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दावानल और परिवर्तित कार्बन संतुलन

Lokesh Pal April 11, 2025 03:05 26 0

संदर्भ

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित शोध में पाया गया कि आर्कटिक बोरियल जोन (Arctic Boreal Zone), जो कभी एक महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक था, अब एक बड़े परिवर्तन का अनुभव कर रहा है तथा इस क्षेत्र का 30% से अधिक हिस्सा कार्बन स्रोत में बदल रहा है।

कार्बन सिंक क्या है?

  • कार्बन सिंक एक प्राकृतिक या कृत्रिम जलाशय है, जो वायुमंडल से जितना कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जित करता है, उससे ज्यादा अवशोषित करता है और संगृहीत करता है।
  • कार्य: यह ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
  • उदाहरण: वन, महासागर और मिट्टी प्रमुख प्राकृतिक कार्बन सिंक हैं, जबकि कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) जैसी तकनीकें कृत्रिम सिंक का प्रतिनिधित्व करती हैं।

दावानल (Wildfires) के बारे में

  • दावानल बड़ी, अनियंत्रित आग होती है, जो वनस्पतियों, जंगलों और घास के मैदानों में तेजी से फैलती है, जो अक्सर शुष्क परिस्थितियों, हवा और उच्च तापमान के कारण प्रज्वलित होती है।
  • दावानल वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की बड़ी मात्रा उत्सर्जित करती है, पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती है, आवासों को नष्ट करती है, और एक खतरनाक प्रतिक्रिया समूह में योगदान करती है जो ग्लोबल वार्मिंग को तेज करती है।

दावानल की वैश्विक प्रवृत्ति

  • जलवायु की बिगड़ती परिस्थितियों के कारण दुनिया भर में दावानल की घटनाएँ लगातार और तीव्र होती जा रही हैं।
  • हाल ही में दावानल की घटनाएँ
    • कैलिफोर्निया में ईटन और पैलिसेड्स की आग ने 14,000 से अधिक संरचनाओं को नष्ट कर दिया और लगभग 16,000 हेक्टेयर भूमि को जला दिया।
    • फरवरी 2025 में, जापान के ओफुनाटो शहर के पास एक बड़ी वनाग्नि ने लगभग 2,900 हेक्टेयर को जला दिया, लगभग 210 इमारतों को नुकसान पहुँचाया और 4,200 से अधिक निवासियों को विस्थापित कर दिया।
  • कोपरनिकस एयर मॉनिटरिंग सर्विस (CAMS) के अनुसार, जनवरी 2025 में दावानल से वैश्विक स्तर पर 8,00,000 टन कार्बन उत्सर्जित हुआ, जो एक दशक पहले की इसी अवधि की तुलना में लगभग चार गुना अधिक है।
  • नासा के टेरा और एक्वा उपग्रहों के डेटा से पता चला है कि वर्ष 2025 की शुरुआत में आग से निकलने वाली ऊष्मा वर्ष 2003-2024 के औसत से कई गुना अधिक होगी।
  • भारत में, उत्तराखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वर्ष 2024 में सबसे अधिक दावानल दर्ज की गई, हालाँकि देश भर में आग लगने वाले हॉटस्पॉट की संख्या में थोड़ी कमी आई है।

बढ़ती दावानल घटनाओं में योगदान देने वाले कारक

  • तापमान में वृद्धि: तापमान में वृद्धि के कारण वातावरण और वनस्पतियाँ शुष्क हो रही है, जिससे उनमें आग लगने की संभावना बढ़ रही है।
    • भारत के उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और मध्य क्षेत्रों में भूमि का तापमान प्रति दशक 0.1º–0.4ºC बढ़ रहा है, जिससे वनाग्नि का जोखिम बढ़ रहा है।
  • हीटवेव पैटर्न में बदलाव: हीटवेव पहले आ रही हैं, धीमी गति से चल रही हैं और लंबे समय तक चल रही हैं, जिससे वनाग्नि के लिए आदर्श स्थिति बन रही है।
    • उदाहरण के लिए; औसतन, हर दशक में हीट वेव लगभग 8 किमी./दिन धीमी हो गई हैं और लगभग चार दिन तक चली हैं, इसका प्रभाव विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया में अत्यधिक है।
    • हीत वेव की आवृत्ति में भी वृद्धि हुई है, वर्ष 1979-1983 में औसतन लगभग 75 घटनाओं से वर्ष 2016-2020 में लगभग 98 तक।
  • सूखे की अवधि: जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक सूखे की अवधि मृदा एवं वनस्पतियों को सुखा रही है, जिससे जंगल अधिक ज्वलनशील हो रहे हैं।
  • वनों में लगने वाली आग से कार्बन उत्सर्जन: अकेले भारत में वनों में लगने वाली आग से प्रत्येक वर्ष लगभग 69 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और भी बढ़ जाती है।

आर्कटिक बोरियल जोन (Arctic Boreal Zone) के बारे में 

  • आर्कटिक सर्कल के साथ स्थित आर्कटिक बोरियल जोन, विशाल उत्तरी पारिस्थितिकी तंत्र है, जो 26 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसमें शामिल हैं:-
    • टुंड्रा (वृक्षविहीन क्षेत्र)
    • बोरियल वन (टैगा)
    • आर्द्रभूमि
  • यह मुख्य रूप से अलास्का, कनाडा, उत्तरी यूरोप और साइबेरिया जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • आर्कटिक बोरियल जोन के स्थानीय समुदाय।
    • इनुइट (Inuit): आर्कटिक रूस से लेकर कनाडा और ग्रीनलैंड तक रहने वाले सबसे व्यापक आर्कटिक तटीय लोग। इनुइट भाषा इनुक्टुट में ‘इनुइट’ (Inuit) शब्द का अर्थ ‘द पीपुल’ (The People) होता है।
    • सामी (Saami): फिनलैंड, स्वीडन, नॉर्वे और उत्तर-पश्चिमी रूस के परिध्रुवीय क्षेत्रों में रहते हैं।
    • एल्यूट (Aleut): इसे अनंगन (Unangan) के नाम से भी जाना जाता है, यह अलास्का में रहता है।
    • युपिक (Yupik): इसे युपिट (Yupiit) के नाम से भी जाना जाता है, यह अलास्का में रहता है।

जलवायु विशेषताएँ

  • इस क्षेत्र में लंबी, कठोर सर्दियाँ और छोटी गर्मियाँ के साथ अत्यधिक ठंड होती है।
  • पर्माफ्रॉस्ट (जमी हुई जमीन) एक परिभाषित विशेषता है, जो न्यूनतम दो लगातार वर्षों तक 0°C से नीचे रहती है।
  • वनस्पतियाँ वृद्धि के लिए सीमित सूर्य के प्रकाश के साथ छोटा बढ़ता मौसम, विशेष रूप से टुंड्रा क्षेत्रों में।
  • इस क्षेत्र में शीत-अनुकूलित प्रजातियाँ जैसे- हिरन, आर्कटिक लोमड़ी और विभिन्न प्रवासी पक्षी प्रजातियाँ निवास करती हैं।
  • कार्बन सिंक के रूप में भूमिका: ऐतिहासिक रूप से, आर्कटिक बोरियल जोन ने कार्बन सिंक के रूप में काम किया है, जिसका अर्थ है कि इसने जितना कार्बन उत्सर्जित किया, उससे अधिक अवशोषित किया।
    • यह मिट्टी के कार्बनिक कार्बन भंडार के रूप में जाना जाता है।

  • यह भूमिका निम्नलिखित कारणों से थी:
    • वनों और आर्द्रभूमि के विशाल क्षेत्रों की उपस्थिति, जो वनस्पति और मिट्टी के माध्यम से कार्बन को सोख लेती है।
    • पर्माफ्रॉस्ट, जो कार्बन और कार्बनिक पदार्थों की विशाल मात्रा को रोक लेता है।

आर्कटिक बोरियल जोन (ABZ) का परिवर्तन

  • स्रोत पर गमन: हालाँकि आर्कटिक बोरियल जोन (ABZ) ने वर्ष 2001 से वर्ष 2020 तक कार्बन को अवशोषित किया, जोन का एक-तिहाई हिस्सा वर्ष 2020 से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहा है।
    • अलास्का में ABZ से नए पाए गए कार्बन उत्सर्जन का 44% हिस्सा है।
    • उत्तरी यूरोप और साइबेरिया इस क्षेत्र के कार्बन उत्सर्जन में क्रमशः 25% और 13% योगदान करते हैं।
  • परिवर्तन में योगदान देने वाले कारक
    • ग्लोबल वार्मिंग के कारण टुंड्रा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड निकल रही है, क्योंकि मिट्टी गर्म हो रही है और कार्बनिक पदार्थ विघटित हो रहे हैं।
    • आर्कटिक में बढ़ती वनाग्नि की गतिविधियाँ प्राकृतिक कार्बन भंडारों को जला रही हैं, जिससे और भी अधिक कार्बन निकल रहा है और गर्मी बढ़ रही है।
  • फीडबैक लूप: वनाग्नि से कार्बन निकलता है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है, जिससे गर्म, शुष्क परिस्थितियाँ बनती हैं, जिससे और अधिक जंगल की आग लगती है, जिससे विनाशकारी फीडबैक लूप बनता है।
    • वर्ष 2003 में पूर्वी साइबेरिया की आग और वर्ष 2012 में टिमिन्स की जंगली आग जैसी घटनाओं ने भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जित करके इस परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • NOAA द्वारा जारी वर्ष 2024 आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड इन निष्कर्षों का समर्थन करता है, जिसमें कहा गया है कि आर्कटिक टुंड्रा अब कार्बन उत्सर्जन का शुद्ध स्रोत है।

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