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भारत में जल प्रबंधन

Lokesh Pal April 11, 2025 02:51 75 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2025-2026 की अवधि के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (Pradhan Mantri Krishi Sinchayee Yojana-PMKSY) की उप-योजना के रूप में कमांड क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन का आधुनिकीकरण (Modernization of Command Area Development and Water Management- MCADWM) को मंजूरी दी है, जिसका प्रारंभिक कुल परिव्यय 1600 करोड़ रुपये है।

पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (SCADA)

  • पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (Supervisory Control and Data Acquisition-SCADA) एक कंप्यूटर आधारित प्रणाली है, जो महत्वपूर्ण एवं समय-संवेदनशील सामग्रियों या घटनाओं से निपटने वाले उपकरणों की निगरानी एवं नियंत्रण के लिए वास्तविक समय के डेटा को संगृहीत एवं विश्लेषित करती है। 

कमांड क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन का आधुनिकीकरण (M-CADWM) योजना के बारे में

मुख्य उद्देश्य और विशेषताएँ

  • सिंचाई प्रणालियों का आधुनिकीकरण
    • लक्ष्य: सिंचाई जल आपूर्ति अवसंरचना में सुधार करना, ताकि मौजूदा स्रोतों (जैसे- नहरों) से निर्दिष्ट कृषि क्षेत्रों तक पानी पहुँच सके।
    • कार्यक्षेत्र: भूमिगत दबावयुक्त पाइप सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से प्रति खेत 1 हेक्टेयर तक सूक्ष्म सिंचाई और जल आपूर्ति के लिए बैकएंड अवसंरचना के आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना। 
    • प्रौद्योगिकियाँ
      • पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (SCADA): वास्तविक समय की निगरानी एवं नियंत्रण के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
      • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT): कुशल जल लेखांकन एवं प्रबंधन के लिए उपयोग किया जाता है, खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता (WUE) में सुधार करता है।
  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: आधुनिकीकरण से कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होगी, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी। 
  • सिंचाई प्रबंधन स्थानांतरण (Irrigation Management Transfer- IMT)
    • संधारणीयता: इस योजना में जल उपयोगकर्ता समितियों (Water User Societies-WUS) को सिंचाई प्रबंधन स्थानांतरण (IMT) शामिल है, जो सिंचाई परिसंपत्तियों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होंगे।
    • सहायता: WUS को पाँच वर्षों के लिए सहायता प्रदान की जाएगी, जिससे उन्हें किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) या प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (PACSs) जैसी आर्थिक संस्थाओं से जुड़ने में मदद मिलेगी।
  • खेती में युवाओं की भागीदारी: युवाओं को आधुनिक सिंचाई तकनीक अपनाने और खेती में शामिल करने के लिए आकर्षित करना, जिससे देश भर में कृषि पद्धतियों को आधुनिक बनाने में मदद मिलेगी।

कार्यान्वयन रणनीति

  • पायलट चरण (वर्ष 2025-26): विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में परियोजनाओं के लिए राज्यों को वित्तपोषण प्रदान करना।
    • इससे प्राप्त निष्कर्ष कमांड क्षेत्र विकास के लिए राष्ट्रीय योजना को आकार देंगे।
  • पूर्ण पैमाने पर लॉन्च (अप्रैल 2026 से): 16वें वित्त आयोग की अवधि के साथ संरेखित किया गया है।

प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1700 घन मीटर से कम होने को जल संकट (Water Stress) की स्थिति माना जाता है, जबकि प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1000 घन मीटर से कम होने को जल अभाव (Water Scarcity) की स्थिति माना जाता है।

भारत की जल स्थिति

  • जल उपलब्धता और जनसंख्या दबाव: भारत में दुनिया का 4% स्वच्छ जल है, लेकिन यहाँ दुनिया की 18% आबादी है, जो इसे सबसे अधिक जल-तनाव वाले देशों में से एक बनाता है।
    • प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 5,410 m³/वर्ष (1951) से घटकर 1,614 m³/वर्ष (2011) हो गई है और वर्ष 2050 तक इसके घटकर 1,235 m³/वर्ष हो जाने का अनुमान है।
  • वर्षा पैटर्न: भारत में सालाना औसतन 4,000 km³ वर्षा होती है, लेकिन उच्च अस्थायी एवं स्थानिक परिवर्तनशीलता का तात्पर्य है कि केवल ~1,123 km³ ही उपयोग योग्य है।
    • 80-90% वर्षा 4 महीने की मानसून अवधि के दौरान होती है, अक्सर केवल 100 घंटे/वर्ष में, जिसके कारण बाढ़ आती है और जल का कम उपयोग होता है।
  • भूजल पर निर्भरता एवं संकट: 63% सिंचाई जल और 90% ग्रामीण पेयजल भूजल से आता है।
    • भारत दुनिया के 25% भूजल का निष्कर्षण करता है, जो अमेरिका और चीन के संयुक्त जल से भी अधिक है।
    • 60% जिले भूजल के मामले में गंभीर श्रेणी (अत्यधिक दोहन या खराब गुणवत्ता वाले) में हैं।
  • प्रदूषण एवं गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: सतही जल का 70% हिस्सा अनुपचारित सीवेज, औद्योगिक निर्वहन और कृषि अपवाह के कारण प्रदूषित है।
    • वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में से 120वें स्थान पर है।
  • शहरी एवं ग्रामीण जल चुनौतियाँ: रिसाव के कारण शहरी जल की हानि बहुत अधिक है; उदाहरण के लिए, मुंबई में प्रतिदिन 700 मिलियन लीटर जल की हानि होती है।
    • 50% से अधिक आबादी के पास सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है; जलजनित बीमारियों के कारण प्रति वर्ष 2,00,000 मौतें होती हैं।
    • 75% से अधिक घरों में स्वच्छ पेयजल की कमी है और वर्ष 2030 तक 40% भारतीयों के पास पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो सकता है।
  • आर्थिक लागत एवं विकास प्रभाव: नीति आयोग ने चेतावनी दी है कि जल की कमी से वर्ष 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद में 6% की कमी आ सकती है।
    • जल की कमी पहले से ही कृषि उत्पादन, स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका को प्रभावित कर रही है, विशेषकर महिलाओं एवं ग्रामीण गरीबों के बीच।

भारत में जल प्रबंधन

  • जल प्रबंधन से तात्पर्य पेयजल, कृषि, उद्योग, स्वच्छता और पारिस्थितिकी तंत्र के पोषण के लिए जल संसाधनों (सतही और भूजल दोनों) की योजना, विकास, वितरण, विनियमन और संरक्षण से है।

भारत में जल के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • राज्य सूची (प्रविष्टि 17, सूची II): जल मुख्य रूप से राज्य सूची का विषय है, जिसमें जल आपूर्ति, सिंचाई, नहरें, जल निकासी, जल भंडारण और जल शक्ति शामिल हैं।
  • संघ सूची (प्रविष्टि 56, सूची I): संसद अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों को विनियमित और विकसित कर सकती है, यदि यह सार्वजनिक हित में हो।
  • अनुच्छेद-262 (जल विवाद समाधान): संसद को अंतर-राज्यीय नदी विवादों के न्यायनिर्णयन का प्रावधान करने में सक्षम बनाता है और यदि न्यायाधिकरण स्थापित किया जाता है तो सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को रोकता है।
  • अनुच्छेद-21 के तहत जल का अधिकार: जीवन के अधिकार की व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल के अधिकार को शामिल करने के लिए की गई है (उदाहरण के लिए, सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य, 1991)।
  • निर्देशक सिद्धांत एवं मौलिक कर्तव्य
    • अनुच्छेद-48A: राज्य को पर्यावरण, वन और जल निकायों की रक्षा करनी चाहिए।
    • अनुच्छेद 51A(g): प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना नागरिकों का कर्तव्य है।
  • स्थानीय शासन सशक्तीकरण: अनुच्छेद-243G और अनुच्छेद-243W पंचायतों और नगर पालिकाओं को 11वीं और 12वीं अनुसूची के तहत जलापूर्ति, सिंचाई और स्वच्छता का प्रबंधन करने का अधिकार देते हैं।

भारत में जल प्रबंधन के लिए विधायी ढाँचा

  • अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956: अनुच्छेद-262 के तहत अधिनियमित, यह न्यायाधिकरणों (जैसे- कावेरी, कृष्णा) के माध्यम से अंतर-राज्यीय नदियों के जल के उपयोग, वितरण एवं नियंत्रण से संबंधित विवादों के न्यायनिर्णयन का प्रावधान करता है।
  • नदी बोर्ड अधिनियम, 1956: केंद्र सरकार को अंतर-राज्यीय नदी विनियमन और विकास के लिए नदी बोर्ड स्थापित करने का अधिकार देता है, हालाँकि इसे कभी भी क्रियान्वित नहीं किया गया।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986: जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक व्यापक ढाँचा, जिसके तहत जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 भी केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के माध्यम से कार्य करता है।

भारत में जल प्रबंधन के लिए संस्थागत ढाँचा

  • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय (MoJS): नोडल केंद्रीय मंत्रालय (वर्ष 2019 में गठित), जो PMKSY, जल जीवन मिशन और नमामि गंगे जैसी प्रमुख योजनाओं के नीति निर्माण, समन्वय और कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है।
  • केंद्रीय जल आयोग (CWC): MoJS के तहत एक प्रमुख तकनीकी निकाय, जो सतही जल मूल्यांकन, परियोजना नियोजन, बाढ़ पूर्वानुमान और सिंचाई तथा बाँध सुरक्षा पर राज्यों को सलाहकार सहायता के लिए जिम्मेदार है।
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB): भूजल संसाधनों की निगरानी एवं विनियमन करता है, जलभृत मानचित्र तैयार करता है और स्थायी भूजल उपयोग एवं पुनर्भरण पर सलाह देता है।
  • राज्य जल संसाधन/सिंचाई विभाग: केंद्रीय योजनाओं के साथ संरेखित राज्य-स्तरीय जल परियोजनाओं, स्थानीय सिंचाई और अंतर-राज्य जल प्रशासन को लागू एवं प्रबंधित करते हैं।
  • विकेंद्रीकृत संस्थान: पंचायती राज संस्थान (PRI) और शहरी स्थानीय निकाय (ULB) स्थानीय जल आपूर्ति और स्वच्छता का प्रबंधन करते हैं।
    • जल उपयोगकर्ता संघ (Water Users’ Associations-WUA), CADWM जैसी योजनाओं के अंतर्गत जमीनी स्तर पर भागीदारी सिंचाई प्रबंधन (PIM) को बढ़ावा देते हैं।

भारत में जल प्रबंधन के लिए प्रमुख सरकारी पहल

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) (2015): सिंचाई विस्तार, सूक्ष्म सिंचाई और जल संरक्षण के लिए व्यापक योजना।
    • मुख्य घटक: त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP), CADWM, प्रति बूँद अधिक फसल (PDMC) और वाटरशेड विकास।
  • जल जीवन मिशन (JJM) (2019): इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान करना है।
    • जल स्रोत की स्थिरता, सामुदायिक सहभागिता और IoT-आधारित जल गुणवत्ता निगरानी पर ध्यान केंद्रित करना।
  • अटल भूजल योजना (2020): 7 जल-तनावग्रस्त राज्यों में महत्त्वपूर्ण भूजल ब्लॉकों को लक्षित करता है।
    • जलभृत पुनर्भरण, जल बजट और ग्राम पंचायत-आधारित योजना को बढ़ावा देता है।
    • विश्व बैंक द्वारा समर्थित पहल है।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम (2014): इसमें सीवेज उपचार, औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन, जैव विविधता संरक्षण और रिवरफ्रंट विकास शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) द्वारा कार्यान्वित किया गया।
  • जल शक्ति अभियान (2019): वर्षा जल संचयन, चेक डैम, जल पुन: उपयोग और जागरूकता अभियानों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • मानसून और प्री-मानसून चरणों के दौरान पूरे भारत में जल-तनावग्रस्त जिलों को कवर करता है।
  • राष्ट्रीय जल मिशन (NWM): जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत 8 मिशनों में से एक है।
    • मुख्य लक्ष्य
      • जल-उपयोग दक्षता में 20% की वृद्धि करना।
      • बेसिन-स्तरीय एकीकृत जल प्रबंधन को बढ़ावा देना।
      • व्यापक जल डेटा सिस्टम और जागरूकता अभियान (NWM के तहत ‘कैच द रेन’ पहल)।
  • राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM): केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के नेतृत्व में शुरू किया गया है।
    • वैज्ञानिक निष्कर्षण योजना के लिए भूजल जलभृतों का मानचित्रण और प्रबंधन करने के लिए GIS और उपग्रह डेटा का उपयोग करता है।
  • राज्य एवं समुदाय-नेतृत्व वाले मॉडल
    • राजस्थान का मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान
    • हिवरे बाजार (महाराष्ट्र): अनुकरणीय समुदाय संचालित जल संरक्षण कार्यक्रम
    • नीरू-चेट्टू (आंध्र प्रदेश): पारिस्थितिकी एवं सिंचाई को एकीकृत करता है।

भारत में जल प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ

  • भूजल का अत्यधिक दोहन: भारत वैश्विक स्तर पर भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जहाँ लगभग 85% ग्रामीण पेयजल और लगभग 60% सिंचाई इस पर निर्भर है।
    • CGWB के आँकड़ों के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे कई राज्य ‘अत्यधिक दोहन’ की श्रेणी में हैं, जहाँ भूजल का दोहन पुनर्भरण स्तर से अधिक है।
  • मानसून पर अत्यधिक निर्भरता और अनियमित उपलब्धता: भारत के जल संसाधन स्थानिक और लौकिक दोनों ही दृष्टि से असमान रूप से वितरित हैं।
    • वार्षिक वर्षा का 75% से अधिक भाग केवल 4 महीनों (जून-सितंबर) के दौरान प्राप्त होता है, जिसके कारण मानसून के दौरान बाढ़ एवं मानसून के बाद सूखा पड़ता है।
    • लगभग 51 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र सूखाग्रस्त है, जबकि 40 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ग्रस्त है।
  • जल प्रदूषण और घटती गुणवत्ता: भारत में लगभग 70% सतही जल प्रदूषित है, जिसका मुख्य कारण अनुपचारित मलजल, कृषि अपवाह और औद्योगिक अपशिष्ट है।
    • 38,000 MLD सीवेज उत्पन्न होने पर, नदियों में छोड़े जाने से पहले केवल 11,500 MLD का ही उपचार किया जाता है।
    • यमुना, साबरमती और गंगा जैसी नदियाँ BOD और फेकल कोलीफॉर्म के स्तर के मामले में सबसे प्रदूषित हैं।
  • अकुशल कृषि जल उपयोग: भारत के कुल जल उपयोग का लगभग 80% कृषि में खर्च होता है, लेकिन बाढ़ सिंचाई जैसी प्रथाओं के कारण जल उपयोग दक्षता (Water Use Efficiency-WUE) खराब बनी हुई है।
    • प्रति बूँद अधिक फसल जैसी पहलों के बावजूद, सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप/स्प्रिंकलर) को अपनाना अभी भी सीमित है, यह कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 11% ही कवर करता है​।
  • संस्थागत एवं प्रशासनिक चुनौतियाँ: केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों के बीच विभाजित जिम्मेदारियाँ ओवरलैप, देरी और खराब समन्वय की ओर ले जाती हैं।
    • कई एजेंसियाँ पीने के पानी, सिंचाई, स्वच्छता और प्रदूषण नियंत्रण का प्रबंधन करती हैं, अक्सर परस्पर विरोधी अधिदेश के साथ।
    • उदाहरण के लिए, नदी बोर्ड अधिनियम (1956) को कभी भी प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है, और जल विवाद अक्सर दशकों तक चलते रहते हैं (जैसे- कावेरी, कृष्णा)।
  • शहरी जल तनाव और बुनियादी ढाँचे की कमी: दिल्ली और बंगलूरू जैसे शहरों में जल की अधिक कमी है, जबकि प्रति व्यक्ति आवंटन कुछ वैश्विक शहरों की तुलना में अधिक है।
    • शहरी जल का 30% रिसाव, चोरी और खराब रखरखाव के कारण नष्ट हो जाता है।
    • अनियोजित शहरीकरण मौजूदा जल बुनियादी ढाँचे पर और अधिक दबाव डालता है, विशेषकर मलिन बस्तियों और उपनगरीय क्षेत्रों में।

जल प्रबंधन में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • इजरायल (जल उपयोग दक्षता में अग्रणी): इजरायल जल पुनर्चक्रण और सूक्ष्म सिंचाई में वैश्विक नेता के रूप में उभरा है।
    • इसके 85% से अधिक अपशिष्ट जल का उपचार और पुनः उपयोग मुख्य रूप से कृषि में किया जाता है।
    • देश ने ड्रिप सिंचाई प्रणाली में अग्रणी भूमिका निभाई है, जिससे फसल उत्पादन की प्रति इकाई पानी के उपयोग में भारी कमी आई है, जिससे यह “प्रति बूँद अधिक फसल” के लिए एक मॉडल बन गया है।
  • सिंगापुर (एकीकृत शहरी जल प्रबंधन): सिंगापुर ‘फोर नेशनल टैप्स’ (Four National Taps) रणनीति का अभ्यास करता है: स्थानीय जलग्रहण क्षेत्र, आयातित जल, NEWater (पुनर्नवीनीकृत अपशिष्ट जल) और विलवणीकरण।
    • PUB (सार्वजनिक उपयोगिता बोर्ड) के माध्यम से, सिंगापुर ने स्मार्ट मीटरिंग, वास्तविक समय रिसाव नियंत्रण और स्टॉर्म वाटर संचयन को लागू किया है, जिससे प्राकृतिक संसाधनों की कमी के बावजूद 24×7 पीने योग्य जल की आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
  • ऑस्ट्रेलिया (समुदाय-संचालित जल शासन): ऑस्ट्रेलिया ने, विशेष रूप से मिलेनियम सूखे के बाद, मर्रे-डार्लिंग बेसिन योजना के माध्यम से अपने जल शासन में सुधार किया, जिसमें बेसिन-स्तरीय एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) पर जोर दिया गया।
    • इसमें जल बाजार, वैज्ञानिक प्रवाह आकलन और सामुदायिक भागीदारी शामिल है, जो दर्शाता है कि संघीय लोकतंत्र कैसे जल का समान रूप से प्रबंधन कर सकते हैं।
  • नीदरलैंड (जल के साथ जीना दृष्टिकोण): नीदरलैंड ने ‘रूम फॉर द रिवर’  (Room for the River) की दीर्घकालिक रणनीति अपनाई है, जिसके तहत नदियों पर ऊँचे बाँध बनाने के बजाय प्राकृतिक रूप से निर्दिष्ट क्षेत्रों में बाढ़ आने की अनुमति दी जाती है।
    • यह दृष्टिकोण बाढ़ के जोखिम में कमी, पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और शहरी जल संवेदनशीलता को जोड़ता है, जो लचीलापन आधारित शहरी जल प्रबंधन मॉडल को दर्शाता है।
  • दक्षिण अफ्रीका (जल का कानूनी अधिकार): दक्षिण अफ्रीका का संविधान जल तक पहुँच को एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देता है।
    • इसका राष्ट्रीय जल अधिनियम (1998) जल को एक सार्वजनिक ट्रस्ट के रूप में माना जाना चाहिए, जिसका प्रबंधन सभी के लाभ के लिए किया जाना चाहिए।

भारत में जल प्रबंधन के लिए आगे की राह

  • कृषि में जल उपयोग दक्षता (WUE) को बढ़ावा देना: PMKSY-’पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ के तहत सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों (ड्रिप, स्प्रिंकलर) के कवरेज का विस्तार करना।
    • IoT, SCADA (जैसा कि M-CADWM के तहत प्रस्तावित है) का उपयोग करके वास्तविक समय सिंचाई शेड्यूलिंग को लागू करना।
  • भूजल शासन को मजबूत करना: अटल भूजल योजना के समर्थन से राज्य-स्तरीय भूजल कानूनों को लागू करना।
    • पंचायत स्तर पर समुदाय के नेतृत्व में जल बजट को बढ़ावा देना।
    • NAQUIM और ‘कैच द रेन’ अभियान के तहत जलभृत मानचित्रण और पुनर्भरण क्षेत्रों का विस्तार करना।
  • शहरी जल अवसंरचना का आधुनिकीकरण: नगर निगम की आपूर्ति में लगभग 30% रिसाव हानि को कम करने के लिए शहरी पाइपलाइनों को उन्नत करना।
    • 24×7 जल आपूर्ति के लिए ओडिशा के नल से पीने के पानी के मिशन जैसे बड़े मॉडलों को बढ़ावा देना।
    • भूनिर्माण और निर्माण में उपचारित जल के पुनः उपयोग के लिए दोहरी पाइप प्रणाली को बढ़ावा देना।
  • एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन: बहु-राज्य बेसिन प्राधिकरणों की स्थापना के लिए लंबे समय से लंबित नदी बोर्ड अधिनियम (1956) को क्रियान्वित करना।
    • अंतर-राज्य नदी बँटवारे में सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करना (उदाहरण के लिए, कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण एक मॉडल के रूप में)।
    • राष्ट्रीय जल नीति (2012) के अनुसार एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) को अपनाना।
  • जल गुणवत्ता निगरानी और प्रदूषण नियंत्रण में सुधार:  CPCB/SPCB के माध्यम से जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 को सख्ती से लागू करना।
    • सीवेज उपचार के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना, विशेषकर  श्रेणी-I और श्रेणी-II शहरों में।
    • गंगा और यमुना जैसी प्रदूषित नदियों पर वास्तविक समय जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का विस्तार करना।
  • सामुदायिक भागीदारी और जन जागरूकता को बढ़ावा देना: स्थानीय सिंचाई प्रशासन के लिए CADWM के अंतर्गत जल उपयोगकर्ता संघों (WUAs) को सशक्त बनाना।
    • जल साक्षरता बढ़ाने के लिए स्कूल कार्यक्रमों, पंचायत अभियानों और मीडिया का उपयोग करना।
    • सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक क्षेत्रों में पारंपरिक जल संचयन प्रथाओं (जैसे- टैंक, बावड़ियाँ, जोहड़) को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष 

M-CADWM योजना भारत के सिंचाई बुनियादी ढांचे को आधुनिक बनाने, कुशल जल उपयोग को बढ़ावा देने और सतत् जल प्रबंधन के लिए समुदायों को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। भारत जैसे जल-संकटग्रस्त देश में, कृषि लचीलापन, खाद्य सुरक्षा और समावेशी ग्रामीण विकास सुनिश्चित करने के लिए ऐसे एकीकृत प्रयास महत्त्वपूर्ण हैं।

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