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चोल साम्राज्य में महिलाओं की स्थिति

Lokesh Pal January 23, 2025 03:17 57 0

संदर्भ

प्रसिद्ध इतिहासकार अनिरुद्ध कनिसेटी ने अपने कार्य ‘लॉर्ड्स ऑफ अर्थ एंड सी’ में चोल साम्राज्य में महिलाओं की स्थिति में गिरावट एवं इसके व्यापक प्रभावों पर प्रकाश डाला है। 

शोध पर अधिक जानकारी

  • शोध इस बात पर प्रकाश डालता है कि किस प्रकार शक्तिशाली महिलाएँ, जो कभी दक्षिण भारत के शाही दरबारों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं, धीरे-धीरे ऐतिहासिक दस्तावेजों से लुप्त हो गईं क्योंकि चोल राजवंश एक विशाल साम्राज्य से एक क्षेत्रीय शक्ति में परिवर्तित हो गया।

चोल साम्राज्य 

  • उत्पत्ति एवं प्रारंभिक संदर्भ: तमिल क्षेत्र के मुवेन्दर (तीन शक्तिशाली राजवंशों) में से एक।
    • संगम साहित्य एवं अशोक के शिलालेखों में इसका उल्लेख मिलता है।
    • तमिल क्षेत्र, जिसमें आधुनिक तमिलनाडु और दक्षिण भारत के कुछ हिस्से शामिल हैं, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जीवंत द्रविड़ परंपराओं और चोल, चेर एवं पांड्य जैसे प्राचीन राजवंशों के केंद्र के रूप में ऐतिहासिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है।

  • स्थापना एवं पुनरुद्धार: 9वीं शताब्दी में विजयालय चोल के शासनकाल में इसका पुनरुद्धार हुआ, जिन्होंने मुत्तरैयार से कावेरी डेल्टा पर विजय प्राप्त करने के बाद तंजावुर को राजधानी के रूप में स्थापित किया।
    • बाद में चोलों ने अपना वंश संगम युग के कराइकल चोल से जोड़ा।
  • प्रमुख शासक
    • राजाराज चोल प्रथम (985-1014 AD): श्रीलंका, मालदीव एवं पश्चिमी तट पर नौसैनिक अभियानों के माध्यम से साम्राज्य का विस्तार किया। 
      • उन्होंने तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कराया।
    • राजेंद्र चोल प्रथम (1014-1044 AD): तुंगभद्रा एवं गंगा नदियों तक विस्तारित क्षेत्र, गंगईकोंड चोलपुरम की स्थापना की, तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में नौसैनिक अभियानों का नेतृत्व किया।
  • सांस्कृतिक एवं प्रशासनिक विरासत: वास्तुकला, समुद्री व्यापार तथा कुशल शासन में प्रगति के लिए जाना जाता है।
    • ग्राम सभाओं के माध्यम से साहित्य, मंदिर-निर्माण एवं स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा दिया।
  • पतन: 13वीं सदी तक एक क्षेत्रीय शक्ति में परिवर्तित हो गया, जिससे केंद्रीय प्रभाव समाप्त हो गया एवं शाही महिलाओं की भूमिकाएँ कम हो गईं।

चोल काल में महिलाओं की स्थिति

सामाजिक स्थिति

  • इतिहास में प्रमुख महिलाएँ: दक्षिण भारतीय धार्मिक इतिहास में महत्त्वपूर्ण महिलाओं  में सेम्बियान महादेवी एवं मंदिर निर्माता के रूप में प्रसिद्ध राजमाता माँ लोका महादेवी जैसी महिलाओं का महत्त्वपूर्ण प्रभाव था।
    • 12वीं शताब्दी तक, राजनीतिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में शाही महिलाओं की उपस्थिति कम हो गई। होयसल तथा कदवा राजकुमारियों जैसे प्रतिद्वंद्वी परिवारों की महिलाएँ, सार्वजनिक भूमिका बनाए रखने वाली कुछ महिलाओं में प्रमुख थीं।
  • सर्विस रेटिन्यू: सर्विस रेटिन्यूज की संस्था, जिसमें सामाजिक और औपचारिक भूमिकाओं वाली शाही महिलाएँ शामिल थीं, इनकी स्थिति में 1230 के दशक तक गिरावट आई।

आर्थिक योगदान

  • मंदिर संरक्षण: महिलाओं ने मंदिर संरक्षण, कांस्य मूर्तियों के निर्माण एवं धार्मिक गतिविधियों का समर्थन करके आर्थिक योगदान दिया।
  • मंदिर की भूमिकाएँ: जैसे-जैसे चोल राजवंश कमजोर हुआ, कई महिलाओं ने मंदिर प्रशासन में भागीदारी की माँग की तथा इन स्थानों में मानद पद एवं प्रभाव प्राप्त किया।

राजनीतिक भागीदारी

  • प्रारंभिक प्रभाव: चोल रानियों एवं शाही महिलाओं ने राजनीतिक प्रभाव डाला, मंदिर निर्माण तथा कूटनीति में योगदान दिया।
  • उपेक्षा: क्षेत्रीय शक्तियों के उदय एवं आंतरिक अशांति के साथ, महिलाओं ने अपना राजनीतिक प्रभाव खो दिया।

धार्मिक भूमिकाएँ

  • महत्त्वपूर्ण हस्तियाँ: सेम्बियान महादेवी जैसी महिलाओं ने मंदिर-निर्माण एवं बंदोबस्ती के माध्यम से दक्षिण भारत के धार्मिक परिदृश्य को आकार दिया।
  • मंदिर व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी: 13वीं शताब्दी के दौरान, मंदिरों ने महिलाओं को शरण देनी शुरू कर दी तथा धार्मिक मामलों में भागीदारी के माध्यम से कुछ हद तक प्रभाव बनाए रखने का साधन भी प्रदान किया।

जानकारी का स्रोत

  • मंदिरों और शाही अभिलेखों में महिलाओं की भूमिका और योगदान पर प्रकाश डाला गया है।
    • शिलालेखों में महिलाओं के उल्लेख की संख्या राजराजा और राजेंद्र चोल काल में चरम पर थी, जब चोल अपनी शक्ति के चरम पर थे।
  • चोल मंदिरों से पुरातात्त्विक साक्ष्य, जैसे तंजावुर में बृहदेश्वर मंदिर।
  • दक्षिण भारतीय राजवंशों पर द्वितीयक ऐतिहासिक विश्लेषण।

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