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माउंट एटना में ज्वालामुखी विस्फोट

Lokesh Pal April 16, 2024 04:46 340 0

संदर्भ 

यूरोप के सबसे बड़े ज्वालामुखी माउंट एटना (Mount Etna) में ज्वालामुखी उद्गार हो रहा है। जिससे वातावरण में धुएँ के वलयों (Rings of Smoke) का विस्तार हो गया है। 

संबंधित तथ्य 

  • धुएँ के वलय एक दुर्लभ घटना है, जिसे वैज्ञानिक ज्वालामुखीय भँवर वलय (Volcanic Vortex Rings) के रूप में संदर्भित करते हैं।

माउंट एटना (Mount Etna) के बारे में 

  • भौगोलिक स्थिति: माउंट एटना सिसिली, (इटली) के पूर्वी तट पर अवस्थित है, जो भूमध्य सागर में सबसे बड़ा द्वीप है। इसकी रणनीतिक स्थिति, ज्वालामुखीय राख के कारण उपजाऊ मृदा का निर्माण स्थानीय जलवायु और कृषि पद्धतियों दोनों को प्रभावित करता है। 

  • भौतिक विशेषताएँ: माउंट एटना के शिखर पर पाँच मुख्य क्रेटर हैं, जो इसके लगातार विस्फोटों के प्राथमिक स्रोत हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, माउंट एटना के ढलानों पर 300 से अधिक छिद्रों का निर्माण हुआ है, जो आकार में भिन्न हैं। ये छिद्र शिखर और पार्श्व दोनों उद्गारों में योगदान करते हैं।
  • उद्गार की घटनाएँ: माउंट एटना दुनिया में लगातार सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है। 1600 ईसवी के बाद से इस ज्वालामुखी में कई उद्गार की घटनाएँ हुई हैं, जिनमें शामिल हैं:-
    • समिट उद्गार (Summit Eruptions): उल्लेखनीय समिट उद्गार वर्ष 2006, वर्ष 2007-08 में, दो बार वर्ष 2012 में , वर्ष 2018 में और हाल ही में वर्ष 2021 में हुए थे।
    • पार्श्व उद्गार (Flank Eruptions): वर्ष 2001, 2002-03, 2004-05 और वर्ष 2008-09 में महत्त्वपूर्ण पार्श्व उद्गार हुए।
  • विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site): माउंट एटना को वर्ष 2013 में विश्व धरोहर स्थल नामित किया गया है। यूनेस्को के अनुसार, इस ज्वालामुखी के विस्फोट का इतिहास 5,00,000 वर्ष पुराना है, जिसमें से 2,700 वर्ष तक की इसकी गतिविधि का दस्तावेजीकरण किया गया है।

  • समिट उद्गार (Summit Eruptions): यह केंद्रीय वेंट (Central Vent) पर होने वाली ज्वालामुखीय गतिविधियों को संदर्भित करता है, आमतौर पर ज्वालामुखी के छिद्र पर या उसके निकट। 
  • पार्श्व उद्गार (Flank Eruptions): यह ज्वालामुखी के शिखर के बजाय किनारों या निचले हिस्सों पर होता है। ये उद्गार पार्श्व छिद्रों या दरारों से होता है, जो आम तौर पर मुख्य मैग्मा नली से जुड़े होते हैं लेकिन उनके अलग-अलग रास्ते हो सकते हैं।

ज्वालामुखी (Volcano) के बारे में

  • अमेरिकी भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार: ‘ज्वालामुखी वे छिद्र या वेंट हैं जहाँ से लावा, टेफ्रा (छोटी चट्टानें) और भाप पृथ्वी की सतह पर बाहर आती है।’
  • वे स्थल और समुद्र में पाए जा सकते हैं और इनका निर्माण तब होता है जब इसके परिवेश की तुलना में काफी अधिक गर्म सामग्री पृथ्वी की सतह पर बाहर निकलने लगती है।
  • बाहर निकलने वाली सामग्री तरल, चट्टान (जिसे ‘मैग्मा’ कहा जाता है, जब यह पृथ्वी के अंदर  होता है और ‘लावा’ जब यह पृथ्वी की सतह से बाहर आता है) राख या गैस हो सकती है।
  • नासा के अनुसार, मैग्मा का उद्गार तीन अलग-अलग तरीकों से हो सकता है।
    • विचलन: जब टेक्टॉनिक प्लेटें एक दूसरे से दूर चली जाती हैं तो मैग्मा ऊपर उठकर उस रिक्त स्थान को भर देता है।
    • अभिसरण: जब प्लेटें एक-दूसरे की ओर बढ़ती हैं तो पृथ्वी की भूपर्पटी का भाग इसके आंतरिक भाग में गहराई तक चला जाता है। उच्च ताप और दबाव के कारण परत पिघलती है और मैग्मा के रूप में ऊपर उठती है।
    • हॉटस्पॉट: मैग्मा हॉटस्पॉट यानी पृथ्वी के अंदर के गर्म क्षेत्रों में भी उठता है, जहाँ मैग्मा गर्म हो जाता है। जैसे-जैसे मैग्मा गर्म होता जाता है, यह कम सघन होता जाता है, जिससे इसकी वृद्धि होती है।

ज्वालामुखी के विभिन्न प्रकार

  • ब्रिटिश भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, ज्वालामुखी का प्रकार मैग्मा की चिपचिपाहट, मैग्मा में गैस की मात्रा, मैग्मा की संरचना और मैग्मा के सतह तक पहुँचने के तरीके पर निर्भर करता है।
  • ज्वालामुखी के प्रमुख प्रकार
    • स्ट्रैटो ज्वालामुखी (Stratovolcano)/मिश्रित ज्वालामुखी (Composite Volcanoes): वे खड़े-किनारे (Steep-Sided) वाले ज्वालामुखी हैं, जो ज्वालामुखीय चट्टानों की कई परतों से बने होते हैं, जो आमतौर पर उच्च-चिपचिपाहट वाले लावा, राख और चट्टान के मलबे से बने होते हैं।
      • इस प्रकार के ज्वालामुखी ऊँचे शंक्वाकार पर्वत होते हैं जो वैकल्पिक परतों में लावा प्रवाह से बने होते हैं।
    • सिंडर शंकु (Cinder Cones): सिंडर शंकु गोलाकार या अंडाकार शंकु होते हैं, जो एक ही वेंट से निकले लावा के छोटे टुकड़ों से बने होते हैं।
      • सिंडर शंकु स्कोरिया (Scoria) और पाइरोक्लास्टिक्स (Pyroclastics) के ज्यादातर छोटे टुकड़ों के उद्गार से उत्पन्न होते हैं, जो वेंट के चारों ओर बनते हैं। अधिकांश सिंडर शंकु में केवल एक बार उद्गार होता हैं।
    • शील्ड ज्वालामुखी (Shield Volcano): ये ज्वालामुखी बीच में एक कटोरे या शील्ड के आकार के होते हैं, जिनमें बेसाल्टिक लावा प्रवाह द्वारा बनाई गई लंबी नम्र ढलानें होती हैं। ये कम-चिपचिपाहट वाले लावा के उद्गार से बनते हैं, जो एक वेंट से काफी दूरी तक बह सकता है।
      • शील्ड ज्वालामुखी, महाद्वीपीय व्यवस्था की तुलना में महासागरीय व्यवस्था में अधिक सामान्य हैं। हवाई ज्वालामुखी शृंखला शील्ड शंकुओं की एक शृंखला है और वे आइसलैंड में भी सामान्य हैं।
    • लावा गुंबद (Lava Domes): इनका निर्माण तब होता है जब उद्गार होने वाला लावा बहुत गाढ़ा होता है और इसका प्रवाह अत्यंत मंद होता है। ज्वालामुखी वेंट के पास लावा के इकट्ठा होने पर एक खड़े किनारे वाला टीला बनाता है। इनका निर्माण अत्यधिक चिपचिपे लावा के धीमे उद्गार से हुआ है।

ज्वालामुखी का वैश्विक वितरण

  • विश्व में लगभग 500 ज्वालामुखी हैं। इनमें से अधिकांश ज्वालामुखी तीन भौगोलिक बेल्टों में पाए जाते हैं।

  • सर्कम-पैसफिक बेल्ट (Circum-Pacific Belt): सर्कम-पैसफिक बेल्ट में ज्वालामुखियों की सघनता सबसे अधिक है, इसीलिए इसे ‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ कहा जाता है। यह प्रशांत महासागर को घेरे हुए घोड़े की नाल के आकार का क्षेत्र है।
    • यह वलय दक्षिण अमेरिका के एंडीज पर्वतों से लेकर अलास्का तक और अल्यूशियन द्वीप (Aleutian Islands) से लेकर जापान, फिलीपींस, इंडोनेशिया से लेकर न्यूजीलैंड तक फैला हुआ है।
    • प्रमुख ज्वालामुखी: माउंट सेंट हेलेना (Mount St. Helena), मौना लोआ (Mauna Loa), माउंट रुआपेहु (Mount Ruapehu), माउंट क्राकाटोआ (Mount Krakatoa), माउंट फूजी (Mount Fuji)।
  • मध्य-विश्व पर्वतीय पेटी (Mid-World Mountain Belt): ज्वालामुखियों की संख्या की दृष्टि से मध्य-विश्व पर्वतीय पेटी दूसरे स्थान पर है।
    • यह यूरोप में आल्प्स से एशिया माइनर तक विस्तृत है और हिमालय क्षेत्र से गुजरते हुए सर्कम-पैसफिक बेल्ट में मिल जाती है।
    • प्रमुख ज्वालामुखी: माउंट स्ट्रोमबोली (Mt. Stromboli), माउंट वेसुवियस (Mt. Vesuvius), माउंट काराकोरम (Mt. Karakoram)।
    • भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अंडमान के बैरेन द्वीप में अवस्थित है, जो दक्षिण एशिया का एकमात्र स्पष्ट सक्रिय ज्वालामुखी भी है।
  • अफ्रीकी रिफ्ट वैली बेल्ट (African Rift Valley belt): अफ्रीकी रिफ्ट वैली क्षेत्र तीसरे स्थान पर है। यहाँ अधिकांश ज्वालामुखी विलुप्त हो चुके हैं।

    • माउंट कैमरून (Mt. Cameroon) एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है, जो मध्य पश्चिम अफ्रीका ( Central West Africa) में अवस्थित है।
    • अन्य ज्वालामुखी: माउंट किलिमंजारो (Mount Kilimanjaro), माउंट केन्या (Mount Kenya), माउंट लोंगोनॉट (Mount Longonot)

ज्वालामुखीय भँवर वलय (Volcanic Vortex Rings)

  • ज्वालामुखीय भँवर वलय गैसों के गोलाकार लूप होते हैं, मुख्य रूप से जल वाष्प, जो क्रेटर में एक वेंट के माध्यम से एक रिंग जैसी संरचना में हवा में निष्कासित होते हैं। माउंट एटना के क्रेटर में खुलने वाला वेंट लगभग पूरी तरह से गोलाकार है, इस प्रकार वलय इसके ऊपर जो देखा गया है वह भी गोलाकार है।
  • ये वलय 10 मिनट तक हवा में रह सकते हैं, लेकिन यदि हवा तेज और तूफान की स्थिति हो तो ये जल्दी से विघटित हो जाते हैं।
  • ज्वालामुखीय भँवर वलय का निर्माण
    • तीव्र गैस उत्सर्जन: इसके निर्माण में ज्वालामुखी के क्रेटर में एक संकीर्ण गोलाकार नली के माध्यम से गैस का तेजी से निष्कासन शामिल होता है। यह तीव्र निष्कासन भँवर वलय के विकास के लिए प्रारंभिक ट्रिगर है।
    • दबाव और गति की गतिशीलता: ज्वालामुखीय गैसों को संपीडित किया जाता है और वेंट के माध्यम से बाहर धकेल दिया जाता है, जो एक उच्च दबाव स्पंद का निर्माण करता है, जो गैस को एक गोलाकार भँवर में ढाल देता है।
    • स्थिरीकरण और यात्रा: एक बार बनने के बाद, गैस के भीतर संगठित ऊर्जा वलय की संरचना को बनाए रखती हैं, जिससे इसे वायुमंडल के माध्यम से बरकरार रहने की अनुमति मिलती है, जब तक कि हवा जैसी बाहरी क्षमताओं से बाधित न हो।
  • महत्त्व
    • अनुसंधान मूल्य: ज्वालामुखीय भँवर वलयों का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों को उद्गार की गतिशीलता और प्लम व्यवहार को समझने में मदद मिलती है, जो राख के विस्तार की भविष्यवाणी करने और विमानन जोखिमों का आकलन करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: इन वलयों को समझने से उद्गारों के दौरान निकलने वाली राख और गैसों के पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने में भी मदद मिलती है, जो वायु की गुणवत्ता एवं जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं।
  • ज्वालामुखी में ज्वालामुखीय भँवर वलय देखे गए हैं जैसे- अलास्का में रिडाउट (Redoubt), इक्वाडोर में तुंगुरहुआ (Tungurahua), ग्वाटेमाला में पकाया (Pacaya), आइसलैंड में आईजफजल्लाजोकुल (Eyjafjallajokull) और हेक्ला (Hekla), इटली में स्ट्रॉमबोली (Stromboli), जापान में एसो (Aso) और सकुराजिमा (Sakurajima), वानुअतु में यासुर (Yasur), न्यूजीलैंड में व्हाकारी (Whakaari) आदि। 
  • माउंट एटना ज्वालामुखी भँवर वलयों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। यह पाया गया कि माउंट एटना ने पिछले वर्ष भी प्रत्येक दिन दर्जनों गैसीय वलयों का उत्पादन किया था। 

ज्वालामुखी का प्रभाव

ज्वालामुखी विस्फोट के नकारात्मक परिणाम

  • पर्यावरण एवं जलवायु संबंधी खतरे
    • समतापमंडलीय राख (Stratospheric Ash): ज्वालामुखीय राख 2-5 वर्षों तक समतापमंडल में रह सकती है, जहाँ वह रासायनिक प्रतिक्रियाओं में भाग लेती है, जो ओजोन अणुओं को नष्ट करती हैं।
    • ग्रीनहाउस गैसें: विस्फोटों से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और जल वाष्प जैसी ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करती हैं।
    • वनस्पतियों और जीवों का नुकसान: लावा प्रवाह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर सकता है, पौधों और जानवरों को मार सकता है जो कार्बन सिंक के रूप में काम करते हैं।
  • मानवीय और संरचनात्मक क्षति
    • भौतिक विनाश: ज्वालामुखी लावा शहरों और स्थानीय परिदृश्यों को अपनी चपेट में ले सकता है, जबकि पायरोक्लास्टिक सामग्री जैसे सिंडर और ज्वालामुखी बम घातक परिणाम और चोटों का कारण बन सकते हैं।
    • ज्वालामुखीय भूकंप और कीचड़ (Mudflows): ज्वालामुखीय भूकंप और जल के साथ मिश्रित ज्वालामुखीय राख का कीचड़ प्रवाह आस-पास के क्षेत्रों को तबाह कर सकता है।
    • स्वास्थ्य जोखिम: ज्वावालामुखी उद्गार से श्वसन संबंधी बीमारियाँ, जलन हो सकती है और उद्गार से निकली राख से जल की गुणवत्ता खराब हो सकती है।
  • आर्थिक प्रभाव
    • कृषि में व्यवधान: राख के विस्तार से फसलों को नुकसान हो सकता है और वर्षा की अवधि कम हो सकती है, जिससे कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • सुनामी: तटीय क्षेत्रों में, जल के नीचे ज्वालामुखीय गतिविधियाँ सुनामी को ट्रिगर कर सकती है, जिससे व्यापक क्षति हो सकती है।

ज्वालामुखी विस्फोट के सकारात्मक परिणाम

  • जलवायु संबंधी लाभ
    • सौर विकिरण शीतलन: ज्वालामुखीय कण आने वाले सौर विकिरण को बाधित कर सकते हैं, जिससे पृथ्वी पर अस्थायी शीतलन प्रभाव उत्पन्न हो सकता है, जो महीनों से लेकर वर्षों तक रह सकता है।
  • कृषि और पारिस्थितिक लाभ
    • मिट्टी की उर्वरता: कुछ प्रकार की ज्वालामुखीय राख और लावा के टूटने से मिट्टी पोषक तत्त्वों से समृद्ध होती है, जिससे फसलों और वन विकास के लिए भूमि में वृद्धि होती है।
    • नई भू-आकृतियों का निर्माण: ज्वालामुखी द्वीपों, पठारों और पहाड़ों का निर्माण करते हैं, जो खनिजों और उपजाऊ मिट्टी से समृद्ध हो सकते हैं।
  • आर्थिक और भू-तापीय लाभ
    • खनिज संसाधन: ज्वालामुखी गतिविधियाँ धातु अयस्कों और हीरे सहित मूल्यवान खनिज संसाधनों को सतह पर लाती है।
    • भू-तापीय ऊर्जा: ज्वालामुखीय गतिविधियों वाले क्षेत्रों में अक्सर पृथ्वी की आंतरिक गर्मी का दोहन करके भू-तापीय ऊर्जा उत्पादन की क्षमता होती है।

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