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विश्व जनसंख्या दिवस, 2025

Lokesh Pal July 14, 2025 02:47 85 0

संदर्भ

11 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व जनसंख्या दिवस, 2025 (World Population Day 2025), घटती प्रजनन दर पर बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है तथा समान जनसंख्या वृद्धि और सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिए युवा सशक्तीकरण एवं अधिकार-आधारित नीतियों पर जोर देता है।

विश्व जनसंख्या दिवस के बारे में

  • स्थापना: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme-UNDP) की स्थापना वर्ष 1989 में हुई थी, जिस दिन प्रसिद्ध जनसांख्यिकीविद् डॉ. के. सी. जकारिया ने ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ की अवधारणा प्रस्तावित की थी।
  • उत्पत्ति: ‘फाइव मिलियन डे’ (11 जुलाई, 1987) को, जब विश्व की जनसंख्या पाँच अरब (वर्ष 1987 में) पहुँच गई थी और गरीबी, स्वास्थ्य एवं लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियाँ पूरे विश्व, विशेष रूप से विकासशील देशों को प्रभावित कर रही थीं।

  • वर्ष 2025 का विषय: “युवाओं को सशक्त बनाना ताकि वे एक निष्पक्ष और आशावान दुनिया में अपनी पसंद के अनुसार परिवार का निर्माण कर सकें।” (Empowering young people to create the families they want in a fair and hopeful world)
  • फोकस: युवा-केंद्रित नीतियाँ, प्रजनन अधिकार, और परिवार, कॅरियर और जीवन के विकल्पों को आकार देने में सूचित निर्णय लेना।
  • विश्व जनसंख्या दिवस के उद्देश्य
    • जनसंख्या गतिशीलता, परिवार नियोजन और जनसांख्यिकीय चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
    • यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकार (SRHR) को बढ़ावा देना: गर्भनिरोधक, मातृ देखभाल और प्रजनन शिक्षा तक पहुँच को प्रोत्साहित करना।
    • कौशल, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक अवसरों के माध्यम से युवा आकांक्षाओं का समर्थन करना।
    • लैंगिक समानता का समर्थन करना: लड़कियों की शिक्षा, आर्थिक समावेशन और शारीरिक स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित करना।
    • पर्यावरण संबंधी चिंताओं पर प्रकाश डालना: जनसंख्या प्रबंधन को संसाधन स्थिरता और जलवायु परिवर्तन से जोड़ना।
    • साझा जनसंख्या मुद्दों के समाधान में वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना। 
    • जनसंख्या और विकास रणनीतियों के लिए डेटा-आधारित योजना को प्रोत्साहित करना।
    • स्थायी विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ संरेखित करना: विशेष रूप से SDG-3 (अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण), SDG-5  (लैंगिक समानता), SDG-10 (असमानताओं में कमी) और SDG-12 (जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन) के साथ संरेखित करना।

वैश्विक जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति

  • विश्व जनसंख्या संभावना रिपोर्ट: विश्व जनसंख्या वर्ष 2024 में 8.2 अरब से बढ़कर 2080 के दशक के मध्य तक लगभग 10.3 अरब के शिखर पर पहुँचने का अनुमान है।
    • विश्व की जनसंख्या अगले 30 वर्षों में 2 अरब और वर्ष 2050 में 9.7 अरब तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • सबसे अधिक आबादी वाले देश: भारत और चीन दो सर्वाधिक आबादी वाले देश हैं; दोनों की जनसंख्या 1 अरब से अधिक है, जो विश्व की लगभग 18% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या गतिविधि कोष (United Nations Fund for Population Activities-UNFPA), 2025 रिपोर्ट: “वास्तविक प्रजनन संकट’ (The Real Fertility Crisis)
    • वैश्विक स्तर पर 20% लोग वांछित परिवार का आकार प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
    • बाधाओं में बाँझपन (13%), वित्तीय बाधाएँ (38%), आवास और बच्चों की देखभाल में कमी तथा बेरोजगारी शामिल हैं।
    • उदाहरण: प्रजनन क्षमता में गिरावट को रोकने के लिए दक्षिण कोरिया के 200 बिलियन डॉलर के निवेश से जन्म दर में 7.3% की वृद्धि देखी गई (वर्ष 2025 की पहली तिमाही), जो दर्शाता है कि नीतिगत संवेदनशीलता से मापनीय जनसांख्यिकीय परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता

  • विश्व स्तर पर सबसे बड़ा युवा समूह: 371 मिलियन युवा (15-29 वर्ष) अर्थात्  यूनिसेफ के अनुसार, विश्व में सबसे बड़ा समूह है।
    • भारत जनसांख्यिकीय लाभांश (वर्ष 2005-2055) की स्थिति में है।
    • रणनीतिक निवेश से वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद में 1 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हो सकती है (विश्व बैंक, नीति आयोग)।
  • आर्थिक एवं रणनीतिक लाभ: वृद्ध समाजों (जैसे- जापान, यूरोपीय संघ) पर श्रम बाजार की बढ़त।
    • शहरी नवाचार, डिजिटल अर्थव्यवस्था और उद्यमिता के लिए उत्प्रेरक के रूप में।
    • युवा-आधारित विकास भारत को एक वैश्विक प्रतिभा और विनिर्माण केंद्र में बदल सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund-UNFPA) रिपोर्ट: अप्रैल 2023 में, भारत 1.4 अरब से अधिक नागरिकों के साथ, चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया।
    • भारत की 68% आबादी 15-64 वर्ष आयु वर्ग की है और 26% 10-24 वर्ष आयु वर्ग की है, जिससे भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक बन गया है।
    • बुजुर्ग आबादी का प्रतिशत वर्ष 1991 में 6.8% से बढ़कर वर्ष 2016 में 9.2% हो गया है।

  • जनसंख्या वृद्धि की धीमी दर के कारक: गर्भनिरोधक विधियों का बढ़ता उपयोग, गर्भधारण के बीच अंतराल, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच और परिवार नियोजन को बढ़ावा, साथ ही शिक्षा में वृद्धि।
  • प्रजनन दर में गिरावट: भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष किए जाने वाले नमूना पंजीकरण प्रणाली सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2011 से 2020 तक जन्म दर में लगातार गिरावट आई है।
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey-NFHS)-5 के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) वर्ष 1992 से वर्ष 2021 के बीच 3.4 से घटकर 2 हो गई है, जो 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
      • इसका अर्थ है प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे की वह दर जिस पर एक पीढ़ी खुद को प्रतिस्थापित करती है।
    • हालाँकि, देश में लोगों की संख्या अगले कुछ दशकों तक बढ़ती रहने की उम्मीद है, जो वर्ष 2064 तक 1.7 बिलियन के अपने चरम पर पहुँच जाएगी।
  • मृत्यु दर में गिरावट: मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय गिरावट आई है।
    • समय के साथ भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा भी बढ़ी है। इसके साथ ही, भारत जनसांख्यिकीय बदलाव का अनुभव कर रहा है, जो वृद्ध होती आबादी की ओर बढ़ रहा है।
    • मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR): भारत ने अपनी MMR को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। यह वर्ष 2000 में लगभग 384 (या कुछ अनुमानों के अनुसार 362) से घटकर वर्ष 2023 में 80 हो गई है।
      • यह प्रगति भारत को वर्ष 2025 तक 100 या उससे कम के अपने राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने, और वर्ष 2030 तक 70 से कम के सतत् विकास लक्ष्य (SDG) के निकट पहुँचने की दिशा में अग्रसर करेगी।
    • पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर: 2000 के दशक के बाद इसमें उल्लेखनीय कमी आई।
      • यूनिसेफ (UNICEF) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत ने वर्ष 2000 से पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 70% की कमी लाई है तथा वर्ष 1990 से वर्ष 2023 तक इसमें 78% की कमी लाई है।
    • शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate-IMR): नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System-SRS) के हालिया आँकड़े भारत की शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय गिरावट दर्शाते हैं।
      • वर्ष 2021 में शिशु मृत्यु दर घटकर 1,000 जीवित जन्मों पर 27 हो गई, जबकि वर्ष 2014 में यह 1,000 जीवित जन्मों पर 39 थी।
    • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या कुल जनसंख्या का 8.6% थी। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह आँकड़ा बढ़कर 19.5% हो जाएगा।
  • प्रवासन और शहरीकरण: भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर होने वाला महत्त्वपूर्ण प्रवास, मुख्यतः कामकाजी आयु वर्ग की आबादी का, शहरी श्रम शक्ति को बढ़ावा दे रहा है।
    • यह जनसांख्यिकीय परिवर्तन शहरी विकास को गति देता है, लेकिन इसके लिए बुनियादी ढाँचे, आवास और सतत् शहरी विकास के लिए मजबूत योजना की आवश्यकता है।
    • वर्ष 2030 तक, भारत की 40% से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करेगी (आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 अनुमान)।
    • प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (Economic Advisory Council to the Prime Minister-EAC-PM) की एक रिपोर्ट भारत में ग्रामीण-से-शहरी प्रवास में भारी गिरावट को दर्शाती है। प्रवास दर वर्ष 2011 में 37.6% से घटकर वर्ष 2023 में 28.9% हो गई।
    • हालाँकि, समग्र ग्रामीण-से-शहरी प्रवास में इस गिरावट के बावजूद, शहर बड़ी संख्या में प्रवासियों को अपने में समाहित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए– वर्ष 2020-21 में शहरी प्रवासी आबादी का 58% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से आया था।
  • अन्य घटक: प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर और प्रवास के अलावा, निम्नलिखित कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:-
    • सार्वजनिक नीति: जैसे परिवार नीति, आव्रजन नीति, स्वास्थ्य नीति, शिक्षा नीति आदि का भारत की जनसांख्यिकी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
    • पर्यावरणीय कारक: पर्यावरणीय कारक और जनसांख्यिकी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

जनसांख्यिकीय क्षमता को साकार करने में बाधाएँ

  • अपूर्ण प्रजनन आवश्यकताएँ: NFHS-5 के अनुसार, 36% महिलाएँ अनचाहे गर्भधारण का सामना करती हैं, जबकि 30% प्रजनन क्षमता के लक्ष्यों की पूर्ति नहीं होने की रिपोर्ट करती हैं, जो प्रजनन स्वायत्तता तथा सेवा वितरण में अंतराल को दर्शाता है।
  • बाल विवाह और किशोर गर्भावस्था: वर्ष 2006 से गिरावट के बावजूद, बाल विवाह 23.3% के उच्च स्तर पर बना हुआ है और 7% किशोरियाँ समय से पूर्व गर्भधारण का अनुभव करती हैं, जिसमें स्पष्ट क्षेत्रीय तथा सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ हैं।
  • लैंगिक असमानता: महिला श्रम शक्ति में भागीदारी 25% से कम बनी हुई है, जो जड़ जमाए हुए पितृसत्तात्मक मानदंडों, शिक्षा तक सीमित पहुँच और रोजगार के कम अवसरों से बाधित है।
  • अपर्याप्त यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकार (Sexual and Reproductive Health and Rights-SRHR) सेवाएँ: SRHR सेवाएँ, जिनमें गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात, प्रजनन देखभाल और मातृ स्वास्थ्य तक पहुँच शामिल है, विशेषतः ग्रामीण और कम सेवा वाले क्षेत्रों में असंगत और अपर्याप्त संसाधन युक्त हैं।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ: सामाजिक उपेक्षा, गलत सूचना और युवा-अनुकूल, अधिकार आधारित सेवाओं का अभाव, विशेष रूप से किशोरों तथा हाशिए पर स्थित समुदायों में, सूचित प्रजनन विकल्पों एवं अभिवृत्ति को प्रतिबंधित करता रहता है।

भारत की नीतिगत प्रतिक्रियाएँ

  • प्रमुख योजनाएँ
    • राष्ट्रीय जनसंख्या नीति (National Population Policy-NPP), 2000 का उद्देश्य एक बहुआयामी रणनीति के माध्यम से वर्ष 2045 तक भारत की जनसंख्या को स्थिर करना है, जो इस पर केंद्रित है:-
      • वर्ष 2010 तक 2.1 (प्रतिस्थापन स्तर) की कुल प्रजनन दर (TFR) प्राप्त करना।
      • प्रजनन और बाल स्वास्थ्य में सुधार।
      • स्वैच्छिक परिवार नियोजन को बढ़ावा देना।
      • शिक्षा, स्वास्थ्य और निर्णय लेने के अधिकारों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना।
    • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: बाल विवाह, बालिका शिक्षा और सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम: स्वास्थ्य साक्षरता और प्रजनन अधिकारों को बढ़ाता है।
    • कौशल भारत मिशन – PMKVY 4.0 (2023-24): युवाओं के लिए उद्योग-संबंधित कौशल प्रशिक्षण को लक्षित करता है, जिसमें उभरते क्षेत्रों (AI, रोबोटिक्स, हरित रोजगार) और कौशल विकास में लैंगिक समावेशन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
    • एनीमिया मुक्त भारत और पोषण 2.0: समुदाय आधारित हस्तक्षेपों और सेवाओं के अभिसरण के माध्यम से महिलाओं तथा किशोरों में कुपोषण एवं एनीमिया से निपटने पर केंद्रित करता है।
    • समर्थ अभियान (केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 2023): लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के लिए जागरूकता बढ़ाने और सामुदायिक कार्रवाई को संगठित करने हेतु एक डिजिटल पहल।
    • डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन – ABDM): डिजिटल स्वास्थ्य रिकॉर्ड की सुविधा प्रदान करता है, विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं के लिए SRHR सेवाओं तक पहुँच का विस्तार करता है।
    • टेली-मानस (2022): NMHP के अंतर्गत एक मानसिक स्वास्थ्य सहायता पहल, जो युवाओं के मनोवैज्ञानिक कल्याण और उत्पादकता के लिए आवश्यक निःशुल्क टेली-परामर्श प्रदान करती है।
    • प्रधानमंत्री पोषण योजना (पुनः नामकरण 2021): पूर्व मध्याह्न भोजन योजना, अब पोषण सहायता, स्वास्थ्य और स्कूल उपस्थिति पर जोर देती है, जो विशेष रूप से लड़कियों तथा किशोरों के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • मिशन वात्सल्य (2021): बाल कल्याण और संरक्षण पर केंद्रित, एकीकृत बाल संरक्षण सेवाओं के माध्यम से कमजोर बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा विकास सुनिश्चित करना।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020: बहु-विषयक शिक्षा, कौशल विकास और प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा को बढ़ावा देने वाला एक परिवर्तनकारी ढाँचा, जिसका उद्देश्य भविष्य के लिए कुशल युवा कार्यबल तैयार करना है।
    • मिशन शक्ति (2020): महिलाओं की सुरक्षा, सशक्तीकरण और सहायता के लिए एक व्यापक योजना, जिसमें वन स्टॉप सेंटर, महिला हेल्पलाइन, स्वाधार गृह और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे प्रमुख घटकों को दो उप-योजनाओं (संबल और सामर्थ्य) के अंतर्गत समाहित किया गया है।

सर्वोत्तम अभ्यास मॉडल: भारतीय राज्यों के विभिन्न सर्वोत्तम अभ्यास मॉडल निम्नलिखित हैं:

  • प्रोजेक्ट उड़ान (राजस्थान, IPE ग्लोबल)
    • 30,000 बाल विवाह और 15,000 किशोर गर्भधारण (2017-22) रोके गए।
    • गर्भनिरोधक तक पहुँच को सक्षम बनाया गया और स्कूली शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया।
  • प्रोजेक्ट अद्विका (Project Advika) (ओडिशा, UNICEF-UNFPA)
    • 11,000 बाल विवाह-मुक्त गाँव बनाए गए।
    • जागरूकता और कौशल-निर्माण के माध्यम से वर्ष 2022 में 950 से अधिक विवाह रोके गए।
  • प्रोजेक्ट मंजिल (राजस्थान)
    • 28,000 से अधिक युवतियों (18-21 वर्ष) को प्रशिक्षित किया गया; 16,000 को रोजगार मिला।
    • आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि, कम आयु में विवाह में कमी और लैंगिक-अनुकूल कार्यस्थलों को बढ़ावा।

आगे की राह

  • अधिकारों और संसाधनों के माध्यम से सशक्तीकरण- सार्वभौमिक SRHR पहुँच: गर्भनिरोधक, गर्भपात, प्रजनन उपचार, मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा सर्वत्र उपलब्ध होनी चाहिए।
    • लड़कियों की शिक्षा का विस्तार: माध्यमिक शिक्षा का प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष बाल विवाह के जोखिम को 6% तक कम करता है (UNICEF)।
  • संरचनात्मक एवं व्यवहारिक सुधार – युवा-केंद्रित कौशल: मानव-केंद्रित डिजाइन (जैसे- प्रोजेक्ट मंजिल) के माध्यम से आकांक्षाओं को बाजार की माँग के साथ संरेखित करना।
    • महिला कार्यबल को बढ़ावा: कामकाजी महिलाओं के लिए नौकरी की गरिमा, कार्यस्थल सुरक्षा, बच्चों की देखभाल, आवास और परिवहन सुनिश्चित करना।
    • मानक बदलाव: जीवन कौशल शिक्षा, सामुदायिक अभियानों और स्थानीय युवा चैंपियनों के माध्यम से उपेक्षा का प्रतिकार करना।
    • विकेंद्रीकृत योजना: आँकड़ों पर आधारित, स्थानीय रूप से अनुकूलित रणनीतियों के साथ राज्यों/जिलों को सशक्त बनाना।
  • जनसंख्या पतन से जुड़े मिथकों का निराकरण – माल्थुसियन अलार्मिज्म (Malthusian Alarmism) अब पुराना हो गया है: जनसंख्या वृद्धि प्रजनन क्षमता में गिरावट के बावजूद विकास सुनिश्चित करती है।
    • माल्थुसियन अलार्मिज्म (Malthusian Alarmism): थॉमस माल्थस का एक सिद्धांत, जो चेतावनी देता है कि अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि संसाधनों (विशेषकर खाद्य) की आपूर्ति को पीछे छोड़ देगी, जिससे अकाल, गरीबी और सामाजिक पतन होगा।
    • प्रक्षेपण, पूर्वानुमान नहीं है: जनसांख्यिकीय पूर्वानुमान अनिश्चित और नीति-आश्रित है।
    • संक्षिप्त आख्यान प्रायः अभिजात्य होते हैं: गहरी संरचनात्मक असमानताओं, वैकल्पिक प्रतिबंधों एवं लैंगिक न्याय की अनदेखी करते हैं।
  • मानव पूँजी का निर्माण: मानव पूँजी के निर्माण हेतु स्वास्थ्य सेवा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोजगार और कौशल में निवेश की आवश्यकता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सके, अत्यधिक गरीबी समाप्त हो सके और एक अधिक समावेशी समाज का निर्माण हो सके।
  • स्वास्थ्य और पोषण में सुधार: स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे में सुधार से युवा श्रम-शक्ति के लिए अधिक उत्पादकता सुनिश्चित होगी, जिससे अर्थव्यवस्था की उत्पादकता बढ़ेगी।
    • गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Diseases-NCDs), जिनके लिए भारी खर्च उठाना पड़ता है, कुछ परिवारों के लिए विनाशकारी सिद्ध होते हैं। इन परिवारों को चरम गरीबी में जाने से बचाने के लिए भारत को एक मजबूत सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता है।
    • पोषण संबंधी कार्यक्रमों को मजबूत करके स्थिति को सुधारा जाना चाहिए। इसके लिए स्वास्थ्य और पोषण क्षेत्रों के लिए बजटीय आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता होगी।
  • अधिक रोजगार सृजन: युवाओं की संख्या को कार्यबल में शामिल करने के लिए देश को प्रति वर्ष दस मिलियन रोजगार सृजित करने की आवश्यकता है।
    • व्यावसायिक हितों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है और उद्यमिता से रोजगार सृजन में मदद मिलेगी, जिससे विशाल श्रम-शक्ति को रोजगार मिलेगा।

निष्कर्ष

विश्व जनसंख्या दिवस 2025, जनसंख्या नियंत्रण के पारंपरिक दृष्टिकोण से हटकर क्षमता निर्माण, विकल्पों की उपलब्धता और समावेशन पर केंद्रित एक सार्थक और सामयिक आह्वान है। भारत के लिए यह समय है कि वह अपनी विशाल युवा जनसंख्या की क्षमता का लाभ उठाने हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता और आर्थिक अवसरों में एकीकृत एवं दीर्घकालिक निवेश सुनिश्चित करे। एक स्थायी और समावेशी जनसांख्यिकीय शासन प्रणाली ही भारत की जनसंख्या को उसकी सबसे बड़ी रणनीतिक संपदा में रूपांतरित कर सकती है।

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