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स्मारकीय वास्तुकला में महिलाओं का योगदान: उनकी विरासत को मान्यता देना

Lokesh Pal December 24, 2024 03:24 27 0

संदर्भ

भारतीय उपमहाद्वीप की स्मारकीय वास्तुकला में महिलाओं के अमूल्य योगदान रहा है। उदाहरण के रूप में रानी की वाव, गुजरात में एक जटिल रूप से डिजाइन किया गया सीढ़ीदार कुआँ है, जिसका निर्माण रानी उदयमती ने 11वीं शताब्दी में चालुक्य वंश के अपने पति भीम प्रथम के सम्मान में करवाया था। 

स्मारकीय वास्तुकला क्या है?

  • इसका तात्पर्य पत्थर या मिट्टी से बनी मानव निर्मित बड़ी और भव्य संरचनाओं से है।
    • उदाहरण: पिरामिड, मंदिर, महल, दफन टीले और चौक।
  • ये संरचनाएँ अक्सर शक्ति और सभ्यता की विरासत को प्रदर्शित करने के लिए बनाई जाती हैं।
  • मुख्य विशेषताएँ: अपेक्षाकृत बड़ा आकार और सार्वजनिक प्रकृति।
  • महत्त्व
    • सांस्कृतिक पहचान: ये वास्तुकलाएँ राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में कार्य करती हैं, जो किसी क्षेत्र की संस्कृति और इतिहास की विविधता को दर्शाती हैं।
    • पर्यटन: ये क्षेत्र विभिन्न स्थानों से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जो आतिथ्य, पर्यटन प्रबंधन और संरक्षण के क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न करते हैं।
    • आध्यात्मिक महत्त्व: मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर जैसी विभिन्न वास्तुकलाएँ धार्मिक प्रथाओं के लिए एक पवित्र स्थान के रूप में कार्य करती हैं, जो समुदाय की भावना को बढ़ावा देती हैं।

स्मारकीय वास्तुकला में महिलाओं का योगदान

प्राचीन काल से ही महिलाएँ अपने पति के सम्मान में या उनकी उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए स्मारकों का निर्माण करवाती रही हैं।

  • महिलाओं द्वारा निर्मित उल्लेखनीय स्मारक
    • विरुपाक्ष मंदिर, कर्नाटक (7वीं शताब्दी)
      • लोकमहादेवी ने अपने पति विक्रमादित्य द्वितीय की कांची के पल्लवों पर विजय के सम्मान में इसका निर्माण करवाया था।
      • मंदिर की विशेषताएँ: यह भगवान शिव के एक रूप भगवान विरुपाक्ष को समर्पित है।

        • कर्नाटक के विजयनगर जिले के हंपी में अवस्थित है।
          • यह मंदिर हंपी में स्मारकों के बड़े समूह का एक हिस्सा है, जो वर्ष 1986 से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
        • आंतरिक दीवार पर इसके टॉवर की एक उलटी पिनहोल छवि है।
        • वास्तुकला
          • यह दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में बनाया गया है।
            • इसमें जटिल शिल्प कौशल एवं उन्नत इंजीनियरिंग है।
        • मुख्य संरचनाएँ
          • इसमें एक गर्भगृह, कई स्तंभों वाले हॉल, पूर्व कक्ष और भव्य गोपुरम (प्रवेश द्वार) शामिल हैं।
          • मंदिर का आकार त्रिभुजाकार है।
          • इसमें तीन प्रमुख गोपुरम हैं।
            • पूर्वी गोपुरम: यह 50 मीटर ऊँचा सबसे बड़ा गोपुरम है, और इसमें नौ मंजिलें हैं।
            • आंतरिक गोपुरम: दो गोपुरम (Gopuram) छोटे हैं और परिसर के आंतरिक पूर्वी और आंतरिक उत्तरी किनारों पर स्थित हैं।
          • भौतिकी के लागू सिद्धांत: रेक्टिलिनियर लाइट थ्योरी (Rectilinear Light Theory) और पिनहोल कैमरा प्रभाव (Pinhole Camera Effect)।
          • गणितीय अवधारणा को लागू किया गया: फेबोनाची अनुक्रम (Fibonacci Sequence), फ्रैक्टल (Fractals), ज्यामिति (Geometry)।
    • रानी की वाव, गुजरात (11वीं शताब्दी)
      • यह गुजरात के पाटन शहर में एक बावड़ी है।
      • चालुक्य वंश के राजा भीम प्रथम की स्मृति में रानी उदयमती द्वारा निर्मित कराया गया।
      • सरस्वती नदी के तट पर अवस्थित है।
      • वर्ष 2014 से भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में सूचीबद्ध किया गया।
      • विशेषताएँ
        • 500 से अधिक मूर्तियाँ, 1,000 से अधिक सूक्ष्म मूर्तियाँ और जटिल ज्यामितीय डिजाइन।
        • वास्तुकला
          • मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली में निर्मित।
          • इसमें सीढ़ियों के सात स्तरों के साथ एक उलटी मंदिर संरचना है।
        • मान्यता
          • शीर्षक दिया गया: भारतीय स्वच्छता सम्मेलन (INDOSAN) 2016 में भारत में ‘सबसे स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान’ (Cleanest Iconic Place)।
    • हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली (16वीं शताब्दी)
      • इसका निर्माण 1560 ईसवी में कराया गया था।
      • बीगा बेगम ने अपने पति, सम्राट हुमायूँ को श्रद्धांजलि देने के तौर पर बनवाया था।
      • यह दिल्ली में, यमुना नदी के पास, पुराना किला के दक्षिण में अवस्थित है।
      • इसे वर्ष 1993 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
      • महत्त्व
        • फारसी और मुगल स्थापत्य शैली का मिश्रण।
        • भारत में लाल बलुआ पत्थर का पहला बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया।
        • ताजमहल के वास्तुशिल्प डिजाइन को प्रेरित किया।
      • वास्तुकला विशेषताएँ
        • यह एक शास्त्रीय मुगल चार बाग (चार भाग) उद्यान में स्थापित है, जिसे एक जल चैनल द्वारा विभाजित किया गया है।
        • यह मकबरा नौ गुना वर्गाकार योजना है, जिसमें 124 परस्पर जुड़े हुए गुंबददार कक्ष हैं।
        • इसमें हिंदू छत्रियों (गुंबददार मंडप) जैसे भारतीय तत्त्वों का उपयोग किया गया है।
        • इसमें अष्टकोणीय कक्ष और ऊँचे इवान (Iwans) भी हैं, जो पहले की दिल्ली सल्तनत की कब्रों की संरचना से प्रेरित हैं।

महिलाओं के लिए बनाए गए स्मारकों की मान्यता और संरक्षण पर पितृसत्ता का प्रभाव

  • ऐतिहासिक आख्यानों में सीमित दृश्यता
    • पुरुष केंद्रित आख्यान: इतिहास में अक्सर पुरुषों द्वारा बनाए गए स्मारकों पर जोर दिया जाता है, जबकि महिलाओं द्वारा बनाए गए स्मारकों को कम महत्त्व दिया जाता है।
      • उदाहरण: ताजमहल का व्यापक रूप से जश्न मनाया जाता है, जबकि रानी की वाव और विरुपाक्ष मंदिर जैसी संरचनाओं को सीमित मान्यता प्राप्त है।
  • जागरूकता और दस्तावेजीकरण का अभाव
    • पितृसत्तात्मक रिकॉर्ड कीपिंग: ऐतिहासिक दस्तावेजीकरण में अक्सर पुरुषों की उपलब्धियों को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि वास्तुकला और संस्कृति में महिलाओं के प्रयासों को दरकिनार कर दिया जाता है।
  • विरासत संरक्षण में लैंगिक पूर्वाग्रह
    • चयनात्मक संरक्षण: संसाधन और प्रयास पुरुषों द्वारा बनाए गए स्मारकों की ओर असंगत रूप से निर्देशित होते हैं।
    • महिलाओं के स्मारकों की उपेक्षा: महिलाओं द्वारा बनाए गए कम प्रसिद्ध स्मारक अक्सर अपर्याप्त संरक्षण और रखरखाव से ग्रस्त होते हैं।
  • पुरुषों द्वारा बनाए गए स्मारकों का महिमामंडन
    • महिलाओं के योगदान को कमतर आँकना: ताजमहल जैसे स्मारकों को प्रेम के प्रतीक के रूप में प्रसारित किया गया है, दूसरी ओर, महिलाओं के योगदान को अक्सर बौद्धिक या कलात्मक प्रयासों के बजाय भक्ति के कार्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

महिलाओं के योगदान को मान्यता देने में चुनौतियाँ

  • महिलाओं द्वारा संचालित परियोजनाओं के संबंध में सीमित जागरूकता
    • महिलाओं द्वारा संचालित स्मारक अक्सर पुरुषों द्वारा संचालित संरचनाओं की तुलना में कम जाने जाते हैं।
    • उनकी समृद्ध वास्तुकला और उनकी वास्तुकला की उत्कृष्टता को इतिहास में काफी हद तक अनदेखा किया जाता है।
  • छायांकन के कारण
    • महिलाओं की निस्वार्थता, व्यक्तिगत पहचान पर काम को प्राथमिकता देना।
    • पितृसत्ता का प्रभाव, जिसने ऐतिहासिक अभिलेखों में उनके योगदान को कम कर दिया हो सकता है।
    • पुरुष उपलब्धियों का चुनिंदा उत्सव लैंगिक-पक्षपाती कथाओं को जन्म देता है।

आगे की राह 

  • शैक्षिक पहल: पाठ्य पुस्तकों और अकादमिक चर्चाओं में महिलाओं के योगदान को शामिल करना।
  • विरासत संवर्द्धन: विरासत पर्यटन और अभियानों में महिलाओं के नेतृत्व वाले स्मारकों को उजागर करना।
  • सार्वजनिक जागरूकता: इन स्मारकों के बारे में कहानियाँ साझा करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना।
  • समावेशी कथाएँ: महिलाओं एवं पुरुषों के योगदान की संतुलित मान्यता को प्रोत्साहित करना।

महिलाओं के प्रयासों को मान्यता देकर और उनका सम्मान करके, हम अधिक समावेशी ऐतिहासिक रिकॉर्ड बना सकते हैं तथा यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनकी स्थापत्य विरासत को संरक्षित और सराहा जाए।

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