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अमेरिकी जलवायु नीति में परिवर्तन और नई जलवायु व्यवस्था

Lokesh Pal March 01, 2025 03:46 84 0

संदर्भ

संयुक्त राज्य अमेरिका (United States- US) चीन में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की बैठक में अनुपस्थित रहा और उसने वर्तमान जलवायु विज्ञान, शमन प्रयासों और वर्तमान में चल रहे प्रभाव की समीक्षा से स्वयं को अलग कर लिया। 

ट्रंप की जलवायु नीतियाँ

  • वैश्विक जलवायु समझौतों से पीछे हटना: अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकल गया, साथ ही अमेरिका ने यह तर्क दिया कि यह अमेरिकी व्यवसायों के लिए अनुचित था।
  • ‘राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल’ तथा जीवाश्म ईंधन विस्तार
    • स्वच्छ ऊर्जा पर जीवाश्म ईंधन को प्राथमिकता देने के लिए ‘राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल’ घोषित किया।
    • घरेलू स्रोतों से अधिक तेल और गैस निकालने के लिए जीवाश्म ईंधन उद्योग में नए निवेश की अनुमति दी।
    • स्वच्छ ऊर्जा नीतियों को रद्द किया और तेल, गैस एवं कोयला उत्पादन को बढ़ावा दिया।
    • तेल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए कीस्टोन एक्सएल और डकोटा एक्सेस पाइपलाइनों को पुनः कार्यान्वित किया।
  • नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु विज्ञान का विरोध
    • नासा के जलवायु अनुसंधान प्रभाग और संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के जलवायु कार्यक्रमों जैसी एजेंसियों को वित्तपोषण से वंचित करने का प्रयास किया।
    • जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक सामान्य सहमति को खारिज करते हुए इसे भ्रांतिपूर्ण बताया।
  • अमेरिका वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन निर्यात बढ़ा रहा है।
    • भारत: अमेरिका से तेल और गैस आयात बढ़ाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
    • दक्षिण कोरिया: अधिक अमेरिकी ऊर्जा खरीदने में रुचि व्यक्त की।
    • जापान: अमेरिका से तरलीकृत प्राकृतिक गैस आयात की संभावना तलाश रहा है।

पृष्ठभूमि: IPCC तथा इसकी सातवीं मूल्यांकन रिपोर्ट

  •  IPCC एक संयुक्त राष्ट्र निकाय है, जो जलवायु विज्ञान का आकलन करता है और वैश्विक जलवायु नीतियों को सूचित करता है।
  • सातवीं आकलन रिपोर्ट (Assessment Report- AR7), जो वर्ष 2029 में आने वाली है, जलवायु शमन रणनीतियों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • ‘हांग्जो बैठक’ AR7 रिपोर्ट को आकार देने में एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसने अमेरिकी भागीदारी को महत्त्वपूर्ण बना दिया।

ट्रंप प्रशासन के तहत IPCC पर अमेरिकी रुख

  • अमेरिका की अनुपस्थिति और वैश्विक जलवायु विज्ञान पर इसका प्रभाव: ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी वैज्ञानिकों को ‘हांग्जो बैठक’ में भाग लेने से रोक दिया।
    • यह वर्ष 2028 के वैश्विक जलवायु स्टॉकटेक के लिए महत्त्वपूर्ण जलवायु अंतर्दृष्टि प्रदान करने की IPCC की क्षमता को कमजोर कर सकता है।
  • वैश्विक जलवायु विज्ञान व्यक्तव्य से अमेरिका का अलग-थलग होना: हालाँकि अमेरिका आधिकारिक तौर पर IPCC से बाहर नहीं निकला है, लेकिन उसके कार्यों से अलगाव झलकता है।
    • राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration- NOAA) और US ग्लोबल चेंज प्रोग्राम को IPC से संबंधित कार्य रोकने का आदेश दिया गया।
    • IPC के वित्तपोषण का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत, वित्तीय योगदान भी बंद किया जा सकता है।
    • ये नीतियाँ ट्रंप के पिछले कार्यकाल की तरह ही हैं, जब IPC के लिए अमेरिकी समर्थन वापस ले लिया गया था।

ग्लोबल स्टॉकटेक (Global Stocktake- GST)

  • ग्लोबल स्टॉकटेक (GST) पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन से निपटने में देशों की सामूहिक प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए एक आवधिक मूल्यांकन है।
    • यह वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सफलताओं और अंतरालों की पहचान करने में मदद करता है।
  • पेरिस समझौते के अंतर्गत, देश ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contributions- NDC) निर्धारित करते हैं, जो उत्सर्जन को कम करने और जलवायु प्रभावों के अनुकूल होने की प्रतिबद्धताएँ हैं।
  • GST प्रत्येक पाँच वर्ष में प्रगति की समीक्षा करके जवाबदेही सुनिश्चित करता है, जिसका पहला मूल्यांकन वर्ष 2023 में पूरा होगा।

जलवायु विज्ञान पर संभावित प्रभाव

  • प्रमुख एजेंसियों से कम हुआ वैज्ञानिक योगदान: NASA, NOAA, और US ग्लोबल चेंज रिसर्च प्रोग्राम ने ऐतिहासिक रूप से जलवायु मॉडल और शमन रणनीतियों के लिए महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान किया है।
    • अमेरिकी इनपुट के बिना, प्रमुख शमन रणनीतियों में महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक समर्थन की कमी हो सकती है, जिससे वैश्विक निर्णय लेने पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • उदाहरण: AR7 पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों के साथ नासा के अनुबंधों को समाप्त करने से जलवायु शमन रणनीतियों पर वैश्विक सहयोग धीमा हो सकता है।
  • जलवायु अनुसंधान के लिए वित्तपोषण की कमी: जलवायु अनुसंधान के एक प्रमुख वित्तपोषण, अमेरिका द्वारा IPCC को वित्तीय सहायता में कटौती करने से वैज्ञानिक प्रगति धीमी हो सकती है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बाधित हो सकता है।
  • वर्ष 2028 के वैश्विक जलवायु स्टॉकटेक में व्यवधान: वैश्विक जलवायु स्टॉकटेक पेरिस समझौते के लक्ष्यों की दिशा में प्रगति का आकलन करता है और अमेरिका के पीछे हटने से महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों का एकीकरण सीमित हो सकता है, जिससे जलवायु कार्रवाई की प्रभावशीलता कमजोर हो सकती है।
  • UNFCCC से अमेरिका के संभावित रूप से बाहर निकलने की संभावना: अमेरिका जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UN Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) को पूरी तरह से त्याग सकता है।
    • इस तरह के कदम से जलवायु शासन में वैश्विक अस्थिरता पैदा होगी और यह ढाँचा भी कमजोर हो सकता है।
  • अन्य देशों पर बोझ बढ़ना: वैश्विक गैर-अनुपालन करने वाले अमेरिका से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि की क्षतिपूर्ति करने में संघर्ष करना पड़ेगा।
    • विकासशील देशों को अमेरिकी फंडिंग के बिना अपने ऊर्जा परिवर्तन में वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • किसी प्रमुख योगदानकर्ता की अनुपस्थिति वैश्विक जलवायु वित्तपोषण को बाधित कर सकती है।
  • देश जलवायु प्रतिबद्धताओं पर पुनर्विचार कर रहे हैं
    • इंडोनेशिया: अधिकारियों ने सवाल उठाया कि अगर अमेरिका ऐसा नहीं कर रहा है तो उन्हें इसका अनुपालन क्यों करना चाहिए।
    • अर्जेंटीना: COP-29 से वार्ताकारों को वापस बुला लिया और पेरिस समझौते से बाहर निकलने का संकेत दिया।
    • दक्षिण अफ्रीका: कोयला संक्रमण परियोजनाओं में और देरी हो सकती है।
  • धीमा ऊर्जा संक्रमण: सस्ते अमेरिकी जीवाश्म ईंधन वैश्विक ऊर्जा संक्रमण प्रयासों को धीमा कर सकते हैं।
    • उच्च ऊर्जा आयात वाले देशों (चीन, भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया) में कार्बन मुक्तीकरण के लिए मजबूत प्रोत्साहन मौजूद हैं।

अमेरिकी जलवायु नीति में परिवर्तन पर भारत की प्रतिक्रिया

  • पेरिस के प्रति प्रतिबद्धता: भारत पेरिस समझौते और अपने महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।
  • अनुकूलन पर ध्यान: भारत तापमान संबंधी लक्ष्यों के वैश्विक निर्धारण पर सवाल उठाता है, उत्सर्जन में कटौती पर अनुकूलन को प्राथमिकता देता है।
  • आर्थिक विकास रणनीति: जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध बचाव के रूप में तीव्र आर्थिक विकास का समर्थन करता है।
    • वर्ष 2047 तक विकसित देशों के मानक तक पहुँचने और वर्ष 2070 तक नेट जीरो तक पहुँचने की योजना।
  • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण: विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा में घरेलू विनिर्माण को बढ़ाने पर जोर दिया जाता है।
    • विविध ऊर्जा स्रोतों का अनुसरण किया जाता है: सौर, पवन, हाइड्रोजन और परमाणु।
  • परमाणु ऊर्जा लक्ष्य: स्वदेशी ‘लघु मॉड्यूलर रिएक्टर’ (Small Modular Reactors- SMR) विकसित करने का लक्ष्य।
    • वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता का लक्ष्य, जो व्यापक स्वच्छ ऊर्जा प्रयासों को संपूरित करेगा।

अमेरिकी नीति में बदलाव के बीच नई जलवायु व्यवस्था

  • नई जलवायु व्यवस्था के बारे में: नई जलवायु व्यवस्था वैश्विक जलवायु शासन, वित्तपोषण और नेतृत्व के पुनर्गठन को संदर्भित करती है, ताकि अमेरिका जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में नीतिगत परिवर्तनों की परवाह किए बिना लचीलापन और निरंतरता सुनिश्चित की जा सके।
    • यह एक अधिक विकेंद्रीकृत, लचीली और अनुकूलनीय वैश्विक जलवायु शासन प्रणाली है।
  • नई जलवायु व्यवस्था के प्राथमिकता वाले क्षेत्र
    • तीव्र ऊर्जा संक्रमण: सभी अर्थव्यवस्थाओं में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव को तेज करना।
    • शमन निधि में वृद्धि: समृद्ध देशों को वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए अधिक वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।
    • अधिक शोध निवेश: जलवायु प्रौद्योगिकी, कार्बन कैप्चर और संधारणीय समाधानों के लिए निधि में वृद्धि करना।
    • व्यापार बाधाओं को हटाना: नवीकरणीय ऊर्जा और बैटरी भंडारण के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्रियों के मुक्त प्रवाह को सुगम बनाना।

नई जलवायु व्यवस्था के लिए आगे की राह

  • जलवायु नेतृत्व में विविधता लाना: यूरोपीय संघ, चीन, भारत और तेल समृद्ध देशों की भूमिका को मजबूत करना।
  • स्थिर जलवायु वित्त को सुरक्षित करना: अमेरिका के अतिरिक्त भी वित्तपोषण का विस्तार करना।
    • उदाहरण: ग्रीन क्लाइमेट फंड (Green Climate Fund- GCF) को मजबूत करना और निजी निवेश को जुटाना।
  • प्रौद्योगिकी और व्यापार सहयोग को बढ़ावा देना: स्वच्छ ऊर्जा सामग्रियों के लिए बाधाओं को कम करना और वैश्विक अनुसंधान एवं विकास सहयोग को बढ़ावा देना।
  • कानूनी सुरक्षा उपाय स्थापित करना: राजनीतिक उलटफेर को रोकने के लिए जलवायु नीतियों को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाना।
  • अनुकूलन और लचीलेपन को प्राथमिकता देना: वित्तपोषण, बुनियादी ढाँचे और आपदा तैयारियों के साथ कमजोर देशों का समर्थन करना।

निष्कर्ष 

यद्यपि अमेरिकी नीतिगत परिवर्तन चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, फिर भी सामूहिक कार्रवाई जारी रहनी चाहिए।

  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं, उभरती शक्तियों और प्रमुख कार्बन उत्सर्जकों हेतु एक लचीला और न्यायसंगत जलवायु भविष्य सुनिश्चित करने के लिए ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाने तथा जलवायु वित्तपोषण बढ़ाने के लिए कदम उठाना चाहिए।

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