लैंसेट अध्ययन में बताया गया है कि वैश्विक मधुमेह के मामलों में से एक-चौथाई से अधिक भारत में हैं, और लगभग 21.2 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं।
मधुमेह (Diabetes)
मधुमेह एक गैर-संचारी दीर्घकालिक रोग है, जिसमें अग्न्याशय या तो पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता अथवा शरीर अपने द्वारा उत्पादित इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाता है।
इंसुलिन वह हार्मोन है, जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है।
मधुमेह के प्रकार
टाइप 1 मधुमेह: स्वप्रतिरक्षा/एंटीबॉडीज अग्न्याशय को प्रभावित करता है, जिससे इंसुलिन उत्पादक बीटा कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं।
इससे इंसुलिन का अपर्याप्त उत्पादन होता है।
प्रतिदिन इंसुलिन संतुलन की आवश्यकता होती है।
इसका सटीक कारण अज्ञात है और कोई ज्ञात निवारक उपाय नहीं हैं।
टाइप 2 मधुमेह: इंसुलिन के प्रति प्रतिरोध और इंसुलिन की कमी के संयोजन के कारण होता है।
शरीर इंसुलिन का सही तरीके से उपयोग करने में असमर्थ हो जाता है, जिससे अगर इलाज न कराया जाए तो उच्च रक्त शर्करा हो जाती है।
इसे अक्सर रोका जा सकता है।
योगदान देने वाले कारकों में अधिक वजन होना, व्यायाम की कमी और आनुवंशिकता शामिल हैं।
गर्भावधि मधुमेह: यह उच्च रक्त शर्करा का एक रूप है, जो उन गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है, जिन्हें पहले मधुमेह नहीं था।
यह आमतौर पर दूसरी तिमाही में दिखाई देता है और टाइप 2 मधुमेह में इसकी प्रगति से बचने के लिए सावधानीपूर्वक निगरानी और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
वैश्विक मधुमेह प्रसार: अनुमान है कि वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 82.8 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित होंगे, जो वर्ष 1990 के बाद से चार गुना से अधिक की वृद्धि दर्शाता है।
उच्च मधुमेह दर वाले अन्य देशों में चीन (14.8 करोड़), अमेरिका (4.2 करोड़), पाकिस्तान (3.6 करोड़) और ब्राजील (2.2 करोड़) शामिल हैं।
सबसे अधिक वृद्धि निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में हुई है।
अनुपचारित मधुमेह का बोझ: निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में मधुमेह उपचार दरों में स्थिरता के कारण वैश्विक स्तर पर 44.5 करोड़ वयस्क मधुमेह का उपचार नहीं करा पा रहे हैं।
भारत की विशेष स्थिति
विश्व भर में अनुपचारित मधुमेह के लगभग एक-तिहाई मामले (13.3 करोड़ वयस्क) भारत में हैं।
अनुपचारित मधुमेह से जुड़ी चुनौतियाँ: मधुमेह का निदान न होने पर डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसी गंभीर जटिलताएँ हो सकती हैं, जो रेटिना क्षति के कारण दृष्टि हानि का कारण बनती है।
भारत में मधुमेह पर अध्ययन
‘स्मार्ट इंडिया’ (SMART India) अध्ययन एक सांख्यिकीय और इकॉनोमिक मॉडलिंग अध्ययन है, जो समुदाय आधारित स्क्रीनिंग से क्रॉस-सेक्शनल तथा संभावित रूप से भर्ती किए गए प्रतिभागियों पर आधारित है, ताकि भारत में मधुमेह, प्री-डायबिटीज और मधुमेह की जटिलताओं के जोखिम वाले लोगों की सटीक पहचान की जा सके।
नमूना: शोधकर्ताओं द्वारा 10 भारतीय राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश में आयोजित किया गया।
इसमें 40 वर्ष और उससे अधिक आयु के 6,000 से अधिक मधुमेह रोगी शामिल थे।
मुख्य निष्कर्ष: पता चला कि भारत में 12.5% मधुमेह रोगियों (लगभग 30 लाख लोग) को डायबिटिक रेटिनोपैथी थी, जिनमें से 4% को दृष्टि-खतरनाक स्थितियों का तत्काल जोखिम था।
बेहतर स्क्रीनिंग (Better Screening): अध्ययन में नियमित रूप से डायबिटिक रेटिनोपैथी स्क्रीनिंग की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
भारत में मधुमेह के उच्च प्रसार में योगदान देने वाले कारक
आनुवंशिक पूर्वाग्रह: भारतीयों सहित कुछ नृजातीय समूहों में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने की आनुवंशिक प्रवृत्ति अधिक होती है।
इंसुलिन प्रतिरोध: भारतीयों में इंसुलिन प्रतिरोध का स्तर अधिक होता है, जिससे वे इस बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
शहरीकरण और गतिहीन जीवनशैली: तेजी से शहरीकरण और गतिहीन जीवनशैली अपनाने से शारीरिक गतिविधियों में कमी आई है और मोटापे का खतरा बढ़ गया है, जो मधुमेह के लिए दोनों प्रमुख जोखिम कारक हैं।
आहार परिवर्तन: अधिक पश्चिमी आहार की ओर बदलाव, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, शर्करा युक्त पेय और अस्वास्थ्यकर वसा की अधिकता ने मधुमेह में वृद्धि में योगदान दिया है।
जागरूकता की कमी: भारत में बहुत से लोग मधुमेह के अपने जोखिम कारकों और प्रारंभिक पहचान एवं रोकथाम के महत्त्व से अनजान हैं।
स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में, मधुमेह की जाँच एवं प्रबंधन सहित गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सीमित हो सकती है।
सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: गरीबी और सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ स्वस्थ भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक पहुँच को सीमित करके मधुमेह के जोखिम को बढ़ा सकती हैं।
निवारक और नीतिगत सिफारिशें
स्वस्थ जीवनशैली: मधुमेह के प्रबंधन के लिए आहार और व्यायाम के माध्यम से रोकथाम महत्त्वपूर्ण है।
नीतिगत पहल: अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों को प्रतिबंधित करना, स्वास्थ्यप्रद विकल्पों को अधिक किफायती बनाना, पौष्टिक खाद्य पदार्थों के लिए सब्सिडी प्रदान करना और स्कूलों में मुफ्त स्वस्थ भोजन की शुरुआत करना।
व्यायाम एवं योग को बढ़ावा देना: शारीरिक गतिविधियों और योग के लिए सुरक्षित सार्वजनिक स्थानों को बढ़ावा देना, जैसे कि पार्क और फिटनेस सेंटर जहाँ निःशुल्क पहुँच हो।
मधुमेह के निदान के लिए नवीन दृष्टिकोण
कार्यस्थल और समुदाय आधारित स्क्रीनिंग कार्यक्रम।
पहुँच बढ़ाने के लिए लचीले स्वास्थ्य सेवा घंटे।
मधुमेह स्क्रीनिंग को अन्य स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रमों (जैसे, एचआईवी/एड्स, टीबी) के साथ एकीकृत करना।
कम सेवा वाले क्षेत्रों में निदान दरों में सुधार के लिए विश्वसनीय सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का उपयोग करना।
भारत में मधुमेह के बोझ को कम करने के लिए उठाए गए कदम
राष्ट्रीय मधुमेह नीति (National Diabetes Policy): वर्ष2017 में शुरू की गई इस नीति का उद्देश्य वर्ष 2025 तक भारत में मधुमेह के प्रसार को 20% तक कम करना है।
गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention & Control of Non-Communicable Diseases: NP-NCD): NP-NCD के तहत, राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों के अनुसार, मधुमेह के लिए ग्लूकोमीटर और दवाएँ प्रदान की जाती हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जनसंख्या आधारित जाँच (Population based screening under National Health Mission): इसका उद्देश्य मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर सहित आम गैर-संचारी रोगों (NCDs) की रोकथाम, नियंत्रण और जाँच करना है।
इस पहल में विशेष रूप से 30 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों की जाँच की जाती है।
‘ईट राइट इंडिया’ (Eat Right India): केंद्रीयस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तत्त्वावधान में FSSAI द्वारा चीनी, नमक और वसा की खपत को कम करने के लिए ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान शुरू किया गया।
‘फिटनेस पहल’: युवा मामले और खेल मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा ‘फिट इंडिया’ और ‘खेलो इंडिया’ अभियान चलाए जा रहे हैं तथा आयुष मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा योग से संबंधित विभिन्न गतिविधियाँ संचालित की जा रही हैं।
दवा की उपलब्धता: राज्य सरकारों के सहयोग से ‘प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना’ (Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana- PMBJP) के तहत सभी को सस्ती कीमतों पर इंसुलिन सहित गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं।
विश्व मधुमेह दिवस 2024
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतरराष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (IDF) इस कार्यक्रम का आयोजन करते हैं, जो मधुमेह की रोकथाम, स्वास्थ्य जोखिमों और बीमारी के साथ प्रबंधन तथा अच्छी तरह से जीवनयापन पर केंद्रित है।
IDF और WHO ने वर्ष 1991 में मधुमेह के बारे में बढ़ती वैश्विक चिंताओं के जवाब में विश्व मधुमेह दिवस की शुरुआत की गई, जो एक प्रमुख स्वास्थ्य चिंता है। वर्ष 2006 में, संयुक्त राष्ट्र ने औपचारिक रूप से WDD को मान्यता दी और मधुमेह को वैश्विक स्वास्थ्य चिंता के रूप में पहचाना।
वर्ष 2024 का थीम:‘बाधाओं को तोड़ना, अंतरालों को पाटना’ (Breaking Barriers, Bridging Gaps), जो मधुमेह के जोखिम को कम करने और मधुमेह से पीड़ित सभी व्यक्तियों के लिए समान, संपूर्ण, सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
विश्व मधुमेह दिवस का उद्देश्य
वैश्विक स्वास्थ्य चिंता के रूप में मधुमेह के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
प्रभावी मधुमेह देखभाल, शिक्षा और सहायता प्रणालियों तक पहुँच को बढ़ावा देना।
निवारक उपायों और स्वस्थ जीवनशैली में बदलाव को प्रोत्साहित करना।
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