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शहरी वन

Lokesh Pal May 24, 2025 03:36 120 0

संदर्भ

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने हैदराबाद के काँचा गाचीबोवली (Kancha Gachibowli) में वनों की कटाई को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया, जिससे विकास संबंधी दबावों के कारण भारत के शहरी वनों की संवेदनशीलता पर जोर दिया गया।

संबंधित तथ्य 

  • इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (जो प्रत्येक वर्ष 22 मई को मनाया जाता है) का विषय ‘प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत् विकास’ है।
  • यह दिन 22 मई, 1992 को जैव विविधता अभिसमय (CBD) के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु हेतु मनाया जाता है।

शहरी वन क्या है?

  • शहरी वनों का तात्पर्य शहर की सीमा के भीतर वृक्षयुक्त क्षेत्रों और हरित गलियारों से है, जिसमें प्राकृतिक वनभूमि, मानव निर्मित पार्क और संस्थागत हरित पट्टी शामिल हैं।
  • शहरी जैव विविधता में इन स्थानों पर उत्पन्न होने वाले जीवों, वनस्पतियों, कवक और सूक्ष्मजीवों की विविधता शामिल है।

शहरी वन के लाभ

  • पारिस्थितिकी संतुलन और वायु गुणवत्ता: शहरी वन PM 2.5 और PM 10 जैसे वायु प्रदूषकों तथा कार्बन को अलग करने और शहरी तापमान को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
    • अमेरिकी वन सेवा के एक अध्ययन में पाया गया कि एक हेक्टेयर शहरी वन प्रतिवर्ष एक टन तक वायु प्रदूषक हटा सकता है।

  • जलवायु लचीलापन: शहरी हरियाली शहरी ऊष्मन द्वीप प्रभाव को कम करती है, तीव्र जल अपवाह को कम करती है और शहरी बाढ़ को रोकने में मदद करती है।
    • वृक्ष मृदा को स्थिर भी करते हैं और भारी वर्षा के दौरान कटाव को कम करते हैं।
  • जैव विविधता को बढ़ावा: हरे भरे स्थान पक्षियों, तितलियों और कीड़ों जैसी लुप्तप्राय और शहर-अनुकूलित प्रजातियों के लिए शरणस्थल के रूप में कार्य करते हैं।
    • चेन्नई के कोयंबेडु बाजार में, प्राकृतिक पुनर्जनन द्वारा केवल दो वर्षों में 141 पौधों की प्रजातियों और 35 पक्षी प्रजातियों को प्राप्त किया गया।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक सेवाएँ: शहरी वन तापमान विनियमन और तनाव से राहत के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं।
    • वे आध्यात्मिक, शैक्षिक और शारीरिक गतिविधियों के लिए मनोरंजक और सांस्कृतिक स्थान के रूप में कार्य करते हैं।
  • SDG का समर्थन: शहरी वन SDG लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।
    • SDG 11 शहरों और मानव बस्तियों को सुरक्षित, लचीला और सतत् बनाने के महत्त्व को संदर्भित करता है।

शहरी जैव विविधता संरक्षण और शहरी बाढ़ शमन

  • प्राकृतिक जल अवशोषण: देशज वनस्पतियों वाले हरे-भरे स्थान मृदा की पारगम्यता को बढ़ाते हैं, जिससे वर्षा जल का रिसाव होता है और सतही अपवाह कम होता है।
  • आर्द्रभूमि पुनर्स्थापन: शहरी आर्द्रभूमि का संरक्षण और पुनर्स्थापन प्राकृतिक स्पंज के रूप में कार्य करता है, अतिरिक्त वर्षा जल को संगृहीत करता है और इसे धीरे-धीरे निस्पंदित करता है।
  • वर्षा जल संचयन: संधारणीय वास्तुकला के साथ एकीकृत जैव विविधतापूर्ण परिदृश्य वर्षा जल को संगृहीत करने और पुनः उपयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • तीव्र अपवाहित जल का विनियमन: वृक्ष और वनस्पति वर्षा जल को रोकते हैं और तीव्र अपवाहित जल के वेग को कम करते हैं, जिससे बाढ़ के जोखिम कम होते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र बफर जोन: शहरी वन और पार्क जल निकायों के साथ बफर जोन के रूप में कार्य करते हैं, अतिक्रमण को रोकते हैं और बाढ़ के मैदानों के लचीलेपन में सुधार करते हैं।
  • माइक्रोक्लाइमेट विनियमन: शहरी हरियाली शहरी ऊष्मन द्वीप प्रभाव को कम करती है, जिससे बेहतर वाष्पीकरण और स्थानीयकृत वर्षा विनियमन का समर्थन होता है।

शहरी जैव विविधता पर सरकारी पहल

  • नगर वन योजना: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा वर्ष 2020 में शुरू की गई इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2027 तक 1,000 शहरी वन स्थापित करना है।
    • भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 के अनुसार, इस योजना के तहत 1,445.81 वर्ग किमी. हरित क्षेत्र जोड़ा गया है।
  • स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत (2015): ये मिशन जैव विविधता गलियारों, सतत् जल निकासी प्रणालियों और इको-पार्कों सहित शहरी बुनियादी ढाँचे में एकीकृत पारिस्थितिकी डिजाइन को बढ़ावा देते हैं।
  • राष्ट्रीय वन नीति (1988): सामाजिक वानिकी और सामुदायिक भागीदारी पर जोर देती है, शहरी निवासियों को वृक्षारोपण और हरित स्थान विकास में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे शहरी वनों के निर्माण और संरक्षण का समर्थन होता है।
  • हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन (2014): इसका उद्देश्य वायु गुणवत्ता और जलवायु लचीलापन में सुधार के लिए शहरी क्षेत्रों में वनीकरण को बढ़ावा देते हुए वन क्षेत्र और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ाना है।
  • आधुनिक तकनीकों का अनुकूलन: मुंबई, दिल्ली और चेन्नई जैसे शहरों ने निर्जन स्थानों को बहाल करने और हरित स्थल बनाने के लिए मियावाकी तकनीक को अपनाया है।
  • जैव विविधता पार्क: DDA जैव विविधता पार्कों के परिणामों के आधार पर, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश भर के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जैव विविधता पार्क स्थापित करने की योजना शुरू की है।
    • दिल्ली में यमुना जैव विविधता पार्क जैसे जैव विविधता पार्कों ने आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल किया और वनस्पतियों एवं जीवों की 1,500 से अधिक प्रजातियों का समर्थन किया।

शहरी जैव विविधता संरक्षण के लिए वैश्विक पहल

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावास का 3-30-300 सिद्धांत: यह शहरी हरियाली दिशा-निर्देश सुनिश्चित करके प्रकृति तक समान पहुँच को बढ़ावा देता है:
    • प्रत्येक घर में न्यूनतम 3 परिपक्व पेड़।
    • प्रत्येक पड़ोस में न्यूनतम 30% पेड़ों की कैनोपी होनी चाहिए।
    • प्रत्येक निवास के 300 मीटर के भीतर एक सार्वजनिक हरित स्थान होना चाहिए।
  • कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (GBF): इसे जैव विविधता अभिसमय (CBD) के तहत अपनाया गया, GBF 23 वैश्विक लक्ष्य निर्धारित करता है।
    • लक्ष्य 12 में वर्ष 2030 तक जैव विविधता, पारिस्थितिकी संपर्क और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए शहरी हरित स्थानों को बढ़ाने का आह्वान किया गया है।
  • फ्रैंकफर्ट का ग्रीन बेल्ट मॉडल: फ्रैंकफर्ट ने एक गोलाकार ग्रीन बेल्ट स्थापित की, जो जलवायु बफर के रूप में कार्य करती है। अध्ययनों से पता चलता है कि इसने शहर के तापमान को 3.5 डिग्री सेल्सियस तक कम कर दिया और शहरी कोर की तुलना में सापेक्ष आर्द्रता में 5% की वृद्धि की।

शहरी वन और जैव विविधता के लिए चुनौतियाँ

  • शहरी जैव विविधता में गिरावट: शहरीकरण के कारण कीटों, पक्षियों और कृंतकों के लिए आवास का नुकसान होता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
    • उदाहरण के लिए, भारतीय वन सर्वेक्षण की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, चेन्नई ने वर्ष 2021- वर्ष 2023 के बीच 2.6 वर्ग किलोमीटर हरित क्षेत्र खो दिया है।
  • डिजाइन संबंधी खतरे: अधिकांश शहरी भवनों में जैव विविधता-समर्थक डिजाइन की कमी है।
    • कंक्रीट युक्त वास्तुकला में पक्षियों के घोंसले, छत पर बगीचे या हरित अग्रभाग की सुविधा नहीं है।
  • नीले एवं हरित बुनियादी ढाँचे का नुकसान: अतिक्रमण और प्रदूषण ने शहरी आर्द्रभूमि और झीलों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया है।
    • उदाहरण: चेन्नई में पल्लीकरनई दलदली भूमि कभी बंजर भूमि थी, लेकिन आंशिक सुधार के बाद अब यह रामसर स्थल है।
  • जलवायु परिवर्तन के दबाव: शहरी बाढ़ और बढ़ते तापमान पारगम्य भूमि के नुकसान से बढ़ जाते हैं, जो बदले में शहरों के नील-हरित आवरण को प्रभावित करते हैं।
    • वर्ष 2024 में दिल्ली का AQI 494 तक पहुँचना इस बात पर प्रकाश डालता है कि वनस्पति का विनाश किस प्रकार प्रदूषण को बढ़ाता है।

  • सिटी बायोडायवर्सिटी इंडेक्स (City Biodiversity Index- CBI): यह शहरी जैव विविधता प्रदर्शन को मापने और निगरानी करने के लिए जैव विविधता अभिसमय द्वारा विकसित एक स्व-मूल्यांकन उपकरण है।
  • यह तीन बड़े मापदंडों के संदर्भ में शहर की वर्तमान स्थिति के आधार पर तैयार किया जाता है:-
    • शहर में मूल जैव विविधता की सीमा।
    • उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ।
    • जैव विविधता के शासन का स्तर।
  • स्थानीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजनाएँ (LBSAPs): स्थानीय संरक्षण कार्यों का मार्गदर्शन करने के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों के साथ संरेखित शहर-विशिष्ट रूपरेखाएँ हैं।
    • उद्देश्य: दोनों उपकरण पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण, सतत् शहरी नियोजन और डेटा संचालित नीति को बढ़ावा देते हैं।
  • कार्यान्वयन: कोच्चि और गंगटोक जैसे शहरों द्वारा ICLEI-एशिया के माध्यम से अपनाया गया, जिससे जैव विविधता नियोजन में समुदाय और शासन की भागीदारी को बढ़ावा मिला।

शहरी जैव विविधता संरक्षण के संबंध में आगे की राह

  • शहरी नियोजन उपकरण: शहरों को सिटी बायोडायवर्सिटी इंडेक्स को अपनाना चाहिए और स्थानीय जैव विविधता रणनीति और कार्य योजनाएँ (LBSAPs) तैयार करनी चाहिए।
    • सफल उदाहरणों में कोच्चि, गंगटोक और नागपुर शामिल हैं, जहाँ जैव विविधता-सूचित शहरी नीतियाँ लागू की जा रही हैं।
  • हरित शहरी डिजाइन: शहर के मास्टर प्लान में प्रत्येक आवासीय प्लॉट, पेड़ों से सजी सड़कें और आर्द्रभूमि ​​के लिए हरित स्थान अनिवार्य करने से पारिस्थितिकी का बुनियादी ढाँचे में एकीकरण सुनिश्चित होगा। 
    • उदाहरण के लिए, ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन की योजनाओं में बड़े प्लॉट के लिए पेड़ लगाने की आवश्यकता है।
  • देशज प्रजातियों का प्रचार: देशज पौधों के पारिस्थितिकी मूल्य के बारे में जागरूकता अभियान मोनोकल्चर वृक्षारोपण को रोक सकते हैं।
    • चेन्नई के हरित प्रयास जैसे कोयंबेडु मॉडल के तहत वर्ष 2018 से एक मिलियन से अधिक देशज पेड़ लगाए गए हैं, जिससे स्थानीय जीव-जंतुओं और पारिस्थितिकी तंत्र के उत्थान में सहायता मिली है।
  • सार्वजनिक जुड़ाव: सामुदायिक भागीदारी महत्त्वपूर्ण है।
    • दिल्ली की सार्वजनिक पौधा वितरण और छत पर उद्यान योजनाओं की पहल ने नागरिकों को हरियाली और प्रदूषण नियंत्रण में सीधे योगदान करने के लिए सशक्त बनाया है।
  • प्रकृति आधारित समाधान (NbS): मियावाकी वनों और निर्मित आर्द्रभूमि जैसे NbS को लागू करने से जैव विविधता में वृद्धि होती है,  जल प्रबंधन और प्रदूषण की रोकथाम होती है। ये पारिस्थितिकी दृष्टिकोण लागत-प्रभावी और लचीले हैं।
  • अनुकूल वास्तुकला को प्रोत्साहन देना: वर्षा जल संचयन, हरित दीवारों और जैव विविधता बफर के लिए प्रोत्साहन के माध्यम से जैव विविधता के अनुकूल वास्तुकला को प्रोत्साहित करना उच्च घनत्व वाले आवास को भी पारिस्थितिकी संपत्ति में बदल सकता है।
  • पारिस्थितिकी वित्त: कर छूट और शहरी विकास अनुदान को जैव विविधता प्रदर्शन से जोड़कर हरित बजट की शुरुआत करना। यह आर्थिक प्रोत्साहनों को पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ जोड़ता है।

पहलू

कोयंबेडु मॉडल

मियावाकी विधि

परिचय चेन्नई में विकसित यह मॉडल शहरी वनों को सीवेज उपचार संयंत्रों जैसे उपयोगिता स्थानों में एकीकृत करता है। डॉ. अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित एक जापानी विधि, इस शब्द का उपयोग व्यापक रूप से सघन देशी वनों के लिए उपयोग किया जाता है।
वृक्षारोपण दृष्टिकोण विशाल क्षेत्र में देशी प्रजातियों का उपयोग, हरियाली को बुनियादी ढाँचे के साथ जोड़ना। प्रति वर्ग मीटर 3-4 पौधों के साथ सघन बहुस्तरीय वृक्षारोपण।
प्रमुख शहरी लचीलापन, उपयोगिता आधारित हरियाली, और पारिस्थितिक बहाली। तीव्र वनरोपण, जैव विविधता संवर्द्धन, और सूक्ष्म जलवायु विनियमन।
परिपक्वता का समय प्रजाति और स्थान के आधार पर इसमें 5-10 वर्ष का समय लगता है। वन 2-3 वर्षों में परिपक्व हो जाता है तथा विकास के बाद न्यूनतम रखरखाव की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

भारत के शहरी भविष्य को पारिस्थितिकी स्थिरता के साथ संरेखित किया जाना चाहिए। शहरी वन और जैव विविधता को शहर की योजना तथा नागरिक भागीदारी हेतु केंद्रीय स्थान प्राप्त होना चाहिए। न्यायिक सतर्कता, नगर वन योजना जैसे सरकारी कार्यक्रम और अभिनव शहर डिजाइनों को न्यायसंगत तथा जलवायु-लचीले शहरी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए अभिसरण करना चाहिए। विकास के माध्यम से हमारे शहरों में प्रकृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए न कि उसे खतरे में डालना चाहिए।

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