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धन विधेयक संबंधी कानून पारित करना

Lokesh Pal July 17, 2024 02:57 146 0

संदर्भ

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह कथित तौर पर संसद के ऊपरी सदन को दरकिनार करने के लिए ‘धन विधेयक’ के रूप में पारित कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए एक संवैधानिक पीठ गठित करने के अनुरोध पर विचार करेगा।

संबंधित तथ्य 

  • पिछले वर्ष, उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वह आधार अधिनियम (Aadhaar Act) जैसे कानूनों को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता के मुद्दे पर विचार करने के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ का गठन करेगा। 
  • नवंबर 2019 में, पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा था कि वित्त विधेयक 2017 को धन विधेयक के रूप में पारित करने की वैधता एक बड़ी पीठ द्वारा तय की जानी चाहिए।

धन विधेयक क्या है?

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-110 के अनुसार, किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में नामित किया जा सकता है यदि वह विशेष रूप से कुछ विषयों से संबंधित हो। संविधान का अनुच्छेद-110 धन विधेयक की परिभाषा से संबंधित है। 
  • इसमें कहा गया है कि किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाएगा यदि उसमें ‘केवल’ निम्नलिखित सभी या किसी भी विषय से संबंधित प्रावधान हों:
    1. किसी भी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन या विनियमन।
    2. केंद्र सरकार द्वारा धन उधार लेने का विनियमन
    3. भारत की संचित निधि या भारत की आकस्मिक निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन का भुगतान या धन की निकासी।
    4. भारत की संचित निधि से धन का विनियोग
    5. भारत की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की घोषणा करना या ऐसे किसी व्यय की राशि बढ़ाना
    6. भारत की संचित निधि या भारत के सार्वजनिक खाते से धन की प्राप्ति अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या जारी करना, या संघ या राज्य के खातों का ऑडिट।
    7. ऊपर निर्दिष्ट किसी भी मामले से संबंधित कोई भी मामला।

किसे धन विधेयक नहीं माना जाएगा?

  1. किसी विधेयक को केवल उन कारणों से धन विधेयक नहीं माना जाना चाहिए जिनके लिए वह प्रावधान करता है। 
  2. जुर्माना या अन्य आर्थिक दंड लगाना। 
  3. लाइसेंस के लिए शुल्क या प्रदान की गई सेवाओं के लिए शुल्क के भुगतान की माँग।
  4. स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा किसी कर का अधिरोपण, उन्मूलन, छूट, परिवर्तन अथवा विनियमन।

धन विधेयक के संबंध में विभिन्न संस्थानों की भूमिका

लोकसभा अध्यक्ष

  • लोकसभा अध्यक्ष को यह प्रमाणित करना होता है कि सदन में प्रस्तुत किया जा रहा कोई विधेयक धन विधेयक है की नहीं। 
  • न्यायिक समीक्षा: उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2018 में आधार अधिनियम को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाते हुए कहा कि अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक जाँच के अधीन होगा।

राज्यसभा   

  • धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा संशोधित या अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
  • राज्यसभा को विधेयक को सिफारिशों के साथ या बिना सिफारिशों के लौटा देना चाहिए, जिसे लोकसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
  • इसे राज्यसभा द्वारा अधिकतम 14 दिनों तक ही रोका जा सकता है।
  • राष्ट्रपति: इसे अस्वीकृत या स्वीकृत किया जा सकता है, लेकिन पुनर्विचार के लिए वापस नहीं किया जा सकता।
  • संयुक्त बैठक: दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं।

धन विधेयक के संबंध में मुद्दा 

  • कार्यक्षेत्र एवं परिभाषा में अस्पष्टता
    • अनुच्छेद-110 में अस्पष्टता: संविधान के अनुच्छेद-110 के तहत धन विधेयक के गठन की परिभाषा कुछ हद तक अस्पष्ट है, जिससे अलग-अलग व्याख्याएँ एवं संभावित दुरुपयोग होता है।
    • व्यापक वर्गीकरण: जिन विधेयकों में गैर-वित्तीय प्रावधान शामिल होते हैं, उन्हें कभी-कभी धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिससे उनकी वैधता पर विवाद हो सकता है।
  • राज्यसभा को दरकिनार करना: हालाँकि, अनुच्छेद-109 के तहत, धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किए गए विधेयक को केवल लोकसभा में स्वीकृति की आवश्यकता होती है और राज्यसभा के पास विधेयक पर विचार करने तथा सिफारिशों के साथ इसे वापस करने के लिए केवल 14 दिन का समय होता है। लोकसभा या तो इन सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है एवं धन विधेयक को कानून बना सकती है।
    • दुरुपयोग की संभावना: सरकारें राज्यसभा में जाँच एवं बहस से बचने के लिए विवादास्पद विधेयकों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत कर सकती हैं, जिससे पारदर्शिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बारे में चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
  • समीक्षा की सीमित गुंजाइश: किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने का अध्यक्ष का निर्णय अंतिम माना जाता है एवं न्यायालय में इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, जिससे न्यायिक समीक्षा तथा जवाबदेही सीमित हो जाती है।
  • बहस एवं जाँच का अभाव: जटिल तथा बहुआयामी विधेयकों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करने से संसदीय बहस एवं जाँच सीमित हो सकती है, जिससे पारदर्शिता तथा जवाबदेही कम हो सकती है।
  • सार्वजनिक विश्वास: धन विधेयक प्रावधानों के कथित दुरुपयोग से विधायी प्रक्रिया एवं संसदीय प्रणाली की अखंडता में जनता का विश्वास कम हो सकता है।

धन विधेयक के रूप में विधेयकों को पारित करने से संबंधित चुनौती वाले मामले

  • आधार अधिनियम, 2016: धन विधेयक के रूप में आधार अधिनियम की वैधता
    • आधार (वित्तीय एवं अन्य सहायिकियों, प्रसुविधाओं और सेवाओं का लक्षित परिदान) अधिनियम, 2016 को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था। 
    • उच्चतम न्यायालय में चुनौती: इस वर्गीकरण को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसमें तर्क दिया गया कि अधिनियम में भारतीय संविधान के अनुच्छेद-110 में परिभाषित धन विधेयक के दायरे से परे प्रावधान शामिल हैं।
    • निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से आधार अधिनियम, 2016 की संवैधानिकता को बरकरार रखा एवं कहा कि संसद में आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने से कोई अवैधता नहीं हुई है। 
    • सरकार ने तर्क दिया कि कानून का उद्देश्य भारत की समेकित निधि के समर्थन से समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को सहायता, अनुदान या सब्सिडी की प्रकृति में लाभ पहुँचाना है। 
    • इसलिए, यह अधिनियम अनुच्छेद-110 के दायरे में आ गया एवं इसे धन विधेयक के रूप में वैध रूप से पारित कर दिया गया।
  • धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act- PMLA) संशोधन 
    • वर्ष 2015, 2016, 2018 एवं 2019 में पारित वित्त अधिनियमों द्वारा PMLA में महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए। 
    • बजट के दौरान पारित वित्त विधेयकों को संविधान के अनुच्छेद-110 के तहत धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
    • इन संशोधनों ने प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं, जिनमें गिरफ्तारी एवं छापेमारी करने का अधिकार भी शामिल था। 
    • न्यायालय ने PMLA एवं प्रवर्तन निदेशालय की विस्तृत शक्तियों को बरकरार रखा। 
    • हालाँकि, पीठ ने धन विधेयक मार्ग के माध्यम से PMLA में संशोधन की वैधता को सुनवाई के लिए बड़ी संवैधानिक पीठ के लिए खुला छोड़ दिया था।
  • न्यायाधिकरण सुधार
    • रोजर मैथ्यू बनाम भारत संघ मामले में, उच्चतम न्यायालय ने ट्रिब्यूनल सदस्यों की सेवा शर्तों में बदलाव के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई की, जिसे वित्त अधिनियम, 2017 में धन विधेयक के रूप में भी प्रस्तुत किया गया था।
    • सरकार ने तर्क दिया कि चूँकि ट्रिब्यूनल के सदस्यों का वेतन भारत की संचित निधि से आता है, इसलिए संशोधनों को धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
    • उच्चतम न्यायालय की पाँच जजों की बेंच ने अपीलीय न्यायाधिकरण नियम 2017 (Appellate Tribunal Rules of 2017) को असंवैधानिक करार दिया था।
    • उच्चतम न्यायालय ने बताया कि पुट्टास्वामी वाद में धन विधेयक का मुद्दा ‘ठोस रूप से तर्कसंगत नहीं’ था एवं इसकी व्याख्या में संभावित टकराव हो सकता है।
    • पीठ ने इस प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय की बड़ी पीठ के समक्ष रखने को कहा, क्योंकि उसकी शक्ति पुट्टास्वामी पीठ के समान ही थी।
  • वित्त अधिनियम, 2017: चुनावी बॉण्ड योजना के लिए आधार तैयार करने हेतु वित्त अधिनियम, 2017 ने भारत के चुनाव कानून, कंपनी अधिनियम और आयकर कानून के प्रावधानों में बदलाव किया।
    • उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना (Electoral Bonds Scheme- EBS) को रद्द कर दिया एवं राजनीतिक चंदे के संबंध में चुनाव-पूर्व बॉण्ड की यथास्थिति को प्रभावी ढंग से बहाल कर दिया।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय को विधायी दक्षता एवं लोकतंत्र की समुचित कार्यप्रणाली के लिए धन विधेयक के घटकों को स्पष्ट करना चाहिए।

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