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भारत की आर्थिक वृद्धि में महिलाओं की भूमिका

Lokesh Pal August 28, 2025 03:00 24 0

संदर्भ 

महिलाएँ भारत के आर्थिक परिवर्तन की आधारशिला बनकर उभर रही हैं। कार्यबल में उनकी बढ़ती भागीदारी, उद्यमशीलता और नेतृत्व भूमिकाएँ, वर्ष 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य की दिशा में देश की प्रगति को आकार दे रही हैं।

महिलाओं की श्रम भागीदारी में हालिया रुझान

  • कार्यबल में भागीदारी: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (2017-2024) के अनुसार, महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी दर लगभग दोगुनी होकर 22 प्रतिशत से 40.3 प्रतिशत हो गई; बेरोजगारी दर 5.6 प्रतिशत से घटकर 3.2 प्रतिशत हो गई।
  • ग्रामीण और शहरी गतिशीलता: ग्रामीण महिलाओं के रोजगार में 96 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 43 प्रतिशत थी।
  • शिक्षा और रोजगार क्षमता: स्नातक महिलाओं की रोजगार क्षमता 42 प्रतिशत (वर्ष 2013) से बढ़कर 47.53 प्रतिशत (वर्ष 2024) हो गई; स्नातकोत्तर महिलाओं के लिए यह 34.5 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई।
  • कार्यबल का औपचारिकीकरण: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के वेतन के माध्यम से 1.56 करोड़ से अधिक महिलाओं ने औपचारिक क्षेत्र में प्रवेश किया; 16.69 करोड़ महिलाओं ने ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकरण कराया।
    • केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा अगस्त 2021 में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने के लिए ई-श्रम पोर्टल लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, कल्याणकारी लाभों और नीतिगत सहायता तक उनकी पहुँच में सुधार करना है।

उद्यमी और रोजगार सृजनकर्ता के रूप में महिलाएँ

  • उद्यमिता का विस्तार: महिलाओं के स्वामित्व वाले प्रतिष्ठान 17.4 प्रतिशत (वर्ष 2010-11) से बढ़कर 26.2 प्रतिशत (वर्ष 2023-24) हो गए; महिलाओं के नेतृत्व वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की संख्या दोगुनी होकर 1.92 करोड़ हो गई।
  • रोजगार सृजन: महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों ने 89 लाख रोजगार सृजित किए (वित्त वर्ष 2021-23); ‘बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप’ का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक 150-170 मिलियन नए रोजगार सृजित होंगे।
  • स्व-रोजगार में वृद्धि: महिला स्व-रोजगार का हिस्सा 51.9 प्रतिशत (वर्ष 2017-18) से बढ़कर 67.4 प्रतिशत (वर्ष 2023-24) हो गया।
  • स्टार्ट-अप इकोसिस्टम: उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग द्वारा पंजीकृत लगभग 50 प्रतिशत स्टार्ट-अप में एक महिला निदेशक है; फाल्गुनी नायर (नायका) और किरण मजूमदार शॉ (बायोकॉन) जैसी महिलाएँ वैश्विक स्तर पर सफलता का प्रदर्शन कर रही हैं।

PWOnlyIAS विशेष

रोजगार सृजनकर्ता के रूप में उद्यमी

  • परिभाषा: उद्यमी वह व्यक्ति होता है, जो अवसरों की पहचान करता है, संसाधन जुटाता है और उद्यम स्थापित करने के लिए जोखिम उठाता है। वे न केवल स्व-नियोजित होते हैं, बल्कि नवाचार, धन सृजन और रोजगार सृजन के प्रेरक के रूप में भी कार्य करते हैं।
  • सांख्यिकी – वैश्विक और भारत
    • वैश्विक: ‘ग्लोबल एंटरप्रेन्योरशिप मॉनिटर’ (2024) का अनुमान है कि उद्यमिता वैश्विक रोजगार का लगभग 50 प्रतिशत और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में नए रोजगार सृजन का 70 प्रतिशत है।
    • भारत: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र लगभग एक करोड़ दस लाख लोगों को रोजगार देता है, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30 प्रतिशत और निर्यात में 48 प्रतिशत का योगदान देता है।
      • भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है, जहाँ वर्ष 2025 तक एक लाख पच्चीस हजार से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न करेंगे।

रोजगार सृजनकर्ता के रूप में उद्यमियों का महत्त्व

  • आर्थिक वृद्धि के इंजन: विश्व बैंक (2023) के अनुसार, जिन देशों में उद्यमिता की दर अधिक है, वहाँ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि अधिक होती है और नवाचार को तेजी से अपनाया जाता है।
    • भारत में, स्टार्ट-अप्स ने वर्ष 2025 में 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के मूल्यांकन में योगदान दिया, जिससे सीधे तौर पर आर्थिक गतिशीलता में वृद्धि हुई।
  • रोजगार सृजन: वैश्विक स्तर पर, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सत्तर प्रतिशत नौकरियाँ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) द्वारा प्रदान की जाती हैं (विश्व बैंक)।
    • भारत में, MSMEs लगभग एक करोड़ दस लाख लोगों को रोजगार देते हैं, जो कृषि के बाद दूसरे स्थान पर है।
    • भारत में स्टार्ट-अप्स ने वर्ष 2023 तक नौ लाख से अधिक प्रत्यक्ष रोजगार सृजित किए (उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग के अनुसार), साथ ही आपूर्ति शृंखलाओं में महत्त्वपूर्ण अप्रत्यक्ष रोजगार भी सृजित किए।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाना: भारत प्रत्येक वर्ष कार्यबल में लगभग 12 मिलियन लोगों को जोड़ता है (अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, 2024)।
    • उद्यमिता के बिना, औपचारिक क्षेत्र में नौकरियाँ अपर्याप्त रहती हैं। इस प्रकार, उद्यमिता रोजगार के अंतराल को पाटने में मदद करती है।
  • समावेशी विकास को बढ़ावा देना: भारत में केवल 14 प्रतिशत उद्यमी महिलाएँ हैं, अर्थात् लगभग 6.3 मिलियन महिला-स्वामित्व वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) हैं, फिर भी वे एक करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं (नीति आयोग, 2022)।
    • संयुक्त राष्ट्र महिला के अनुसार, महिलाएँ अपनी आय का लगभग 90 प्रतिशत परिवारों और समुदायों में पुनर्निवेश करती हैं, जिससे सामाजिक प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
  • सरकारी सहायता पारिस्थितिकी तंत्र: सूक्ष्म इकाई विकास और पुनर्वित्त एजेंसी (Micro Units Development and Refinance Agency- MUDRA) योजना ने वर्ष 2015 से अब तक 40 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को ऋण स्वीकृत किए हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएँ हैं।
    • भारत का स्टार्ट-अप इंडिया पारिस्थितिकी तंत्र वर्ष 2025 तक एक लाख पच्चीस हजार से अधिक मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप तक बढ़ गया है, जिससे यह वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप बन गया है।
  • कार्य परिवर्तन का भविष्य: नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज के अनुसार, डिजिटल अर्थव्यवस्था से वर्ष 2030 तक 60 से 65 मिलियन रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, 2023 के अनुसार, नवीकरणीय ऊर्जा और स्थिरता-संबंधी क्षेत्रों से हरित नौकरियाँ वर्ष 2030 तक 30 लाख नए रोजगार उत्पन्न कर सकती हैं।
    • उद्यमी इन नए युग के रोजगार अवसरों के प्रमुख संचालक हैं।

महिलाओं के वित्तीय समावेशन और स्वतंत्रता के लिए सरकारी पहल

  • प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY, 2014): ओवरड्राफ्ट सुविधाओं और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण तक पहुँच के साथ सार्वभौमिक बैंक खाते प्रदान करती है, जिससे लाखों महिलाएँ औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल हो रही हैं।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY, 2015): शिशु, किशोर और तरुण श्रेणियों के अंतर्गत सूक्ष्म वित्त प्रदान करती है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में, 4.24 करोड़ महिलाओं को 2.22 लाख करोड़ रुपये के ऋण प्राप्त हुए, जिससे लघु-स्तरीय उद्यमिता को बढ़ावा मिला।
  • स्टैंड-अप इंडिया योजना (2016): महिलाओं और वंचित उद्यमियों को 10 लाख से एक करोड़ रुपये तक के ऋण बिना किसी जमानत के प्रदान करती है, जिससे व्यवसाय स्वामित्व को बढ़ावा मिलता है।
  • महिला ई-हाट (2016): एक ऑनलाइन बाजार, जो महिला उद्यमियों को सीधे खरीदारों से जोड़ता है, जिससे बाजार में उनकी दृश्यता बढ़ती है।
  • स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (SVEP, 2016): अक्टूबर 2024 तक 3.13 लाख ग्रामीण उद्यमों को सहायता प्रदान की गई, जिससे गाँवों में स्वरोजगार को बढ़ावा मिला।
  • महिला उद्यमिता मंच (2018, नीति आयोग): महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों को मार्गदर्शन, ऋण पहुँच और व्यावसायिक सहायता प्रदान करता है।
  • प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि, 2020): स्ट्रीट वेंडरों को सूक्ष्म ऋण प्रदान करता है। दिसंबर 2024 तक, 30.6 लाख महिला विक्रेताओं को 5,939.7 करोड़ रुपये की सहायता प्राप्त हुई।
  • उद्यम पंजीकरण (2020): व्यवसायों के औपचारिकीकरण को बढ़ावा देता है, जिससे अब चालीस प्रतिशत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का स्वामित्व महिलाओं के पास है।
  • प्रमुख योजनाएँ (वर्ष 2023 से आगे)
    • लखपति दीदी योजना: दो करोड़ ग्रामीण महिलाओं को एक लाख रुपये की वार्षिक आय प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
    • नमो ड्रोन दीदी: कृषि ड्रोन तकनीक में प्रशिक्षण प्रदान करती है, जिससे महिला किसानों का डिजिटल और तकनीकी सशक्तीकरण होता है।

वैश्विक पहल और सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • बांग्लादेश – ग्रामीण बैंक मॉडल (Grameen Bank Model): महिलाओं को दिए गए सूक्ष्म ऋण ने ग्रामीण उद्यमिता में क्रांति ला दी।
  • रवांडा – लैंगिक संवेदनशील बजट (Gender-Responsive Budgeting): सभी नीतियों का लैंगिक प्रभाव के आधार पर परीक्षण किया गया; जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं की श्रम भागीदारी में वृद्धि हुई।
  • OECD महिला उद्यमिता मंच: देश-व्यापी परामर्श, नेटवर्किंग और नवाचार समर्थन करता है।
  • विश्व बैंक महिला उद्यमी वित्त पहल (World Bank Women Entrepreneurs Finance Initiative- We-Fi): महिलाओं के नेतृत्व वाले छोटे व्यवसायों के लिए सार्वजनिक-निजी पूँजी जुटाती है।
  • संयुक्त राष्ट्र महिला सशक्तीकरण सिद्धांत (United Nations Women’s Empowerment Principles- UNWEPs): कार्यस्थल पर लैंगिक समानता मानकों को कॉरपोरेट द्वारा अपनाना।

महिलाओं की भागीदारी का महत्त्व

  • आर्थिक विकास और राष्ट्रीय विकास: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और उत्पादकता को प्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देता है, जो वर्ष 2047 में विकसित भारत (Viksit Bharat@2047) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • लगभग आधी आबादी की अप्रयुक्त प्रतिभा और कौशल को सक्रिय करके भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने में मदद करता है।
    • मैकिन्से ग्लोबल इंस्टिट्यूट (2015) ने अनुमान लगाया है कि कार्यबल भागीदारी में लैंगिक समानता के साथ भारत वर्ष 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद में 770 बिलियन डॉलर जोड़ सकता है।
  • सामाजिक परिवर्तन और समानता: बेहतर निर्णय लेने, उच्च आय सुरक्षा और बेहतर पारिवारिक लचीलेपन के माध्यम से घरेलू कल्याण को बढ़ाता है।
    • रोजगार, वेतन और संपत्ति के स्वामित्व में लैंगिक असमानताओं को कम करता है।
    • शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण में अंतर-पीढ़ीगत लाभ उत्पन्न करता है, जिससे भावी पीढ़ियों को सशक्त बनाया जाता है।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताएँ और अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा: सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 5 – लैंगिक समानता और SDG 8 – सभ्य कार्य और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाता है।
    • बीजिंग घोषणा-पत्र और कार्य मंच (Beijing Declaration and Platform for Action) (1995), जो महिला सशक्तीकरण के लिए एक वैश्विक एजेंडा है, के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है।
    • G20, BRICS, SCO और ग्लोबल साउथ डायलॉग्स जैसे बहुपक्षीय मंचों पर लैंगिक-समावेशी विकास के अग्रणी के रूप में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करता है।
  • शासन और समावेशी नीति-निर्माण: महिलाओं की अधिक भागीदारी से अधिक समावेशी और कल्याण-उन्मुख नीतियाँ निर्मित होती हैं, विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में।
    • पंचायती राज संस्थाओं (Panchayati Raj Institutions) में महिला नेताओं ने जल, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है, जो प्रतिनिधित्व के प्रभाव को सिद्ध करता है।
  • कार्यबल और श्रम बाजार की गतिशीलता: महिला श्रम बल की भागीदारी का विस्तार भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में कौशल की कमी को दूर करता है।
    • कार्यस्थलों में विविधता लाने में मदद करता है, जिससे अधिक नवाचार, बेहतर कॉरपोरेट प्रशासन और बेहतर उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है।
    • पुरुष-प्रधान क्षेत्रों पर निर्भरता कम करता है, अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन को संतुलित करता है।
  • सांस्कृतिक और नैतिक आयाम: महिलाओं के लिए सम्मान, स्वायत्तता और चयन की स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है, जिससे विकास अधिक मानवीय और न्यायपूर्ण बनता है।
    • पितृसत्तात्मक मानदंडों और रूढ़ियों को चुनौती देता है, समाज को अधिक समानता की ओर ले जाता है।
    • महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करना संविधान की प्रस्तावना और मौलिक अधिकारों के अंतर्गत न्याय, समानता और बंधुत्व के संवैधानिक मूल्यों को दर्शाता है।

PWOnlyIAS विशेष

समग्र विकास में महिलाओं की भूमिका

  • आर्थिक वृद्धि के प्रेरक: महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यम, रोजगार सृजन करते हैं, आर्थिक आधार में विविधता लाते हैं और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों तथा स्टार्ट-अप्स को मजबूत बनाते हैं।
  • सामाजिक परिवर्तन की वाहक: महिलाएँ परिवारों में पुनर्निवेश करती हैं, स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण में सुधार लाती हैं और गरीबी के चक्र को तोड़ती हैं।
  • समावेशी शासन: पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों में महिलाएँ पारदर्शिता, जवाबदेही और अंतिम लक्ष्यों तक पहुँच सुनिश्चित करती हैं।
  • मूलभूत स्तर पर सशक्तीकरण: स्वयं सहायता समूह वित्तीय समावेशन, सूक्ष्म उद्यमिता और ग्रामीण आजीविका परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं।
  • समानता और न्याय: महिला नेता लैंगिक-संवेदनशील नीति-निर्माण को बढ़ावा देती हैं और हाशिए पर स्थित समुदायों के मुद्दों को बढ़ावा देती हैं।
  • स्थायित्व के वाहक: महिलाएँ जलवायु लचीलापन, सतत् कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाती हैं, जो सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 5 (लैंगिक समानता) और 13 (जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप है।
  • सांस्कृतिक संचरण: परंपराओं और मूल्यों की संरक्षक के रूप में, महिलाएँ संतुलित विकास के लिए सामंजस्य, करुणा और सहयोग को बढ़ावा देती हैं।

चुनौती

  • सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ: पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण गतिशीलता और नेतृत्व के अवसरों को सीमित करते हैं।
    • अनुपातहीन अवैतनिक देखभाल कार्य महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को सीमित करता है।
  • संरचनात्मक और कार्यस्थल संबंधी मुद्दे: अनौपचारिक, कम वेतन वाली, असुरक्षित नौकरियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अधिक है।
    • सुरक्षित परिवहन, स्वच्छता, बाल देखभाल और कार्यस्थल सुरक्षा का अभाव है।
  • वित्तीय और कौशल अंतराल: महिलाओं को संस्थागत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम ऋण का 7 प्रतिशत से भी कम प्राप्त होता है।

आगे की राह

  • वित्तीय सशक्तीकरण: लैंगिक-संवेदनशील उद्यम निधि, एंजेल नेटवर्क और ऋण गारंटी की स्थापना करना।
    • महिलाओं के लिए विशेष रूप से सूक्ष्म वित्त और सहकारी बैंकिंग का विस्तार करना।
  • कौशल विकास: महिलाओं को कृत्रिम बुद्धिमत्ता, वित्तीय प्रौद्योगिकी, ई-कॉमर्स और हरित प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षित करना।
    • व्यावसायिक और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना।
  • डिजिटल सशक्तीकरण: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल भुगतान (UPI), ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन कौशल तक महिलाओं की पहुँच को मजबूत करना, ताकि डिजिटल अर्थव्यवस्था और भविष्य के लिए तैयार रोजगारोन्मुख में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण: स्टार्ट-अप और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों में लैंगिक ऑडिट सुनिश्चित करना।
    • महिला-केंद्रित मार्गदर्शन के साथ इनक्यूबेटर और एक्सेलरेटर को मजबूत करना।
  • सामाजिक और कानूनी सुधार: कार्यस्थल सुरक्षा और उत्पीड़न-विरोधी कानूनों को लागू करना।
    • रूढ़िवादिता को तोड़ने के लिए सामाजिक जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देना।
    • कार्य-परिवार संतुलन को आसान बनाने के लिए चाइल्डकेयर और क्रेच सुविधाओं का विस्तार करना।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना: बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक जैसे सूक्ष्म वित्त सफलता मॉडल अपनाना।
    • रवांडा की तरह लैंगिक बजट को मुख्यधारा में लाना।
    • संयुक्त राष्ट्र महिला सशक्तीकरण सिद्धांतों को कॉरपोरेट जगत में अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

महिलाओं की आर्थिक भूमिका को मजबूत करने से लैंगिक समानता के निर्देशक सिद्धांत को पूरा किया जा सकेगा, सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 5 और सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 8 को आगे बढ़ाया जा सकेगा तथा यह भारत के वर्ष 2047 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य और विकसित भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप होगा।

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