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भारत में महिला सशक्तीकरण

Lokesh Pal March 12, 2025 03:12 24 0

संदर्भ

हाल ही में, 8 मार्च को विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2025 की थीम है:- “सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार, समानता, सशक्तीकरण” (For ALL Women and Girls: Rights. Equality. Empowerment), जो लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति में तेजी लाने की आवश्यकता पर बल देता है। 

महिला सशक्तीकरण के बारे में

  • महिला सशक्तीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा महिलाएँ लैंगिक आधारित असमान शक्ति संबंधों के बारे में जागरूक हो जाती हैं और घर, कार्यस्थल तथा समुदाय में पाई जाने वाली असमानता के खिलाफ बोलने के लिए अधिक सशक्त हो जाती हैं।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • क्षमता निर्माण: महिलाओं को सभी स्तरों पर सामाजिक गतिविधियों और निर्णय लेने में समान रूप से भाग लेने में सक्षम बनाना।
    • संसाधनों तक समान पहुँच: संसाधनों और लाभों (उत्पादक, प्रजनन और सामुदायिक गतिविधियाँ) तक महिलाओं की समान पहुँच तथा नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई को बढ़ावा देना।
    • सुरक्षित और समान कार्य परिस्थितियाँ: समानता प्राप्त करना और महिलाओं के लिए सुरक्षित, सम्मानजनक कार्य वातावरण सुनिश्चित करना।
    • संगठनों को मजबूत बनाना: सशक्तीकरण और लैंगिक समानता की वकालत करने के लिए महिला/विकास संगठनों का समर्थन करना।
    • सामाजिक-आर्थिक सुधार: महिलाओं को अधीनस्थ बनाने वाले प्रणालीगत मुद्दों (जैसे, कानून, शिक्षा, राजनीतिक भागीदारी, हिंसा, मानवाधिकार) को संबोधित करना।
    • पुरुषों की जागरूकता: सामाजिक प्रगति के लिए लैंगिक समानता के महत्त्व पर पुरुषों को शिक्षित करना।

विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका

राजनीति और शासन में महिलाएँ

  • संसद में महिलाएँ (2024): लोकसभा में 13.6% प्रतिनिधित्व (वैश्विक औसत का लगभग 26.5%)।
    • महिला आरक्षण विधेयक (2023): संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण सुनिश्चित करता है (कार्यान्वयन लंबित)।

  • स्थानीय शासन में महिलाएँ
    • 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन (1992): पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में 33% आरक्षण।
    • बिहार, राजस्थान और उत्तराखंड जैसे कुछ राज्यों ने इसे बढ़ाकर 50% आरक्षण कर दिया है।

अर्थव्यवस्था और कार्यबल में महिलाएँ

  • वैश्विक तुलना: भारत का FLFPR चीन (61%), यू.एस.ए. (57%) और बांग्लादेश (38%) से कम है।
  • क्षेत्रीय वितरण कृषि: 76.2% ग्रामीण महिलाएँ, 11.7% शहरी महिलाएँ।
    • विनिर्माण: 8.3% ग्रामीण महिलाएँ, 23.9% शहरी महिलाएँ।
    • सेवाएँ: 6.9% ग्रामीण महिलाएँ, 40.1% शहरी महिलाएँ​।
  • लैंगिक वेतन अंतराल: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 36.7% कम कमाती हैं (ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023)।
    • औसत दैनिक मज़दूरी: महिलाएँ ₹287 (ग्रामीण), ₹333 (शहरी) कमाती हैं, जो लोक निर्माण के अलावा अन्य कार्यों में पुरुषों की तुलना में कम है।
  • कार्यस्थल पर भेदभाव और ग्लास सीलिंग: भारत में महिलाएँ केवल 19% सी-सूट भूमिकाएँ निभाती हैं, जो वैश्विक औसत 30% से अत्यधिक पीछे है।
  • अवैतनिक कार्य का बोझ: महिलाएँ अवैतनिक देखभाल कार्यों पर पुरुषों की तुलना में 5 गुना अधिक समय व्यतीत करती हैं (टाइम यूज सर्वे, 2020)।

श्रम बल भागीदारी (PLFS आँकड़े, 2023-24)

संकेतक महिला पुरुष
श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 35.6% 76%
कार्यबल भागीदारी दर (WPR) 32.8% 72%
बेरोजगारी की दर 3.1% 2.9%

शिक्षा एवं अनुसंधान में महिलाएँ

  • महिला साक्षरता दर (NFHS-5, 2023): 71.5% (पुरुषों की तुलना में लगभग 84%)।
  • उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता सूचकांक (GPI): वर्ष 2017-18 से कॉलेजों में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने दाखिला लिया।
    • कम आयु में विवाह, वित्तीय बाधाओं और सुरक्षा चिंताओं के कारण लड़कियों में स्कूल छोड़ने की दर।
  • STEM क्षेत्रों में सीमित प्रतिनिधित्व: भारत के STEM कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 29% है।

रक्षा एवं कानून प्रवर्तन में महिलाएँ

  • सशस्त्र बलों में महिलाएँ: लड़ाकू भूमिकाओं, एनडीए और सैनिक स्कूलों में अनुमति दी गई।
    • पहली महिला लड़ाकू पायलट: अवनी चतुर्वेदी (2016)।
  • पुलिस में महिलाएँ: भारत में, कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने महिलाओं के लिए पुलिस पदों का एक प्रतिशत आरक्षित करने की नीति अपनाई है, जो आम तौर पर 10% से 35% तक होती है।

महिलाएँ और केयर इकोनॉमी

  • ‘केयर इकोनॉमी’ में अवैतनिक घरेलू कार्य, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल और स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हैं, जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाती हैं।
  • ILO, 2021 के अनुसार, वैश्विक स्तर पर, अवैतनिक देखभाल कार्य सालाना अर्थव्यवस्था में 10.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान देता है।
    • महिलाएँ अवैतनिक देखभाल कार्य के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में पुरुषों की तुलना में अधिक योगदान देती हैं, उनका योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 3.1% है, जबकि पुरुषों का योगदान केवल 0.4% है।

न्यायपालिका में महिलाएँ

  • वर्तमान में, सर्वोच्च न्यायालय में 34 न्यायाधीशों में से केवल 2 महिलाएँ हैं।
  • 1 अगस्त 2024 तक, भारत के उच्च न्यायालयों में कार्यरत न्यायाधीशों में से 14 प्रतिशत महिलाएँ हैं। केवल दो उच्च न्यायालयों में महिला मुख्य न्यायाधीश हैं।
  • उदाहरण: न्यायमूर्ति फातिमा बीवी- पहली महिला सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश (1989); न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (2027) बनने वाली हैं।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में महिलाएँ

  • परंपराओं का संरक्षण: महिलाएँ भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, पारिवारिक संरचना और सामुदायिक कल्याण की संरक्षक हैं।
  • मीडिया और मनोरंजन में महिलाएँ: जनमत को आकार देना और रूढ़िवादिता को तोड़ना।
  • सामाजिक नेतृत्व: महिलाओं के नेतृत्व वाले एसएचजी ने ग्रामीण उद्यमिता में क्रांति ला दी है।

महिलाओं के अधिकारों के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-14 – कानून के समक्ष समानता।
  • अनुच्छेद-15(3) – महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान।
  • अनुच्छेद-16 – सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर।
  • अनुच्छेद-39(d) – समान कार्य के लिए समान वेतन।
  • अनुच्छेद-42 – मातृत्व राहत और मानवीय कार्य स्थितियाँ।
  • अनुच्छे-243D और 243T – पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण।


महिला शिक्षा और रोजगार का सहसंबंध

  • उच्च शिक्षा कार्यबल में भागीदारी बढ़ाती है: उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं के रोजगार पाने की संभावना अधिक होती है।
    • माध्यमिक शिक्षा या उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं के लिए WPR निरक्षर महिलाओं की तुलना में तीन गुना अधिक है।
  • शिक्षा व्यावसायिक अलगाव को कम करती है: शिक्षित महिलाएँ पारंपरिक भूमिकाओं (कृषि, घरेलू कार्य) से परे STEM, वित्त और प्रशासन में विविध क्षेत्रों में प्रवेश करती हैं।
  • आर्थिक स्वतंत्रता और निर्णय लेना: शिक्षित महिलाएँ बेहतर वेतन कमाती हैं, जिससे वित्तीय स्वतंत्रता और घरों में अधिक निर्णय लेने की शक्ति मिलती है।
  • शिक्षा लैंगिक वेतन अंतर को कम करती है: उच्च शिक्षा वेतन असमानता को कम करती है; हालाँकि, कुशल श्रमिकों के बीच भी 15-25% लैंगिक वेतन अंतर बना रहता है।
  • सामाजिक बाधाएँ शिक्षित महिलाओं के रोजगार को सीमित करती हैं: शिक्षा के बावजूद, सामाजिक मानदंड, देखभाल करने वाली भूमिकाएँ और कार्यस्थल भेदभाव महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में बाधा डालते हैं, खासकर शहरी क्षेत्रों में।

भारत में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ

  • लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता: गहरी जड़ें जमाए हुए पितृसत्ता के कारण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में लैंगिक पूर्वाग्रह।
    • ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2023 में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है।

महिला सशक्तिकरण से संबंधित ऐतिहासिक निर्णय

  • सीबी मुथम्मा बनाम भारत संघ और अन्य (1979): सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि लैंगिक प्रश्न, रोजगार में विभेदकारी व्यवहार का आधार नहीं बन सकता।
  • जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018): सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 497 IPC के तहत व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, जिसमें कहा गया कि कानून महिलाओं को उनके पति की संपत्ति मानता है और उनकी गरिमा का उल्लंघन करता है।
  • दीपिका सिंह बनाम केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (2022): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि मातृत्व अवकाश का लाभ उठाने के लिए एक महिला के वैधानिक अधिकार को इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि उसने पहले अपने नॉन-बायोलॉजिकल बच्चों के लिए चाइल्ड केयर लीव का लाभ उठाया है।
  • सरिता चौधरी बनाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय और अन्य (2025): सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अगर संवेदनशील कार्य वातावरण और उचित मार्गदर्शन सुनिश्चित नहीं किया जाता है तो केवल महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या बढ़ाना पर्याप्त नहीं है।

    • बेटे को प्राथमिकता देने से सालाना 4.6 लाख कन्या भ्रूण हत्याएँ होती हैं (लैंसेट अध्ययन, 2023)।
  • कम कार्यबल भागीदारी और आर्थिक निर्भरता: घरेलू जिम्मेदारियों, कार्यस्थल भेदभाव और अवैतनिक श्रम के कारण महिलाओं की आर्थिक भागीदारी कम बनी हुई है।
    • महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR, 2023-24): 35.6% (PLFS डेटा), वैश्विक औसत (~50%) से बहुत कम।
    • महिलाएँ अवैतनिक घरेलू कामों में पुरुषों की तुलना में 5 गुना अधिक समय बिताती हैं (टाइम यूज सर्वे, 2020)।
  • महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और सुरक्षा के मुद्दे: इसमें घरेलू हिंसा, दुष्कर्म, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, ऑनर किलिंग और साइबर अपराध शामिल हैं।
    • 29.3% विवाहित महिलाएँ (18-49 वर्ष की आयु) घरेलू हिंसा का सामना करती हैं (NFHS-5, 2021)।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कमी: आरक्षण के लिए कानूनी प्रावधानों के बावजूद निर्णय लेने वाली भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है।
    • संसद में महिलाएँ (वर्ष 2024): लोकसभा में 13.6%, वैश्विक औसत 26.5% (संयुक्त राष्ट्र महिला) से कम।
    • पंचायती राज में महिलाएँ: बिहार, उत्तराखंड, राजस्थान जैसे राज्यों में 50% आरक्षण।
  • शिक्षा और कौशल विकास तक सीमित पहुँच: शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में लैंगिक असमानता।
    • महिला साक्षरता दर (NFHS-5, 2021): 71.5% (पुरुषों के लिए 87.4% की तुलना में)।
    • कम आयु में विवाह, आर्थिक तंगी और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण माध्यमिक शिक्षा के बाद लड़कियों की पढ़ाई छोड़ने की दर बढ़ जाती है।
  • महिलाओं के विरुद्ध साइबर अपराध: इसमें साइबरस्टॉकिंग, रिवेंज पोर्न, डीपफेक वीडियो, ऑनलाइन उत्पीड़न शामिल हैं।
    • उदाहरण: डीपफेक केस (2023, तमिलनाडु)- महिला की मॉर्फ्ड तस्वीरें प्रसारित की गईं, जिससे कठोर डिजिटल कानूनों की माँग उठी।
  • मानव तस्करी और जबरन वेश्यावृत्ति: इसमें जबरदस्ती, अपहरण, जबरन मजदूरी, यौन तस्करी शामिल है।
    • NCRB के आँकड़ों के अनुसार, पिछले दशक (2013-2022) में लगभग 80,000 से 1,20,000 महिलाओं और लड़कियों की तस्करी की गई।
      • तस्करी के 95% पीड़ित महिलाएँ और लड़कियाँ हैं (UNODC, 2023)। 
    • अगस्त 2024 तक, मानव तस्करी अपराधियों के राष्ट्रीय डेटाबेस (National Database of Human Trafficking Offenders- NDHTO) में 1.20 लाख से अधिक अपराधियों के रिकॉर्ड हैं।
  • कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण हत्या: लिंग-चयनात्मक गर्भपात और लड़के को प्राथमिकता देने के कारण कन्या शिशुओं की हत्या।
    • जन्म के समय लिंग अनुपात (SRB, 2021): प्रति 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाएँ (NFHS-5)।
    • भारत में प्रतिवर्ष 4.6 लाख कन्या भ्रूण हत्याएँ होती हैं (लैंसेट अध्ययन, 2023)।
  • स्वास्थ्य चुनौतियाँ (मातृ मृत्यु दर और पोषण): इसमें मातृ मृत्यु, कुपोषण, प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे शामिल हैं।
    • मातृ मृत्यु दर (MMR, 2018-20): प्रति 1 लाख जीवित जन्मों पर 97, सुधार हुआ लेकिन अभी भी उच्च है।
    • महिलाओं में एनीमिया (NFHS-5, 2021): 15-49 वर्ष की आयु की 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।

भारत के लिए वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास और सबक

देश

पहल

आइसलैंड समान वेतन कानून एवं लैंगिक-संतुलित कार्यस्थल।
स्वीडन लैंगिक-संवेदनशील शहरी डिजाइन (अच्छी तरह से प्रकाशित पार्क, मिश्रित उपयोग वाले स्थान)।
जापान केवल महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन कोच।
रवांडा महिलाओं के लिए 61% संसदीय प्रतिनिधित्व, सुरक्षा नीतियों में वृद्धि।

भारत में महिलाओं के लिए सरकारी पहल

  • महिला सुरक्षा एवं संरक्षण पहल
    • निर्भया फंड (2013): बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और कानूनी सुधारों के माध्यम से महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत करना।
    • वन स्टॉप सेंटर योजना (2015): हिंसा के पीड़ितों को चिकित्सा, कानूनी और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना।
      • कवरेज: पूरे भारत में 800 से अधिक केंद्र संचालित हैं।
    • महिला हेल्पलाइन (181): हिंसा या संकट का सामना कर रही महिलाओं के लिए 24×7 संकट सहायता।
    • सुरक्षित शहर परियोजना: बेहतर प्रकाश व्यवस्था, निगरानी और महिला पुलिस गश्त के माध्यम से महिलाओं के लिए सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार।
      • दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, बंगलूरू, लखनऊ, अहमदाबाद में लागू किया गया।
    • महिला पुलिस स्वयंसेवक (MPV) योजना: महिला स्वयंसेवक अपराधों को रोकने के लिए पुलिस और समुदायों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करती हैं।
  • महिला शिक्षा एवं कौशल विकास पहल
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) (2015): बाल लिंग अनुपात में सुधार और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना।
      • प्रभाव: विशेष रूप से हरियाणा और राजस्थान में स्कूल में महिलाओं के नामांकन में वृद्धि हुई।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020)
      • लड़कियों के बीच STEM भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
      • महिलाओं के लिए डिजिटल सीखने के अवसरों में सुधार करना।
      • हाशिए पर रहने वाली लड़कियों के लिए लैंगिक समावेशन निधि।
    • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV): SC/ST/OBC और अल्पसंख्यक लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय।
      • कवरेज: 5,700+ स्कूल 6 लाख से अधिक लड़कियों को लाभान्वित करेंगे।
    • लड़कियों के लिए प्रगति छात्रवृत्ति: तकनीकी शिक्षा (इंजीनियरिंग, एआई, रोबोटिक्स, आदि) में लड़कियों के लिए वित्तीय सहायता।
    • उड़ान योजना: IITs/NITs की तैयारी करने वाली लड़कियों के लिए निःशुल्क कोचिंग।
  • महिला स्वास्थ्य एवं पोषण पहल
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana-PMMVY) (2017): गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए ₹5,000 की वित्तीय सहायता।
    • जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY) (2005): नकद प्रोत्साहन प्रदान करके संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करना।
      • प्रभाव: संस्थागत प्रसव 39% (2005) से बढ़कर 89% (NFHS-5) हो गया।
    • पोषण (POSHAN) अभियान (2018): महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और एनीमिया को कम करना।
    • मासिक धर्म स्वच्छता योजना: ग्रामीण महिलाओं के लिए किफायती सैनिटरी नैपकिन को बढ़ावा देना।
  • महिला रोजगार एवं उद्यमिता पहल
    • मुद्रा योजना (2015): महिलाओं द्वारा संचालित व्यवसायों के लिए ऋण (₹50,000 – ₹10 लाख) प्रदान करना।
      • प्रभाव: मुद्रा ऋणों में से 69% महिलाओं को स्वीकृत किए गए।
    • स्टैंड-अप इंडिया (2016): महिला उद्यमियों के लिए ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक के ऋण।
      • प्रभाव: 1.4 लाख से अधिक महिला उद्यमियों को लाभ हुआ।
    • महिला ई-हाट (2016): महिला उद्यमियों के लिए उत्पाद बेचने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)–महिला स्वयं सहायता समूह: स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का वित्तीय और डिजिटल सशक्तीकरण।
    • दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY): स्वास्थ्य देखभाल, खुदरा, पर्यटन आदि में ग्रामीण महिलाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण।
  • महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण की पहल
    • महिला आरक्षण विधेयक (2023)
      • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण।
      • पंचायती राज (1992) में पहले से ही लागू है, स्थानीय निकायों में 33-50% आरक्षण।
    • मिशन शक्ति (2020): जागरूकता, सुरक्षा और वित्तीय समावेशन के माध्यम से महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • स्वाधार गृह योजना: निराश्रित महिलाओं को आश्रय, भोजन और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करता है।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में महिलाएँ
    • विज्ञान ज्योति योजना: STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) में लड़कियों को प्रोत्साहित करना।
    • महिला वैज्ञानिक योजना (WOS): कॅरियर ब्रेक के बाद शोध कॅरियर में वापस लौटने वाली महिलाओं का समर्थन करना।
    • किरण (KIRAN) योजना: वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए महिला-केंद्रित वित्तपोषण।
  • साइबर सुरक्षा और डिजिटल सशक्तीकरण
    • महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध रोकथाम (Cyber Crime Prevention Against Women & Children-CCPWC): साइबरस्टॉकिंग, रिवेंज पोर्न, डीपफेक अपराधों को रोकना।
    • डिजिटल साक्षरता अभियान (DISHA): ग्रामीण महिलाओं में डिजिटल साक्षरता में सुधार करना।

अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन/समझौते

महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women- CEDAW), 1979

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया; भारत ने वर्ष 1993 में इसकी पुष्टि की।
  • महिलाओं के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों को सुनिश्चित करने वाली कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि।

सतत् विकास लक्ष्य 5 (SDG 5): लैंगिक समानता

  • लक्ष्य: भेदभाव, हिंसा, जबरन विवाह को समाप्त करना और महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना।

महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन

  • अंतरराष्ट्रीय संधि, जिसे वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था।
  • यह वर्ष 1981 में लागू हुई।

महिलाओं पर विश्व सम्मेलन

  • संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं पर चार विश्व सम्मेलन आयोजित किए हैं:
    • मैक्सिको सिटी (वर्ष 1975); कोपेनहेगन (वर्ष 1980); नैरोबी (वर्ष 1985); बीजिंग (वर्ष 1995)।
  • महिलाओं पर चौथा विश्व सम्मेलन, 1995 (बीजिंग, चीन)
    • इसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया था।
    • सम्मेलन में बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (BPfA) को अपनाया गया।
    • यह महिलाओं के अधिकारों तथा लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने के लिए सबसे व्यापक और परिवर्तनकारी वैश्विक ढाँचों में से एक है।

भारत में महिला सशक्तीकरण की आगे की राह

  • कानून प्रवर्तन और फास्ट-ट्रैक न्यायालयों को मजबूत करना: न्याय सुनिश्चित करने के लिए POSH अधिनियम, दहेज निषेध अधिनियम तथा घरेलू हिंसा अधिनियम जैसे कानूनों का सख्त कार्यान्वयन।
    • लैंगिक आधारित हिंसा के मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक न्यायालयों का गठन ताकि मुकदमों में देरी कम हो और दोषसिद्धि दर बढ़े।
  • कार्यबल भागीदारी और आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि: महिलाओं को कार्यबल में बनाए रखने के लिए लचीली कार्य नीतियों (दूरस्थ कार्य, चाइल्डकैअर सहायता) को प्रोत्साहित करना।
    • समान पारिश्रमिक अधिनियम को लागू करके और महिलाओं के नेतृत्व वाले व्यवसायों को बढ़ावा देकर लिंग वेतन अंतर को कम करना।
  • शिक्षा और कौशल विकास को बढ़ाना: लक्षित छात्रवृत्ति और मेंटरशिप कार्यक्रमों के माध्यम से STEM क्षेत्रों में लैंगिक अंतर को पाटना।
    • रोजगार के अवसरों में सुधार के लिए डिजिटल साक्षरता अभियान (Digital Saksharta Abhiyan- DISHA) जैसी योजनाओं के तहत डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण।
  • महिला सुरक्षा और सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे में सुधार: बेहतर प्रकाश व्यवस्था, CCTV, महिलाओं के लिए परिवहन और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली के लिए निर्भया फंड परियोजनाओं का विस्तार करना।
    • कानून प्रवर्तन में अधिक महिलाएँ (CAPF में वर्तमान 10% से अधिक महिला पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ाना) होना।
  • राजनीतिक और नेतृत्व प्रतिनिधित्व: संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण के लिए महिला आरक्षण विधेयक (वर्ष 2023) के कार्यान्वयन में तेजी लाना।
    • सेबी द्वारा अनिवार्य बोर्डरूम कोटा के माध्यम से कॉरपोरेट नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं को प्रोत्साहित करना।
  • सामाजिक दृष्टिकोण और सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव: पितृसत्तात्मक मानसिकता को चुनौती देने और परिवारों और कार्यस्थलों में लैंगिक समानता को सामान्य बनाने के लिए जन जागरूकता अभियान।
    • महिलाओं पर अवैतनिक देखभाल के बोझ को कम करने के लिए घरेलू जिम्मेदारियों में पुरुषों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

महिला सशक्तीकरण केवल एक सामाजिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि एक आर्थिक और राष्ट्रीय प्राथमिकता भी है। नीतिगत सुधारों, कानूनी उपायों और सामाजिक बदलावों ने प्रगति की है, लेकिन भारत में लैंगिक समानता और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा, कार्यबल भागीदारी, नेतृत्व की भूमिका और शिक्षा में निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।

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