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घुमंतू एवं विमुक्त जनजातियों के लिए कल्याण बोर्ड

Lokesh Pal September 19, 2025 03:57 22 0

संदर्भ

विमुक्त, घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के विकास एवं कल्याण बोर्ड (Denotified, Nomadic, and Semi-Nomadic Communities- DWBDNC) के सदस्यों ने भारतीय प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सभी चिह्नित समुदायों को वैधानिक समर्थन, वित्तीय शक्तियाँ, स्थायी आयोग का दर्जा एवं मान्यता प्रदान करने की माँग की है।

विमुक्त, घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के विकास एवं कल्याण बोर्ड (DWBDNC) के सदस्यों की माँगें

  • वैधानिक मान्यता: राजपत्रित अधिसूचनाओं के माध्यम से अनुसूचित जाति/विमुक्त जनजाति, अनुसूचित जनजाति/विमुक्त जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग/विमुक्त जनजाति, या सामान्य/विमुक्त जनजाति के रूप में पूरी सूची को कानूनी मान्यता प्रदान करने का आग्रह किया गया।
  • स्थायी आयोग: बोर्ड को वैधानिक शक्तियों सहित एक स्थायी आयोग में परिवर्तित करने का आह्वान किया गया, जैसा कि मूल रूप से ‘इडेट (Idate) कमीशन’ द्वारा अनुशंसित किया गया था।
  • वित्तीय सहायता: केंद्र एवं राज्य स्तर पर समर्पित बजट आवंटन तथा बोर्ड के लिए अधिक वित्तीय अधिकार की माँग की गई है।
  • प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण: उप सचिवों, अवर सचिवों, एक वित्तीय सलाहकार की नियुक्ति तथा संयुक्त सचिव स्तर के समान वेतनमान का अनुरोध किया गया।
  • योजना सुधार: DNT के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु योजना (SEED) में प्रस्तावित संशोधनों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • आवास एवं भूमि खरीद के लिए सहायता।
    • 20 वर्षों से अधिक समय से कच्चे घरों में रहने वाले परिवारों के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र।
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के समान शैक्षिक लाभ।
  • मानकीकृत प्रमाण-पत्र: सामुदायिक प्रमाण-पत्रों को मानकीकृत करने के लिए राष्ट्रव्यापी निर्देश, जो वर्तमान में केवल सात राज्यों में जारी किए जाते हैं।
  • अनुसंधान केंद्र: क्षेत्र-विशिष्ट डेटा की कमी के कारण प्रत्येक राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश में अनुसंधान तथा क्षमता निर्माण केंद्रों की स्थापना का आह्वान किया गया।

विमुक्त, घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिए विकास एवं कल्याण बोर्ड के बारे में

  • कानूनी स्थिति: सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत एक सोसायटी।
  • संविधान: वर्ष 2019 में स्थापित।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली में स्थित।
  • संरचना
    • अध्यक्ष: भारत सरकार द्वारा नियुक्त।
    • सदस्य सचिव/मुख्य कार्यकारी अधिकारी: भारत सरकार के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी।
    • पदेन सदस्य
      • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के संयुक्त सचिव।
      • जनजातीय कार्य मंत्रालय से एक प्रतिनिधि।
      • स्कूल शिक्षा विभाग से एक प्रतिनिधि।
    • मनोनीत सदस्य: इन समुदायों के लिए कार्यरत पाँच प्रतिष्ठित व्यक्ति, जिन्हें भारत सरकार द्वारा नामित किया जाता है।
    • कार्यक्षेत्र
      • इन समुदायों के लिए कल्याणकारी एवं विकास कार्यक्रम तैयार करना तथा उन्हें लागू करना।
      • उन स्थानों की पहचान करना, जहाँ ये समुदाय केंद्रित हैं एवं मौजूदा योजनाओं तक पहुँच में कमियों का आकलन करना।
      • सामुदायिक आवश्यकताओं के अनुसार कार्यक्रमों को अनुकूलित करने के लिए मंत्रालयों एवं कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ सहयोग करना।
      • इन समूहों से संबंधित केंद्रीय एवं राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की योजनाओं की प्रगति की निगरानी तथा मूल्यांकन करना।
      • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सौंपे गए अन्य कार्य करना।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871: ब्रिटिश शासन के दौरान, लगभग 200 समुदायों को “आपराधिक जनजातियाँ” के रूप में अधिसूचित किया गया था एवं उन पर निगरानी एवं  ​​प्रतिबंध लगाया गया था।
  • अधिनियम को रद्द करना (वर्ष 1952): स्वतंत्रता के बाद, आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को निरस्त कर दिया गया एवं इन समूहों को आधिकारिक तौर पर इस सूची से बाहर कर दिया गया।
  • कई समूह मुख्यधारा की जाति श्रेणियों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग) से बाहर रह गए, जिसके कारण वे कल्याणकारी लाभों से वंचित रह गए।

विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों (NTDNTs) की पृष्ठभूमि

  • इडेट (Idate) आयोग की रिपोर्ट (वर्ष 2017): लगभग 1,200 विमुक्त (Denotified- DNT), घुमंतू (Nomadic- NT) एवं अर्द्ध-घुमंतू (Semi-Nomadic- SNT) समुदायों की पहचान की गई है जो पहले से ही SC, ST, या OBC सूचियों में शामिल हैं, तथा 269 समुदायों को अभी तक वर्गीकृत नहीं किया गया है।
  • भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण: इन समुदायों का अध्ययन किया गया एवं उनके वर्गीकरण की सिफारिश की गई, सामाजिक न्याय मंत्रालय ने इन सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं की है।
  • संवेदनशीलता: ये समूह सबसे वंचित समूहों में से हैं, जिन्हें मान्यता, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच का अभाव है।

वर्तमान स्थिति

  • जनसंख्या: भारत में 1,200 समुदायों में लगभग 10 करोड़ लोग (रेनके आयोग, 2008 के अनुसार) अनुमानित हैं।
  • वर्गीकरण: कई विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियाँ SC, ST एवं OBC श्रेणियों में विस्तृत हैं तथा लगभग 269 समुदाय अवर्गीकृत हैं।
  • सुभेद्यता: विश्वसनीय पहचान दस्तावेजों के अभाव में उन्हें गरीबी, भूमिहीनता, राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी एवं सरकारी योजनाओं तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • भेदभाव: “आपराधिक जनजाति” होने की निरंतर धारणा रोजगार, आवास एवं शिक्षा में भेदभाव का कारण बनती है।
  • पहचान दस्तावेज: केवल कुछ ही राज्य सामुदायिक प्रमाण-पत्र जारी करते हैं, जिससे आरक्षण एवं कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • नीतिगत उपेक्षा: आयोगों (इडेट आयोग, रेनके आयोग) के बावजूद, गैर-अधिसूचित, घुमंतू एवं गैर-अधिसूचित जनजातियों के लिए कोई व्यापक राष्ट्रीय नीति नहीं है।
  • आँकड़ों का अभाव: क्षेत्र-विशिष्ट एवं समुदाय-स्तरीय आँकड़ों की कमी साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण में बाधा उत्पन्न करती है।
  • सामाजिक-आर्थिक अभाव: कम साक्षरता, उच्च बाल श्रम, स्थायी आजीविका का अभाव एवं खानाबदोश जीवनशैली के कारण बार-बार विस्थापन।

कल्याणकारी उपाय एवं पहल

  • रेनके आयोग (वर्ष 2008): अत्यधिक वंचितों की समस्या पर प्रकाश डाला एवं लक्षित कल्याणकारी उपायों की सिफारिश की।
  • इडेट आयोग (वर्ष 2017): 1,200 समुदायों की पहचान की एवं गैर-अधिसूचित जनजातियों के लिए एक स्थायी आयोग की स्थापना का आह्वान किया।
  • DWBDNC (2019): केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय के तहत विमुक्त, घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिए विकास तथा कल्याण बोर्ड की स्थापना की गई थी, लेकिन इसे वैधानिक समर्थन का अभाव है।
  • सीड योजना (वर्ष 2022): गैर-अधिसूचित जनजातियों के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए योजना का उद्देश्य आवास, आजीविका, शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी हस्तक्षेप करना है।

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