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वसंतलक्ष्मी को ‘नृत्य कलानिधि’ पुरस्कार प्रदान किया गया (Vasanthlakshmi awarded ‘Nritya Kalanidhi’ award)

Samsul Ansari January 05, 2024 10:11 244 0

संदर्भ

शास्त्रीय नृत्यांगना और कोरियोग्राफर वसंतलक्ष्मी नरसिम्हाचारी (Vasanthalakshmi Narasimhachari) को संगीत अकादमी के 17वें नृत्य महोत्सव में ‘नृत्य कलानिधि’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

  • नरसिम्हाचारी शास्त्रीय नृत्य की अग्रणी प्रतिपादकों में से एक हैं और कथकली एवं ओडिसी जैसी नृत्य शैलियों से जुड़ी थीं।

नृत्य कलानिधि पुरस्कार के बारे में

  • इसे मद्रास संगीत अकादमी द्वारा प्रत्येक वर्ष नृत्य के क्षेत्र में प्रदान किया जाता है।

कथकली नृत्य के बारे में

  • उत्पत्ति: कहा जाता है कि कथकली केरल के चकियारकुथु (Chakiarkoothu), कूडियाट्टम (Koodiyattam), कृष्णट्टम (Krishnattam) और रामनाट्टम (Ramanattam) जैसे कला रूपों से विकसित हुआ है।
  • कथकली प्रदर्शन की शुरुआत केलिकोट्टु (Kelikottu) से होती है, जो दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और उसके बाद थोडयम (Thodayam) प्रस्तुत किया जाता है।
    • यह एक भक्ति गीत है, जिसमें एक या दो पात्र देवताओं का आशीर्वाद माँगते हैं।
  • मुख्य पहलू: यह अभिनय के चार पहलुओं के साथ एक शैलीबद्ध कला रूप है- अंगिका, आहार, वाचिक, सात्विक।
  • रचना: यह भक्ति, नाटक, नृत्य, संगीत, वेशभूषा को जोड़ती है और ‘भागवत पुराण’, ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ जैसे हिंदू महाकाव्यों की महान कहानियों को पुनः दर्शाती है।
  • भाव: नर्तक खुद को संहिताबद्ध हस्त मुद्राओं और चेहरे के भावों के माध्यम से व्यक्त करता है, जो गाए गए छंदों (पदम्) का बारीकी से अनुसरण करता है।
  • शरीर का भार पैरों के बाहरी किनारों पर होता है, जो थोड़े मुड़े हुए और वक्राकार होते हैं।
  • रंग का उपयोग: रंग का उपयोग करने वाला मेकअप नाट्य शास्त्र में निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार पात्रों को देवी, देवता, संत, जानवर, राक्षस एवं राक्षसी के रूप में वर्गीकृत करता है।
  • पात्र: कथकली प्रदर्शन में पात्रों को मोटे तौर पर सात्विक, राजसिक और तामसिक प्रकारों में विभाजित किया जाता है। प्रदर्शन में विभिन्न रंगों का उपयोग किया जाता है:-
    • हरा रंग रॉयल्टी, दिव्यता और सदाचार का प्रतिनिधित्व करता है।
    • नाक के पास लाल धब्बे रॉयल्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • काले रंग का प्रयोग बुराई एवं दुष्टता के लिए किया जाता है।
    • पीला रंग संतों एवं महिलाओं को दर्शाता है।
    • पूरा लाल रंगा हुआ चेहरा अनिष्ट की ओर संकेत करता है।
    • सफेद दाढ़ी उच्च चेतना एवं दिव्यता से युक्त होने का प्रतिनिधित्व करती है।
  • मंच: मंच के सामने एक बड़ा तेल वाला दीपक रखा जाता है और दो लोग मंच पर तिरसीला नामक पर्दा रखते हैं, प्रदर्शन से पहले मुख्य नर्तक इसके पीछे खड़े होते हैं।
  • वाद्ययंत्र: मद्दलम और चेंडा जैसे ड्रम, चेंगिला (एक धातु की घंटी) और इलाथलम या झाँझ।
  • संगीत: कथकली संगीत केरल के पारंपरिक सोपना संगीत का अनुसरण करता है। कथकली संगीत में कर्नाटक रागों का भी प्रयोग होता है।
  • प्रसिद्ध प्रस्तावक: कवुंगल चथुन्नी पणिक्कर, कलामंडलम गोपी।

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