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भारत में महिला नेतृत्व विकास

Lokesh Pal June 04, 2025 02:55 133 0

संदर्भ 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के भोपाल में अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती समारोह में महिलाओं के नेतृत्व आधारित विकास को शासन की आधारशिला घोषित किया।

संबंधित तथ्य

  • प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सरकार लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर के ‘नागरिक देवो भव:’ (नागरिक को भगवान के रूप में) के मंत्र का पालन करती है।

महिला नेतृत्व विकास के बारे में

  • महिला नेतृत्व विकास एक विकास संबंधी दृष्टिकोण है, जहाँ महिलाएँ निष्क्रिय लाभार्थी होने के बजाय आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक प्रगति का नेतृत्व करती हैं, उसे आकार देती हैं और उसे आगे बढ़ाती हैं।
  • यह महिलाओं के नेतृत्व, निर्णयन प्रक्रिया, नीति निर्माण और कार्यान्वयन में सक्रिय भागीदारी पर जोर देता है।
  • महिला विकास (महिलाओं को सेवाएँ) से महिला नेतृत्व विकास (नेता और नवप्रवर्तक के रूप में महिलाएँ) की ओर एक आदर्श परिवर्तन

अहिल्याबाई के बारे में

  • वह भारत के मराठा शासित मालवा क्षेत्र में होल्कर राजवंश की महारानी थीं।
  • इनका जन्म चंडी, महाराष्ट्र में मनकोजी शिंदे और सुशीला शिंदे के घर हुआ था।
  • एक मराठी हिंदू धनगर परिवार से ताल्लुक रखती थीं।
  • अहिल्याबाई की शिक्षा और सैन्य प्रशिक्षण
    • मल्हार राव के मार्गदर्शन में प्रशासन, वित्त और कूटनीति में शामिल रहीं।
    • अपनी सास गौतम बाई होल्कर से प्रेरित होकर राजनीति और शासन में प्रशिक्षित हुईं।
    • वर्ष 1765 में, अपने ससुर के निर्देशों का पालन करते हुए ग्वालियर पर एक सफल सैन्य हमले का नेतृत्व किया।

अहिल्याबाई का शासन काल और योगदान

  • महेश्वर (मध्य प्रदेश) को होल्कर राजवंश की राजधानी के रूप में स्थापित किया।
  • महेश्वर में कपड़ा उद्योग की स्थापना की: महेश्वरी साड़ियाँ, जो आज भी लोकप्रिय हैं, को उनके शासनकाल में बढ़ावा दिया गया।
    • इसमें ‘बुगड़ी’ दो-तरफा तकनीक का उपयोग करके बुनी गई एक विशेष दो तरफा सीमा है।
  • वर्ष 1780 में वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार।

महिला नेतृत्व वाले विकास की आवश्यकता

  • आर्थिक विकास में तेजी: कार्यबल भागीदारी में लैंगिक अंतर को पाटकर भारत की GDP में 30% तक की वृद्धि की जा सकती (NFHS डेटा) है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय महिलाएँ, जनसंख्या का 48% हिस्सा होने के बावजूद, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में केवल 18% का योगदान देती हैं।
  • बढ़ती लैंगिक असमानता को संबोधित करना: भारत वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2024 में 129/146वें स्थान पर है, जिसमें शिक्षा और आर्थिक भागीदारी में गिरावट आई है।
    • भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (Female Labour Force Participation Rate – FLFPR) में वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-18 में 23.3% से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 41.7% हो गई है, लेकिन वैश्विक औसत (48.7%) से कम है।
  • समावेशी और सतत् विकास को बढ़ावा देना: महिलाएँ जलवायु लचीलापन, खाद्य सुरक्षा और सामुदायिक कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • दीनदयाल अंत्योदय योजना-NRLM जैसी महिलाओं के नेतृत्व आधारित पहलों ने आजीविका में सुधार करते हुए स्वयं सहायता समूहों में 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को संगठित किया।
  • स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना: महिलाओं के नेतृत्व में विकास स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करता है और मातृ मृत्यु दर को कम करता है।
    • 12 से 26 सप्ताह तक मातृत्व अवकाश बढ़ाने से बेहतर मातृ और शिशु स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है।
  • महिलाओं को वित्तीय और कानूनी रूप से सशक्त बनाना: संपत्ति का स्वामित्व रखने वाली और वित्तीय संसाधनों तक पहुँच रखने वाली महिलाओं की गरिमा और निर्णय लेने की शक्ति को बढ़ावा मिलता है।
    • 73.2% ग्रामीण महिलाएँ कृषि में कार्य करती हैं, उनके पास केवल 12.8% भूमि है।
  • राजनीतिक भागीदारी और शासन को बढ़ावा देना: शासन में महिलाओं का बढ़ता प्रतिनिधित्व लैंगिक-संवेदनशील नीतियों और सामाजिक समावेशन की ओर ले जाता है।
    • भारत में, संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 14.7% है, जबकि वैश्विक औसत 26.5% है (संयुक्त राष्ट्र महिला, 2024)।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन का सृजन: महिलाओं के नेतृत्व में विकास पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देता है और समानता को बढ़ावा देता है।
    • महिलाओं के नेतृत्व में स्टार्ट-अप और (STEM) विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (43% महिला STEM स्नातक) में बढ़ती भागीदारी महिलाओं की क्षमताओं को पहचानने की दिशा में सामाजिक मानसिकता को परिवर्तित कर रही है।

भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति

  • कार्यबल भागीदारी
    • महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर (Female Labour Force Participation Rate – FLFPR): 23.3% (वर्ष 2017-18) से बढ़कर 41.7% (वर्ष 2023-24) हो गया, जिसमें ग्रामीण FLFPR 47.6% (आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 2024-25) रहा है।
    • लैंगिक वेतन अंतराल: महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 20-36.7% कम कमाती हैं (डब्ल्यूईएफ, 2023; वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट)।
    • अवैतनिक देखभाल कार्य: महिलाएँ अवैतनिक घरेलू काम पर पुरुषों की तुलना में 5 गुना अधिक समय बिताती  (आवधिक उपयोग सर्वेक्षण, 2020) हैं।
    • क्षेत्रीय वितरण: 76.2% ग्रामीण महिलाएँ कृषि में, 40.1% शहरी महिलाएँ सेवाओं में संलिप्त हैं (2023-24)।
  • शिक्षा
    • महिला साक्षरता: 71.5% (NFHS-5, 2023), जबकि पुरुषों के लिए यह 87.4% है; वैश्विक औसत 79.9% है।
    • STEM: STEM स्नातकों में से 43% महिलाएँ हैं (विश्व स्तर पर सबसे अधिक), लेकिन केवल 14% ही STEM कार्यबल में भाग लेती हैं।
  • स्वास्थ्य
    • मातृ मृत्यु दर: 1 लाख जीवित जन्मों पर 97 (वर्ष 2018-20), महत्त्वपूर्ण सुधार।
    • एनीमिया: 15-49 वर्ष की आयु की 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित (NFHS-5, 2021) हैं।
    • घरेलू हिंसा: 29.3% विवाहित महिलाएँ घरेलू हिंसा का सामना करती (NFHS-5, 2021) हैं।
  • उद्यमिता एवं वित्तीय समावेशन
    • स्टार्ट-अप: 73,151 स्टार्ट-अप (कुल का 50%) में कम-से-कम एक महिला निदेशक हैं; 7,000 महिलाओं के नेतृत्व में हैं (कुल का 7.5%)।
    • उद्यम: गैर-कृषि उद्यमों में से 20% महिलाओं के स्वामित्व वाले हैं, 80% अनौपचारिक हैं (MSME रिपोर्ट 2023-24)। केवल 13.76% उद्यमी महिलाएँ हैं।
    • पीएम जन धन योजना के तहत खोले गए लगभग 55% बैंक खातों का संचालन महिलाएँ करती हैं।
  • नेतृत्व
    • रक्षा: लड़ाकू भूमिकाओं और NDA में महिलाएँ; अवनी चतुर्वेदी पहली महिला लड़ाकू पायलट बनीं (2016)। कर्नल सोफिया कुरैशी जैसी महिलाओं के नेतृत्व में ऑपरेशन सिंदूर (2025) “महिला शक्ति” का प्रतीक है।
    • पुलिस: राज्यों ने महिलाओं के लिए 10-35% पुलिस पद आरक्षित किए हैं।
    • न्यायपालिका: उच्च न्यायालय के 14% न्यायाधीश महिलाएँ हैं; न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्न भारत की पहली महिला CJI (2027) बनने वाली हैं।
  • डिजिटल समावेशन
    • मोबाइल स्वामित्व: 25% महिलाओं के पास मोबाइल फोन है, जबकि 41% पुरुषों के पास मोबाइल फोन है (GSMA, 2024)।
    • इंटरनेट तक पहुँच: मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2021 में बताया गया है कि भारतीय महिलाओं द्वारा पुरुषों की तुलना में मोबाइल इंटरनेट का उपयोग करने की संभावना 15% कम है।

भारत में महिला नेतृत्व विकास के लिए सरकारी नीतियाँ एवं पहल

  • विधायी उपाय
    • नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण विधेयक), 2023: लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं।
      • नए संसद भवन में पारित पहला बड़ा कानून, जो महिला नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करने का प्रतीक है।
    • मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019: मुस्लिम महिलाओं के लिए कानूनी सुरक्षा और सामाजिक न्याय प्रदान करते हुए तत्काल तीन तलाक को समाप्त किया गया।
    • मातृत्व अवकाश का विस्तार: कामकाजी माताओं की सहायता के लिए मातृत्व अवकाश 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया गया।

  • शिक्षा एवं स्वास्थ्य योजनाएँ
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao Beti Padhao- BBBP): बाल लैंगिक अनुपात में सुधार और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अभियान।
      • इसके परिणामस्वरूप लैंगिक अनुपात 918 (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 937 (वर्ष 2020-21) हो गया और लड़कियों के लिए माध्यमिक शिक्षा नामांकन में वृद्धि हुई।
    • पोषण अभियान: 14 लाख से अधिक आंगनवाड़ियों की वास्तविक समय निगरानी और सहभागिता के माध्यम से कुपोषण को मिटाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • लगभग 10 करोड़ महिलाओं और बच्चों को लाभ।
    • आयुष्मान भारत: 5 लाख रुपये तक का निःशुल्क चिकित्सा उपचार प्रदान करता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा में वित्तीय बाधाओं को कम किया जा सकता है।
  • विज्ञान प्रौद्योगिकी
    • विज्ञान ज्योति जैसी योजनाएँ छात्रवृत्ति और मार्गदर्शन के माध्यम से लड़कियों को STEM कॅरियर अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
    • महिला वैज्ञानिक योजना (Women Scientists Scheme -WOS) कॅरियर ब्रेक के बाद शोध में वापस लौटने वाली महिलाओं का समर्थन करती है।
    • पोषण के माध्यम से अनुसंधान उन्नति में ज्ञान भागीदारी (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing- KIRAN) जैसे कार्यक्रम विशेष रूप से महिला वैज्ञानिकों को वित्तपोषण और अनुसंधान सहायता प्रदान करते हैं।
      • चंद्रयान-3: 100 से अधिक महिला वैज्ञानिकों/इंजीनियरों ने योगदान दिया।
  • आर्थिक सशक्तीकरण और आजीविका कार्यक्रम
    • प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण (Pradhan Mantri Awas Yojana Gramin PMAY-G): PMAY-G के तहत 72% से अधिक घर महिलाओं के स्वामित्व में या सह-स्वामित्व में हैं, जो उन्हें संपत्ति के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है।
    • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana-PMUY): 10 करोड़ से अधिक LPG कनेक्शन वितरित किए गए, जिससे घर के अंदर वायु प्रदूषण कम हुआ और महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार हुआ।
    • स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission- SBM): खुले में शौच मुक्त (Open Defecation Free- ODF) का दर्जा हासिल किया, जिससे महिलाओं की स्वच्छता, सुरक्षा और गरिमा में वृद्धि हुई।
    • जल जीवन मिशन: ग्रामीण घरों में स्वच्छ नल के जल की पहुँच सुनिश्चित करता है, जिससे महिलाओं पर जल एकत्रित करने का बोझ कम होता है।
    • पीएम मुद्रा योजना और स्टैंड-अप इंडिया: पीएम मुद्रा योजना ने महिलाओं को 30 करोड़ ऋणों में से 69% ऋण स्वीकृत किए; स्टैंड-अप इंडिया ने ग्रीनफील्ड परियोजनाओं के लिए महिलाओं को 84% ऋण प्रदान किए।
    • महिला सम्मान बचत प्रमाण-पत्र: वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2023-24 के बजट में महिलाओं के लिए एक समर्पित बचत योजना शुरू की गई।
  • सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा
    • मिशन शक्ति: वन-स्टॉप सेंटर और हेल्पलाइन (181) के माध्यम से कौशल विकास, वित्तीय साक्षरता और कानूनी और सामाजिक सहायता तक पहुँच प्रदान करता है।
    • महिला हेल्पलाइन और शी-बॉक्स: हिंसा या संकट का सामना करने वाली महिलाओं को सहायता प्रदान करने वाले प्लेटफॉर्म।
  • कौशल विकास और क्षमता निर्माण
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana- PMKVY): कौशल प्रशिक्षण में महिलाओं की भागीदारी 42.7% (वर्ष 2016) से बढ़कर 52.3% (वर्ष 2024) हो गई।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission- NRLM)/दीनदयाल अंत्योदय योजना: 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को 92 लाख स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups- SHG) में संगठित किया गया, जिससे वित्तीय समावेशन और उद्यमिता को बढ़ावा मिला।
    • नमो ड्रोन दीदी अभियान: ड्रोन तकनीक के माध्यम से कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाता है।
      • महिलाओं की आय और मनोबल बढ़ता है।
  • महिला उद्यमियों और स्टार्ट-अप्स के लिए समर्थन
    • स्टार्ट-अप इंडिया पहल: कम-से-कम एक महिला निदेशक वाली 73,000 से अधिक स्टार्ट-अप को मान्यता दी गई।
      • स्टार्ट-अप इंडिया सीड फंड स्कीम (Startup India Seed Fund Scheme- SISFS) और स्टार्ट-अप्स के लिए क्रेडिट गारंटी स्कीम ( Credit Guarantee Scheme for Startups- CGSS) महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्ट-अप्स को वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं।
    • स्टैंड-अप इंडिया: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों की महिला उद्यमियों को ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक के बैंक ऋण की सुविधा प्रदान करता है।
  • डिजिटल साक्षरता और प्रौद्योगिकी तक पहुँच
    • राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन (National Digital Literacy Mission- NDLM) जैसी डिजिटल समावेशन योजनाएँ ग्रामीण और शहरी महिलाओं को डिजिटल कौशल बढ़ाने के लिए लक्षित करती हैं, जो प्रौद्योगिकी-संचालित क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • कृषि ड्रोन संचालित करने के लिए महिला स्वयं सहायता समूहों ( Self-Help Groups-SHG) को प्रशिक्षण देना तकनीक-सक्षम ग्रामीण विकास में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करता है।

महिला नेतृत्व वाले विकास में चुनौतियाँ

  • गहरी जड़ें जमाए बैठी पितृसत्ता और सामाजिक मानदंड: पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ महिलाओं की स्वायत्तता और नेतृत्व में भागीदारी को प्रतिबंधित करती हैं।
    • केवल 3% महिलाएँ ही स्वतंत्र घरेलू निर्णय लेती हैं (NFHS-5)। 
    • देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों के बारे में सामाजिक अपेक्षाएँ निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी में बाधा डालती हैं।
  • महिला श्रम बल में कम भागीदारी: हाल के सुधार के बावजूद भारत की FLFPR कम बनी हुई है।
    • नियमित वेतन वाले कार्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी 21.9% (वर्ष 2018-19) से घटकर 15.9% (वर्ष 2022-23) हो गई।
  • शिक्षा और कौशल विकास तक सीमित पहुँच: शैक्षणिक अंतराल और कम आयु में विवाह महिलाओं के सशक्तीकरण और कॅरियर विकास को सीमित करते हैं।
    • महिला साक्षरता दर 65% है, जो पुरुष साक्षरता (82%) से कम है।
    • 43% STEM स्नातक महिलाएँ होने के बावजूद, एक ‘लीक पाइपलाइन’ मौजूद है, जो कई महिलाओं को वरिष्ठ पदों तक पहुँचने से रोकती है।
  • लैंगिक आधारित हिंसा और सुरक्षा के मुद्दे: हिंसा का डर महिलाओं की गतिशीलता, सार्वजनिक जीवन और कार्यबल में भागीदारी को प्रतिबंधित करता है।
    • भारत में वर्ष 2021 में महिलाओं के खिलाफ 4 लाख से अधिक अपराध दर्ज किए गए (NCRB)।
  • आर्थिक असमानताएँ और वित्तीय बहिष्कार: महिलाओं को वेतन अंतराल, नौकरी की असुरक्षा और संपार्श्विक की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे ऋण तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
    • भारत में केवल 19% ‘सी-सूट’ भूमिकाएँ महिलाओं के पास हैं; स्टार्ट-अप में भी वरिष्ठ भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या कम है।
  • राजनीतिक और नेतृत्व की भूमिकाओं में कम प्रतिनिधित्व: स्थानीय शासन में आरक्षण के बावजूद राजनीतिक भागीदारी कम बनी हुई है।
    • लोकसभा सदस्यों में महिलाएँ केवल 13.6% और राज्यसभा सदस्यों में 13% हैं।
  • डिजिटल लैंगिक अंतराल और प्रौद्योगिकी पहुँच: सीमित डिजिटल साक्षरता महिलाओं की शिक्षा, वित्तीय सेवाओं और बाजारों तक पहुँच को प्रतिबंधित करती है।
    • केवल 25% महिलाओं के पास मोबाइल फोन हैं, जबकि पुरुषों के पास 41% हैं (GSMA, 2024)।

महिला नेतृत्व आधारित विकास को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक प्रयास

  • महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women- CEDAW): वर्ष 1979 में अपनाया गया।
    • इसकी स्थापना महिलाओं के अधिकारों की देख-रेख और दुनिया भर में उनकी स्थिति की निगरानी के लिए महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (1946) के प्रयासों के माध्यम से की गई थी।
  • संयुक्त राष्ट्र महिला: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2010 में गठित, 
    • यह लैंगिक समानता को आगे बढ़ाने और राष्ट्रों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए समर्पित वैश्विक इकाई के रूप में कार्य करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: प्रतिवर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है।
    • यह विश्व में विविध राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, भाषायी, आर्थिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि की महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाता है।
    • थीम 2025: ‘सभी महिलाओं और लड़कियों के लिए: अधिकार, समानता, सशक्तीकरण’

महिला नेतृत्व विकास के लिए आगे की राह

  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास तक पहुँच को बढ़ावा देना: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में माध्यमिक और उच्च शिक्षा तक लड़कियों की पहुँच को बेहतर बनाना।
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार में लैंगिक अंतराल को पाटने के लिए STEM शिक्षा और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना।
  • महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और उद्यमिता को बढ़ावा देना: ऋण सुविधाओं (मुद्रा योजना, स्टैंड-अप इंडिया) का विस्तार करके और संपार्श्विक आवश्यकताओं को आसान बनाकर वित्तीय समावेशन को मजबूत करना।
    • मेंटरशिप, इनक्यूबेशन और आसान विनियामक अनुपालन के साथ महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्ट-अप का समर्थन करना।
    • अवैतनिक देखभाल कार्य को मान्यता देकर और उसका मूल्यांकन करके औपचारिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • राजनीतिक भागीदारी और नेतृत्व में वृद्धि करना: विधानसभाओं में अधिक प्रतिनिधित्व के लिए महिला आरक्षण विधेयक के कार्यान्वयन में तेजी लाना।
    • पंचायती राज संस्थाओं के क्षमता निर्माण के माध्यम से जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व को प्रोत्साहित करना।
  • स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा में सुधार करना: आयुष्मान भारत और पोषण अभियान जैसी योजनाओं द्वारा समर्थित मातृ और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करना।
    • बेहतर मातृत्व लाभ और लैंगिक आधारित हिंसा के खिलाफ सुरक्षा सहित सुरक्षा संजाल और सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना।
  • लैंगिक आधारित हिंसा और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को संबोधित करना: महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के लिए कानूनों और ‘फास्ट-ट्रैक’ अदालतों के प्रवर्तन को मजबूत करना।
    • महिलाओं के लिए परिवहन, बेहतर स्ट्रीट लाइटिंग और पुलिस गश्त जैसे सार्वजनिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करना।
  • डिजिटल लैंगिक विभाजन संबंधी अंतराल: विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए वहनीय स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी तक पहुँच बढ़ाना।
    • पक्षपात से बचने के लिए AI और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए लैंगिक-संवेदनशील नीतियों को लागू करना।
  • सामाजिक मानदंडों को बदलना और लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना: पितृसत्तात्मक मानसिकता को चुनौती देने और साझा घरेलू जिम्मेदारियों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान संचालित करना।
    • घर तथा कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में पुरुषों को सहयोगी के रूप में शामिल करना।

निष्कर्ष

महिलाओं के नेतृत्व में विकास, भारत की प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण है, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए महिलाओं को नेतृत्त्वकर्त्ताओं के रूप में सशक्त बनाना होगा। लक्षित नीतियों के माध्यम से पितृसत्ता, हिंसा और डिजिटल असमानताओं जैसी चुनौतियों को नियंत्रित करने का प्रयास  वर्ष 2047 तक विकसित भारत के लिए नारी शक्ति की क्षमता को साकार करेगा।

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