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प्रभावी शांति स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार

Lokesh Pal September 11, 2025 02:27 18 0

संदर्भ

भारत ने इस बात पर बल दिया है कि संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना तभी सफल हो सकती है, जब सुरक्षा परिषद में समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने, व्यापक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने, सैन्य योगदानकर्ताओं को शामिल करने, संसाधनों के साथ जनादेश को संरेखित करने और प्राप्त करने योग्य राजनीतिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सुधार किया जाए।

संबधित तथ्य

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मंत्रिस्तरीय बैठक, 2025 बर्लिन, जर्मनी में संपन्न हुई।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मंत्रिस्तरीय बैठक 2025 के बारे में

  • मेजबान और मंच: जर्मनी द्वारा सह-आयोजित, यह मंत्रिस्तरीय बैठक शांति स्थापना के भविष्य पर विचार-विमर्श हेतु एक उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच के रूप में कार्य करेगी।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: यह आयोजन वर्ष 2015 के न्यूयॉर्क शांति स्थापना शिखर सम्मेलन की 10वीं वर्षगाँठ के अवसर पर आयोजित किया गया, जिसमें सुधारों और प्रतिबद्धताओं के एक दशक को दर्शाया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के मुख्य घटक: राजनीतिक वैधता, सुदृढ़ अधिदेश, सक्षम बल, पर्याप्त संसाधन और मजबूत अंतरराष्ट्रीय साझेदारी द्वारा परिभाषित।
  • भारत की प्रतिबद्धताएँ: भारत ने एक त्वरित प्रतिक्रिया बल (Quick Reaction Force- QRF) कंपनी, एक महिला-नेतृत्व वाली पुलिस इकाई, एक स्वात पुलिस इकाई का योगदान करने और प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण एवं साझेदारी में सहायता प्रदान करने का वचन दिया।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना, वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक प्रमुख तंत्र है। यह संघर्ष निवारण, शांति स्थापना, शांति प्रवर्तन और शांति निर्माण सहित संयुक्त राष्ट्र के अन्य प्रयासों के साथ-साथ कार्य करता है।

  • घटक: संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन युद्धविराम और शांति समझौतों का समर्थन करने के लिए तैनात किए जाते हैं। हालाँकि, आधुनिक शांति स्थापना एक बहुआयामी प्रयास के रूप में विकसित हुई है। इसमें शामिल हैं:
    • राजनीतिक प्रक्रियाओं को सुगम बनाना: वार्ताओं और शासन संरचनाओं का समर्थन करना।
    • नागरिकों की सुरक्षा: संघर्ष क्षेत्रों में असुरक्षित आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • निरस्त्रीकरण, विसैन्यीकरण और पुनः एकीकरण (Disarmament, Demobilization, and Reintegration- DDR): पूर्व सैनिकों को नागरिक जीवन में संक्रमण में सहायता करना।
    • चुनाव समर्थन: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के आयोजन और निगरानी में सहायता करना।
    • मानवाधिकार और कानून का शासन: न्याय, जवाबदेही और शासन सुधारों को बढ़ावा देना।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना का विकास

  • वर्ष 1948 में स्थापना: पहला संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन, संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन (UNTSO), अरब-इजरायल युद्धविराम की निगरानी के लिए तैनात किया गया था। इसी से ‘ब्लू हेल्मेट्स’ की उत्पत्ति हुई।
  • ब्लू हेल्मेट्स का प्रतीक: शांति सैनिक विशिष्ट हेलमेट पहनते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र ध्वज के नीचे तटस्थता, निष्पक्षता और वैधता का प्रतीक हैं।
  • सैन्य से बहुआयामी अभियानों तक: जहाँ शुरुआती अभियान युद्धविराम की निगरानी तक सीमित थे, वहीं आधुनिक मिशन बहुआयामी हैं, जिनमें नागरिकों की सुरक्षा, मानवाधिकारों की निगरानी, ​​चुनावों का समर्थन, निरस्त्रीकरण में सहायता और शांति निर्माण को सुगम बनाने के लिए सैन्य, पुलिस और नागरिक घटक शामिल हैं।
  • वर्तमान उपस्थिति: वर्तमान में  11 सक्रिय संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन हैं।
    • हालाँकि इनमें से अधिकतर अफ्रीका और मध्य पूर्व में स्थित हैं, यूरोप और एशिया में भी मिशन हैं।
    • इन मिशनों में कार्यरत कुल कर्मियों की संख्या 70,000 से अधिक है, जिनमें सैनिक, पुलिस और नागरिक कर्मचारी शामिल हैं।
  • मार्गदर्शक सिद्धांत: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना तीन सिद्धांतों पर आधारित है – पक्षों की सहमति, निष्पक्षता, और आत्मरक्षा या अधिदेश की रक्षा के अलावा बल का प्रयोग न करना।
    • हालाँकि, इन सिद्धांतों की विषम संघर्षों और अस्पष्ट युद्ध रेखाओं के कारण कड़ी परीक्षा हो रही है।

मिशन का नाम स्थान भारत का योगदान
संयुक्त राष्ट्र विघटन पर्यवेक्षक बल (UN Disengagement Observer Force- UNDOF) गोलन हाइट्स रसद सुरक्षा के लिए 188 कर्मियों वाली रसद बटालियन
लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (UN Interim Force in Lebanon-UNIFIL) लेबनान 762 कर्मियों वाली पैदल सेना बटालियन समूह 18 स्टाफ अधिकारी
संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन (UN Truce Supervision Organization- UNTSO) मध्य पूर्व सैन्य पर्यवेक्षक और सहायक कर्मचारी
साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (UN Peacekeeping Force in Cyprus- UNFICYP) साइप्रस कर्मचारी और सैन्य पर्यवेक्षकों के रूप में अधिकारियों की तैनाती
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन (UN Organization Stabilization Mission in the Democratic Republic of the Congo- MONUSCO) कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य पैदल सेना बटालियन, चिकित्सा इकाइयाँ और सहायक कर्मचारी
दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UN Mission in South Sudan- UNMISS) दक्षिण सूडान पैदल सेना बटालियन, चिकित्सा कर्मी और इंजीनियरिंग इकाइयाँ
अबेई के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सुरक्षा बल (UN Interim Security Force for Abyei- UNIFSA) अबेई सैन्य पर्यवेक्षक और स्टाफ अधिकारी
मध्य अफ्रीकी गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी एकीकृत स्थिरीकरण मिशन (UN Multidimensional Integrated Stabilization Mission in the Central African Republic- MINUSCA) मध्य अफ्रीकी गणराज्य गठित पुलिस इकाइयाँ (FPU) और सैन्य पर्यवेक्षक
पश्चिमी सहारा में जनमत संग्रह के लिए संयुक्त राष्ट्र मिशन (UN Mission for the Referendum in Western Sahara- MINURSO) पश्चिमी सहारा सैन्य पर्यवेक्षकों की तैनाती

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत: प्रमुख मिशन

क्षेत्र संयुक्त राष्ट्र मिशन स्थान तैनाती का वर्ष भारत का योगदान  मुख्य सफलताएँ
अफ्रीका MINURSO पश्चिमी सहारा वर्ष 1991–वर्तमान सैन्य पर्यवेक्षक युद्ध विराम और जनमत संग्रह प्रक्रिया की निगरानी करना।
MINUSCA केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य वर्ष 2014–वर्तमान गठित पुलिस इकाइयाँ (FPUs), सैन्य पर्यवेक्षक नागरिकों की सुरक्षा, चुनावों के लिए समर्थन, निरस्त्रीकरण।
MONUSCO कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य वर्ष 2010–वर्तमान (पहले MONUC, 2000) पैदल सेना बटालियन, चिकित्सा इकाइयाँ, कर्मचारी भारत के पास सबसे बड़ी टुकड़ी है; यह महत्त्वपूर्ण चिकित्सा देखभाल और सुरक्षा प्रदान करता है।
UNISFA अबयेई (सूडान-दक्षिण सूडान) वर्ष 2011–वर्तमान सैन्य पर्यवेक्षक और कर्मचारी  सीमा सुरक्षा और मानवीय सहायता की निगरानी करना।
UNMISS दक्षिण सूडान वर्ष 2012 -वर्तमान इन्फैंट्री बटालियन, इंजीनियर, चिकित्सा गृहयुद्ध के दौरान नागरिकों की सुरक्षा; बुनियादी ढाँचे का निर्माण।
MINUSMA माली वर्ष 2013–वर्तमान थल सेना, रसद और कर्मचारी  चरमपंथी हिंसा के विरुद्ध समर्थन और माली में स्थिरता।
एशिया UNMOGIP भारत-पाकिस्तान (जम्मू-कश्मीर) वर्ष 1949 –वर्तमान सैन्य पर्यवेक्षक  युद्ध विराम निगरानी में भारतीय भूमिका वाला सबसे प्राचीन संयुक्त राष्ट्र मिशन।
यूरोप UNFICYP साइप्रस वर्ष 1964 से वर्तमान स्टाफ अधिकारी और पर्यवेक्षक  युद्ध विराम रेखा और मानवीय संपर्क की निगरानी करना।
UNMIK कोसोवो वर्ष 1999– वर्तमान सलाहकार एवं पर्यवेक्षक कर्मचारी  शासन और संघर्षोत्तर स्थिरीकरण का समर्थन करना।
मध्य पूर्व UNDOF गोलन हाइट्स (सीरिया-इजरायल) वर्ष 2006– से वर्तमान रसद बटालियन  रसद, परिवहन और आपूर्ति लाइनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
UNIFIL लेबनान वर्ष 1998 से वर्तमान इन्फैंट्री बटालियन समूह और स्टाफ अधिकारी भारत एक क्षेत्र पर नियंत्रण रखता है; युद्ध विराम, चिकित्सा सहायता, मानवीय सहायता का समर्थन करता है।

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शांति स्थापना में महिलाएँ

  • वैश्विक प्रतिनिधित्व: जनवरी 2025 तक, संयुक्त राष्ट्र के वर्दीधारी शांतिरक्षकों में महिलाओं की संख्या 10% है—सैन्य भूमिकाओं में 8.8% और पुलिस इकाइयों में 21% है, हालाँकि वरिष्ठ पदों पर पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ है।

  • समान लैंगिक समानता रणनीति (वर्ष 2028 लक्ष्य): संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य अपनी समान लैंगिक समानता रणनीति के तहत वर्ष 2028 तक सैन्य टुकड़ियों में 15% और पुलिस इकाइयों में 25% महिलाओं की उपस्थिति सुनिश्चित करना है।
  • वर्ष 2018 से प्रगति: शांतिरक्षकों में महिलाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2018 के 4.9% से दोगुनी होकर वर्ष 2025 में लगभग 10% हो गई है, जो विभिन्न भूमिकाओं में असमान होने के बावजूद निरंतर सुधार दर्शाता है।
  • स्थिरता संबंधी चिंताएँ: प्रगति के बावजूद, सैन्य भूमिकाओं और नेतृत्व के पदों पर प्रतिनिधित्व कम बना हुआ है, जिससे लैंगिक समानता के लक्ष्यों को प्राप्त करने की गति धीमी हो रही है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव और महिला, शांति एवं सुरक्षा (Women, Peace and Security- WPS) ढाँचा: ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव 1325 (2000) ने शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं की भूमिका को मान्यता दी, इसके बाद प्रस्ताव 1820, 1888, 1889, 2122 और 2242 पारित किए गए, जिनमें महिलाओं के नेतृत्व और यौन हिंसा से सुरक्षा पर जोर दिया गया।
  • महिला शांतिरक्षकों का परिचालन प्रभाव: महिलाएँ नागरिक सुरक्षा को बढ़ाती हैं, सामुदायिक विश्वास में सुधार करती हैं, निर्णयन क्षमता को मजबूत करती हैं, आदर्श के रूप में कार्य करती हैं और संयुक्त राष्ट्र के मूल्यों के अनुरूप लैंगिक समानता को बढ़ावा देती हैं।
  • भारत का प्रारंभिक योगदान: 1960 के दशक में, भारत ने कांगो में महिला चिकित्सा अधिकारियों को तैनात किया, जिसने महिलाओं को संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में एकीकृत करने में एक प्रारंभिक और अग्रणी भूमिका निभाई।
  • महिला शांति स्थापना में भारत की उपलब्धियाँ: वर्ष 2007 में, भारत ने लाइबेरिया में पहली पूर्णतः महिला संगठित पुलिस इकाई (FPU) तैनात की, जिससे स्थानीय सुरक्षा को बढ़ावा मिला और महिलाओं को लाइबेरिया के राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थानों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया गया।
  • वर्तमान भारतीय योगदान: वर्ष 2025 तक, 150 से अधिक भारतीय महिला शांति सैनिक छह सक्रिय मिशनों में सेवारत हैं, जिनमें कांगो, दक्षिण सूडान, लेबनान, पश्चिमी सहारा, अबेई और गोलन हाइट्स शामिल हैं।
  • वर्तमान चुनौतियाँ: भारतीय महिलाओं को अभी भी लैंगिक पूर्वाग्रह, सुरक्षा खतरों और सैन्य बाधाओं का सामना करना पड़ता है, फिर भी उनका लचीलापन सार्थक और प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • परिवर्तनकारी प्रभाव: भारतीय महिला शांति सैनिकों ने लैंगिक हिंसा का समाधान करके, सामुदायिक विश्वास को बढ़ावा देकर और समावेशी शांति निर्माण के लिए वैश्विक मानक स्थापित करके एक परिवर्तनकारी प्रभाव डाला है।

शांति अभियानों में वर्तमान चुनौतियाँ

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की पुरानी संरचना: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की शक्ति गतिशीलता को दर्शाती है, जिस पर पाँच स्थायी सदस्यों – संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, रूस और चीन – का प्रभुत्व है, जिन्हें P5 भी कहा जाता है।
    • भारत, बांग्लादेश और रवांडा जैसे प्रमुख सैन्य योगदानकर्ता देशों की निर्णय लेने में कोई स्थायी भूमिका नहीं है, भले ही उनके सैनिक शांति स्थापना की अधिकांश जिम्मेदारियाँ निभाते हैं।
    • यह बहिष्कार शांति स्थापना जनादेशों की वैधता और विश्वसनीयता दोनों को कमजोर करता है।
  • अत्यधिक जटिल और अवास्तविक जनादेश: शांति स्थापना जनादेश प्रायः व्यापक, अस्पष्ट और अति-महत्त्वाकांक्षी होते हैं, जिनमें मिशनों से राज्य निर्माण से लेकर आतंकवाद-निरोध तक की विविध अपेक्षाएँ की जाती हैं।
    • ऐसे जनादेश सीमित संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डालते हैं और शांति सैनिकों को असफलता की ओर ले जाते हैं, क्योंकि उनसे पर्याप्त राजनयिक समर्थन के अभाव में राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति की अपेक्षा की जाती है।
  • वित्तीय अनिश्चितता और असमानता: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना का वित्तपोषण निर्धारित अंशदानों के माध्यम से होता है, जहाँ सदस्य देश अपनी क्षमता के अनुसार भुगतान करते हैं। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका कुल बजट का लगभग 25% योगदान देता है।
    • हालाँकि, अमेरिका ने बार-बार अंशदान में कटौती या उसे समाप्त करने की धमकी दी है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इससे मिशनों को बजट में कटौती करनी पड़ती  है, जिससे सतही स्तर पर उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
  • परिचालन और तकनीकी जोखिम: आज शांति स्थापना के सैनिकों को आतंकवाद, आत्मघाती बम विस्फोटों और तात्कालिक विस्फोटक उपकरणों (Improvised Explosive Devices- IED) जैसे विषम खतरों का सामना करना पड़ता है, जिनसे निपटने के लिए पारंपरिक शांति स्थापना सिद्धांत विकसित नहीं किए गए हैं।
    • साथ ही, संयुक्त राष्ट्र कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), ड्रोन और भू-स्थानिक बुद्धिमत्ता जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाने में अपेक्षाकृत धीमा रहा है, जबकि ये तकनीकें परिस्थितिजन्य जागरूकता बढ़ाने और कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भू-राजनीतिक गतिरोध: स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो शक्ति का प्रयोग प्राय: सामूहिक कार्रवाई को कमजोर बना देता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के मध्य या संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच मतभेदों ने सीरिया एवं यूक्रेन में निर्णायक कार्रवाई को अवरुद्ध कर दिया है।
    • इसके परिणामस्वरूप जनादेश क्षीण होता है, विलंबित होता है या पूर्णतया अवरुद्ध हो जाता है, जिससे वैश्विक शासन के एक उपकरण के रूप में शांति स्थापना की भूमिका में कमी आती है।

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संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत की भूमिका

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में भारत की भागीदारी वर्ष 1953 में कोरियाई अभियान से प्रारंभ हुई।
  • यह महात्मा गांधी के अहिंसा के दर्शन और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के सिद्धांत पर आधारित, भारत की प्रतिबद्धता वैश्विक एकता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में उसके विश्वास को दर्शाती है।
  • सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्ता: भारत ने वर्ष 1948 से अब तक 50 से अधिक मिशनों में 2,00,000 से अधिक कर्मियों का योगदान दिया है – जो किसी भी अन्य देश से अधिक है।
  • बलिदान: कुल 179 भारतीय शांति सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र की सेवा में सर्वोच्च बलिदान दिया है, जो भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • प्रशिक्षण नेतृत्व: भारत ने वर्ष 2000 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना केंद्र (सीयूएनपीके) की स्थापना की, जो आधुनिक शांति सेना चुनौतियों में सैनिकों के प्रशिक्षण का एक वैश्विक केंद्र बन गया है।
  • लैंगिक सशक्तीकरण: भारत ने वर्ष 2007 में लाइबेरिया में पहली महिला-प्रधान पुलिस इकाई (FPU) तैनात की, जिसने रूढ़िवादिता को तोड़ा और शांति स्थापना में महिलाओं की भागीदारी के लिए एक मिसाल स्थापित की।
  • सम्मान: भारतीय सेना की मेजर सुमन गवानी को वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र सैन्य लैंगिक अधिवक्ता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान शांति स्थापना अभियानों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने और लैंगिक-संवेदनशील प्रथाओं को मुख्यधारा में सम्मिलित करने के उनके योगदान के लिए प्रदान किया गया।
    • संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय ने मेजर राधिका सेन को “वर्ष 2023 का संयुक्त राष्ट्र सैन्य जेंडर एडवोकेट ऑफ द ईयर” पुरस्कार से सम्मानित किया है, जो संयुक्त राष्ट्र शांति प्रयासों में भारतीय महिलाओं के महत्त्वपूर्ण योगदान को मान्यता प्रदान करता है।
    • वर्ष 2023 में, भारत को संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च शांति सम्मान, डैग हैमरशॉल्ड पदक प्रदान किया गया। यह पदक भारतीय शांति सैनिकों शिशुपाल सिंह और साँवला राम विश्नोई तथा संयुक्त राष्ट्र के असैन्य कार्यकर्ता शबर ताहिर अली को कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में उनके बलिदान के लिए मरणोपरांत प्रदान किया गया।
  • हमारी विदेश नीति के मूल में शांति स्थापना के प्रति प्रतिबद्धता निहित है—जो संवाद, कूटनीति और सहयोग पर आधारित है। “वसुधैव कुटुंबकम्” के दर्शन, अर्थात् विश्व एक परिवार है, के विश्वास से प्रेरित होकर, भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सार्थक योगदान देता रहेगा।

डॉ. एस. जयशंकर, भारतीय विदेश मंत्री

प्रभावी शांति स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार क्यों आवश्यक हैं?

  • वैधता और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना: स्थायी और अस्थायी दोनों सीटों के विस्तार के बिना, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्णयों की वैश्विक दक्षिण की नजर में विश्वसनीयता कम हो जाती है।
    • भारत, ब्राजील, जर्मनी, जापान और अफ्रीकी देशों जैसी शक्तियों को शामिल करने से निर्णय लेने की प्रक्रिया लोकतांत्रिक होगी और यह सुनिश्चित होगा कि जनादेश 21वीं सदी की वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि वर्ष 1945 के दौर की राजनीति का।
  • परिचालन दक्षता में सुधार: सुधारों से सुव्यवस्थित, यथार्थवादी और साध्य जनादेश प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
    • कार्यवाहियों को विशिष्ट राजनीतिक परिणामों से जोड़कर और समयबद्ध निकास रणनीतियों को सुनिश्चित करके, शांति स्थापना मिशनों को कम प्रभाव वाली अनिश्चितकालीन तैनाती से सुरक्षित हुआ जा सकता है।
  • सैनिकों का योगदान करने वाले देशों को सशक्त बनाना: जो देश अधिकांश सैनिक और पुलिस बल सेवाएँ प्रदान करते हैं, उन्हें जनादेशों के प्रारूपण तथा समीक्षा में शामिल किया जाना चाहिए।
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि रणनीतियाँ क्षेत्र-स्तरीय वास्तविकताओं पर आधारित हों और योगदान देने वाले देशों के मध्य स्वामित्व और जवाबदेही का निर्माण हो।
  • वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना: सदस्यता का विस्तार वित्तीय उत्तरदायित्व में विविधता लाएगा और कुछ देशों पर अत्यधिक निर्भरता को कम करेगा।
    • उपलब्ध संसाधनों के साथ अधिदेशों की सीमा के सामंजस्य से भी आवश्यकता से अधिक बोझ पड़ने से बचने और विश्वसनीयता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • उभरते सुरक्षा खतरों के अनुकूल होना: आतंकवाद, हाइब्रिड युद्ध, साइबर हमलों और दुष्प्रचार अभियानों से निपटने की दिशा में शांति स्थापना को पुनर्निर्देशित करने के लिए सुधारों की आवश्यकता है।
    • AI-संचालित निगरानी, ​​ड्रोन और भू-स्थानिक मानचित्रण जैसी आधुनिक तकनीकों को एकीकृत करने से शांति स्थापना कर्मियों के लिए प्रक्रिया अधिक प्रभावी और सुरक्षित हो जाएगी।

शांति स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधारों का महत्त्व

  • राजनीतिक विश्वसनीयता: व्यापक प्रतिनिधित्व यह सुनिश्चित करता है कि मिशनों को मेजबान देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदायों दोनों द्वारा वैध माना जाए।
  • परिचालन सफलता: केंद्रित, प्राप्त करने योग्य अधिदेश मापनीय परिणाम देने की संभावनाओं को बढ़ाते हैं।
  • संसाधन अनुकूलन: सुधार संसाधनों को उद्देश्यों के साथ संरेखित करते हैं, जिससे बजटीय असंतुलन को रोका जा सकता है।
  • हितधारक स्वामित्व: सैन्य योगदानकर्ताओं को शामिल करने से शांति अभियानों में मनोबल और विश्वास बढ़ता है।
  • वैश्विक स्थिरता: प्रभावी शांति स्थापना संघर्ष की पुनरावृत्ति को रोकती है, मानवीय संकटों और बलात् प्रवासन के बोझ को कम करती है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की चुनौतियाँ

  • स्थायी पाँच सदस्यों (P5) का प्रतिरोध: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, रूस और चीन अपने विशेषाधिकारों को कम करने के लिए अनिच्छुक हैं। विशेष रूप से वीटो शक्ति उन्हें अत्यंत प्रभाव प्रदान करती है, जिस पर वे समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
  • आकांक्षियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा: G4 राष्ट्र (भारत, जापान, जर्मनी, ब्राजील), अफ्रीकी संघ (AU) और विकासशील देशों के L.69 समूह जैसे समूह प्रतिनिधित्व के अलग-अलग मॉडल के साथ सुधार की माँग करते हैं।
    • इन देशों के मध्य आम सहमति का यह अभाव परिवर्तन की गति को कमजोर करता है।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच या रूस और पश्चिमी शक्तियों के बीच बढ़ते तनाव संरचनात्मक सुधार पर आम सहमति बनाना और भी कठिन बना देते हैं।
    • ये प्रतिद्वंद्विताएँ शांति स्थापना संबंधी निर्णय लेने में देखी जाने वाली निष्क्रियता में परिलक्षित होती हैं।
  • महासभा में आम सहमति का अभाव: संयुक्त राष्ट्र चार्टर में किसी भी संशोधन के लिए महासभा के दो-तिहाई (193 में से 129 देश) के अनुमोदन और सभी P5 सदस्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है।
    • इतने उच्च स्तर की सहमति प्राप्त करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है, जिससे सुधार प्रयासों में गतिरोध उत्पन्न होता है।

वैश्विक शांति स्थापना सुधार और नवीन मॉडल

  • ब्राहिमी रिपोर्ट (2000): सशक्त अधिदेश, बेहतर संसाधन और त्वरित तैनाती क्षमताओं का आह्वान किया गया।
  • शांति अभियानों पर उच्च-स्तरीय स्वतंत्र पैनल (हिप्पो) रिपोर्ट (2015): राजनीति और जन-केंद्रित शांति स्थापना की प्रधानता पर बल दिया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव का ‘शांति के लिए नया एजेंडा’ (2023): निवारक कूटनीति, क्षेत्रीय साझेदारी और प्रौद्योगिकी-सक्षम अभियानों की वकालत करता है।
  • क्षेत्रीय हाइब्रिड मॉडल: अफ्रीकी संघ के नेतृत्व वाले मिशन, संयुक्त राष्ट्र द्वारा सह-वित्तपोषित और समर्थित, एक लचीले मॉडल का प्रदर्शन करते हैं, जिसका वैश्विक स्तर पर विस्तार किया जा सकता है।

आगे की राह

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संरचनात्मक सुधार: स्थायी और अस्थायी, दोनों प्रकार की सदस्यता का विस्तार करके ‘ग्लोबल साउथ’, विशेष रूप से भारत, अफ्रीकी संघ के नामांकित देशों और लैटिन अमेरिका की शक्तियों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए।
    • वीटो शक्ति के प्रयोग को प्रतिबंधित या विनियमित किया जाना चाहिए, विशेष रूप से सामूहिक अत्याचारों और शांति स्थापना प्राधिकरणों के मामलों में।
  • अधिदेशों का युक्तिकरण: अधिदेश समयबद्ध, राजनीतिक रूप से प्राप्त करने योग्य होने चाहिए, और परिवर्तित वास्तविकताओं के अनुकूल होने के लिए नियमित रूप से उनकी समीक्षा की जानी चाहिए।
    • पुराने और कम प्रासंगिक मिशनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए।
  • समावेशी निर्णय-प्रक्रिया: सैन्य और पुलिस योगदान देने वाले देशों के साथ नियमित परामर्श को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए।
    • निर्णय लेने के प्रत्येक स्तर पर, न कि केवल तैनाती के स्तर पर, महिलाओं की भागीदारी को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए।
  • सतत् वित्तपोषण: रसद और प्रौद्योगिकी सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति बॉण्ड, स्वैच्छिक ट्रस्ट फंड और सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसे नवीन तंत्रों का अन्वेषण किया जाना चाहिए।
    • विकसित और विकासशील दोनों देशों के बीच समान दायित्व-साझाकरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ड्रोन, साइबर-रक्षा प्रणालियों और GIS मानचित्रण के उपयोग का विस्तार करना।
    • आधुनिक चुनौतियों के लिए सैनिकों को तैयार करने हेतु भारत के संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (CUNPK) जैसी प्रशिक्षण सुविधाओं को सुदृढ़ करना।

निष्कर्ष

“संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना वैश्विक स्थिरता के लिए अब भी अनिवार्य है, किंतु सुरक्षा परिषद की पुरानी संरचनाएँ, कमजोर जनादेश और संसाधनों की कमी इसकी विश्वसनीयता को चुनौती देते हैं। भारत का सक्रिय नेतृत्व इस तथ्य को रेखांकित करता है कि सुधार कोई विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है—ताकि शांति स्थापना अधिक प्रभावी, वैध एवं भविष्य के अनुरूप बन सके।

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