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महिलाओं के खिलाफ हिंसा: एक वैश्विक और राष्ट्रीय संकट

Lokesh Pal November 27, 2025 03:11 9 0

संदर्भ

ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) तथा ‘यूएन वीमेन’ द्वारा जारी यूनाइटेड नेशंस फेमिसाइड रिपोर्ट, 2025 (United Nations Femicide Report, 2025) में यह आगाह किया गया है कि वैश्विक स्तर पर प्रत्येक 10 मिनट में एक महिला या लड़की की हत्या की जाती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर 83,000 फेमिसाइड की घटनाएँ दर्ज की गई थीं।

संबंधित तथ्य

  • 25 नवंबर को महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन के अंतरराष्ट्रीय दिवस (International Day for the Elimination of Violence against Women) के रूप में मनाया जाता है।
    • यह दिवस वैश्विक स्तर पर जागरूकता सृजन, नीतिगत समर्थन को सुदृढ़ करने तथा महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा (VAWG) के उन्मूलन हेतु कार्रवाइयों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय दिवस

  • तिथि एवं महत्त्व: यह दिवस 25 नवंबर को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा (VAWG) के संबंध में वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाना है।
  • वर्ष 2025 की थीम: ‘सभी महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध डिजिटल हिंसा को समाप्त करने के लिए एकजुट होना’ (UNiTE to End Digital Violence against All Women and Girls)।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंगीकरण: इसे वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंगीकार किया गया था।
  • 16-दिवसीय अभियान: लैंगिक आधारित हिंसा के विरुद्ध 16 दिवसीय सक्रियता अभियान एक वार्षिक वैश्विक पहल है, जिसे ‘यूएन वीमेन’ द्वारा संचालित किया जाता है, और इसका उद्देश्य VAWG के उन्मूलन हेतु जागरूकता बढ़ाना तथा वैश्विक कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है।
    • अवधि एवं प्रमुख तिथियाँ: यह अभियान प्रतिवर्ष 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक आयोजित किया जाता है।
      • 25 नवंबर: महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय दिवस।
      • 10 दिसंबर: मानवाधिकार दिवस।
  • भारत के प्रयास: विधिक ढाँचे, सहायता प्रणालियों तथा महिलाओं और बालिकाओं को प्रभावित करने वाली सामाजिक एवं डिजिटल चुनौतियों के समाधान हेतु उपायों को सुदृढ़ किया गया है।
  • फोकस क्षेत्र: प्रौद्योगिकी-सहायक महिलाओं एवं बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा (VAWG) जैसे ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबर-स्टॉकिंग, डीपफेक, डॉक्सिंग तथा समन्वित स्त्रीद्वेषी हमलों को रेखांकित करता है।
  • उद्देश्य: सरकारों, सिविल सोसायटी और व्यक्तियों द्वारा रोकथाम, जवाबदेही और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देना।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च)

  • वैश्विक स्तर पर मनाया जाने वाला यह दिवस महिलाओं के कल्याण, सशक्तीकरण और विकास के प्रति प्रतिबद्धता को पुनः स्थापित करता है तथा महिलाओं के विरुद्ध हिंसा (विशेषकर हाशिये पर स्थित समुदायों में) से संबंधित सतत् चिंताओं को रेखांकित करता है।
  • वर्ष 2025 की थीम: ‘सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार, समानता, सशक्तीकरण।’
    • यह थीम बीजिंग घोषणा की 30वीं वर्षगाँठ का प्रतीक है तथा विश्व स्तर पर महिलाओं के अधिकारों हेतु सबसे प्रगतिशील रूपरेखा के प्रति नवीकृत प्रतिबद्धता का आह्वान करती है।

रिपोर्ट द्वारा पहचानी गई चिंताजनक वैश्विक प्रवृत्तियाँ

  • वैश्विक फेमिसाइड संकट: वर्ष 2024 में लगभग 60% महिलाओं की हत्या घनिष्ठ साझेदारों या परिवार के सदस्यों द्वारा की गई, जो यह दर्शाता है कि हिंसा का सबसे खतरनाक स्थान प्रायः घर ही होता है।
  • क्षेत्रीय विविधताएँ: फेमिसाइड दरों के मामले में अफ्रीका सबसे आगे है, इसके पश्चात् अमेरिका, ओशिनिया, एशिया और यूरोप का स्थान आता है।
  • डिजिटल हिंसा में वृद्धि: प्रौद्योगिकी के तीव्र विस्तार ने साइबर-स्टॉकिंग, जबरन नियंत्रण, डीपफेक, डॉक्सिंग और छवि-आधारित दुरुपयोग को बढ़ाया है, जो प्रायः ऑफलाइन हमलों में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • वैश्विक प्रगति में कमी: UN एजेंसियों ने रोकथाम प्रयासों में ठहराव, न्यायिक तंत्र की कमजोरी तथा फेमिसाइड एवं साइबर अपराधों की कम रिपोर्टिंग को रेखांकित किया है।
    • इस रिपोर्ट ने समन्वित रोकथाम उपायों, अधिक सशक्त कानूनों तथा पीड़ित-सहायता सेवाओं के सुदृढ़ीकरण का आह्वान किया है।

फेमिसाइड के बारे में

  • परिभाषा: फेमिसाइड वह स्थिति है, जिसमें किसी महिला या लड़की की हत्या लैंगिक-आधारित प्रेरणा से की जाती है जो सामान्य हत्या (Homicide) से भिन्न है, जहाँ उद्देश्य लैंगिक-आधारित नहीं हो सकता है।
  • कारक: यह मुख्यतः महिलाओं और लड़कियों के प्रति भेदभाव, शक्ति-संबंधों में असमानता, लैंगिक रूढ़ियों तथा हानिकारक सामाजिक मान्यताओं से प्रेरित होता है।
  • घटनास्थल: फेमिसाइड घर, कार्यस्थलों, विद्यालयों, सार्वजनिक स्थानों तथा ऑनलाइन माध्यमों में भी हो सकता है।
  • कारण: इसके सामान्य कारणों में घनिष्ठ साझेदार हिंसा, यौन उत्पीड़न एवं आक्रमण, हानिकारक प्रथाएँ, तथा तस्करी शामिल हैं।

महिलाओं और बालिकाओं के विरुद्ध हिंसा (VAWG) के बारे में

  • संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा: महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को ‘किसी भी प्रकार की लैगिक हिंसा, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को शारीरिक, यौन या मानसिक क्षति या पीड़ा होती है; जिसमें धमकियाँ, दबाव, या स्वतंत्रता-हरण शामिल है, चाहे यह सार्वजनिक जीवन में घटित हो या निजी जीवन में’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • VAWG की उत्पत्ति: यह गहराई से जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक संरचनाओं, प्रणालीगत लैंगिक असमानता और सतत् सामाजिक भेदभाव से उत्पन्न होती है, जो निजी तथा सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में महिलाओं की स्वायत्तता एवं स्वतंत्रताओं को सीमित करती हैं।
    • पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचनाएँ: हिंसा का आधार ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से पुरुष वर्चस्व तथा महिलाओं पर नियंत्रण की स्वीकृति में निहित है।
    • लैंगिक असमानता: शक्ति-संबंधों में असमानता, भेदभावपूर्ण मानदंड, और सीमितकारी लैंगिक भूमिकाएँ जबरन नियंत्रण को सामान्य बना देती हैं और प्रतिरोध को दबा देती हैं।
    • सांस्कृतिक प्रथाएँ: हानिकारक परंपराएँ और सामाजिक रीति-रिवाज महिलाओं की अधीनता को मजबूत करते हैं और हिंसा को उचित ठहराते हैं।
    • जागरूकता की कमी और कमजोर संस्थागत प्रतिक्रिया: कानूनी प्रवर्तन की सीमाएँ, सामाजिक उपेक्षा और प्रतिशोध का भय पीड़ितों को न्याय प्राप्त करने से रोकते हैं, जिससे हिंसा का चक्र बिना चुनौती जारी रहता है।
  • महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के रूप: संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा रेखांकित करती है कि VAWG केवल शारीरिक कृत्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मनोवैज्ञानिक, यौन तथा संरचनात्मक क्षति का व्यापक दायरा भी शामिल है।
    • घनिष्ठ साझेदार एवं घरेलू हिंसा: इसमें शारीरिक आक्रमण, यौन दबाव, भावनात्मक छेड़छाड़, तथा साझेदारों या परिवार के सदस्यों द्वारा नियंत्रित करने वाला व्यवहार शामिल है।
      • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2023 में प्रत्येक 10 मिनट में एक महिला अपने घर के वातावरण में ही किसी परिचित व्यक्ति द्वारा हिंसा का शिकार हुई, जिसमें उसकी या तो मृत्यु हो गई या गंभीर चोटों का सामना करना पड़ा।
    • यौन हिंसा: इसमें दुष्कर्म, यौन हिंसा, उत्पीड़न, तस्करी, वेश्यावृत्ति हेतु बाध्य करना, तथा संघर्ष-जनित यौन हिंसा सम्मिलित है।
      • भारत में ही वर्ष 2022 में 31,000 से अधिक दुष्कर्म के मामलों की रिपोर्ट दर्ज हुई, जो इस समस्या की गहनता को दर्शाते हैं।
    • मनोवैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक उत्पीड़न: इसमें अपमान, धमकियाँ, मौखिक आक्रामकता, वित्तीय नियंत्रण, अलगाव, तथा भावनात्मक गिरावट जैसे कृत्य शामिल हैं।
      • हानिकारक प्रथाएँ (जैसे- जननांग विकृति, बाल विवाह, डायन घोषित करना, विधवा रीति-रिवाज, मासिक धर्म आधारित बहिष्कार, तथा कन्या भ्रूण/शिशु हत्या) सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत मनोवैज्ञानिक हिंसा के उदाहरण हैं।
    • प्रौद्योगिकी-सहायक हिंसा: इसमें साइबर-स्टॉकिंग, डिजिटल उत्पीड़न, डीपफेक पोर्नोग्राफी, ऑनलाइन मानहानि, और डॉक्सिंग शामिल है।
      • डिजिटल उपस्थिति बढ़ने के साथ महिलाएँ (विशेषकर कार्यकर्ता, पत्रकार, और सार्वजनिक हस्तियाँ) अधिक ऑनलाइन जोखिमों का सामना कर रही हैं।
  • VAWG के प्रभाव: VAWG को वैश्विक स्तर पर सबसे व्यापक मानवाधिकार उल्लंघनों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो आयु, वर्ग, भौगोलिक स्थिति और संस्कृति-सभी स्तरों पर महिलाओं को प्रभावित करता है।
    • शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परिणाम: महिलाएँ चोटों, दीर्घकालिक रोगों, प्रजनन स्वास्थ्य समस्याओं, तथा अवसाद, चिंता और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) सहित दीर्घकालिक मानसिक आघात का सामना करती हैं।
      • भावनात्मक बोझ प्रायः सामाजिक अलगाव और दैनिक गतिविधियों से विमुखता की ओर ले जाता है।
    • सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव: VAWG असमानता के चक्र को सुदृढ़ करती है, भय को सामान्य बनाती है और महिलाओं की गतिशीलता, स्वायत्तता और सामाजिक/सामुदायिक जीवन में भागीदारी को सीमित करती है।
      • नारीवादी विद्वान गेर्डा लर्नर के अनुसार, पुरुष वर्चस्व की स्वीकृति हिंसा को अदृश्य और अचुनौतिपूर्ण बनाए रखती है।
    • आर्थिक प्रभाव: हिंसा महिलाओं की कार्य करने की क्षमता को सीमित करती है, उत्पादकता घटाती है और स्वास्थ्य व न्यायिक प्रक्रियाओं पर अतिरिक्त लागत डालती है।
      • विश्व बैंक के अनुसार, VAWG के कारण वैश्विक GDP का लगभग 2% (~1.5 ट्रिलियन डॉलर) का नुकसान होता है। भारत में, जहाँ कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 25.1% है, हिंसा, आर्थिक सशक्तीकरण की प्रमुख बाधाओं में से एक है।
    • विकास संबंधी प्रभाव: VAWG लैंगिक समानता, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन और सामाजिक न्याय से जुड़े प्रगति प्रयासों को कमजोर करती है।
      • कोई भी समाज तब तक आगे नहीं बढ़ सकता है, जब तक उसकी आधी आबादी असुरक्षा, आघात और सीमित अवसरों से प्रभावित हो।

भारत में महिलाओं की सुरक्षा की आवश्यकता

  • सतत् हिंसा: प्रभावी विधिक ढाँचों के बावजूद घरेलू और यौन हिंसा का उच्च स्तर देखा जाता है, जो कार्यान्वयन और जवाबदेही में अंतर को उजागर करते हैं।
    • विधिक मजबूती के बावजूद, वर्ष 2023 में महिलाओं के खिलाफ 4,48,211 अपराध दर्ज किए गए, जिसमें पति/संबंधियों द्वारा क्रूरता (IPC 498A) सबसे बड़ी श्रेणी बनी रही, जो घरेलू हिंसा की निरंतरता को रेखांकित करती है (NCRB, 2023)।
  • गहरी जड़ें जमा पितृसत्ता: पितृसत्तात्मक मानदंड, बाल विवाह, दहेज प्रथा, और कठोर लैंगिक भूमिकाएँ हिंसा और भेदभाव के जड़ें जमाए चक्र को बनाए रखती हैं।
    • लैंगिक हिंसा की निरंतरता इस तथ्य में परिलक्षित होती है कि 18-49 वर्ष की आयु की 31.2% विवाहित महिलाओं ने अपने जीवनकाल में पति द्वारा हिंसा का अनुभव किया है, जो पितृसत्तात्मक नियंत्रण की गहरी जड़ें दर्शाता है (NFHS-5, 2019-21)।
  • डिजिटल जोखिम में वृद्धि: स्मार्टफोन के अधिक उपयोग और AI, डीपफेक, तथा ऑनलाइन ब्लैकमेल के दुरुपयोग ने डिजिटल स्थानों में महिलाओं की संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है।
    • ऑनलाइन खतरों में वृद्धि को ‘नेशनल साइबरक्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ (NCRP) ने पुष्टि की है, जिसने हाल के वर्षों में महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों में दो गुना से अधिक वृद्धि दर्ज की है, जिससे उन्हें AI-सक्षम उत्पीड़न और ब्लैकमेल के प्रति और अधिक संवेदनशील बनाया गया है।
  • कम रिपोर्टिंग और बाधाएँ: उपेक्षा, प्रतिशोध का भय, कम जागरूकता, और संस्थागत निष्क्रियता, रिपोर्टिंग को हतोत्साहित करती हैं और न्याय में देरी करती हैं।
    • संस्थागत अंतर गंभीर हैं; महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के लिए न्यायालय में लंबित मामलों की दर वर्ष 2023 में 90.8% तक पहुँच गई, जबकि सजा दर कम बनी रही, जो अंडररिपोर्टिंग और न्याय में देरी में योगदान करती है (NCRB, 2023)।
  • आर्थिक परिणाम: हिंसा महिलाओं की श्रम भागीदारी को घटाती है, उत्पादकता को कमजोर करती है, शिक्षा में व्यवधान डालती है, और समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को कमजोर करती है।
    • हिंसा आर्थिक भागीदारी को गंभीर रूप से सीमित करती है, और महिलाओं की श्रम भागीदारी दर (FLFPR) वर्ष 2024 में लगभग 40.3% बनी हुई है, जो वैश्विक स्तर पर VAWG के कारण GDP में लगभग 2% हानि के समकक्ष है (PLFS, 2024 एवं विश्व बैंक)।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • विधि के समक्ष समानता (अनुच्छेद-14): राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है।
  • भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद-15): लिंग, धर्म, जाति या नस्ल के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है; अनुच्छेद-15(3) महिलाओं के लिए सकारात्मक कार्रवाई की अनुमति देता है।
  • अवसर की समानता (अनुच्छेद-16): सभी नागरिकों के लिए सार्वजनिक रोजगार में समान पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • आजीविका का अधिकार [अनुच्छेद-39(a)] और समान वेतन [अनुच्छेद-39(c)]: आर्थिक समानता और समान कार्य के लिए न्यायपूर्ण वेतन को बढ़ावा देता है।
  • कार्यस्थल पर न्याय (अनुच्छेद-42): मानवतावादी कार्य परिस्थितियों और मातृत्व सहायता की गारंटी देता है।
  • मौलिक कर्तव्य [अनुच्छेद-51(A)(e)]: नागरिकों को महिलाओं की गरिमा के हनन करने वाली प्रथाओं का परित्याग करने का दायित्व देता है।

भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रमुख उपाय

मजबूत कानूनी ढाँचा

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023: यौन अपराधों के लिए काफी कठोर दंड का प्रावधान किया गया है, जिसमें 18 वर्ष से कम आयु की नाबालिगों के साथ बलात्कार के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान भी शामिल है।
    • पारदर्शिता बढ़ाने के लिए पीड़िता और गवाह के बयानों की ऑडियो–वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य करता है।
    • समयबद्ध जाँच और सुनवाई को प्राथमिकता दी जाएगी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों से जुड़े मामलों में।

  • महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम (PWDVA), 2005: घरेलू हिंसा की व्यापक परिभाषा प्रदान करता है।
    • इस अधिनियम के अनुसार, घरेलू हिंसा का अर्थ ‘पीड़ित व्यक्ति’ से है, जो कोई भी महिला हो, जो प्रतिवादी के साथ वर्तमान या पूर्व में घरेलू संबंध में रही हो।
    • धारा 3 इसे किसी भी कृत्य के रूप में परिभाषित करती है, जो महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाए अथवा उसकी सुरक्षा को खतरे में डाले, जिसमें अवैध माँगों के लिए उत्पीड़न भी शामिल है। ‘घरेलू हिंसा’ में निम्नलिखित शामिल हैं:-
      • शारीरिक उत्पीड़न: हानि, चोट, या धमकी
      • यौन उत्पीड़न: कोई भी गैर-सहमति या अपमानजनक यौन कृत्य
      • मौखिक / भावनात्मक उत्पीड़न: अपमान, धमकियाँ, अपमानजनक व्यवहार
      • आर्थिक उत्पीड़न: पैसा रोकना, संसाधनों तक पहुँच से वंचित करना, संपत्ति का निपटान
      • दहेज से संबंधित उत्पीड़न या संपत्ति/दहेज के लिए जबरदस्ती।
    • सिविल उपाय सुनिश्चित करता है, जिसमें सुरक्षा आदेश, निवास के अधिकार, वित्तीय राहत, और बाल देखभाल व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
  • कार्यक्षल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम अधिनियम (POSH Act), 2013: 10 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों के लिए आंतरिक समिति (IC) का गठन अनिवार्य करता है।
    • असंगठित, घरेलू और अनौपचारिक क्षेत्रों में महिलाओं के लिए स्थानीय समितियाँ स्थापित करता है।
    • जाँच पूरी करने के लिए 90-दिन की समय सीमा निर्धारित करता है, जिससे शीघ्र निवारण सुनिश्चित हो।
  • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018
    • दुष्कर्म के लिए दंड में वृद्धि करता है, जिसमें POCSO के तहत सशक्त बाल यौन शोषण को रोकने संबंधी प्रावधान शामिल हैं।
    • लंबित मामलों को कम करने के लिए जाँच और मुकदमेबाजी की समय-सीमा को सुदृढ़ करता है।

संस्थागत और समर्थन तंत्र

  • राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए वैधानिक निगरानी संस्था के रूप में कार्य करता है।
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें (लिखित एवं ऑनलाइन) अपने पोर्टल के माध्यम से प्राप्त करता है।
    • साइबर उत्पीड़न और अन्य प्रकार के दुरुपयोग के लिए ऑनलाइन शिकायत प्रणाली और 24×7 हेल्पलाइन (7827170170) संचालित करता है।
    • केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से डिजिटल इंडिया के माध्यम से इंटरैक्टिव वॉइस रिस्पॉन्स (IVR) प्रणाली द्वारा संचालित है।
    • अधिकांश राज्यों ने समान जिम्मेदारियों के साथ राज्य महिला आयोग (SCWs) भी गठित किए हैं।
  • मिशन शक्ति (संबल और सामर्थ्य): महिलाओं के जीवन चक्र में सुरक्षा, सशक्तीकरण और पुनर्वास को समेकित करने हेतु व्यापक योजना है।
    • कई सुरक्षा और सहायता सेवाओं के समन्वित कार्य संचालन को सुनिश्चित करता है।
  • वन स्टॉप सेंटर (OSCs): जिला स्तर पर एकीकृत सहायता सुविधा के रूप में संचालित है।
    • चिकित्सीय सहायता, पुलिस सुविधा, कानूनी सहायता, अस्थायी आश्रय, और मनोवैज्ञानिक परामर्श एक ही स्थान पर प्रदान करते हैं।
    • महिला और बाल विकास मंत्रालय ने OSCs योजना को 01 अप्रैल, 2015 से लागू किया।
  • स्वाधार गृह योजना
    • कठिन परिस्थितियों में महिलाओं को आश्रय, परामर्श, व्यावसायिक प्रशिक्षण, और दीर्घकालिक पुनर्वास प्रदान करता है।
    • केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय 01 अप्रैल, 2016 से संशोधित स्वाधार गृह योजना को लागू कर रहा है।
  • स्त्री मनोरक्षा परियोजना
    • महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पूरे देश में OSCs के कर्मचारियों को बुनियादी और उन्नत प्रशिक्षण देने के लिए बंगलूरू स्थित ‘नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस’ (NIMHANS) की सेवाएँ अर्जित की हैं।
    • OSC कर्मचारियों की मानसिक स्वास्थ्य और आघात प्रतिक्रिया क्षमता को मजबूत करने पर केंद्रित है।
    • पीड़ितों के लिए सुधारित मनो-सामाजिक समर्थन सुनिश्चित करती है।

डिजिटल और आपातकालीन समर्थन तंत्र

  • महिला हेल्पलाइन (181): 24×7 आपातकालीन हेल्पलाइन, जो तुरंत सहायता और संबंधित एजेंसियों को रेफरल प्रदान करती है।
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया समर्थन प्रणाली (ERSS–112) निर्भया कोष के तहत: एकीकृत राष्ट्रीय आपातकालीन नंबर जो पुलिस, अग्निशमन और चिकित्सा सेवाओं को जोड़ता है, ताकि त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित हो सके।
  • डिजिटल शक्ति अभियान: राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा लागू, एक अखिल भारतीय परियोजना, जो महिलाओं और लड़कियों को डिजिटल रूप से सशक्त बनाने और कौशल विकसित करने के उद्देश्य से संचालित है।
  • व्हाट्सऐप आपातकालीन लाइन (7217735372): एक त्वरित प्रतिक्रिया संपर्क तंत्र, जिसे COVID-19 लॉकडाउन के दौरान व्यापक रूप से उपयोग किया गया और वर्तमान में भी आपात हस्तक्षेप के लिए जारी है।

प्रौद्योगिकी-सक्षम प्रवर्तन उपकरण

  • यौन अपराधों के लिए जाँच निगरानी प्रणाली (ITSSO)
    • दुष्कर्म और POCSO मामलों में वैधानिक जाँच समय सीमाओं की निगरानी करता है।
    • पुलिस अनुपालन सुनिश्चित करता है और देरी को कम करता है।
  • यौन अपराधियों पर राष्ट्रीय डेटाबेस (NDSO)
    • दोषी ठहराए गए यौन अपराधियों का केंद्रीकृत डिजिटल रजिस्ट्री।
    • कानून प्रवर्तन द्वारा पृष्ठभूमि जाँच और निवारक निगरानी के लिए उपयोग किया जाता है।
  • क्राइम मल्टी-एजेंसी सेंटर (Cri-MAC)
    • पुलिस एजेंसियों के बीच सशक्त अपराध, लापता व्यक्तियों और अपराधियों पर वास्तविक समय में सूचना साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।

त्वरित न्याय और पुलिस प्रत्युत्तर क्षमता

  • फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSCs)
    • भारत में 773 FTSCs हैं, जिनमें 400 समर्पित e-POCSO न्यायालय शामिल हैं (वर्ष 2025 तक)।
    • इन न्यायालयों ने 3.34 लाख से अधिक यौन अपराध मामलों का निपटान किया है, जिससे लंबित मामलों में महत्त्वपूर्ण कमी आई है।
  • पुलिस थानों में महिला हेल्प डेस्क
    • पुलिस थानों में 14,658 से अधिक महिला हेल्प डेस्क स्थापित हैं।
    • लैंगिक-संवेदनशील रिपोर्टिंग, परामर्श और OSCs तथा कानूनी/चिकित्सीय सेवाओं के लिए रेफरल प्रदान करती हैं।
  • सी-बॉक्स (SHe-Box) पोर्टल
    • केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया, यह एक सिंगल-विंडो POSH प्लेटफॉर्म है, जो महिलाओं को कार्यस्थल यौन उत्पीड़न शिकायतें ऑनलाइन दर्ज करने और ट्रैक करने की सुविधा देता है। शिकायतें स्वतः संबंधित आंतरिक समितियों (ICs) और स्थानीय समितियों (LCs) को भेजी जाती हैं और समितियों का केंद्रीय डेटाबेस बनाए रखा जाता है।
      • इसमें प्रत्येक संगठन में एक नोडल अधिकारी को भी अनिवार्य किया गया है, ताकि त्वरित अद्यतनीकरण और तीव्र निवारण सुनिश्चित किया जा सके।

चुनौतियाँ जिनका समाधान आवश्यक है

  • कम रिपोर्टिंग और सामाजिक उपेक्षा: प्रतिशोध का डर, सम्मान का दबाव और संस्थागत विश्वास की कमी, ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों प्रकार की हिंसा की गंभीर रूप से कम रिपोर्टिंग का कारण बनती हैं।
    • अधिकांश मामले सार्वजनिक नही हो पाते हैं। केवल 32% विवाहित महिलाएँ हिंसा की रिपोर्ट करती हैं (NFHS-5), जो आधिकारिक शिकायतों की तुलना में बहुत अधिक है, जो आधिकारिक शिकायतों से कहीं अधिक है, तथा पीड़ितों को चुप कराने के लिए भय और सामाजिक दबाव को दर्शाती है।
  • कमजोर कार्यान्वयन और संस्थागत अंतर: लैंगिक कानूनों का असमान प्रवर्तन, POSH ICs/LCs की कमी, और पुलिस, अभियोजकों, साइबर सेल और काउंसलरों में सीमित क्षमता न्याय में देरी का कारण बनती है।
    • संस्थाएँ सुरक्षा प्रवर्तन में संघर्ष करती हैं; NCW ने वर्ष 2024 के मध्य तक 12,648 शिकायतें प्राप्त कीं, जो दैनिक प्रवर्तन में अंतर को प्रदर्शित करती हैं।
  • देर से न्याय और खराब फॉरेंसिक जाँच व्यवस्था: उच्च न्यायालयों में लंबित मामले, धीमी साइबर अपराध जाँच और जिला-स्तरीय साइबर फॉरेंसिक लैबों की अपर्याप्तता प्रभावी कानूनी कार्रवाई में बाधा डालती है।
    • न्यायिक लंबित मामलों ने न्याय की प्रक्रिया को बाधित किया है। फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) संचालित हैं (अगस्त 2025 तक 773), फिर भी सर्वोच्च न्यायालय की उच्च लंबित संख्या, न्यायपालिका में समय पर निवारण की व्यापक चुनौती को दर्शाती है (लोक सभा/SC ऑब्जर्वर, 2025)
  • डिजिटल हिंसा में वृद्धि: साइबरस्टॉकिंग, डॉक्सिंग, बिना-सहमति के इमेज साझा करना, और लक्षित उत्पीड़न में तेजी से वृद्धि, विशेष रूप से सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा।
    • ऑनलाइन दुरुपयोग तीव्र रूप से बढ़ रहा है; वर्ष 2024 में 339 साइबर अपराध शिकायतें और महिला पत्रकारों के प्रति धमकियाँ दर्शाती हैं कि डिजिटल स्थान लगातार असुरक्षित हो रहे हैं।
  • AI-सक्षम दुर्व्यवहार विनियमन से आगे निकल रहा है: डीपफेक, सिंथेटिक इमेजरी, गोपनीय उपकरण और एल्गोरिदमिक प्रवर्द्धन ने डिजिटल दुरुपयोग को बनाने में आसान, पहचानने में कठिन और अभियोजन में जटिल बना दिया है।
    • एक अध्ययन में वर्ष 2023-2024 में हानिकारक AI-जनित दुरुपयोग में 1,325% वृद्धि पाई गई, जैसे कि डीपफेक, जो दर्शाता है कि परिष्कृत और आसानी से निर्मित डिजिटल सामग्री मौजूदा कानूनों तथा प्रवर्तन क्षमताओं से तेजी से आगे बढ़ रही है ।
  • प्लेटफॉर्म पर दंडहीनता और कमजोर शासन: सीमित प्लेटफॉर्म जवाबदेही, असंगत सामग्री और वैश्विक स्तर पर समन्वित मानकों की कमी ने सीमा पार उत्पीड़न को बढ़ावा दिया है।
  • पीड़ित-केंद्रित समर्थन की कमी: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी सहायता, दीर्घकालिक आश्रय, व्यावसायिक पुनर्वास और डिजिटल सुरक्षा सहायता तक खराब पहुँच पीड़ितों की रिकवरी को कमजोर करती है।
    • हालाँकि 802 वन स्टॉप सेंटर (OSCs) अब संचालित हैं (मार्च 2025 तक), ये महत्त्वपूर्ण केंद्र प्रायः अपर्याप्त फंडिंग, कर्मचारियों के वेतन में देरी (जैसे वर्ष 2024 के अंत में केरल में), और वाहनों की कमी से प्रभावित हैं, जो उनके बहु-क्षेत्रीय सहायता प्रदान करने की क्षमता को गंभीर रूप से बाधित करता है।

आगे की राह

  • कानूनी ढाँचों को मजबूत करना: कानूनों को अद्यतन और समन्वित करना ताकि प्रौद्योगिकी-सक्षम लैंगिक हिंसा, जैसे- साइबरस्टॉकिंग, डॉक्सिंग, ऑनलाइन उत्पीड़न, और डीपफेक को विशिष्ट रूप से संबोधित किया जा सके, जैसा कि यूएन वीमेन के ग्लोबल एक्शन कॉल में सुझाव दिया गया है।
    • डॉक्सिंग का अर्थ है किसी व्यक्ति की निजी, व्यक्तिगत या पहचान संबंधी जानकारी को बिना उनकी सहमति के सार्वजनिक रूप से प्रकट करना अथवा प्रकाशित करना, आमतौर पर उन्हें उत्पीड़ित, धमकाने या नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से।
  • संस्थागत क्षमता को बढ़ाना: पुलिस अधिकारियों, लोक अभियोजकों, साइबर सेल और काउंसलरों को ऑफलाइन और डिजिटल दोनों प्रकार की महिलाओं तथा बालिकाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए प्रशिक्षित करना; जिला-स्तरीय साइबर फॉरेंसिक प्रयोगशालाएँ स्थापित करना।
  • प्लेटफॉर्म और कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपकरणों का नियमन: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और AI डेवलपर्स पर मजबूत जवाबदेही लागू करना, कंटेंट मॉडरेशन मानक लागू करना, और एल्गोरिदमिक प्रवर्द्धन को नियंत्रित करना ताकि दुरुपयोग को रोका जा सके।
  • पीड़ित-केंद्रित समर्थन को बढ़ावा देना: पीड़ितों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ, कानूनी सहायता, दीर्घकालिक आश्रय, व्यावसायिक पुनर्वास, और डिजिटल सुरक्षा मार्गदर्शन तक पहुँच का विस्तार करना।
  • रोकथाम और डिजिटल साक्षरता में निवेश: सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम, ऑनलाइन सुरक्षा अभियान और डिजिटल साक्षरता पहल शुरू करना, ताकि महिलाएँ तथा लड़कियाँ दुष्प्रभाव को पहचानने और उस पर प्रतिक्रिया देने में सशक्त हों।
  • वैश्विक सहयोग और मानक: महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने पर कन्वेंशन (CEDAW), यूनेस्को AI एथिक्स सिफारिशों के साथ संरेखित करना; सीमापार सहयोग को बढ़ावा देना ताकि ट्रांसनेशनल डिजिटल अपराधों की रिपोर्टिंग, जाँच और अभियोजन सुनिश्चित हो सके।
  • सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की सुरक्षा: राजनीति, मीडिया, व्यवसाय और नेतृत्व में महिलाओं के लिए विशेष सुरक्षा उपाय प्रदान करना, जिसमें संगठित उत्पीड़न, डीपफेक और फेक न्यूज के विरुद्ध त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र शामिल हों।

निष्कर्ष

भारत में कानूनों, डिजिटल उपकरणों और पीड़ित-सहायता तंत्र में प्रगति के बावजूद, महिलाओं के खिलाफ हिंसा जारी है। SDG5 (लैंगिक समानता) को प्राप्त करने के लिए सामाजिक परिवर्तन, संस्थागत जवाबदेही, और सुरक्षित, समावेशी स्थानों की आवश्यकता है ताकि समानता, सशक्तीकरण और भयमुक्त स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके।

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