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वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024

Lokesh Pal August 10, 2024 03:00 1551 0

संदर्भ

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया है। इस विधेयक में वर्ष 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव है, जिसमें वक्फ के संचालन एवं विनियमन के तरीके में व्यापक बदलाव का प्रस्ताव है। 

  • इस विधेयक की विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की, जिन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून ‘असंवैधानिक’, ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ और ‘विभाजनकारी’ है।

संयुक्त संसदीय समिति के बारे में

  • यह एक तदर्थ समिति है, जिसे संसद द्वारा किसी विशिष्ट विषय या विधेयक की गहन जाँच करने के लिए स्थापित किया जाता है। 
  • इसमें दोनों सदनों के साथ-साथ सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के सदस्य शामिल होते हैं और इसकी अध्यक्षता लोकसभा के सदस्य (लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्त) द्वारा की जाती है।

वक्फ (Waqf) के बारे में

वक्फ एक निजी संपत्ति है, जो मुसलमानों द्वारा किसी विशिष्ट उद्देश्य (धार्मिक, धर्मार्थ या निजी उद्देश्य के लिए) के लिए दी जाती है।

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत में वक्फ (बंदोबस्ती) की अवधारणा मुस्लिम शासन के आगमन के साथ शुरू की गई थी।
    • मुगल और सल्तनत काल के दौरान, वक्फ प्रबंधन केंद्रीकृत और प्रकृति में धर्मतंत्रात्मक था।
    • भारत में सबसे पहले दर्ज वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के समय का है, जब सुल्तान मुइजुद्दीन सैम गौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गाँव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंप दिया।
    • ब्रिटिश काल से पूर्व भारत में वक्फ का धर्मांतरण और सांस्कृतिक विनियोग से भी गहरा संबंध था।
  • गठन: वक्फ का गठन विलेख या दस्तावेज के माध्यम से अथवा मौखिक रूप से किया जा सकता है, या किसी संपत्ति को वक्फ माना जा सकता है यदि उसका उपयोग लंबे समय तक धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा हो।
    • एक बार जब किसी संपत्ति को वक्फ घोषित कर दिया जाता है तो उसका स्वरूप हमेशा के लिए बदल जाता है और उसे बदला नहीं जा सकता।
  • स्वामित्व: यद्यपि संपत्ति के लाभार्थी अलग-अलग हो सकते हैं, परंतु संपत्ति का स्वामित्व ईश्वर के पास माना जाता है।

भारत में वक्फ का शासन (Governance of Waqf in India)

भारत में वक्फ संपत्तियाँ वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा शासित होती हैं।

  • विधिक समर्थन: भारत में वक्फ के प्रशासन के लिए वर्ष 1913 से ही कानूनी व्यवस्था रही है, जब मुस्लिम वक्फ वैधीकरण अधिनियम (Muslim Waqf Validating Act) लागू हुआ था।
    • मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 और उसके बाद केंद्रीय वक्फ अधिनियम, 1954 लागू किया गया, जिसे अंततः वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।
    • वर्ष 2013 में कानून में संशोधन करके वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण के लिए दो वर्ष तक के कारावास का प्रावधान किया गया तथा वक्फ संपत्ति की बिक्री, उपहार, विनिमय, बंधक या हस्तांतरण पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई गई।
  • सूची का रखरखाव: वक्फ कानून में एक सर्वेक्षण आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है, जो स्थानीय जाँच करके, गवाहों को बुलाकर और सार्वजनिक दस्तावेजों की माँग करके सभी वक्फ संपत्तियों की सूची बनाए रखता है।
  • प्रबंधित करने वाला: वक्फ संपत्ति का प्रबंधन मुतवल्ली (देखभाल करने वाला) द्वारा किया जाता है, जो पर्यवेक्षक के रूप में कार्य करता है। वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन उसी तरह किया जाता है, जैसे भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 (Indian Trusts Act, 1882) के तहत ट्रस्टों के तहत संपत्तियों का प्रबंधन किया जाता है।
  • निर्णय के तहत: वक्फ अधिनियम में कहा गया है कि वक्फ संपत्तियों से संबंधित किसी भी विवाद का फैसला वक्फ न्यायाधिकरण (Waqf Tribunal) द्वारा किया जाएगा।
    • न्यायाधिकरण का गठन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है और इसमें तीन सदस्य होते हैं:
      • अध्यक्ष जो जिला, सत्र या सिविल न्यायाधीश, वर्ग I के पद से नीचे का न हो, राज्य न्यायिक अधिकारी हो।
      • राज्य सिविल सेवाओं का अधिकारी।
      • मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति।
  • अन्य संबद्ध संगठन और सदस्य: इस कानून में वक्फ बोर्ड, वक्फ परिषद तथा राज्यों में वक्फ बोर्डों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEOs) के गठन एवं नियुक्ति का भी प्रावधान है। 
    • वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और सांसद मुस्लिम समुदाय से होने चाहिए।

वक्फ बोर्ड (Waqf Board) के बारे में

वक्फ बोर्ड राज्य सरकार के अधीन एक निकाय है, जो राज्य भर में वक्फ संपत्तियों के संरक्षक के रूप में कार्य करता है।

  • कवरेज: अधिकतर राज्यों में शिया और सुन्नी समुदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड हैं। देश की लगभग सभी प्रमुख मस्जिदें वक्फ संपत्ति हैं और राज्य के वक्फ बोर्ड के अधीन हैं।
  • सदस्यता: वक्फ बोर्ड का नेतृत्व एक अध्यक्ष करता है तथा इसमें राज्य सरकार, मुस्लिम विधायकों और सांसदों, राज्य बार काउंसिल के मुस्लिम सदस्यों, इस्लामी धर्मशास्त्र के मान्यता प्राप्त विद्वानों तथा वक्फ के मुतवल्ली, जिनकी वार्षिक आय 1 लाख रुपये या उससे अधिक हो, द्वारा नामित एक या दो सदस्य होते हैं।
  • शक्तियाँ: कानून के तहत वक्फ बोर्ड को संपत्ति का प्रशासन करने, किसी वक्फ की खोई हुई संपत्ति की वसूली के लिए उपाय करने तथा बिक्री, उपहार, बंधक, विनिमय या पट्टे के माध्यम से वक्फ की अचल संपत्ति के हस्तांतरण को मंजूरी देने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
    • हालाँकि, तब तक मंजूरी नहीं दी जाएगी जब तक कि वक्फ बोर्ड के कम-से-कम दो तिहाई सदस्य ऐसे लेनदेन के पक्ष में मतदान न कर दें।

प्रस्तावित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर मुख्य बिंदु

विधेयक का उद्देश्य वक्फ कानून के मौजूदा ढाँचे में व्यापक बदलाव करना है। प्रस्तावित संशोधन वक्फ को संचालित करने की शक्ति बोर्ड और ट्रिब्यूनल से हटाकर राज्य सरकारों को सौंपता है, जो कि मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय द्वारा संचालित होते हैं।

  • नाम में परिवर्तन: विधेयक का उद्देश्य मूल अधिनियम का नाम वक्फ अधिनियम, 1995 से बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 करना है।
  • ‘वक्फ’ की परिभाषा में परिवर्तन: विधेयक के तहत, केवल वैध संपत्ति मालिक जिन्होंने कम-से-कम पाँच वर्षों तक इस्लाम का पालन किया है, उन्हें औपचारिक कार्यों के निष्पादन के माध्यम से ‘वक्फ’ संपत्ति बनाने का अधिकार है।
    • यह संशोधन ‘उपयोग के आधार पर वक्फ’ की अवधारणा को समाप्त कर देता है, जो किसी संपत्ति को उपयोग के आधार पर वक्फ माना जाने की अनुमति देता है, भले ही मूल विलेख विवादित हो।
    • परंपरागत रूप से, वक्फ संपत्तियों को अक्सर मौखिक रूप से समर्पित किया जाता था, जब तक कि औपचारिक दस्तावेजीकरण मानक अभ्यास नहीं बन गया।
  • नए प्रावधानों को जोड़ना: इसमें अधिनियम में तीन नए प्रावधान शामिल करने का प्रावधान है:
    • धारा 3A: इसमें कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति तब तक वक्फ नहीं बनाएगा जब तक कि वह संपत्ति का वैध मालिक न हो और ऐसी संपत्ति को हस्तांतरित या समर्पित करने में सक्षम न हो।
      • यह प्रावधान इस धारणा को संबोधित करता प्रतीत होता है कि जो भूमि किसी व्यक्ति की नहीं है, उसे वक्फ के रूप में नहीं दिया जाता है।
    • धारा 3C(1): इसमें कहा गया है कि ‘इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई सरकारी संपत्ति, वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी’।
    • धारा 3C(2): यह सरकार को यह निर्णय लेने का अधिकार देता है कि वक्फ के रूप में दी गई संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं।
  • वक्फ संपत्ति की मान्यता रद्द करना: किसी भी धोखाधड़ी वाले वक्फ दावों को रोकने के लिए, विधेयक में प्रावधान किया गया है, ‘इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई किसी भी सरकारी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी।’
    • प्रस्तावित विधेयक, ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ से संबंधित प्रावधानों को हटाकर, वैध वक्फनामा (Waqf Nama) के अभाव में वक्फ संपत्ति को संदिग्ध बना देता है।
  • व्यापक प्रतिनिधित्व: नई केंद्रीय वक्फ परिषदों (Central Waqf Councils) और राज्य वक्फ बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अनिवार्य कर दिया गया है। बोहरा और पिछड़े वर्गों जैसे मुसलमानों के विभिन्न वर्गों का भी प्रतिनिधित्व होगा।
    • यह कानून विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों को वक्फ परिसंपत्तियों से प्राप्त आय का लाभार्थी बनने की अनुमति देता है।
  • जिला कलेक्टरों को सौंपी गई शक्तियाँ: वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण की जिम्मेदारी, जो पहले वर्ष 1995 के अधिनियम के तहत सर्वेक्षण आयुक्तों द्वारा प्रबंधित की जाती थी, अब जिला कलेक्टरों या समकक्ष रैंक के अधिकारियों को सौंपी जाएगी।
    • राजस्व रिकॉर्ड कलेक्टर के पास होता है, इसलिए उसे ही तय करना चाहिए कि कोई जमीन सरकारी है या वक्फ की।
  • केंद्रीकृत पंजीकरण प्रणाली (Centralized Registration System): कुशल कार्यप्रणाली के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाएगा और सभी वक्फ दस्तावेजों की निगरानी मंत्रालय द्वारा की जाएगी। यह प्रणाली वक्फ संपत्ति रिकॉर्ड की सटीकता में सुधार करने के लिए प्रस्तावित है।
    • नए कानून के लागू होने के छह महीने के भीतर वक्फ संपत्तियों के बारे में सभी जानकारी इस पोर्टल पर अपलोड की जानी चाहिए।
    • इसके अलावा, किसी भी नए वक्फ संपत्ति पंजीकरण को विशेष रूप से इस पोर्टल के माध्यम से वक्फ बोर्डों को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • संपत्ति के निर्धारण पर: इस विधेयक में धारा 40 को हटा दिया गया है, जिसके तहत पहले वक्फ न्यायाधिकरणों को यह निर्धारित करने का अधिकार दिया गया था कि कोई संपत्ति वक्फ के रूप में योग्य है या नहीं।
    • यह ऐसे मामलों में जिला कलेक्टर को अंतिम मध्यस्थ नियुक्त करता है।
    • एक बार निर्णय हो जाने पर, कलेक्टर को राजस्व रिकॉर्ड को अद्यतन करना होगा तथा राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
    • विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि विवादित संपत्ति को तब तक वक्फ संपत्ति नहीं माना जा सकता, जब तक कलेक्टर अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर देता। इसका मतलब यह है कि जब तक सरकार इस मुद्दे पर निर्णय नहीं ले लेती, तब तक विवादित भूमि पर वक्फ बोर्ड का नियंत्रण नहीं हो सकता।
  • ‘गैर-मुस्लिमों’ को शामिल करना: विधेयक में प्रमुख वक्फ संस्थाओं (केंद्रीय वक्फ परिषद, राज्य वक्फ बोर्ड और वक्फ न्यायाधिकरणों) में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया।
    • नियुक्ति संबंधी शक्ति: यह विधेयक केंद्र को केंद्रीय वक्फ परिषद में तीन संसद सदस्यों (लोकसभा से दो और राज्यसभा से एक) को नियुक्त करने का अधिकार देता है, बिना यह निर्दिष्ट किए कि वे मुस्लिम होने चाहिए।
    • इसी प्रकार, नए विधेयक के अनुसार, राज्य वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम तथा दो महिलाओं को सदस्य के रूप में शामिल करना होगा।
    • वर्ष 1995 के अधिनियम के अनुसार, परिषद में शामिल किए जाने वाले तीन सांसद मुस्लिम समुदाय से होने चाहिए थे।
  • संरचना: इसे तीन सदस्यीय निकाय से बदलकर दो सदस्यीय निकाय बना दिया गया है। ट्रिब्यूनल में अब एक जिला न्यायाधीश और राज्य सरकार के संयुक्त सचिव स्तर का एक अधिकारी शामिल होगा।
  • विवादों के समाधान की समय सीमा: प्रस्तावित कानून के तहत, न्यायाधिकरणों को विवादों का समाधान छह महीने के भीतर करना होगा, जिसे अतिरिक्त छह महीने के लिए बढ़ाया भी जा सकता है।
  • कठोर वित्तीय निगरानी: विधेयक केंद्र को “किसी भी समय भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षक या उस उद्देश्य के लिए केंद्र सरकार द्वारा नामित किसी अधिकारी द्वारा किसी भी वक्फ का लेखा परीक्षण कराने का निर्देश देने” का अधिकार देता है। 
    • वक्फ बोर्डों को राज्य सरकारों द्वारा गठित पैनल से लेखा परीक्षकों का चयन करते हुए, अपने खातों का वार्षिक लेखा परीक्षण करना आवश्यक है।
    • यदि मुतवल्लियों (कार्यवाहक) द्वारा उचित हिसाब-किताब नहीं रखा गया तो उन पर भी जुर्माना लगाया जाएगा।
  • न्यायिक समीक्षा: प्रस्तावित कानून अदालतों को वक्फ विवादों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है।
    • यह वक्फ न्यायाधिकरणों द्वारा लिए गए निर्णयों की अंतिमता को हटा देता है, जिससे पीड़ित पक्ष सीधे संबंधित उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं। 
    • इसका उद्देश्य न्यायिक निगरानी को बढ़ाना और वक्फ बोर्डों या न्यायाधिकरणों द्वारा मनमाने ढंग से सत्ता का प्रयोग करने की घटनाओं पर अंकुश लगाना है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 की आवश्यकता

यह विधेयक एक ऐसी संस्था में पारदर्शिता लाने के बारे में है, जो पूजा स्थल नहीं है। वक्फ बोर्ड कानून द्वारा बनाया गया है और अगर यह खराब होने लगे तो सरकार को पारदर्शिता लाने का अधिकार है।

  • दक्षता: सच्चर समिति (Sachar Committee) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 4.9 लाख पंजीकृत वक्फ संपत्तियों से 163 करोड़ रुपये की वार्षिक आय होती है और यदि इनका कुशलतापूर्वक प्रबंधन किया जाए तो इससे 12,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की आय होगी।
  • बेहतर बुनियादी ढाँचा: के. रहमान खान की अध्यक्षता वाली संयुक्त समिति ने भी कहा कि वक्फ बोर्ड के पास बुनियादी ढाँचा और मानव शक्ति अपर्याप्त है।
    • इसमें कहा गया है कि उचित दस्तावेजीकरण किया जाना चाहिए, उनका कंप्यूटरीकरण और एक केंद्रीकृत डेटाबेस होना चाहिए तथा वक्फ अधिनियम पर पुनः विचार किया जाना चाहिए।
  • अतिक्रमण का मुकाबला करना: पिछले वर्ष ही वक्फ भूमि पर अतिक्रमण या अवैध हस्तांतरण तथा वर्तमान कानून में कोई समय सीमा कानून न होने के संबंध में 194 शिकायतें प्राप्त हुईं।
  • बेहतर न्याय व्यवस्था: वर्ष 1976 में एक वक्फ जाँच रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि अधिकरण प्रणाली को सरल बनाने के लिए उचित कदम उठाए जाएँ ताकि लंबित मामलों की अधिकता समाप्त हो सके।
    • इसमें यह भी कहा गया कि वक्फ बोर्ड की लेखापरीक्षा और खाते उचित नहीं हैं तथा इनमें सुधार की आवश्यकता है।
  • समग्रता: ‘वक्फ-अल-औलाद’ (Waqf-al-Aulad) प्रावधान का दुरुपयोग कुछ मामलों में महिलाओं और अनाथों को उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित करता है, यह एक अन्य चिंता का विषय है, जिसे विधेयक द्वारा संबोधित करने का प्रयास किया गया है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का महत्त्व 

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 कई बदलाव लाएगा, जिसका उद्देश्य भारत में शासन को बेहतर बनाना और पारदर्शिता बढ़ाना है। वर्ष 1995 के मौजूदा वक्फ अधिनियम में प्रमुख मुद्दों को संबोधित करके, विधेयक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक सुधार लाने और वक्फ परिसंपत्तियों के अधिक समावेशी और कुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।

  • पारदर्शिता में वृद्धि: बिल में रिकॉर्ड को डिजिटल करने और एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाने के प्रावधान शामिल हैं। इससे वक्फ संपत्तियों को ट्रैक करना और उनका प्रबंधन करना आसान हो जाएगा, जिससे धोखाधड़ी और कुप्रबंधन की संभावना कम हो जाएगी।
  • बेहतर शासन: सरकार द्वारा विधेयक में प्रस्तावित प्रशासनिक सुधारों से वक्फ संपत्तियों का अधिक पेशेवर और कुशल प्रबंधन हो सकेगा। इससे इन संसाधनों का धर्मार्थ और धार्मिक उद्देश्यों के लिए बेहतर उपयोग हो सकेगा।
  • वक्फ संपत्तियों का संरक्षण: इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को पट्टे पर देने और अतिक्रमण को रोकने के लिए विनियमित करके उनकी सुरक्षा करना है। इन संपत्तियों के अनधिकृत उपयोग एवं शोषण को रोका जाएगा, यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इनका उपयोग उनके इच्छित धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाए।
  • समावेशन और प्रतिनिधित्व: वक्फ बोर्डों में मुस्लिम महिलाओं और गैर-मुस्लिमों को शामिल करना अधिक समावेशी शासन की दिशा में एक कदम है, जो निर्णय लेने में विविध दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है।
  • कुशल विवाद समाधान: नए विवाद समाधान तंत्र से वक्फ संपत्तियों से संबंधित विवादों को अधिक प्रभावी ढंग से सुलझाने में मदद मिलेगी, जिससे नियमित न्यायालयों पर बोझ कम होगा और त्वरित न्याय सुनिश्चित होगा।
  • संशोधन असंवैधानिक नहीं हैं: विधेयक के प्रावधान अनुच्छेद-25 से अनुच्छेद-30 के तहत संरक्षित किसी भी धार्मिक निकाय की स्वतंत्रता को नहीं छीनते हैं क्योंकि वक्फ बोर्ड एक धार्मिक संप्रदाय है और ब्रह्मचारी सिद्धेश्वर भाई एवं अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1995) के अनुसार, वक्फ बोर्ड अनुच्छेद-25 और अनुच्छेद-26 के दायरे में नहीं आता है।

प्रस्तावित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 की चुनौतियाँ

विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा निम्नलिखित चुनौतियाँ उठाई गई हैं:

  • संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध: विभिन्न आलोचकों का तर्क है कि विधेयक का यह प्रावधान कि गैर-मुस्लिम भी गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हो सकते हैं, अनुच्छेद-26 के मूल्यों के विरुद्ध है जो नैतिकता, स्वास्थ्य और सार्वजनिक व्यवस्था के अधीन धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थाओं को बनाने और बनाए रखने का अधिकार प्रदान करता है।
    • यह विधेयक अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है, जो कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है, क्योंकि यह एक धर्म के विरुद्ध भेदभावपूर्ण है।
    • यह संघवाद के खिलाफ है क्योंकि भूमि राज्य का विषय है।
    • वर्ष 1962 में उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया था कि सरकार को धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  • अत्यधिक कार्यकारी नियंत्रण: अत्यधिक सरकारी नियंत्रण आर्थिक उदारीकरण के सिद्धांतों के विरुद्ध है। सैकड़ों वर्ष पहले वक्फ संपत्तियों में निहित अधिकारों को निष्पक्ष न्यायिक निर्धारण के बिना कार्यकारी अधिकारियों द्वारा नहीं लिया जा सकता है।
  • स्वायत्तता को कमजोर करना: वक्फ निजी तौर पर अर्जित या विरासत में मिली संपत्तियाँ हैं, जो धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पित हैं; सरकार का हस्तक्षेप वक्फ की स्वायत्तता को कमजोर करेगा।
    • वक्फ संपत्ति प्रबंधन का बढ़ता केंद्रीकरण और वक्फ प्रशासन में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने से मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता कमजोर हो सकती है।
  • प्रतिकूल कब्ज़ा: वक्फ संपत्तियों के लिए प्रतिकूल कब्जे की अवधारणा को लागू करने से यह चिंता उत्पन्न होती है कि नौकरशाही निर्णयों या दुरुपयोग के कारण वक्फ भूमि खोई जा सकती है।
  • समुदायों को विभाजित करने की कार्रवाई: वक्फ का इस्तेमाल करने की अवधारणा है। संसद के पास 200 वर्ष पुरानी मस्जिद समेत कई मस्जिदें हैं, जिनके बारे में कोई नहीं जानता। इससे प्रत्येक मस्जिद का अस्तित्व मुश्किल हो जाएगा और समुदायों के बीच विभाजन पैदा हो सकता है तथा हिंसा भड़क सकती है।

निष्कर्ष

वक्फ एक वैधानिक निकाय है और संशोधनों का उद्देश्य इसके कामकाज, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाना है। विधेयक के पारित होने से भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन पर गहरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि उनका उपयोग उनके इच्छित उद्देश्यों के लिए किया जाए और बड़े पैमाने पर समुदाय को लाभ हो।

  • हालाँकि ये संशोधन एक स्वागत योग्य कदम हैं, लेकिन संविधान के अनुच्छेद-25 (सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक) के तहत गारंटीकृत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किए बिना वक्फ संपत्तियों की पर्याप्त सुरक्षा के लिए उपायों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है।

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