हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती की है, जो वर्ष 2024 में इसकी दूसरी कटौती है।
कटौती की मुख्य विशेषताएँ
ब्याज दर में कटौती: 25 आधार अंकों की कटौती, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के प्रयासों का संकेत देती है।
भविष्य का दृष्टिकोण: अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर आगे भी दरों में कटौती के लिए तैयार है, जिसका निर्णय दिसंबर 2024 में लिए जाने की संभावना है।
राजनीतिक प्रभाव: अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक ने जोर देकर कहा कि फेडरल बैंक के निर्णय राजनीतिक परिवर्तनों या बाहरी दबावों से अप्रभावित हैं।
ब्याज दर और मुद्रास्फीति के बीच संबंध
व्युत्क्रम संबंध: मुद्रास्फीति और ब्याज दरों के बीच संबंध मूलतः व्युत्क्रम है, अर्थात् जब एक बढ़ता है, तो दूसरा घटता है।
यह संबंध मुद्रा के परिमाण सिद्धांत में निहित है, जो दर्शाता है कि मुद्रा आपूर्ति में परिवर्तन मुद्रास्फीति को प्रभावित करते हैं।
यह व्युत्क्रम संबंध केंद्रीय बैंकों को आर्थिक स्थिरता का प्रबंधन करने में मदद करता है।
ब्याज दरों को समायोजित करके, केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति और क्रय शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य मूल्य स्थिरता बनाए रखना और एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का समर्थन करना है।
उच्च ब्याज दरें: जब केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाता है, तो उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है।
इससे मुद्रा आपूर्ति कम हो जाती है, क्योंकि लोग और व्यवसाय ऋण लेने के लिए कम इच्छुक होते हैं। परिणामस्वरूप, खर्च में कमी आती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की माँग कम हो जाती है, जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और कम करने में मदद मिलती है।
कम ब्याज दरें: जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो उधार लेना सस्ता होता है, जिससे मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि होती है।
लोगों और व्यवसायों द्वारा खर्च और निवेश करने की संभावना अधिक होती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की माँग बढ़ती है। माँग आपूर्ति से अधिक होने पर, कीमतें बढ़ती हैं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ती है।
बाजार की प्रतिक्रियाएँ और वैश्विक निहितार्थ
अमेरिकी ऋण और मुद्रास्फीति की चिंताएँ: ब्याज दरों में कटौती के बाद, अमेरिकी ऋण ब्याज दरों में उछाल आया, विश्लेषकों ने ट्रंप की प्रस्तावित कर कटौती और टैरिफ योजनाओं से मुद्रास्फीति के दबाव के संबंध में सतर्क किया है।
वैश्विक मुद्राओं पर प्रभाव: कम अमेरिकी ब्याज दर अन्य मुद्राओं में निवेश को और अधिक आकर्षक बना सकती है, विशेषकर भारत जैसे उभरते बाजारों में।
इससे करेंसी कैरी ट्रेडों में अधिक रिटर्न प्राप्त हो सकता है तथा उच्च दर वाले देशों में विदेशी निवेश आकर्षित हो सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव
कैरी ट्रेड के अवसर (Carry Trade Opportunities): जैसे-जैसे अमेरिकी ब्याज दर में गिरावट आएगी, अमेरिकी और भारतीय ब्याज दरों के बीच अंतर बढ़ सकता है।
इससे भारत में करेंसी कैरी ट्रेड के लिए आकर्षक अवसर उत्पन्न होंगे, जिससे भारतीय बॉण्ड और इक्विटी में विदेशी निवेश में वृद्धि हो सकती है।
वैश्विक विकास की संभावनाओं को बढ़ावा: अमेरिका में कम ब्याज दरें उसकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती हैं, जिसका वैश्विक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
अन्य उभरते बाजारों के साथ-साथ भारत को भी इस संभावित आर्थिक उत्थान से लाभ हो सकता है, विशेषकर तब जब चीन रियल एस्टेट संकट से जूझ रहा है।
उभरते बाजारों में निवेशकों की रुचि: अमेरिकी ऋण पर कम रिटर्न के कारण, निवेशक अधिक रिटर्न की तलाश में भारत जैसे उभरते बाजारों की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
इस प्रवृत्ति से भारतीय इक्विटी बाजारों को मजबूती मिल सकती है तथा विदेशी पूँजी में वृद्धि हो सकती है।
भारत में घरेलू मौद्रिक नीति पर विचार
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए वर्ष 2020 से अब तक दरों में 250 आधार अंकों की वृद्धि की है, जो 6.5% तक पहुँच गई है।
हालाँकि, अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक के सामान्य रुख को देखते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) 4-6 दिसंबर, 2024 को अपनी आगामी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में सतर्क रुख अपना सकता है।
फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा आगे की कटौती में कोई भी देरी RBI के अपने दर समायोजन पर निर्णय को प्रभावित कर सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले वैश्विक कारक
चीन का आर्थिक प्रोत्साहन: चीन द्वारा एक महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन पैकेज शुरू करने की उम्मीद है, जिससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) भारत से दूर हो सकता है।
चीनी वस्तुओं पर ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ से बढ़े तनाव के कारण चीन को कठोर राजकोषीय समाधान अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है, जिससे FPI के लिए भारत का आकर्षण कम हो सकता है।
बैंक ऑफ जापान (BoJ) द्वारा अपेक्षित दर वृद्धि: बैंक ऑफ जापान (BoJ) द्वारा दिसंबर में दरें बढ़ाने की संभावना है, जिससे येन कैरी ट्रेड प्रभावित हो सकता है और बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है।
ब्याज दरों में वृद्धि से वैश्विक निवेश पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिसका असर भारत के इक्विटी और मुद्रा बाजारों पर पड़ सकता है।
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