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संपत्ति कर

Lokesh Pal December 30, 2024 05:00 37 0

संदर्भ 

हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित एक पैनल चर्चा में फ्राँसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी (Thomas Piketty) ने सुझाव दिया कि भारत में अति-धनवान लोगों पर संपत्ति एवं उत्तराधिकार कर (Wealth and Inheritance Tax) लगाया जाना चाहिए, जिससे स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए धन जुटाया जा सके।

संपत्ति कर (Wealth Tax) 

  • परिभाषा: संपत्ति कर, किसी व्यक्ति या संस्था की निवल संपत्ति पर आरोपित किया जाने वाला कर है, जो आमतौर पर अति-धनवानों को लक्षित करता है।
  • संपत्ति कराधान का इतिहास
    • स्विट्जरलैंड: संपत्ति कर कोई नई अवधारणा नहीं है। इसकी शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी, जब स्विट्जरलैंड के बेसल शहर ने वर्ष 1840 में इस तरह का कर आरोपित किया था।
    • अन्य देश: अन्य देशों ने भी इसका अनुसरण किया, जिसमें वर्ष 1892 में नीदरलैंड और वर्ष 1911 में स्वीडन शामिल हैं।
    • भारत: भारत वर्ष 1957 में इस सूची में शामिल हुआ, जब वित्त मंत्री टी. टी. कृष्णमाचारी ने संपत्ति कर लागू किया।
    • उन्मूलन: हालाँकि, समय के साथ इस कर को लगाने वाले देशों की संख्या कम होती गई है। उदाहरण के लिए, कर लगाने वाले OECD देशों की संख्या वर्ष 1990 में 12 से घटकर वर्ष 2017 में चार रह गई।

भारत में संपत्ति कर

  • कर प्रणाली को तर्कसंगत बनाने के प्रयासों के अंतर्गत, कलडोर समिति (1955) की अनुशंसाओं के बाद वर्ष 1957 में संपत्ति कर अधिनियम लागू किया गया था।
  • इसने वार्षिक रूप से 30 लाख रुपये से अधिक की निवल संपत्ति पर 1% कर लगाया, जो व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (HUF) और कंपनियों पर लागू होता है।
  • उन्मूलन: वर्ष 2015 में कई चुनौतियों के कारण संपत्ति कर को समाप्त कर दिया गया था, जिनमें शामिल हैं:
    • व्यापक मुकदमेबाजी।
    • करदाताओं के लिए उच्च अनुपालन बोझ।
    • महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक लागत।
  • प्रतिस्थापन उपाय: राजस्व हानि की भरपाई के लिए सरकार ने अति-धनवानों पर अधिभार बढ़ाकर वैकल्पिक उपाय प्रस्तुत किए।
    • व्यक्तियों के लिए अधिभार: ₹1 करोड़ से अधिक वार्षिक आय वालों के लिए कर दर 2% से बढ़ाकर 12% की गई।
    • कंपनियों के लिए अधिभार: वार्षिक ₹10 करोड़ से अधिक आय वाली कंपनियों के लिए 2% से बढ़ाकर 12% किया गया।

संपत्ति कर के पक्ष में तर्क

  • असमानता को संबोधित करना: धन के उच्च संकेंद्रण से कई लोगों के लिए अवसर और क्षमताएँ कम हो जाती हैं।
    • जनसंख्या के शीर्ष 0.04% पर कर लगाने से स्वास्थ्य और शिक्षा को वित्तपोषित करने में सहायता मिल सकती है, जिससे अधिक स्वस्थ तथा शिक्षित कार्यबल का निर्माण हो सकता है।
    • उधार या घाटा के बिना विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है।
  • वैश्विक उदाहरण: यू.के. और नॉर्वे जैसे देश मजबूत सार्वजनिक अवसंरचना और सेवाओं के कारण न्यूनतम पूँजी पलायन के साथ संपत्ति कर लगाते हैं।
    • धन पर नजर रखने में पारदर्शिता के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • तकनीकी और संस्थागत व्यवहार्यता: भारत में आर्थिक गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए उन्नत प्रणालियाँ हैं (जैसे, कर डेटाबेस, डिजिटल अवसंरचना)।
    • उचित ढाँचे के साथ, संपत्ति कर को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।
  • विकासात्मक प्रभाव: राजस्व से स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक क्षेत्रों को वित्तपोषित किया जा सकता है।
    • संसाधनों का अधिक न्यायसंगत वितरण बनाने में सहायता करता है।

संपत्ति कर के विरुद्ध तर्क

  • धन मापन में चुनौतियाँ: धन को व्यापक रूप से परिभाषित करना एवं मापना कठिन है।
    • तरल संपत्तियों पर कर लगाने से रियल एस्टेट और सोने जैसी अनुत्पादक संपत्तियों को रखने को प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • पूँजी पलायन: उच्च करों के कारण धनी व्यक्ति और व्यवसाय देश से बाहर जा सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक संभावनाएँ कम हो सकती हैं।
    • नॉर्वे जैसे देशों की तुलना में भारत में मजबूत सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे की कमी पूँजी प्रतिधारण को चुनौतीपूर्ण बनाती है।
  • पुनर्वितरण करों की अक्षमता: करों के माध्यम से पुनर्वितरण देशों के कल्याण में सुधार करने में प्रभावी सिद्ध नहीं हुआ है।
    • आर्थिक विकास, पुनर्वितरण के बजाय, शिशु मृत्यु दर एवं महिला सशक्तीकरण जैसे कल्याण संकेतकों को संबोधित करता है।
  • कार्यान्वयन चुनौतियाँ: कर चोरी धन स्थानांतरण या प्रॉक्सी के माध्यम से आम है।
    • सर्वेक्षण और डेटा संग्रह विधियाँ  विशेषकर शीर्ष स्तर पर प्रायः धन की तार्किक निगरानी करने में विफल रहती हैं।
  • सार्वजनिक वित्त सिद्धांत: राजस्व और व्यय को अलग-अलग किया जाना चाहिए।
    • सार्वजनिक वस्तुओं को व्यक्तिगत आयकर, GST एवं संपत्ति कर जैसे प्रभावी करों के माध्यम से वित्तपोषित किया जाना चाहिए।

संपत्ति कर के विकल्प

  • मौजूदा करों पर ध्यान देना: व्यक्तिगत आयकर, जीएसटी और संपत्ति कर को कम दरों और न्यूनतम विकृतियों के साथ विस्तारित तथा सरल बनाया जाएगा।
  • सामाजिक क्षेत्र की दक्षता में सुधार: आवंटन बढ़ाने से पहले शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में प्रबंधन संकट का समाधान करना।
    • संसाधनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने के लिए परिणाम-आधारित वित्तपोषण का उपयोग करना।
  • संरचनात्मक सुधार: पुनर्वितरण उपायों के बजाय उत्पादक क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • धन और पूँजी को बनाए रखने के लिए मजबूत बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक सेवाओं का निर्माण करना।

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