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नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव

Lokesh Pal May 30, 2024 03:57 370 0

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान और आर्द्रता में वृद्धि हुई है, लेकिन बढ़ते शहरी विस्तार ने भी भारतीय शहरों को गर्म करने में भूमिका निभाई है, जिसके परिणामस्वरूप ‘नगरीय ऊष्मा द्वीप द्वीप प्रभाव’ (Urban Heat Island Effect) उत्पन्न हुआ है।

संबंधित तथ्य 

  • विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र की रिपोर्ट: पिछले दो दशकों में भारतीय शहरों में भीषण गर्मी के महीनों का कारण तापमान में वृद्धि, सापेक्षिक आर्द्रता, निर्मित क्षेत्रों में तेजी से वृद्धि और कंक्रीटीकरण तथा भूमि उपयोग में परिवर्तन है।
  • लगातार गर्म वर्ष: भारत में भीषण हीट वेव का यह लगातार तीसरा वर्ष है, जो सामान्य चार से आठ दिनों की तुलना में कहीं अधिक लंबी, 10 दिनों से अधिक तक उपस्थित रही है।
  • यूनाइटेड किंगडम के मौसम कार्यालय द्वारा अध्ययन: पूर्व आकलन में कहा गया था कि भारत में रिकॉर्ड तापमान का दौर अब लगभग 300 वर्षों की पिछली समय-सीमा के बजाय प्रत्येक तीन वर्ष में आ सकता है।

शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव के बारे में

  • परिचय: यह तब होता है जब शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण परिवेश की तुलना में अधिक तापमान देखा जाता है।
  • घटना: शहरी ऊष्मा द्वीप निर्मित वातावरण, प्राकृतिक कारकों और मानवीय गतिविधियों के बीच जटिल अंतःक्रियाओं का परिणाम होते हैं।
    • ऐसा मुख्यतः मानवीय गतिविधियों, शहरों में इमारतों और बुनियादी ढाँचे के कारण होता है, जो प्राकृतिक परिदृश्यों की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से गर्मी को अवशोषित और बनाए रखते हैं।

नगरीय ऊष्मा द्वीप के कारण

  • ऊष्मा अवशोषित करने वाली सामग्रियों का उपयोग: शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट और डामर जैसी सामग्रियाँ दिन के दौरान ऊष्मा को अवशोषित करती हैं और इसे धीरे-धीरे छोड़ती हैं, जिससे विशेषकर रात में तापमान उच्च बना रहता है, ।
    • गहरे रंग की सतह वाली इमारतें एल्बिडो को कम करती हैं और ऊष्मा अवशोषण को बढ़ाती हैं।
  • अनुचित निर्माण: जब इमारतें एक-दूसरे से सटी होती हैं, तो इससे वायु प्रवाह सीमित हो जाता है और संरचनाओं के बीच ऊष्मा रोधी स्थान का  निर्माण होता है, जिससे तापमान बढ़ जाता है।
  • हरियाली का अभाव: शहरों में पौधों, वृक्षों और हरियाली की अनुपस्थिति छाया के माध्यम से प्राकृतिक शीतलन को कम करती है, जिससे ऊष्मा द्वीप प्रभाव असंतुलित हो जाता है।
    • कम वृक्षावरण: पेड़ों की कमी से उच्च तापमान के संपर्क में आने का जोखिम बढ़ जाता है। भारतीय शहरों में, ऐसे स्थान हैं, जहाँ पेड़ों का घनत्व इतना कम है कि 50 लोगों पर एक पेड़ है।
      • कुछ जगहों पर तो यह 450 लोगों के लिए एक पेड़ से भी कम हो सकता है। ये सभी नगरीय ऊष्मा द्वीपों के प्रभाव को और खराब करने में योगदान करते हैं।
      • वर्ष 2014 की भारतीय विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, आदर्श वृक्ष-मानव अनुपात प्रत्येक व्यक्ति के लिए सात पेड़ होना चाहिए।

  • उच्च ऊर्जा माँग: महानगरीय शहरों में परिवहन, औद्योगिक प्रक्रियाओं और एयर कंडीशनिंग जैसी चीजों के लिए उच्च ऊर्जा की माँग होती है, जो  वायु में गर्मी छोड़ती हैं, जिससे नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव में योगदान होता है।
    • एयर कंडीशनर गर्म हवा छोड़ते हैं जो आगे और अधिक गर्मी उत्पन्न करती है, जिससे कैस्केडिंग प्रभाव पड़ता है।
    • परिवहन प्रणालियाँ जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न करती हैं जो आने वाली ठंडी हवाओं की वहन क्षमता से परे होती है।
  • प्रदूषण की मौजूदगी: नगरीय ऊष्मा द्वीपों में वायु गुणवत्ता खराब होती है क्योंकि ज्यादा प्रदूषक उत्पन्न होते हैं। शहरों से निकलने वाला गर्म जल आस-पास की नदियों की गुणवत्ता को भी नुकसान पहुँचाता है, जिससे वहाँ रहने वाले पौधे और जानवर प्रभावित होते हैं।

नगरीय ऊष्मा द्वीप के प्रभाव

  • स्वास्थ्य संबंधी खतरे: यह चिंता का एक गंभीर कारण है क्योंकि तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे गर्मी से संबंधित बीमारियों और यहाँ तक ​​कि मौत का खतरा भी बढ़ रहा है।
    • यह जीवन के लिए गंभीर जोखिम पैदा करता है, विशेषकर बुजुर्गों, शिशुओं, गर्भवती महिलाओं, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले और बाहर काम करने वाले लोगों जैसे कमजोर समूहों के लिए।
  • पर्यावरण संबंधी खतरे: नगरीय ऊष्मा द्वीप, शहरी क्षेत्रों और उससे आगे के क्षेत्रों में समग्र तापमान में वृद्धि करके ग्लोबल वार्मिंग में योगदान दे सकते हैं।
    • जीवाश्म ईंधन की खपत में वृद्धि के परिणामस्वरूप अधिक प्रदूषण के कारण वायु की गुणवत्ता कम हो जाती है और क्षेत्र में प्रदूषण के कारण जल निकाय प्रदूषित हो जाते हैं।
    • इसका एक खतरनाक परिणाम यह है कि अब गर्मियों की रातें दिन की तपती गर्मी से बहुत कम राहत देती हैं, जलवायु क्षेत्रों के शहरों में पहले की तरह ठंडक नहीं रह जाती।
    • नगरीय ऊष्मा द्वीपों के कारण किसी दिए गए क्षेत्र या पड़ोस में 6 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान अंतर हो सकता है।
      • यह निर्माण सामग्री के इस्तेमाल, क्षेत्र के आसपास की इमारतों की संख्या और निर्माण के तरीके, सड़क निर्माण में इस्तेमाल की गई सामग्री और विशेष इलाके में पेड़/हरित आवरण की मौजूदगी और घनत्व के आधार पर बदल सकता है।
      • इसके अलावा जल निकायों की कमी भी गर्मी के प्रभाव को बढ़ा सकती है।
  • विद्युत की कटौती और ऊर्जा लागत में वृद्धि: यह सब ऊर्जा स्रोतों पर भी दबाव डालता है, जिससे ऊर्जा की लागत में वृद्धि होती है और माँग के चरम पर विद्युत कटौती होती है।
    • रिसोर्सेज फॉर द फ्यूचर के अध्ययन के अनुसार, तापमान में प्रत्येक 1°C की वृद्धि से ऊर्जा की माँग में 0.5% से 5% की वृद्धि होती है, जो स्थानीय स्तर पर एयर कंडीशनिंग के प्रवेश पर निर्भर करता है।

भारत को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना होगा

  • तकनीक अपनाने में पिछड़ना: मौसम और गर्मी के जोखिम की निगरानी में भारत की तकनीक अपनाने की प्रक्रिया में सुधार हो रहा है, लेकिन यह अन्य विकसित देशों के बराबर नहीं हो सकता है, जिनके पास अधिक संसाधनों के कारण परिष्कृत प्रणालियाँ हैं, जिससे वे अधिक व्यापक नेटवर्क स्थापित कर सकते हैं और उच्च-रिज़ॉल्यूशन डेटा प्राप्त कर सकते हैं।
    • उदाहरण: जबकि अग्रणी भारतीय शहरों में औसतन सात से आठ भारतीय मौसम विज्ञान विकास मौसम केंद्र हैं, सैन फ्रांसिस्को जैसे तुलनात्मक शहर में 100 से अधिक मौसम निगरानी केंद्र होंगे।
  • कम उपलब्ध डेटा: भारत का ध्यान जल जोखिम और सुरक्षा पर अधिक रहा है और इसलिए वर्षा पर अधिक विस्तृत डेटा है, जबकि ऊष्मा निगरानी प्रक्रिया का एक सुसंगत हिस्सा नहीं है। 
    • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में, मौसम की ट्रैकिंग विभिन्न प्रकार के हितधारकों (शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों से लेकर सरकारी निकायों और निजी क्षेत्र तक) द्वारा की जाती है। यह सभी समृद्ध डेटा परिदृश्यों की बहुत अधिक सूक्ष्म समझ प्रदान करते हैं।
  • प्रवर्तन में लापरवाही: हालाँकि 20 से अधिक राज्यों ने हीट एक्शन प्लान ( Heat Action Plans- HAP) बनाने के लिए NDMA के साथ कार्य किया है, किंतु अधिकांश पर आगे प्रक्रिया नहीं बढ़ी है। वे फंडिंग, बारीकियों और परिवर्तन के लिए एक स्थायी दृष्टिकोण की कमी से बाधित हैं।

क्या ऊष्मा द्वीप और जलवायु परिवर्तन एक ही हैं?

  • ऊष्मा द्वीप और जलवायु परिवर्तन एक जैसे नहीं हैं, लेकिन वे आपस में जुड़े हुए हैं।
  • अंतर: ऊष्मा द्वीप तब बनते हैं जब शहर अपने आस-पास के इलाकों से ज्यादा गर्म होते हैं, जबकि जलवायु परिवर्तन, वायु में मौजूद गैसों की वजह से गर्मी को लंबे समय तक बनाए रखने के कारण पृथ्वी का गर्म होना है।
    • यद्यपि ऊष्मा द्वीप सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन का कारण नहीं बनते, लेकिन वे शहरों को अधिक गर्म कर देते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और भी बुरा हो सकता है।

  • चिंता: ऊष्मा द्वीपों और जलवायु परिवर्तन दोनों के कारण शहरी तापमान में वृद्धि हो रही है।
    • जैसे-जैसे शहरों में जनसंख्या घनत्व बढ़ रहा हैं, ऊष्मा द्वीप की समस्या बढ़ती जा रही है। इसका अर्थ है कि भविष्य में शहरों को और भी ज्यादा हीटवेव का सामना करना पड़ेगा। 
    • इसलिए, जबकि ऊष्मा द्वीप जलवायु परिवर्तन का कारण नहीं बनते हैं, वे शहरों में रहने वाले लोगों के लिए इसे बदतर बनाते हैं।

अहमदाबाद की केस स्टडी

  • सफलता की कहानी: यदि किसी भारतीय शहर द्वारा उष्मन की ट्रैकिंग में सफलता की कहानी है, तो वह निश्चित रूप से अहमदाबाद है, जिसने वर्ष 2010 की हीटवेव के बाद एक नया अध्याय शुरू किया, जिसके कारण 2,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी। 
  • हीट एक्शन प्लान: वर्ष 2012 में, अहमदाबाद ने एक हीट एक्शन प्लान विकसित किया।
    • इस पहल में अत्यधिक गर्मी की घटनाओं के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने के लिए अस्थायी निगरानी स्टेशनों, उपग्रह-आधारित ताप मानचित्रों और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की तैनाती शामिल थी। 
    • इन प्रणालियों से एकत्र किए गए डेटा से निर्णय लेने और उष्म तनाव को कम करने के लिए हस्तक्षेप डिजाइन करने में मदद मिल रही है।

भारत में वर्तमान परिदृश्य

  • अब पूरे भारत में 24 से ज्यादा शहर और राज्य ‘हीट एक्शन’ योजनाएँ तैयार करने की प्रक्रिया में हैं, जो नगरीय ऊष्मा के मुद्दों से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी-संचालित साक्ष्य और निर्णय-समर्थन प्रणालियों के उपयोग के महत्त्व को प्रदर्शित करती हैं।
  • शीतलन छत सामग्री, परावर्तक निर्माण सामग्री, विभिन्न प्रकार के पेंट जैसी निर्माण सामग्री के अलावा ऊर्ध्वाधर उद्यान, शहरी वन और हरित बुनियादी ढाँचे के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। गुजरात के कई शहरों में इस मुद्दे पर काम चल रहा है।

आगे की राह 

  • सतत प्रबंधन: नगरीय ऊष्मा द्वीप मुद्दा एक शहरी डिजाइन और विकास का मुद्दा है, जिसे आर्थिक नीति, शहर प्रबंधन और शहरों में सतत जीवन के व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।

    • विशेषज्ञों के बीच इस बात पर आम सहमति बन रही है कि शहर-विशिष्ट प्रबंधन योजनाएँ (हीट एक्शन प्लान), जो स्थानीय कारकों को ध्यान में रखती हैं, हीट वेव के लिए कहीं अधिक प्रभावी प्रतिक्रिया हैं। ऐसी योजनाओं में हरित स्थानों और जल निकायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए तथा  वाहनों, उद्योगों और कंक्रीट सतहों सहित सभी ऊष्मा उत्पादकों को लक्षित करना चाहिए।
      • उदाहरण: अहमदाबाद का ‘कूल रूफ्स कार्यक्रम’, जो शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव के लिए एक किफायती समाधान प्रदान करता है।
    • ग्रीन बिल्डिंग कोड जैसे पर्यावरणीय रूप से सतत समाधानों का पालन करने की आवश्यकता है, जो भवन को अधिक पर्यावरण अनुकूल बनाता है।

  • पर्याप्त एवं आवश्यक बुनियादी ढाँचा
    • ग्रीन रूफ का निर्माण: ये ऊष्मा द्वीप को कम करने की एक आदर्श रणनीति है, जो प्रत्यक्ष और परिवेश दोनों तरह के कूलिंग प्रभाव प्रदान करती है। यह ऊष्मा द्वीप प्रभाव को कम करके और प्रदूषकों को अवशोषित करके वायु की गुणवत्ता में भी सुधार करता है।
    • हरित अवसंरचना का निर्माण करना: क्षेत्र में ग्रीनहाउस गैसों की संख्या को कम करने और वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन को बढ़ाने के लिए पेड़ और अन्य वनस्पति लगाकर इस क्षेत्र को ठंडा रखें। वे आसपास के वातावरण को भी ठंडा रखते हैं जिससे एयर-कंडीशनिंग की लागत कम हो जाती है।
    • इमारतों के हल्के रंग: यह बढ़े हुए एल्बेडो और कम ऊष्मा प्रतिधारण द्वारा नगरीय ऊष्मा के कम अवशोषण में मदद करता है।
  • तकनीकी प्रगति: भारत में, कई तकनीकी नवाचारों ने मौसम और नगरीय ऊष्मा जोखिम की निगरानी को बढ़ाया है। और अब, AI के साथ, मौसम के पूर्वानुमान के लिए अधिक उन्नत मॉडलिंग तकनीक विकसित की जा सकती है जो भारत को हीटवेव और अन्य मौसमी घटनाओं के लिए तैयार रहने में मदद करती है।
    • उदाहरण: जापान और चीन ठंडे फुटपाथों पर विचार कर रहे हैं, जहाँ वे हल्के रंग के पेंट, विशेष कोटिंग्स आदि पर विचार कर रहे हैं जो सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं और सतह के तापमान को कम करने और ऊष्मा द्वीप प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं। पुणे और दिल्ली में ऐसे नवाचारों का अध्ययन किया जा रहा है।
    • पैसिव कूलिंग तकनीक प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतें बनाने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है और नगरीय ऊष्मा द्वीप समस्या का समाधान कर सकती है।
      •  IPCC की रिपोर्ट में प्राचीन भारतीय भवन डिजाइनों का हवाला दिया गया है, जिनमें इस प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में आधुनिक सुविधाओं के लिए अनुकूलित किया जा सकता है।
  • नव प्रवर्तन: घरों में पाइपों के माध्यम से ठंडा पानी चलाने का नवप्रवर्तन भी किया गया है, तथा गर्मी से राहत के लिए कई अन्य वास्तुशिल्पीय नव प्रवर्तन भी किए गए हैं।
    • भारत को भवन की दिशा, स्थान, छाया को अधिकतम करने के लिए सामग्री, हरित स्थान बनाने और प्राकृतिक वेंटिलेशन को बढ़ावा देने जैसे कारकों के आधार पर ताप-प्रतिरोधी डिजाइन को शामिल करने की आवश्यकता है, जो नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • व्यक्तिगत स्वास्थ्य प्रभाव पर ध्यान देना: स्वास्थ्य तकनीक का पहलू ऊष्मा तनाव से जुड़ा हुआ है, अर्थात गर्मी या निर्जलीकरण की कमजोरियों के आधार पर अनुकूलित नगरीय ऊष्मा तनाव परीक्षण और अनुकूलित अलर्ट और दवा का प्रावधान। यह सामान्यीकृत दिशा-निर्देशों पर आधारित नहीं है, बल्कि अनुकूलित व्यक्तिगत डेटा पर आधारित है।

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