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भारत में शहरी बाढ़

Lokesh Pal August 03, 2024 03:17 150 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) ने दिल्ली के लिए ‘रेड अलर्ट’ जारी किया, जिसमें अगले 24 घंटों में भारी से बहुत भारी वर्षा जारी रहने की चेतावनी दी गई थी।

  • उल्लेखनीय है कि विभिन्न भारतीय शहर भीषण बाढ़ का सामना कर रहे हैं, जो शहरी नियोजन तथा जल निकासी संबंधी बुनियादी ढाँचे में प्रणालीगत मुद्दों को उजागर करता है।

भारत में शहरी बाढ़ संबंधी हालिया चिंताजनक मामले

पिछले 15 वर्षो से भी अधिक समय से भारतीय शहर मानसूनी वर्षा के कारण प्रभावित हो रहे हैं। शहरों में मानसूनी वर्षा के दौरान अधिकतर मौतें नालों के उफान पर होने, दीवार या इमारत गिरने तथा विद्युत के झटके लगने की वजह से होती हैं।

  • दिल्ली: इस वर्ष दिल्ली के कई हिस्से एक दिन से अधिक समय तक जलमग्न रहे।
  • असम: गुवाहाटी, असम में बाढ़ के कारण भरी जन-धन की हानि हुई है।
  • महाराष्ट्र: पुणे और मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई इलाकों में मूसलाधार वर्षा ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया।
  • सभी मामलों में समानता: इन सभी शहरों की भौगोलिक विशेषताएँ अलग-अलग हैं। हालाँकि, बाढ़ से जुड़ी उनकी समस्याओं में कम-से-कम तीन आयाम समान हैं:-
    • जल निकासी की पुरानी व्यवस्था: यह सामान्य से अधिक वर्षा की स्थिति को वहन करने में असक्षम है।
    • अप्रभावी नियोजन: ऐसी योजना जिसमें स्थानीय जल विज्ञान को ध्यान में नहीं रखा जाता।
    • सीमित नागरिक प्रतिक्रिया: नागरिक एजेंसियों की भूमिका राहत एवं बचाव के आयोजन तक ही सीमित रहती है।

शहरी बाढ़ (Urban Flood) के बारे में

निर्मित वातावरण में भूमि या संपत्ति का जलमग्न होना, विशेष रूप से अधिक आबादी वाले शहरों में, जहाँ वर्षा का जल, उस शहर की जल निकासी प्रणालियों की क्षमता से अधिक हो जाता है, शहरी बाढ़ के रूप में जाना जाता है।

  • संक्षेप में: शहरी बाढ़ को ‘आमतौर पर सूखे क्षेत्रों का अचानक अत्यधिक वर्षा, उफनती नदी या झील, पिघलती बर्फ या असाधारण रूप से उच्च ज्वार से आने वाले जल की बड़ी मात्रा में जलमग्न होना’ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • संबंधित डेटा: भारत सरकार के डेटा के अनुसार, वर्ष 2012 से 2021 के बीच भारत में बाढ़ तथा भारी वर्षा के कारण 17,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी।
  • संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान की 12वीं अनुसूची के अनुसार, नगर नियोजन, भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों के निर्माण सहित शहरी नियोजन, शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULB)/शहरी विकास प्राधिकरणों का कार्य है।
    • बाढ़ नियंत्रण के लिए शमन उपाय तथा जल निकासी योजना की तैयारी राज्य सरकार एवं शहरी स्थानीय निकायों/शहरी विकास प्राधिकरणों के अधिकार क्षेत्र में आती है।
    • भारत सरकार योजनाबद्ध हस्तक्षेप/सलाह के माध्यम से राज्यों के प्रयासों को पूरक बनाती है। यह राज्यों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करती है।

भारत में शहरी बाढ़ के कारण

भारत में शहरी बाढ़ के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-

  • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मौसम के पैटर्न में बदलाव आ रहा है तथा कम समयावधि में वर्षा की तीव्रता बढ़ रही है।
    • उदाहरण: शहरी बाढ़ ग्रामीण बाढ़ से काफी भिन्न होती है, क्योंकि शहरीकरण के कारण जलग्रहण क्षेत्र विकसित होते हैं, जिससे बाढ़ की तीव्रता 1.8 से 8 गुना तक बढ़ जाती है तथा बाढ़ की मात्रा 6 गुना तक बढ़ जाती है।
  • शहरी ऊष्मा द्वीप (Urban Heat Island) प्रभाव: NDMA के अनुसार, शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव के कारण शहरी क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि हुई है।
    • गर्म हवा वर्षा करने वाले बादलों को शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव वाले क्षेत्रों से गुजरते समय ऊपर की ओर धकेलती है।
      • ऊष्मा द्वीप (हीट आइलैंड) शहरीकृत क्षेत्र हैं, जहाँ बाहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक तापमान होता है।
  • निचले इलाकों में अतिक्रमण: भारतीय शहरों के मूल निर्मित क्षेत्र का विस्तार हुआ है तथा भूमि की बढ़ती कीमतों एवं शहरों में भूमि की कम उपलब्धता के कारण भारतीय शहरों और कस्बों के निचले इलाकों में नए विकास कार्य हो रहे हैं।
    • अधिकांशतः ये विकास कार्य झीलों, आर्द्रभूमियों और नदी-तलों पर अतिक्रमण करके किए जाते हैं।
    • ये अतिक्रमण प्राकृतिक नालों को चौड़ा किए बिना ही किए गए हैं। इस प्रकार, प्राकृतिक नालों की क्षमता कम होने से बाढ़ आती है।

  • समुद्र स्तर में वृद्धि: नदियों, महासागर, आंतरिक शहरों, बाँधों और खड़ी ढलानों के निकट स्थित शहर और कस्बे समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: उपग्रह अवलोकनों से पता चला है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर बढ़ रही है और वर्ष 2021 से 2022 तक इसमें 0.11 इंच की वृद्धि हुई है।
  • दोषपूर्ण जल निकासी प्रणाली: शहरी क्षेत्रों में भारी वर्षा की स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त जल निकासी बुनियादी ढाँचे का अभाव है।
    • अप्रभावी नियोजन और अभेद्य सतहें, जैसे भवन एवं राजमार्ग, जल को जमीन में प्रवेश नहीं करने देतीं और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों पर बोझ डालती हैं।
    • नालियों को कंक्रीट से पक्का करने तथा जल का अंतः निस्पंदन बाधित होने से समस्या और भी गंभीर हो गई है।
  • शहरीकरण: तेजी से हो रहा शहरीकरण, चाहे वह नियोजित हो या अनियोजित, बाढ़ के लिए जिम्मेदार है।
    • ‘ग्रे इन्फ्रास्ट्रक्चर’ जिसमें फ्लाईओवर, सड़कों का चौड़ीकरण, शहरी बस्तियाँ शामिल हैं, जलभराव वाले क्षेत्रों में शहरी बाढ़ में योगदान करते हैं। 
    • हाल ही में गुरुग्राम तथा बंगलूरू में आई बाढ़ ऐसी ही योजना के विफलताओं के उदाहरण हैं।
  • जल निकायों एवं हरित क्षेत्रों की हानि: राष्ट्रीय शहरी मामलों के संस्थान द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि प्रमुख भारतीय शहरों ने पिछले 40 वर्षों में अपने 70-80% जल निकायों को खो दिया है।
    • इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक जल भंडारण क्षमता में कमी आई है, सतही अपवाह में वृद्धि हुई है तथा प्राकृतिक जल चक्र में व्यवधान उत्पन्न हुआ है।
  • प्रभावी शहरी प्रशासन का अभाव: 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के बावजूद, शहरी नियोजन, भूमि उपयोग तथा आर्थिक विकास जैसे प्रमुख क्षेत्र पूरी तरह से शहरी सरकारों को हस्तांतरित नहीं किए गए हैं। इससे खराब शहरी प्रशासन एवं कुप्रबंधन होता है।
  • अनुचित अपशिष्ट निपटान पद्धतियाँ भी बाढ़ में योगदान करती हैं: कई शहरों में जल निकायों, शहरी हरित स्थानों तथा छोटे जंगलों पर अवैध विकास एवं अतिक्रमण देखा गया है।
    • इससे संगृहीत किए जा सकने वाले जल की मात्रा कम हो जाती है और नदी का प्राकृतिक प्रवाह गड़बड़ा जाता है, जिससे भारी वर्षा के बाद बाढ़ की तीव्रता बढ़ जाती है। 
    • तमिलनाडु में वेलाचेरी झील ‘सीवेज डिस्चार्ज’ के कारण विलुप्त हो गई है।
  • अवैध खनन: नदी की रेत तथा क्वार्टजाइट के अवैध खनन से मृदा क्षरण होता है एवं जलाशय की जलधारण क्षमता कम हो जाती है, जिससे जल प्रवाह की गति एवं परिमाण बढ़ जाता है।
    • उदाहरण के लिए: जोधपुर की जयसमंद झील, कावेरी नदी, तमिलनाडु आदि।

भारत में शहरी बाढ़ से निपटने के लिए की गई कार्रवाई

भारत में शहरी बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम इस प्रकार हैं:

  • संस्थागत ढाँचा एवं व्यवस्था
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (National Disaster Response Force- NDRF): आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में किसी आपदा की आशंका वाली स्थिति या आपदा के लिए विशेष प्रतिक्रिया के उद्देश्य से NDRF के गठन को अनिवार्य बनाया गया है।
    • राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee- NCMC): इसमें कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में भारत सरकार के उच्च-स्तरीय अधिकारी शामिल हैं, जो संबंधित प्रमुख संकटों से निपटने के लिए कार्य योजना पर चर्चा करते हैं।
    • केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission- CWC): भारत में बाढ़ का पूर्वानुमान CWC द्वारा जारी किया जाता है। यह अपने वेब पोर्टल पर लगभग रियल टाइम में पाँच दिवसीय एडवाइजरी संबंधी बाढ़ पूर्वानुमान प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए सर्वोच्च निकाय है।
      • मानसून का प्रारंभिक चरण
        • तैयारी: आपदा न्यूनीकरण हेतु योजना बनाना: शहरी बाढ़ के खतरे या घटना से निपटने के लिए योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना अधिक आवश्क है।
          • राष्ट्रीय जल-मौसम विज्ञान नेटवर्क (National Hydro-meteorological Network)
          • राष्ट्रीय मौसम विज्ञान नेटवर्क (National Meteorological Network)
          • वास्तविक समय वर्षा डेटा के लिए स्थानीय नेटवर्क (Local Networks for Real time Rainfall data)
          • डॉप्लर मौसम रडार (Doppler Weather Radars)
      • मानसून चरण के दौरान
        • प्रारंभिक चेतावनी: वर्षा की तीव्रता के आधार पर शहरी बाढ़ के लिए समय पर, गुणात्मक और मात्रात्मक चेतावनी प्रदान करने के उपाय किए जाते हैं।
        • प्रभावी प्रतिक्रिया और प्रबंधन: मुख्य रूप से आपातकालीन राहत उपायों पर ध्यान केंद्रित करता है।
      • मानसून के बाद का चरण
        • पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास: संवेदनशील स्थिति को स्थिर करने तथा उपयोगिताओं को बहाल करने के लिए आवश्यक उपाय।
  • शहरी बाढ़ को रोकने के लिए विभिन्न सरकारी पहल
    • जल शक्ति अभियान: इसे वर्षा जल संचयन/भूजल पुनर्भरण पर विशेष जोर देते हुए क्रियान्वित किया जा रहा है।
    • अमृत सरोवर मिशन (Amrit Sarovar Mission): इसे वर्षा जल संचयन/पुनर्भरण के लिए आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के एक भाग के रूप में देश के प्रत्येक जिले में 75 जल निकायों को विकसित करने तथा उनका कायाकल्प करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।
    • अटल भूजल योजना (Atal Bhujal Yojana): भूजल के माँग पक्ष प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है तथा तदनुसार जल बचत जैसे कि सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप/स्प्रिंकलर सिस्टम) का उपयोग, अधिक जल वाली फसलों से कम जल वाली फसलों की ओर फसल पैटर्न में बदलाव, मल्चिंग आदि को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
    • नवीकरण और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT) 2.0: वर्षा जल को जल निकायों (जिसमें सीवेज/अपशिष्ट नहीं आ रहा है) में वर्षा जल के संचयन तथा जल निकायों के चारों ओर वर्षा जल नालियों के निर्माण/सुदृढ़ीकरण के प्रावधान किए गए हैं।
    • मॉडल बिल्डिंग उपनियम (Model Building Bye Laws- MBBL): आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing & Urban Affairs- MoHUA) ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए मॉडल बिल्डिंग बायलॉज (Model Building Bye Laws- MBBL), 2016 तैयार किया है। MBBL के अनुसार, 100 वर्ग मीटर या उससे अधिक आकार के प्लॉट वाली सभी इमारतों में अनिवार्य रूप से वर्षा जल संचयन का पूरा प्रस्ताव शामिल होना चाहिए।
      • 35 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों ने उपनियमों की विशेषताओं को अपना लिया है।
    • आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा शहरी बाढ़ पर मानक संचालन प्रक्रियाएँ (Standard Operating Procedures- SOP): SOP में शहरी बाढ़ से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए संबंधित सार्वजनिक एजेंसियों की पहचान की गई है, परिभाषित विभिन्न चरणों में उनकी व्यापक जिम्मेदारियों को सूचीबद्ध किया गया है, तथा अन्य संबंधित एजेंसियों के साथ समन्वय में तथा आपातकालीन सहायता कार्यों (Emergency Support Functions- ESF) के अनुसार इन एजेंसियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई का क्रम निर्धारित किया गया है।

शहरी बाढ़ का प्रभाव

शहरी बाढ़ के कारण भारतीय शहरों तथा उसके नागरिकों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है:

  • मूर्त हानियाँ (Tangible Losses): वे हानियाँ जिन्हें भौतिक रूप से मापा जा सकता है तथा जिनका आर्थिक मूल्य निर्धारित किया जा सकता है। ये हानियाँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो सकती हैं।
    • प्रत्यक्ष: इमारतों को संरचनात्मक क्षति, संपत्ति की क्षति, बुनियादी ढाँचे को नुकसान, आदि।
    • अप्रत्यक्ष: आर्थिक नुकसान, यातायात व्यवधान, तथा आपातकालीन लागत।
  • अमूर्त हानियाँ: अमूर्त हानियों में जीवन की हानि, द्वितीयक स्वास्थ्य प्रभाव तथा संक्रमण या पर्यावरण को होने वाली क्षति शामिल होती है, जिनका मौद्रिक रूप में आकलन करना कठिन होता है, क्योंकि उनका व्यापार नहीं किया जाता है।
    • प्रत्यक्ष: हताहत, स्वास्थ्य प्रभाव, पारिस्थितिकी नुकसान आदि।
    • अप्रत्यक्ष: बाढ़ के बाद की पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया, लोगों को मानसिक क्षति आदि।

आगे की राह

भारत में बढ़ती शहरी बाढ़ की चुनौती से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली अपनाना: यदि प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली लागू की जाए तो बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। बाढ़ की आशंका वाले ब्यूनस एयर्स (Buenos Aires) ने बाढ़ की चेतावनी पहले ही जारी करने के लिए 30,000 से अधिक वर्षा जल नालियों में सेंसर लगाए हैं।
  • हाइब्रिड समाधान: भारतीय शहरों को प्राकृतिक तथा तकनीकी समाधानों का अपना मिश्रण अपनाना होगा। मुंबई और पुणे सहित अधिकांश भारतीय शहरों में वर्षा जल निकासी सुधार परियोजनाएँ धीमी गति से आगे बढ़ी हैं। देश की हालिया मानसून की समस्या इस बात का संकेत है कि ऐसी परियोजनाओं को टाला नहीं जा सकता है।
  • सहयोगात्मक दृष्टिकोण: भारतीय शहरों को जलवायु के प्रति लचीला बनाने के लिए संस्थागत तंत्र पर ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है। मुंबई की जलवायु कार्य योजना में उद्योग, शिक्षा और नागरिक समाज संगठनों को शामिल करते हुए सहयोगात्मक तंत्र की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है।
    • हालाँकि, योजना की नोडल एजेंसी, बृहन्मुंबई नगर निगम, अभी तक अपना काम शुरू नहीं कर पाई है।
  • सतत् विकास पर मूल्यांकन तथा ध्यान देना: भारत को अपने शहरों के अति-घनत्व की बारीकी से जाँच करनी चाहिए एवं एक राष्ट्रीय नीति तैयार करनी चाहिए जो आर्थिक, पर्यावरणीय तथा सामाजिक स्थिरता के आधार पर स्वीकृत सीमा से परे जनसांख्यिकीय घनत्व को हतोत्साहित करती है।
    • साथ ही, बड़े शहरों में निवेश (बीमा भी प्रदान करना) तथा छोटे शहरों को विकसित करने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता होगी ताकि बड़े शहरों पर पलायन एवं उसके परिणामस्वरूप पड़ने वाले बोझ को कम किया जा सके। इससे अन्य शहरों के विकास को सतत् तरीके से बढ़ावा मिलेगा।
  • जागरूकता: नागरिकों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण व्यवहार को विकसित करने के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए। देश भर में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को अपने दैनिक जीवन, आजीविका और व्यावसायिक पैटर्न में जोखिम न्यूनीकरण चिंताओं को अपनाने और एकीकृत करने में सहायता की जानी चाहिए।
    • इसके लिए राज्य को आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन के लिए एक विशाल शिक्षा कार्यक्रम शुरू करना होगा।
  • स्पंज सिटीज मॉडल अपनाना (Adopt Sponge Cities Model): यह मानसून जलवायु तथा 2,000-5,000 वर्षों के अनुभव एवं  अनुकूलन के ज्ञान पर आधारित मॉडल है।
  • जलवायु एटलस विकसित करना: प्रत्येक कस्बे और शहर को विकास योजना बनाने से पहले लोगों की सक्रिय भागीदारी के साथ अपनी जलवायु कार्य योजना और जलवायु एटलस तैयार करना चाहिए।
    • कमजोर बिंदुओं की पहचान की जानी चाहिए, जल की रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए और जल निकायों या जल चैनलों को होने वाले नुकसान की जाँच की जानी चाहिए।
    • बाढ़ तथा अन्य जलवायु आपदाओं के अनुकूल होने के लिए क्षमता निर्माण किया जाना चाहिए।
    • सतत् शहरी नियोजन: शहरों को ऐसी सतत् नियोजन पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता है, जो क्षेत्र की प्राकृतिक स्थलाकृति तथा जल विज्ञान पर विचार करती हों।
    • हरित क्षेत्र जो अतिरिक्त जल को अवशोषित कर सकते हैं, उन्हें योजना में शामिल किया जाना चाहिए।
    • बाढ़ प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा बनाया जाना चाहिए जिसमें जल की रूपरेखा के साथ न्यूनतम जुड़ाव शामिल हो।
  • बेहतर जल निकासी प्रणालियाँ: अपशिष्ट संग्रहण तथा पृथक्करण को बढ़ाकर बेहतर जल प्रबंधन विधियों का अभ्यास किया जाना चाहिए।
    • गर्मी के महीनों के दौरान नालियों की सफाई के प्रोटोकॉल का पालन किया जाना चाहिए।
  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग: उपग्रह डेटा अनौपचारिक बस्तियों को डिजिटल बनाने एवं बाढ़ सुरक्षा रणनीतियों के लिए भेद्यता के स्तर की पहचान करने में मदद कर सकता है। बाढ़ भेद्यता मानचित्रण के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए।
    • वर्षा जल संचयन: बेहतर जल प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए इसे सभी बुनियादी ढाँचे के निर्माण में शामिल किया जाना चाहिए।
    • बायोसवेल (Bioswales) का निर्माण: सड़कों के किनारे बायोसवेल का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि वर्षा के जल का भूमि में निस्पंदन हो सके।
      • बायोसवेल भूदृश्य विशेषताएँ हैं, जो प्रदूषित ‘स्टॉर्म वाटर’ अपवाह को संकेंद्रित करती हैं, उसे भूमि में सोख लेती हैं, और प्रदूषण को फिल्टर कर देती हैं।
      • बायोसवेल (Bioswales) वर्षा उद्यानों के समान हैं, लेकिन इन्हें सड़कों और पार्किंग स्थलों जैसी अभेद्य सतहों के बड़े क्षेत्रों की तरफ से आने वाले बहुत अधिक अपवाह को संगृहीत करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास (Development of Blue-Green Infrastructure): ‘ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर’ शब्द से तात्पर्य ऐसे नेटवर्क से है, जो शहरी तथा जलवायु समस्याओं को हल करने के लिए लोगों को प्रकृति से जोड़ने के लिए बुनियादी ढाँचे, पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन और शहरी डिजाइन का उपयोग करता है।
    • नीला रंग टैंकों तथा जल निकायों को दर्शाता है, जबकि हरा रंग पार्कों, बगीचों और पेड़ों को दर्शाता है।
  • प्रकृति आधारित समाधान खोजना: प्राकृतिक आर्द्रभूमि की पुनर्स्थापना, शहरी वनों का निर्माण, और जल निकायों के पुनरोद्धार जैसे प्रकृति आधारित समाधानों को लागू करना, जो प्राकृतिक जल अवशोषण को बढ़ा सकते हैं और जलभराव को कम कर सकते हैं।
  • दुनिया भर में सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना
    • ऑस्ट्रेलिया की जल-संवेदनशील शहरी डिजाइन (Water-Sensitive Urban Design- WSUD): इस बहुमूल्य संसाधन का उपयोग करने तथा नदियों और खाड़ियों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए शहरी क्षेत्रों की योजना और डिजाइन करने का एक दृष्टिकोण।
    • यूनाइटेड किंगडम में टिकाऊ शहरी जल निकासी प्रणालियाँ (Sustainable Urban Drainage Systems- SuDS): सतही जल की बाढ़ को कम करना, जल की गुणवत्ता में सुधार करना तथा पर्यावरण की सुविधा और जैव विविधता मूल्य को बढ़ाना इसका उद्देश्य है।

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