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श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी (Women’s participation in the labor force)

Samsul Ansari January 25, 2024 03:11 566 0

संदर्भ

वर्ष 2021-22 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) के अनुसार, भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR) पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ रही है और लगभग एक-तिहाई महिलाएँ श्रम बल में शामिल हो गई हैं।

संबंधित तथ्य

  • महिला LFPR में दीर्घकालिक गिरावट: पिछले दो दशकों में, श्रम बल भागीदारी में समग्र कमी के अनुरूप, महिला श्रम बल भागीदारी (LFP) में गिरावट आई है। अनुमान बताते हैं कि वर्ष 1990 से 2022 के बीच भारत में महिला LFP 28% से घटकर 24% हो गई है।
  • महिला LFPR में अल्पावधि वृद्धि: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की वर्ष 2021-22 की नवीनतम रिपोर्ट भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में वृद्धि का प्रमाण है। देश में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं के लिए सामान्य स्थिति पर अनुमानित LFPR वर्ष 2019-20 के दौरान 30.0% थी, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 32.8% हो गई।

महिला श्रम बल भागीदारी के बारे में

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS): रोजगार और बेरोजगारी पर डेटा PLFS के माध्यम से एकत्र किया जाता है, जो वर्ष 2017-18 से केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा संचालित किया जाता है।
  • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): LFPR को जनसंख्या में श्रम बल (यानी काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिए उपलब्ध होने वाले) व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • महिला LFPR: PLFS की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021-22 में कामकाजी उम्र (15 वर्ष और उससे अधिक) की लगभग 32.8% महिलाएँ श्रम बल में थीं जो वर्ष 2017-18 में सिर्फ 23.3% थीं। इन वर्षों के दौरान 9.5% अंक की वृद्धि दर्ज की गई।
  • ग्रामीण क्षेत्र में महिला LFPR: शहरी क्षेत्र की तुलना में प्रमुख सकारात्मक आँकड़े ग्रामीण क्षेत्र से आए हैं, जहाँ इसमें 12 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई। ग्रामीण क्षेत्रों में, महिला LFPR वर्ष 2017-18 में 24.6% की तुलना में वर्ष 2021-22 के दौरान बढ़कर 36.6% हो गई है।
  • शहरी क्षेत्र में महिला LFPR: शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2017-18 में 20.4% की तुलना में वर्ष 2021-22 में महिला LFPR 23.8% थी, जिसमें केवल 3.4% अंक की वृद्धि देखी गई।

श्रम बल में महिलाओं की कम भागीदारी के लिए उत्तरदायी कारक

  • समाज और सामाजिक मानदंड: सामाजिक मानदंड व्यवहार और सामाजिक आचरण के अनौपचारिक, अलिखित नियम हैं, जो दिए गए सामाजिक संदर्भ में स्वीकार्य, उचित कार्यों और दृष्टिकोण को निर्धारित करते हैं। महिलाओं के लिए प्रचलित सामाजिक मानदंड ‘महिला गृहिणी मानदंड’ हैं और पुरुषों के लिए ‘पुरुष पालनकर्ता मानदंड’ हैं।
    • लगभग 3.4% महिलाएँ सामाजिक कारणों से श्रम शक्ति से बाहर थीं और महिलाओं का अधिकांश काम घर से आधारित होता है जैसे- देखभाल करना।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य: विवाहित महिलाओं के बीच प्रमुख सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड ‘समय की गरीबी‘ है। घरेलू गतिविधियों में व्यस्त महिलाओं को उनके द्वारा किए गए श्रम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।
    • लगभग 49% महिलाएँ अपने घरेलू कर्तव्यों, बच्चों की देखभाल, घरेलू उपयोग के लिए सामान का मुफ्त संग्रह, सिलाई, बुनाई आदि में लगी हुई हैं।
  • लैंगिक आधारित सामाजिक मानदंड: लैंगिक संदर्भ में, ऐसी कई बाधाएँ हैं, जिनका महिलाओं को रोजगार पाने में सामाजिक अपेक्षाओं से लेकर कानूनी एवं आर्थिक बाधाओं तक सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए कई कंपनियों में ऐसे कानून हैं, जो महिलाओं को रात की शिफ्ट में काम करने से रोकते हैं।
    • उदाहरण के लिए UNDP की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 92.39 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह से अपनी महिला साथी के साथ हिंसा (शारीरिक या भावनात्मक शोषण) को उचित ठहराते हैं या मानते हैं कि महिलाओं को प्रजनन अधिकार नहीं मिलना चाहिए।
  • जातिगत भेदभाव: निचली जाति के परिवारों के मामले में, अनौपचारिक क्षेत्र में महिला LFP अधिक है, जिसे आर्थिक बाधाओं और सामाजिक गतिशीलता में सीमाओं के माध्यम से समझाया गया है। उदाहरण के लिए ऐतिहासिक रूप से, निचली जाति के लोगों से लैंगिक परवाह किए बिना शारीरिक और घरेलू काम में संलग्न होने की अपेक्षा की गई है, जिससे अनौपचारिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी बढ़ गई है।

 

  • वेतन/मजदूरी असमानता: आँकड़े बताते हैं कि समान प्रकार की नौकरियों में लगे पुरुषों और महिलाओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण वेतन असमानता मौजूद है, सभी प्रकार के कार्यों में पुरुष, महिलाओं की तुलना में अधिक कमाते हैं। 
    • वर्ष 2023 में, पुरुष स्व-रोज़गार श्रमिकों ने महिलाओं की तुलना में 2.8 गुना अधिक कमाई की। इसके विपरीत, पुरुष नियमित वेतनभोगी श्रमिकों ने महिलाओं की तुलना में 24% अधिक कमाया और पुरुष आकस्मिक श्रमिकों ने महिलाओं की तुलना में 48% अधिक कमाया।
  • शिक्षा स्तर: कई विद्वानों ने महिलाओं को रोजगार तक पहुंचने के लिए शिक्षा के महत्त्व पर चर्चा की है और उच्च जाति की महिलाओं (उनकी आर्थिक स्थिति के कारण) को ऐतिहासिक रूप से शिक्षा तक पहुँचने का अधिक मौका मिला है जो बेहतर रोजगार में तब्दील होता है। अधिक शैक्षिक उपलब्धि से श्रम बल में अधिक भागीदारी होती है और उत्पादकता में भी वृद्धि होती है।
  • संरचनात्मक कठोरताएँ: भारत के विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं, जहाँ 90% कार्यबल शामिल है।
  • अन्य चुनौतियाँ: यूक्रेन में युद्ध, कोविड​​-19 महामारी, वर्तमान खाद्य और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसे लंबे समय से चले आ रहे कारकों ने पहले से ही बड़े लैंगिक अंतर को बढ़ा दिया है, जिससे महिलाओं की नौकरियों, आय और सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
    • विश्व आर्थिक मंच के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग 64 मिलियन महिलाओं ने महामारी के दौरान अपनी नौकरियाँ खो दीं (पुरुषों की तुलना में दोगुनी), क्योंकि महिलाओं के अनौपचारिक, अस्थायी और अंशकालिक नौकरियों में काम करने की अधिक संभावना है।

महिला LFPR बढ़ाने का महत्त्व

  • आर्थिक विकास: उच्च LFPR का मतलब है कि अधिक महिलाएँ कार्यबल में सक्रिय रूप से योगदान दे रही हैं, जिससे उत्पादकता और आर्थिक विकास में वृद्धि हो सकती है। महिलाएँ कार्यस्थल पर विविध कौशल और दृष्टिकोण लाती हैं, नवाचार एवं दक्षता को बढ़ावा देती हैं।
    • उदाहरण के लिए, मैकिन्से ग्लोबल इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि महिलाओं को समान अवसर प्रदान करके, भारत वर्ष 2025 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद में 770 बिलियन अमेरिकी डॉलर जोड़ सकता है।
  • महिला सशक्तीकरण: LFPR में वृद्धि का मतलब है कि अधिक महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता प्राप्त होगी, जिससे उन्हें अपने जीवन, शिक्षा और परिवार के बारे में निर्णय लेने की अनुमति मिलेगी। इसके अलावा कार्यबल में भागीदारी, समाज में महिलाओं की स्थिति को बढ़ाती है, पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देती है और सशक्तीकरण को बढ़ावा देती है।
  • वैश्विक मान्यता: एक विविध और समावेशी कार्यबल किसी देश की आबादी की पूरी क्षमता का दोहन करके उसकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, महिला LFPR बढ़ाने से SDG 5 (लैंगिक समानता), SDG 8 (गरिमापूर्ण कार्य और आर्थिक विकास), और SDG 10 (असमानता में कमी) में सुधार होता है।
  • जनसांख्यिकीय क्षमता का दोहन: बड़ी युवा आबादी वाला भारत, कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करके, निरंतर आर्थिक विकास में योगदान देकर जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग कर सकता है।

महिला LFPR में सुधार के लिए सरकारी पहल

  • श्रम कानूनों का संहिताकरण: सरकार ने चार श्रम संहिताओं को अधिसूचित किया है- 
  • वेतन संहिता, 2019 
  • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: इसमें सवैतनिक मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह करने, 50 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में अनिवार्य क्रेच सुविधा का प्रावधान, पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ रात की शिफ्ट में महिला श्रमिकों को अनुमति देने आदि के प्रावधान हैं।
  • वेतन संहिता 2019: इसमें प्रावधान है कि किसी भी कर्मचारी द्वारा किए गए समान प्रकृति के काम के संबंध में वेतन से संबंधित मामलों में लैंगिक आधार पर कर्मचारियों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना: इसे बेटी के अस्तित्व, सुरक्षा और शिक्षा की गारंटी देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • सुरक्षित एवं सुविधाजनक आवास के लिए
  • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013: इसे महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य स्थान सुनिश्चित करने, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने और यौन उत्पीड़न की शिकायतों की रोकथाम और निवारण के लिए अधिनियमित किया गया था।
    • कामकाजी महिला छात्रावास योजना: शहरों, छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में कामकाजी महिलाओं को छात्रावास की सुविधा प्रदान करने के लिए नए निर्माण/मौजूदा भवनों के विस्तार के लिए अनुदान सहायता।
  • हिंसा से प्रभावित महिलाओं की सहायता के लिए: वन स्टॉप सेंटर (OSC) और महिला हेल्पलाइन का उद्देश्य हिंसा से प्रभावित महिलाओं को 24 घंटे तत्काल और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रदान करना है।
  • कौशल भारत मिशन: महिला श्रमिकों की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए, सरकार महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों के नेटवर्क के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा): मनरेगा के तहत उत्पन्न कम-से-कम एक-तिहाई नौकरियाँ महिलाओं को दी जानी चाहिए।

आगे की राह

  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में सुधार: जाति या आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सभी महिलाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना।
    • भारत में शिक्षा स्तर और महिला LFPR के बीच संबंध U आकार का है, जिसमें स्नातकोत्तर और उससे ऊपर की शिक्षा स्तर वाली कुल महिलाओं में से लगभग 37.3% कामकाजी हैं।
  • जातिगत भेदभाव का मुकाबला: जाति आधारित भेदभाव को दूर करने और महिला सशक्तीकरण के लिए औपचारिक क्षेत्र में समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक कार्रवाई नीतियों को लागू करना चाहिए।
  • महिला सशक्तीकरण में SHG की भूमिका: महिला आर्थिक विकास महिला मंडल, UMED अभियान जैसे स्वयं सहायता समूह (SHG) महिला सशक्तीकरण के लिए महिला उद्यमिता के विकास में लाभकारी साबित हुए हैं।
  • संरचनात्मक कठोरताओं को संबोधित करना: अधिक समावेशी और लचीला कार्यशील वातावरण बनाने के लिए विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्रों में सुधार लागू करना। बेहतर नौकरी सुरक्षा और लाभ प्रदान करते हुए, अनौपचारिक क्षेत्र की नौकरियों के औपचारीकरण को प्रोत्साहित करना। 
  • उदाहरण के लिए स्वरोजगार महिला संघ (SEWA) संगठन अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में स्वरोजगार वाली महिलाओं को संगठित करता है और उचित उपचार के लिए उनके सामूहिक संघर्ष में सहायता करता है।
  • व्यावसायिक प्रशिक्षण: यह उनकी आय सृजन के लिए रोजगार पैदा करने की क्षमता के साथ आर्थिक विकास से निकटता से जुड़ा हुआ है।
  • लैंगिक-तटस्थ सामाजिक मानदंडों को बढ़ावा देना: मीडिया और शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न भूमिकाओं में महिलाओं के सकारात्मक चित्रण को प्रोत्साहित करना।

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