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महाराष्ट्र में अर्बन नक्सल विधेयक

Lokesh Pal July 15, 2024 04:03 109 0

संदर्भ

महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2024 (Maharashtra Special Public Security Act, 2024) नामक एक मसौदा विधेयक प्रस्तुत किया है, जो राज्य को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा किसी भी समूह को अवैध घोषित करने का अधिकार देता है।

  • इस विधेयक के संदर्भ में महाराष्ट्र सरकार ने शहरी क्षेत्रों में नक्सलवाद के बढ़ते खतरे को चिंताजनक मुद्दा बताया है।

भारत में नक्सलवाद की उत्पत्ति

  • शब्द: ‘नक्सलवाद‘ शब्द का नाम पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से लिया गया है।
  • भारत में विकास: भारत में नक्सलवाद, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से अलग हुए एक गुट के रूप में उभरा, जहाँ पार्टी के सदस्यों का एक छोटा समूह बड़े भू-स्वामियों और सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू करने के लिए अलग हो गया।
    • चारु मजूमदार, कानू सान्याल और जगन संथाल के नेतृत्व में वर्ष 1967 में शुरू किए गए विद्रोह का उद्देश्य मजदूर किसानों को जमीन का पुनर्वितरण करना था।
  • नक्सलवादी आंदोलन का प्रसार: पश्चिम बंगाल में शुरू हुआ यह आंदोलन पूर्वी भारत में विशेषकर छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के कम विकसित क्षेत्रों में फैल गया है।

अर्बन नक्सलिज्म (Urban Naxalism) के बारे में

  • अर्बन नक्सलिज्म: शब्द ‘अर्बन नक्सल’ शहरी क्षेत्रों में उन व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो सक्रियता एवं सिफारिश के माध्यम से नक्सली विचारधारा का समर्थन और प्रचार करते हैं, जबकि सक्रिय नक्सली जंगलों एवं व्यापक माओवादी-नियंत्रित क्षेत्रों में हिंसात्मक संघर्ष में संलग्न होते हैं।
  • उत्पत्ति: शब्द ‘अर्बन नक्सल’, जो वर्ष 2018 से प्रचलन में आया है, का पहली बार इस्तेमाल महाराष्ट्र में एल्गार परिषद (Elgaar Parishad) मामले में शामिल वामपंथियों और अन्य उदारवादियों पर कार्रवाई के मद्देनजर सत्ता-विरोधी प्रदर्शनकारियों तथा अन्य असंतुष्टों का वर्णन करने के लिए किया गया था।
    • यह 1 जनवरी, 2018 को हुई भीमा कोरेगाँव हिंसा से संबंधित दो चल रही जाँचों में से एक है।
  • इस शब्द को लेकर विवाद: कुछ लोग इसे किसी भी मुद्दे को लेकर असहमति संबंधी अभिव्यक्ति को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अपमानजनक तरीका मानते हैं, जबकि अन्य इसे शहरी परिवेश में नक्सलवादी विचारधारा का समर्थन करने वालों के लिए एक वैध तरीका मानते हैं।
  • शहरी परिवेश में नक्सलवादी विचारधारा का प्रकटीकरण: अभिव्यक्ति के कुछ रूपों में लेख और पुस्तकें प्रकाशित करना तथा अपनी विचारधारा का प्रचार करने और राज्य की नीतियों की आलोचना करने हेतु सेमिनार आयोजित करना, छात्रों को कट्टरपंथी बनाना, समर्थकों का एक नेटवर्क स्थापित करना, तोड़फोड़ की गतिविधियाँ, लक्षित हिंसा या राज्य के कामकाज को बाधित करने के लिए प्रतीकात्मक हमले आदि शामिल हैं।
  • नक्सलवाद का शहरी क्षेत्रों में प्रसार 
    • बढ़ती चिंता: नक्सलवाद नक्सली संगठनों के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों से शहरी केंद्रों तक फैल रहा है।
    • ये अग्रणी संगठन/समूह सशस्त्र कैडरों को साजो-सामान संबंधी सहायता और सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं।
    • शहरी क्षेत्रों को नक्सली मोर्चों के बढ़ते प्रभाव से बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

वैचारिक पृष्ठभूमि

  • विचारधारा की जड़ें: नक्सलवादी/माओवादी विचारधारा मार्क्सवाद, लेनिनवाद और माओवाद में निहित है, जो सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से मौजूदा राज्य संरचना को क्रांतिकारी तरीके से हटाने की सिफारिश करती है।
    • ऐसा माना जाता है कि नक्सली माओवादी राजनीतिक भावनाओं और विचारधारा का समर्थन करते हैं।
  • माओवाद: माओवाद, माओत्से तुंग द्वारा विकसित साम्यवाद का एक रूप है। यह सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और रणनीतिक गठबंधनों के संयोजन के माध्यम से राज्य की सत्ता पर अधिकार करने का सिद्धांत है।
  • मुख्य सिद्धांतों में शामिल हैं
    • वर्ग संघर्ष: सर्वहारा (मजदूर वर्ग) और पूँजीपति वर्ग (बुर्जुआ वर्ग) के बीच संघर्ष पर जोर देना। अंतिम लक्ष्य एक वर्गहीन समाज की स्थापना करना है।
    • राज्य विरोधी भावना: राज्य को पूँजीपति उत्पीड़न के साधन के रूप में देखा जाता है। इसलिए, सच्चे लोकतंत्र और सामाजिक न्याय को प्राप्त करने के लिए वर्तमान राज्य संरचना को समाप्त करना आवश्यक है।
    • आत्मनिर्भरता और गुरिल्ला युद्ध: आत्मनिर्भर, विकेंद्रीकृत कम्यूनों और राज्य बलों का मुकाबला करने के लिए गुरिल्ला रणनीति के उपयोग को बढ़ावा देता है, जो मुख्य रूप से ग्रामीण और वन क्षेत्रों से संचालित होते हैं।

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2024 (Maharashtra Special Public Security Act, 2024)

  • उद्देश्य: शहरी क्षेत्रों में नक्सलवाद के बढ़ते खतरे को संबोधित करना।
  • महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक के कुछ प्रमुख प्रावधान।
    • संगठन की परिभाषा: मसौदा विधेयक के अनुसार, ‘संगठन’ को व्यक्तियों के किसी भी समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, चाहे उन्हें किसी विशिष्ट नाम से पहचाना जाए या नहीं, और इस बात की परवाह किए बिना कि वे किसी औपचारिक लिखित संविधान के तहत कार्य करते हैं या नहीं।
    • गैर-कानूनी गतिविधियों की परिभाषा: विधेयक में व्यापक रूप से ‘गैर-कानूनी गतिविधियों’ को परिभाषित किया गया है, जिसमें ऐसी गतिविधियाँ शामिल हैं, जो सार्वजनिक व्यवस्था, शांति और सौहार्द को खतरे में डालती हैं या कानून और स्थापित संस्थानों के प्रशासन में हस्तक्षेप करती हैं।
      • इसमें हिंसा, बर्बरता या सार्वजनिक भय और आशंका उत्पन्न करने वाले कृत्यों में शामिल होना या उन्हें बढ़ावा देना शामिल है। 
      • इसके अतिरिक्त, इसमें ऐसी गतिविधियाँ शामिल हैं, जो स्थापित कानूनों और अधिकारियों की अवज्ञा को प्रोत्साहित करती हैं, जिसका उद्देश्य सामाजिक सद्भाव बनाए रखना और सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी को रोकना है।
    • संपत्ति की जब्ती: मसौदा विधेयक राज्य को परिसर के भीतर धन, प्रतिभूतियों और अन्य परिसंपत्तियों सहित चल संपत्ति को जब्त करने की अनुमति देता है।
      • यह कानून पुलिस को ‘अर्बन नक्सलिज्म’ से संबंधित साहित्य के लिए परिसर की जाँच करने की अनुमति देता है। यदि ऐसा साहित्य पाया जाता है, तो उसे जब्त किया जा सकता है।
      • यदि जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त को लगता है कि जब्त की गई संपत्ति गैर-कानूनी संगठन गतिविधियों का समर्थन कर सकती है, तो उसे सरकार को सौंप दिया जा सकता है।
  • गैर-जमानती अपराध: इस कानून के अंतर्गत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे और उनकी जाँच उप-निरीक्षक पद से नीचे के पद के पुलिस अधिकारी द्वारा नहीं की जाएगी।

अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के अधिनियमों का अधिनियमन

  • सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम: छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा ने संगठनों द्वारा गैर-कानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम लागू किए हैं।
  • फ्रंटल संगठनों पर प्रतिबंध: इन राज्यों ने सामूहिक रूप से इन गतिविधियों से जुड़े 48 फ्रंटल संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया है।

गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA ) की सिफारिशें 

  • माओवाद प्रभावित राज्यों से गैर-कानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने का आग्रह किया गया तथा सुरक्षा संबंधी व्यय के लिए दिशा-निर्देश दिए गए। 

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2024 की आलोचना

  • व्यापक परिभाषाएँ: आलोचकों का तर्क है कि ‘संगठन’ और ‘गैर-कानूनी गतिविधियाँ’ अत्यधिक व्यापक एवं अस्पष्ट हैं, जो संभावित रूप से व्यक्तियों एवं समूहों को मनमाने ढंग से या राजनीति से प्रेरित लक्ष्यीकरण की अनुमति देते हैं।
  • असहमति पर प्रभाव: ऐसी आशंका है कि यह अधिनियम असहमति और विरोध के वैध रूपों को गैर-कानूनी गतिविधियों के रूप में वर्गीकृत करके दबा सकता है।
    • अस्पष्ट प्रारूप से पता चलता है कि इसका उद्देश्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में भय उत्पन्न करना तथा उनकी गतिविधियों को प्रतिबंधित करना है तथा संभवतः प्रणालीगत परिवर्तन की सिफारिश करने वाले किसी भी नागरिक को निशाना बनाया जा सकता है।
  • अधिकारों की स्वतंत्रता पर अंकुश: इस विधेयक की आलोचना भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और उत्पीड़न के खिलाफ अहिंसक विरोध में बाधा डालने के लिए की जा सकती है।
  • अतिव्यापी प्रावधान: आलोचकों का तर्क है कि इसके प्रावधान काफी हद तक गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम जैसे मौजूदा कानूनों के साथ ओवरलैप होते हैं।
  • कानूनी और मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: उचित प्रक्रिया अधिकारों के संभावित उल्लंघन के बारे में चिंताएँ हैं, जिसमें निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार और मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने के खिलाफ सुरक्षा शामिल है।

एल्गार परिषद घटना और कोरेगाँव भीमा की लड़ाई

एल्गार परिषद कार्यक्रम (Elgar Parishad Event)

  • आयोजन: एल्गार परिषद का आयोजन पुणे के शनिवारवाड़ा किले में कोरेगाँव भीमा युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में किया गया था।
    • यह दलितों की मुखरता का प्रतीक था, क्योंकि यह पेशवाओं (मराठा साम्राज्य के वास्तविक शासक) के ऐतिहासिक अधिकार क्षेत्र में घटित हुआ था।
    • पुलिस का दावा है कि एल्गार परिषद में दिए गए भाषण अगले दिन हिंसा भड़काने के लिए कम-से-कम आंशिक रूप से जिम्मेदार थे।
  • कार्यकर्ताओं और नेताओं सहित कई व्यक्तियों पर गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मुकदमा चलाया गया।
  • पुणे पुलिस ने न्यायालय में दावा किया है कि गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के CPI (माओवादी) से सक्रिय संबंध थे, जो देश को अस्थिर करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ कार्य करने में संलग्न थे।
  • चार्जशीट में आरोप लगाया गया है कि आरोपियों ने सांप्रदायिक विद्वेष को भड़काने के लिए कबीर कला मंच (Kabir Kala Manch- KKM) ‘फ्रंटल’ संगठन के माध्यम से एल्गार परिषद का आयोजन किया। उन्होंने कथित तौर पर महाराष्ट्र में दलितों और अन्य समूहों के बीच जातिगत भावनाओं का लाभ उठाने के लिए भड़काऊ गाने, लघु नाटक और नृत्य किए, किताबें वितरित कीं और नक्सल साहित्य का प्रचार-प्रसार किया।

कोरेगाँव भीमा का युद्ध

  • संदर्भ: यह लड़ाई तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के दौरान हुई थी।
  • संबंधित सेनाएँ
    • ब्रिटिश सेना: इसमें मुख्यतः दलित सैनिक थे।
    • पेशवा सेना: उच्च जाति का वर्चस्व था।
  • परिणाम: पेशवा सेना को हराकर ब्रिटिश सेना विजयी हुई।
  • महत्त्व: पेशवा सेना की हार को जाति आधारित भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ जीत के रूप में देखा गया।
  • विरासत: 1 जनवरी, 1927 को बाबासाहेब अंबेडकर की इस स्थल की यात्रा ने दलित समुदाय के लिए लड़ाई की स्मृति को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे यह एक एकजुटता का बिंदु और गौरव का प्रतीक बन गया।

निष्कर्ष

  • महाराष्ट्र अर्बन नक्सल विधेयक, 2024 शहरी क्षेत्रों में नक्सलवाद के कथित खतरों से निपटने की दिशा में एक विवादास्पद कदम है।
  • आलोचकों का तर्क है कि इससे नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होने और असहमति को दबाने का जोखिम है, जबकि समर्थक इसे राज्य में सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक मानते हैं। 
  • इसके कार्यान्वयन और प्रभाव से सुरक्षा उपायों और मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन पर बहस जारी रहने की संभावना है।

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