हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा तमिलनाडु के कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल(Vivekananda Rock Memorial) की यात्रा की गई।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल के बारे में
विवेकानंद रॉक मेमोरियल समुद्र में एक चट्टान पर स्थित है।
स्थान: कन्याकुमारी, तमिलनाडु (भारत)।
स्थापत्य शैली: भारतीय रॉक-कट और कैथेड्रल शैली में निर्मित किया गया है।
यह स्मारक वर्ष 1970 में स्वामी विवेकानंद के सम्मान में निर्मित किया गया था।
इस परिसर में स्वामी विवेकानंद की आदमकद कांस्य प्रतिमा भी स्थित है।
संरचनाएँ और विशेषताएँ
विवेकानंद मंडपम् (Vivekananda Mandapam): यहस्मारक की प्राथमिक संरचनाओं में से एक है।
श्रीपाद मंडपम् (Shripada Mandapam): यहस्मारक की दूसरी मुख्य संरचना है।
स्वामी विवेकानंद
उनका जन्म वर्ष 1863 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक बंगाली परिवार में हुआ था इनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था।
उन्हें ‘आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद का जनक’ (Father of Modern Indian Nationalism) माना जाता है।
प्रसिद्ध: उन्हें पश्चिमी दुनिया में वेदांत और योग का प्रचार प्रसार एवं हिंदू धर्म को एक प्रमुख वैश्विक धर्म के रूप में प्रचारित करने के लिए जाना जाता है।
स्थापना
न्यूयॉर्क की वेदांत सोसायटी (Vedanta Society)।
सैन फ्राँसिस्को की वेदांत सोसायटी, जिसने पश्चिम में वेदांत सोसायटी की नींव रखी।
वह एक रहस्यवादी संत रामकृष्ण के शिष्य थे।
12 जनवरी (जन्म दिवस) को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
ध्यान मंडपम्: आगंतुकों के ध्यान करने के लिए इस स्मारक से जुड़ा एक ध्यान कक्ष भी है।
इसमें विभिन्न भारतीय मंदिरों की स्थापत्य शैली का समावेश है।
परिवेश: यहाँ चट्टानें लक्षद्वीप सागर से घिरी हुई हैं, जहाँ बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर मिलते हैं।
कन्याकुमारी
स्थान: कन्याकुमारी भारतीय मुख्य भूमि का सबसे दक्षिणी बिंदु है।
महासागरों का संगम: यह तीन प्रमुख महासागरों का मिलन बिंदु है:
बंगाल की खाड़ी
अरब सागर
हिंद महासागर
ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व
स्वामी विवेकानंद: किंवदंतियों के अनुसार, स्वामी विवेकानंद समुद्र के किनारे तैरकर चट्टान पर पहुँचे, जहाँ उन्होंने तीन दिन और रात तक ध्यान किया एवं ज्ञान प्राप्त किया।
यह घटना उनके वर्ष 1892 के ‘कन्याकुमारी संकल्प’ से संबंधित है।
देवी कन्याकुमारी: यह चट्टान देवी कन्याकुमारी (पार्वती) की कथा से भी जुड़ी हुई है।
ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने इस चट्टान पर भगवान शिव की भक्ति में तप (ध्यान) किया था।
माना यह जाता है कि चट्टान पर एक विशिष्ट क्षेत्र में देवी के पैरों की छाप है।
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