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औषधि के विकास में AI का उपयोग

Lokesh Pal May 18, 2024 04:24 161 0

संदर्भ

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के उपयोग ने औषधियों के विकास के संबंध में नई संभावनाओं को जन्म दिया है।

AI के माध्यम से विकसित की गई नई दवाओं के उदाहरण

  • DSP-1181: ओब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (Obsessive-compulsive Disorder) के लिए।
  • हेलिसिन (Halicin): एंटीबायोटिक प्रतिरोध के लिए।
  • BMS-986195: फाइब्रोसिस (Fibrosis) के उचित उपचार के लिए।

औषधि विकास की प्रक्रिया

  • लक्ष्य की पहचान एवं मान्यता: औषधि के विकास में पहला कदम जैविक लक्ष्य की पहचान करना है। आमतौर पर, किसी प्रोटीन को जैविक लक्ष्य के रूप में मान्यता दी जाती है, जो औषधि के साथ प्रतिक्रिया करता है। किसी प्रोटीन को औषधि का उपयुक्त लक्ष्य माना जाता है यदि यह विशिष्ट स्थितियों में औषधि के अणुओं के साथ प्रतिक्रिया करने में सक्षम होता है।
  • अनुसंधान चरण: इस चरण के दौरान, डिजिटल रूप में उपलब्ध डेटा से सर्वोत्तम दवा अणु की पहचान करने के लिए प्रोटीन के अनुक्रम का संगणनात्मक विश्लेषण किया जाता है। कंप्यूटर तकनीक के माध्यम से प्रोटीन पर दवा के प्रतिक्रिया-स्थितियों की भविष्यवाणी की जाती है, फलस्वरूप प्रयोगशाला विधियों की आवश्यकता कम हो जाती है, जिस प्रक्रिया में बहुत समय लगता था।
  • पूर्व-चिकित्सीय परीक्षण (Pre-Clinical Testing): पहले चरण में संभावित औषधि की पहचान की जाती है, तथा दूसरे चरण में यह ‘पूर्व-चिकित्सीय परीक्षण’ में प्रवेश करती है। यहाँ मानव परीक्षण से पहले सुरक्षा, विषाक्तता, प्रभावकारिता और संभावित प्रतिकूल प्रभावों का मूल्यांकन किया जाता है, जिसके लिए कोशिका एवं पशुओं पर औषधि का परीक्षण किया जाता है।
  • चिकित्सीय परीक्षण (Clinical Trial): चिकित्सीय परीक्षण में कई चरणों में मनुष्यों पर दवाओं का परीक्षण किया जाता है। पहली कड़ी के रूप में, एक छोटा समूह सुरक्षा एवं सहनशीलता का मूल्यांकन करने के लिए औषधि का उपयोग करता है। इसके बाद, प्रभावकारिता की निगरानी करने एवं सुरक्षा का आकलन करने के लिए बड़े मानव समूह पर इसका उपयोग किया जाता है।
  • नियामक अनुमोदन एवं विपणन (Regulatory Approval and Marketing): सफल ​​परीक्षणों के बाद, दवाओं की सुरक्षा एवं प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए नियामक निकायों द्वारा कठोर समीक्षा की जाती है। इन निकायों द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद, इसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और जनता के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
  • बाजार के उपलब्ध होने के बाद निगरानी (Post-Market Surveillance): बाजार में दवा की उपलब्धता होने के बाद भी इसकी निगरानी की जाती है, ताकि वास्तविक दुनिया में इसकी प्रभावशीलता और चिकित्सीय ​​परीक्षणों के दौरान स्पष्ट नहीं होने वाले किसी भी दीर्घकालिक दुष्प्रभाव को रेखांकित किया जा सके।

डीप न्यूरल नेटवर्क (Deep Neural Network- DNN) 

  • डीप  लर्निंग न्यूरल नेटवर्क (कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क) उपलब्ध डेटा, अन्य जानकारी और पूर्वाग्रहों के आधार पर मानव मस्तिष्क की नकल करने की कोशिश करता है।
  • तंत्रिका नेटवर्क में मस्तिष्क न्यूरॉन्स के समान कई छोटे नोड शामिल होते हैं। किसी भी उत्तेजना की स्थिति में नोड्स में प्रक्रियाएँ सक्रिय हो जाती हैं, जिन्हें आम तौर पर परतों में समूहीकृत किया जाता है।

जनरेटिव AI दवाएँ (Generative AI drugs)

  • यह AI तकनीकों के उपयोग से विकसित दवाओं को संदर्भित करता है, जो नई आणविक संरचनाएँ उत्पन्न कर सकती हैं तथा उनकी प्रभावशीलता, सुरक्षा और संभावित दुष्प्रभावों की भविष्यवाणी कर सकती हैं।

औषधि के निर्माण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका

  • उन्नत लक्ष्य की खोज: विशेष रूप से Alpha Fold और RoseTTA Fold जैसे उन्नत AI उपकरणों के माध्यम से प्रोटीन, DNA और RNA की त्रि-आयामी संरचनाओं का सटीक विश्लेषण संभव हो पाया है, जिसके कारण लक्ष्य की खोज में क्रांतिकारी बदलाव आया है। यह क्षमता जैविक लक्ष्यों के साथ प्रतिक्रिया की बेहतर समझ प्रदान करती है।
  • बेहतर सटीकता और दक्षता: ‘AI मॉडल’ दवा और लक्ष्य से उसकी प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक समय को काफी कम कर देता है तथा इन भविष्यवाणियों की सटीकता को बढ़ाता है।
    • उदाहरण के लिए, अल्फाफोल्ड 3 (Alpha Fold 3) ने अपने परीक्षणों में 76% सटीकता दर प्रदर्शित की है, जो पिछले तरीकों की तुलना में पर्याप्त सुधार दिखाता है।
  • कम लागत: गहरे तंत्रिका नेटवर्क और उत्पादक डिफ्यूजन-आधारित संरचना (एक प्रकार का AI मॉडल) के सामूहिक उपयोग ने महँगे और समय लेने वाले प्रयोगों की आवश्यकता को कम कर दिया है, जिससे दवा के विकास की लागत कम हो जाती है।
  • भविष्यवाणियों में विविधता: AI प्रणाली में नवीनतम प्रगति जैसे अल्फाफोल्ड 3 और रोजटीटीएफोल्ड ऑल-एटम (RoseTTA Fold All-Atom) के बावजूद स्थिर प्रोटीन संरचनाओं की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। वे प्रोटीन, DNA, RNA, छोटे अणुओं और आयनों के किसी भी संयोजन से जुड़ी प्रक्रिया की भविष्यवाणी कर सकते हैं, जो औषधि-निर्माण से संबंधित अनुसंधान के दायरे को व्यापक बनाता है।

औषधि विकास में AI के उपयोग की सीमाएँ 

  • भविष्यवाणी की सीमित सटीकता: AI उपकरण आमतौर पर औषधि-लक्षित प्रतिक्रिया की भविष्यवाणी करने में 80% तक सटीकता प्राप्त कर लेते हैं। हालाँकि, प्रोटीन-RNA जैसे अधिक जटिल प्रतिक्रिया में सटीकता काफी कम हो जाती है, फलस्वरूप जटिल जैविक प्रक्रियाओं की भविष्यवाणी में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • औषधि के विकास चरणों में प्रतिबंधित अनुप्रयोग: AI उपकरण लक्ष्य की खोज और दवा-लक्ष्य प्रतिक्रिया को बेहतर करता है, किंतु पूर्व-चिकित्सीय ​​और चिकित्सीय ​​परीक्षणों को प्रभावित नहीं करता है। इस प्रकार, AI की प्रक्रिया से स्वीकृत दवाओं को अभी भी पारंपरिक परीक्षण की आवश्यकता है क्योंकि बाद के चरणों में सफलता की कोई निश्चित गारंटी नहीं है।
  • मॉडल हलूसनेशन (Model Hallucination): प्रसार-आधारित AI मॉडल के कारण ‘मॉडल हलूसनेशन’ का अनुभव होता है, जो अपर्याप्त या खराब-गुणवत्ता वाले प्रशिक्षण डेटा के आधार पर गलत भविष्यवाणियाँ करता है, जो मॉडल की विश्वसनीयता को सीमित करता है।
  • उन्नत उपकरण तक सीमित पहुँच: पिछले संस्करणों के विपरीत, अल्फाफोल्ड 3 जैसे उन्नत उपकरण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह स्वतंत्र सत्यापन और व्यापक उपयोग को प्रतिबंधित करता है।

भारत में औषधि के विकास में AI का सीमित उपयोग

  • उन्नत संगणनात्मक अवसंरचना का अभाव: भारत को AI-संचालित औषधि विकास के लिए उच्च गति वाले GPUs जैसे व्यापक संगणनात्मक संसाधनों की आवश्यकता है। GPUs बहुत महँगे होते हैं तथा तकनीकी प्रगति के कारण इनमें निरंतर सुधार की आवश्यकता होती है।
  • कुशल AI पेशेवरों की कमी: अमेरिका और चीन जैसे देशों की तुलना में भारत में कुशल AI वैज्ञानिकों की उपलब्धता बहुत कम है। यह कमी देश के अंदर नए AI उपकरण को विकसित करने की क्षमता में बाधा डालती है।

निष्कर्ष

औषधि विकास में AI के बढ़ते उपयोग से ‘विश्व की फार्मेसी’ के रूप में भारत की स्थिति मजबूत हो सकती है। फार्मास्यूटिकल संगठनों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ लक्ष्य की खोज, पहचान और औषधि परीक्षण में AI उपकरण का उचित उपयोग कर भारत इस क्षेत्र में अग्रणी हो सकता है।

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