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भारत के रोजगारहीन विकास में महिलाएँ (Women in India’s unemployed development)

Samsul Ansari December 15, 2023 11:32 234 0

संदर्भ 

त्रैमासिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के आँकड़ों के अनुसार, शहरी भारत में नियमित वेतनभोगी नौकरियों में महिलाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2023 में पहली तिमाही में 54% से गिरकर दूसरी तिमाही में 52.8% हो गई। 

संबंधित तथ्य 

  • PLFS डेटा: सर्वेक्षण से पता चला है कि स्व-रोजगार वाली और अनौपचारिक काम (अस्थायी काम) करने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी पहली तिमाही में 39.2% से बढ़कर दूसरी तिमाही में 40.3% हो गई, जबकि अनौपचारिक श्रमिकों की हिस्सेदारी पहली तिमाही में 6.8% से मामूली बढ़कर दूसरी तिमाही में 6.9% हो गई।

  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) डेटा: यह बताता है कि भारत में रोजगार योग्यता लैंगिक अंतर 50.9% है, जिसमें 70.1% पुरुषों की तुलना में श्रम बल में केवल 19.2% महिलाएँ हैं।
    • भारत की 20% से भी कम महिलाएँ वेतनभोगी रोजगार में कार्य करती हैं और देश में महिला कार्यबल की भागीदारी में गिरावट आ रही है।
  • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) डेटा: फरवरी, 2022 में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर में 9.2 प्रतिशत की तेज वृद्धि देखी गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में पिछले रुझान में परिवर्तन देखा गया, जो 7.5 प्रतिशत तक पहुँच गया।
    • इसके बावजूद, 15-29 आयु वर्ग की चार में से एक शहरी महिला सुरक्षित रोजगार पाने में असमर्थ है।
  • महिलाओं के लिए वेतनभोगी नौकरियाँ (Salaried Jobs): शिक्षा में वृद्धि से महिलाओं के लिए वेतनभोगी नौकरियों में वृद्धि नहीं हुई है, जो दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था पर्याप्त वेतनभोगी नौकरियाँ पैदा नहीं कर रही है, और नियोक्ता पुरुषों के लिए अपनी प्राथमिकता बरकरार रखते हैं।

अनौपचारिक कार्य (Casual Work) की अपेक्षा वेतनभोगी कार्य

  • चूँकि वेतनभोगी श्रमिकों को नियमित वेतन मिलता है, इसलिए इसे अस्थायी काम और स्व-रोजगार से अधिक प्राथमिकता दी जाती है, जिसमें कृषि क्षेत्रों में अवैतनिक घरेलू मदद के रूप में काम करना या एक छोटे व्यवसाय का मालिक होना भी शामिल है।
  • स्व-रोजगार वाले लोगों की श्रेणियाँ:
    • स्वयं-खाता (Own-Account) श्रमिक : स्व-रोज़गार वाले लोग अपने उद्यमों को स्वयं या एक या अधिक साझेदारों के साथ संचालित करते हैं और जो आम तौर पर किसी भी श्रमिक को काम पर नहीं रखते हैं।                                           
    • नियोक्ता: स्व-रोजगार वाले लोग जो स्वयं या एक या अधिक साझेदारों के साथ काम करते हैं और जो बड़े पैमाने पर श्रमिकों को काम पर रखते हैं।
    • घरेलू उद्यम में सहायक: घरेलू उद्यमों में लगे स्व-रोजगार वाले लोग, पूर्णकालिक या अंशकालिक (Part-Time) काम करते हैं, जिन्हें नियमित वेतन नहीं मिलता है।

रोजगारहीन विकास के बारे में

  • रोजगारहीन विकास की अवधारणा: यह उस स्थिति को संदर्भित करता है जहाँ आर्थिक विकास से रोजगार सृजन नहीं होता है।
    • यह परिघटना तब घटित हो सकती है जब कोई देश मंदी से उभरता है और बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद बेरोजगारी यथास्थिति में बनी रहती है या बदतर हो जाती है।
    • ऐसा तब होता है जब अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियाँ चली जाती हैं, और आगामी पुनर्प्राप्ति (Recovery) बेरोजगारों, अल्प-रोजगार और कार्यबल में पहली बार प्रवेश करने वालों को शामिल करने के लिए अपर्याप्त है।
  • नौकरियाँ और विकास: मंदी से उबरने पर अर्थव्यवस्था चक्रीय और साथ ही संरचनात्मक परिवर्तनों का भी अनुभव करती हैं।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था में, रोजगार वृद्धि और गिरावट अर्थव्यवस्था के विस्तार और संकुचन के अनुसार होती है।
    • संरचनात्मक परिवर्तन किसी अर्थव्यवस्था में एक मूलभूत बदलाव है और यह प्रौद्योगिकी, प्रतिस्पर्धा और सरकारी नीति जैसे बाहरी कारकों द्वारा बढ़ाया जाता है।

भारत में रोजगारहीन विकास के लिए जिम्मेदार कारक

  • पूँजीगत उपकरण और स्वचालन में निवेश बढ़ना।
  • उच्च कुशल श्रमिकों और पेशेवरों पर बढ़ती निर्भरता।
  • क्षेत्रीय अक्षमताएँ। 
  • श्रम बाज़ार की जटिलता। 

  • भारत में रोजगारहीन विकास: भले ही भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन संगठित क्षेत्र में रोजगारहीन वृद्धि और नौकरी के अवसरों का अनौपचारीकरण इसकी विशेषता रही है।
    • भारत में कृषि से लेकर सेवा क्षेत्र तक एक बड़ा संरचनात्मक परिवर्तन आया है।
    • देश की अधिकांश आर्थिक वृद्धि वित्त, रियल एस्टेट और IT क्षेत्रों द्वारा संचालित होती है, जो विनिर्माण क्षेत्र के विपरीत प्रमुख रोजगार सृजनकर्ता नहीं हैं।
    • भारत में आधे से भी कम कॉलेज स्नातकों के पास वह कौशल हैं जिनकी कंपनियों को आवश्यकता है, जिससे बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है।
    • अर्थव्यवस्था ने जून, 2022 तक पाँच वर्षों में लगभग 57 मिलियन नौकरियाँ जोड़ी हैं, जिससे भारत का कार्यबल बढ़कर 493 मिलियन हो गया, फिर भी  35 मिलियन लोग बेरोजगार रह गए। 

वेतनभोगी नौकरियों में महिलाओं की कम हिस्सेदारी के लिए जिम्मेदार कारक

  • संकट प्रेरित स्व-रोज़गार: भारत के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि स्व-रोजगार के कारण हुई, जो संभवतः आर्थिक विकास से अधिक संकट से प्रेरित थी।
    • उदाहरण के लिए, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा जारी “स्टेट ऑफ वर्किंग 2023” नामक एक रिपोर्ट के अनुसार जून, 2018 को समाप्त तिमाही और दिसंबर 2022 को समाप्त तिमाही के बीच महिलाओं के बीच स्व-रोजगार 14 प्रतिशत अंक बढ़कर लगभग 65% हो गया।
  • महामारी प्रेरित आर्थिक मंदी: महामारी ने महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित किया, क्योंकि खुदरा और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्र जो सबसे ज्यादा महामारी से प्रभावित थे, में महिलाओं की संख्या अधिक है।
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कोविड-19 महामारी के कारण लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति रुक गई है और यहाँ तक कि उलट भी गई है।
  • सामाजिक मानदंड और लैंगिक भूमिकाएँ: भारत में रूढ़िवादी सामाजिक मानदंड परिवारिक कार्यों में महिलाओं की भूमिकाओं को अधिक प्राथमिकता देते हैं, जिसके कारण अक्सर उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है, विशेषकर शादी के बाद या बच्चे के जन्म के बाद।
    • भारत में ऐसे कई कारक हैं जो महिलाओं को वैतनिक कार्य से रोकते हैं और यह गिरावट की प्रवृत्ति विभिन्न सामाजिक वर्गों, धर्मों और आयु समूहों की महिलाओं पर लागू होती है।
  • लैंगिक वेतन अंतराल : अस्थायी काम, नियमित नौकरियों और शहरी स्व-रोज़गार में कमाई में असमानता देखी गई, जिससे लैंगिक वेतन अंतराल और अधिक बढ़ गया
    • ऑक्सफैम इंडिया की ‘डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट-2022‘ ने भारत में लैंगिक वेतन अंतर को उजागर किया है, जिसमें महिलाओं को देश भर में भर्ती और वेतन में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
    • लैंगिक वेतन अंतर तकनीकी भूमिकाओं में भी स्पष्ट है, जहाँ महिलाएँ पुरुषों से कम कमाई कर रही हैं, और विशेषकर उच्च प्रबंधन पदों में यह और भी अधिक हो रहा है।
  • महिलाओं को काम पर रखने के प्रति पूर्वाग्रह: महिलाओं को रोजगार देते समय, कंपनियों को अस्पष्ट महिला श्रम नियमों से लेकर कार्यस्थलों को समायोजित करने की उच्च लागत और श्रमिकों की कम प्रतिधारण (Retention) तक कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण के लिए, ‘गर्भावस्था भेदभाव’ किसी महिला के साथ उसकी गर्भावस्था के आधार पर प्रतिकूल व्यवहार करना है या क्योंकि वह मातृत्व अवकाश लेना चाहती है या ले चुकी है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: प्रवासन और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ महिलाओं की रोजगार तक पहुँच को और सीमित कर देती हैं। सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा मुद्दों के साथ-साथ अपर्याप्त शहरी बुनियादी ढाँचा महिलाओं को विशेषकर शहरी क्षेत्रों में नौकरियाँ खोजने और बनाए रखने से हतोत्साहित कर सकता है।                                                                                         

भारत में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकारी पहल

  • अनुकूल कार्य वातावरण सुनिश्चित करना: महिलाओं के रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए  हाल ही में अधिनियमित श्रम संहिताओं में कई सक्षम प्रावधान शामिल किए गए हैं। महिला श्रमिकों के लिए अनुकूल कार्य वातावरण बनाने के लिए वेतन संहिता, 2019, औद्योगिक संबंध संहिता, 2020, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता, 2020 और सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 आदि प्रावधान किए गए हैं
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना: 9वीं से 12वीं कक्षा तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी की विभिन्न शाखाओं में लड़कियों के कम प्रतिनिधित्व को संतुलित करने के लिए विज्ञान ज्योति शुरू की गई थी।
  • मिशन शक्ति: इसके दो घटक हैं, संबल और सामर्थ्य। “संबल” घटक के अंतर्गत बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, वन स्टॉप सेंटर, महिला हेल्प लाइन और नारी अदालत जैसे घटक कार्यरत हैं।  “सामर्थ्य”  घटक के अंतर्गत प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, शक्ति सदन, महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए केंद्र, सखी निवास यानी कामकाजी महिला छात्रावास, पालना, आंगनवाड़ी सह क्रेच जैसे घटक कार्यरत हैं।
  • दीन दयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM ): DAY-NRLM के तहत, लगभग 10 करोड़ महिला सदस्यों वाले लगभग 90 लाख महिला स्वयं सहायता समूह (SHGs) महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के संबंध में ग्रामीण परिदृश्य को बदल रहे हैं।
  • राजनीतिक भागीदारी में सुधार: नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 को लोकसभा और NTC दिल्ली की विधान सभा सहित राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों के आरक्षण के लिए पेश किया गया था।

आगे की राह 

  • ILO कार्यबल लैंगिक अंतराल को पाटने के लिए निम्नलिखित रणनीतियों का सुझाव देता है:
    • कानूनी सुरक्षा, वेतन पारदर्शिता और लिंग-तटस्थ नौकरी मूल्यांकन के माध्यम से समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करना।
    • कुछ प्रकार के कार्यों के मूल्य के बारे में पूर्वकल्पित धारणाओं को चुनौती देकर व्यावसायिक अलगाव को संबोधित करना।
    • कानून, प्रभावी उपचार और जागरूकता अभियानों के माध्यम से लैंगिक भेदभाव और उत्पीड़न को समाप्त करना।
    • पर्याप्त मातृत्व सुरक्षा, सवैतनिक पितृत्व एवं अभिभावक अवकाश और सामाजिक सुरक्षा उपायों के माध्यम से कार्य-परिवार संतुलन को बढ़ावा देना।
    • गुणवत्तापूर्ण देखभाल नौकरियाँ (Care Jobs) बनाना और देखभाल पेशेवरों (Care Professionals) के लिए विनियमन और सुरक्षा में सुधार करना।
    • आर्थिक मंदी के दौरान महिलाओं के रोजगार की सुरक्षा के लिए लैंगिक-संवेदनशील नीतियाँ लागू करना।
  • बेहतर सरकारी उपायों की आवश्यकता: समान पारिश्रमिक अधिनियम और न्यूनतम वेतन अधिनियम जैसे मौजूदा कानूनों के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों, असंगठित क्षेत्र और निजी क्षेत्र में महिलाओं के श्रम को कम महत्त्व दिया जाता है। यह मजबूत कार्यान्वयन के साथ बेहतर नीति निर्माण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • महिला उद्यमियों के लिए वित्तीय सहायता, बेहतर शिक्षा और प्रशिक्षण पहुँच, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना, सुरक्षा और संरक्षा उपाय, नौकरी के अवसरों में वृद्धि, बेहतर कार्य नीतियाँ आदि जैसी पहलों की आवश्यकता है।                                                 
  • महिला उद्यमियों का समर्थन करना: अपना स्वयं का व्यवसाय स्थापित करके और उसे चलाकर, महिला उद्यमी न केवल अन्य महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर सकती हैं बल्कि उन्हें कार्यबल में प्रवेश करने के लिए प्रेरित भी कर सकती हैं।
    • उद्यमिता में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से वर्ष 2025 तक भारत की जीडीपी को 0.7 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाने की क्षमता है, जिससे महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास हो सकता है।
  • सहयोगात्मक वातावरण सुनिश्चित करना: महिलाओं को कार्यस्थलों पर असंख्य मुद्दों का सामना करना पड़ता है और यह निगमों, नीति निर्माताओं और सरकार की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त सुविधाओं और महिलाओं के लिए सलाह और परामर्श के साथ एक सहायक वातावरण को बढ़ावा दें, विशेष रूप से मातृत्व अवकाश के बाद काम में शामिल होने वाली महिलाओं के लिए।
  • हितधारकों के रूप में पुरुषों की भूमिका को बढ़ावा देना: लैंगिक समानता की राह पर पुरुषों को शामिल करना इस लक्ष्य की सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण है। नियमों में अनिवार्य बदलावों के बजाय पुरुषों को महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में भाग लेने का अवसर देने से कार्यस्थल पर महिलाओं को सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण मदद मिलेगी।

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