्वाकांक्षा को दर्शाती है।
  • असमान संस्थागत विश्वास: सार्वजनिक सेवा वितरण विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न होता है; असंगत शासन नॉर्डिक मानकों की तुलना में विश्वास संबंधी स्कोर को कम करता है।
  • पूर्वाग्रह: रिपोर्ट का व्यवहारिक ढाँचा भी पूर्वाग्रहपूर्ण है, क्योंकि यह मुख्यतः पश्चिमी, शिक्षित, औद्योगिक, समृद्ध और लोकतांत्रिक समाजों के संदर्भ को प्राथमिकता देता है।
    • यह संस्थागत विश्वास को प्राथमिकता देता है, जो व्यक्तिवादी समाजों की विशिष्टता है और भारत जैसे देशों में मौजूद सामूहिक विश्वास-नेटवर्क की अनदेखी करता है, जहाँ परिवार और समुदाय वास्तविक सुरक्षा स्थापना का कार्य करते हैं।
  • धारणा में परिवर्तन के कारण रैंक में अस्थिरता: एक दशक में भारत का स्कोर 94 और 144 के बीच बना रहा है, जो वास्तविक जीवन स्तर की तुलना में राजनीतिक घोटालों या जनभावना से अधिक प्रभावित है।

आगे की राह 

  • सामाजिक पूँजी का पुनर्निर्माण: लोगों को मित्रों और समुदाय से जुड़कर भावनात्मक संबंध मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • वर्तमान में, 19% भारतीय युवाओं ने बताया है कि उनके पास विश्वास योग्य व्यक्ति नहीं है, अतः वास्तविक जीवन के नेटवर्क बनाना आवश्यक है।
  • संस्थागत विश्वास बनाना: नागरिक-राज्य संवाद को सरल बनाना, सार्वजनिक सेवाओं जैसे राशन वितरण, स्वास्थ्य सेवाओं एवं प्रक्रियाओं में पूर्वानुमेयता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य समर्थन: सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना प्रारंभ किया है, किंतु बेहतर क्रियान्वयन और व्यापक पहुँच आवश्यक है।
    • टेली-मानस (राज्यों में टेली मानसिक स्वास्थ्य सहायता और नेटवर्किंग) तथा माइंड इंडिया जैसे कार्यक्रम, भावनात्मक दृढ़ता को नीति में प्रमुख स्थान प्रदान करते हैं।
    • WHO के आँकड़े दर्शाते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य में निवेश किया गया प्रत्येक एक डॉलर चार गुना आर्थिक रिटर्न देता है, अतः ऐसे निवेश को राष्ट्रीय उत्पादकता के लिए अनिवार्य मानना चाहिए।
  • सकल  राष्ट्रीय खुशहाली (GNH) को GDP में एकीकृत करना: केवल उत्पादन आधारित मापदंडों से आगे बढ़कर, आर्थिक विकास लक्ष्यों के साथ भावनात्मक दृढ़ता, सामाजिक विश्वास और कल्याण सूचकांकों को शामिल करना।
  • सामुदायिक कल्याण की संस्कृति को सुदृढ़ करना: नीति निर्माण में स्वैच्छिक सेवा, जन सहानुभूति अभियानों और स्थानीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए।
  • सहानुभूतिपूर्ण स्थिति का विकास: भारत की विकास रणनीति में कल्याण, समावेशन, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक विश्वास को केवल पूरक लक्ष्य मानने के स्थान पर मूलभूत घटक के रूप में स्थापित करना आवश्यक है।

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