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विश्व व्यापार संगठन-केंद्रित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली

Lokesh Pal September 12, 2025 02:34 117 0

संदर्भ

व्लादिवोस्तोक (रूस) में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के व्यापार मंत्रियों की बैठक में भारत ने विश्व व्यापार संगठन आधारित, निष्पक्ष, समावेशी और नियम-आधारित व्यापार प्रणाली के समर्थन की पुनः पुष्टि की तथा इसे खाद्य सुरक्षा, लचीली आपूर्ति शृंखलाओं, डिजिटल नवाचार और सतत् विकास से जोड़ा।

  • भारत ने व्यापार और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए SCO सहयोग पर जोर दिया, क्योंकि यह समूह विश्व की 42% जनसंख्या और 17.2% वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करता है।

SCO व्यापार मंत्रियों की बैठक में भारत के मुख्य संदेश

  • विश्व व्यापार संगठन को मजबूत करना: भारत ने द्वि-स्तरीय विवाद निपटान प्रणाली को बहाल करने, एक स्थायी सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग (Public Stockholding- PSH) संबंधी समाधान सुनिश्चित करने और ‘विशेष और विभेदक उपचार’ (S&DT) प्रावधानों की सुरक्षा पर जोर दिया।
  • निर्यात विविधीकरण: संकीर्ण भौगोलिक क्षेत्रों पर निर्भरता कम करने, लॉजिस्टिक्स और कनेक्टिविटी को मजबूत करने और जोखिम-मुक्त आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।
  • सेवा व्यापार और कुशल श्रम गतिशीलता: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करने में सक्षम बनाने के लिए पारदर्शी ढाँचों के तहत सेवा व्यापार और कुशल पेशेवरों की अस्थायी आवाजाही की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
  • व्यापार साधनों के हथियारीकरण के विरुद्ध: निर्यात प्रतिबंधों और प्रतिबंधों के दुरुपयोग के विरुद्ध चेतावनी दी गई, और संतुलित, पारदर्शी एवं निष्पक्ष अनुप्रयोग का समर्थन किया गया।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक अवसंरचना: एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), इंडिया स्टैक और ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) सहित डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को MSME की लागत कम करने और बाजारों का विस्तार करने के लिए कम लागत वाले, अनुकरणीय, मानक-आधारित मॉडल के रूप में प्रदर्शित किया गया।
  • स्थिरता और जलवायु समता: साझा परंतु विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) के सिद्धांत की पुष्टि की, मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) को बढ़ावा दिया और जलवायु से जुड़े भेदभावपूर्ण व्यापार उपायों का विरोध किया।
  • रचनात्मक अर्थव्यवस्था और एवीजीसी क्षेत्र: एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स (AVGC) क्षेत्र और विश्व ऑडियो विजुअल और मनोरंजन शिखर सम्मेलन (वेव्स 2025) की पहलों पर प्रकाश डाला, जिससे भारत को एक रचनात्मक अर्थव्यवस्था केंद्र के रूप में स्थापित किया गया।
  • क्षेत्रीय सहयोग: भारत ने रूस की SCO अध्यक्षता की सराहना की तथा समावेशी क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करने हेतु ताजिकिस्तान की आगामी अध्यक्षता (2026–27) के लिए समर्थन देने का आश्वासन दिया।

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बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के बारे में

  • बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली एक नियम-आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली है, जिसे व्यापार बाधाओं को कम करने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और व्यापार प्रवाह में पूर्वानुमान सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • संस्थागत आधार: विश्व व्यापार संगठन, टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT, 1947) का उत्तरवर्ती संगठन है, यह समझौतों का प्रबंधन कर विवादों का समाधान करता है और वार्ता के लिए मंच प्रदान करता है।
  • मुख्य सिद्धांत: यह ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (Most Favoured Nation -MFN) की अवधारणा तथा राष्ट्रीय व्यवहार, पारस्परिकता और पारदर्शिता पर आधारित है।

बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की आवश्यकता

  • संरक्षणवाद को रोकता है: यह सुनिश्चित करता है कि वैश्विक व्यापार एकतरफा शुल्कों, प्रतिबंधों और प्रतिशोधात्मक उपायों से विकृत न हो।
  • स्थिरता को बढ़ावा देता है: व्यापार और निवेश रणनीतियों की योजना बनाने में व्यवसायों और सरकारों के लिए पूर्वानुमानशीलता प्रदान करता है।
  • विकास को बढ़ावा देता है: विशेष और विभेदक उपचार (S&DT) के लिए स्थान प्रदान करता है, जिससे विकासशील देशों को कमजोर क्षेत्रों की रक्षा करने में मदद मिलती है।
  • खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा: सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग (PSH) और सब्सिडी नियंत्रण पर वार्ता सतत् विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • आपूर्ति शृंखला लचीलापन: वैश्विक नियम बाजारों तक पारदर्शी और पूर्वानुमानित पहुँच को सक्षम बनाते हैं, जिससे व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता कम होती है।

विश्व व्यापार संगठन-केंद्रित निष्पक्ष व्यापार प्रणाली के बारे में

  • वैश्विक संस्था: विश्व व्यापार संगठन (WTO), जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) के उत्तराधिकारी के रूप में की गई थी, अंतरराष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने वाला प्रमुख वैश्विक निकाय है।
  • निष्पक्ष व्यापार सिद्धांत: WTO-केंद्रित निष्पक्ष व्यापार प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि व्यापार पारदर्शी नियमों, पूर्वानुमेयता और गैर-भेदभाव के अनुसार संचालित हो, साथ ही सदस्य देशों की विकासात्मक आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा जाए।
  • मुख्य कार्य: WTO वार्ता, अनुपालन निगरानी और द्वि-स्तरीय विवाद निपटान प्रणाली के लिए तंत्र प्रदान करता है, जिससे वैश्विक वाणिज्य में निष्पक्षता और स्थिरता बनी रहती है।

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निष्पक्ष व्यापार प्रणाली के बारे में

  • निष्पक्ष व्यापार प्रणाली एक वैकल्पिक व्यापार मॉडल है, जिसे , विशेषतः विकासशील देशों में समान व्यापारिक परिस्थितियाँ प्रदान करने, स्थिरता को बढ़ावा देने और हाशिए पर स्थित उत्पादकों को सशक्त बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह पारंपरिक व्यापार की शोषणकारी प्रथाओं को चुनौती देता है और सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय न्याय पर जोर देता है।

निष्पक्ष व्यापार की मुख्य विशेषताएँ

  • उचित मूल्य: यह सुनिश्चित करता है कि उत्पादकों, प्रायः लघु किसानों और कारीगरों को ऐसा मूल्य प्राप्त हो, जो उत्पादन लागत को पूरा करे और जीविका-निर्वाह के लिए पर्याप्त वेतन प्रदान करे।
  • प्रत्यक्ष व्यापार और मध्यस्थता में कमी: उत्पादकों और खरीदारों के बीच प्रत्यक्ष संबंधों को प्रोत्साहित करता है, जिससे बिचौलियों द्वारा शोषण कम-से-कम होता है।
  • नैतिक मानक: सुरक्षित कार्य परिस्थितियों को अनिवार्य बनाता है, बाल श्रम पर प्रतिबंध आरोपित करता है और मानवाधिकारों को बनाए रखता है।
  • स्थायी प्रथाएँ: जैविक खेती और कम कार्बन उत्सर्जन सहित पर्यावरणीय रूप से सतत् उत्पादन विधियों को बढ़ावा देता है।
  • सामुदायिक विकास: उचित व्यापार प्रीमियम को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढाँचे के लिए स्थानीय समुदायों में पुनर्निवेशित किया जाता है।

निष्पक्ष व्यापार का महत्त्व

  • सीमांत उत्पादकों का सशक्तीकरण: आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है और किसानों व कारीगरों की आजीविका में सुधार करता है।
  • वैश्विक नैतिक उपभोग: उपभोक्ताओं को सामाजिक रूप से जिम्मेदार और पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • असमानता कम करना: विकसित और विकासशील देशों के बीच व्यापार असंतुलन को दूर करता है।
  • सतत् विकास को बढ़ावा: गरीबी उन्मूलन (SDG 1), सभ्य कार्य (SDG 8), और जिम्मेदार उपभोग (SDG 12) जैसे सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित करता है।

विश्व व्यापार संगठन-केंद्रित निष्पक्ष व्यापार प्रणाली की आवश्यकता

  • बढ़ता संरक्षणवाद: प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा एकतरफा शुल्कों, प्रतिबंधों और व्यापार युद्धों के बढ़ते उपयोग ने वैश्विक बाजारों को अस्थिर कर दिया है, जिससे नियम-आधारित विश्व व्यापार संगठन (WTO) ढाँचा अपरिहार्य हो गया है।
    • उदाहरण: अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% शुल्क।
  • खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भारत सहित विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए सार्वजनिक भंडारण (Public Stockholding -PSH) पर एक स्थायी समाधान की आवश्यकता है ताकि गरीबों के लिए खरीद को व्यापार-विकृति के रूप में दंडित न किया जाए।
    • भारत द्वारा वर्ष 2023–24 में चावल निर्यात पर लगाए गए अस्थायी प्रतिबंध और वर्ष 2025 में दी गई शिथिलता से उत्पन्न अस्थिरता ने यह स्पष्ट किया कि वैश्विक खाद्य बाजार कितने संवेदनशील हैं; साथ ही इसने खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं को मान्यता देने वाले WTO के सतत् नियमों के महत्त्व को भी रेखांकित किया।
  • विकासशील देशों के लिए समानता: विशेष और विभेदक उपचार (S&DT) विकासशील और अल्प-विकसित देशों को संवेदनशील क्षेत्रों की रक्षा करने और क्रमिक प्रतिबद्धताओं को अपनाने की अनुमति देते हैं।
    • MC13 के अबू धाबी घोषणा-पत्र ने विकासशील/LDC सदस्यों के लिए S&DT के उपयोग में सुधार की स्पष्ट रूप से पुष्टि की।
  • विवाद समाधान तंत्र: लघु अर्थव्यवस्थाओं को शक्तिशाली देशों की अनुचित प्रथाओं को चुनौती देने हेतु एक मंच प्रदान करने हेतु एक कार्यशील विवाद निपटान निकाय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • वर्ष 2020 से अपीलीय निकाय की निष्क्रियता ने प्रवर्तनीयता को कमजोर कर  दिया है। भारत का ICT टैरिफ विवाद दर्शाता है कि बहाली क्यों महत्त्वपूर्ण है।
  • आपूर्ति शृंखला स्थिरता: विश्व व्यापार संगठन के नियम पूर्वानुमानित व्यापार प्रवाह सुनिश्चित करते हैं, जो लचीली वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण और मनमाने प्रतिबंधों को रोकने के लिए आवश्यक है।
    • चीन ने वर्ष 2025 की पहली छमाही में भारत को उर्वरक निर्यात पर कड़े प्रतिबंध लगाए। और कई बार रोक भी दिया, जिससे महत्त्वपूर्ण खरीफ बुवाई के मौसम के दौरान भारत के लिए आपूर्ति संकट पैदा हो गया।

विश्व व्यापार संगठन-केंद्रित निष्पक्ष व्यापार प्रणाली का महत्त्व

  • व्यापार में पूर्वानुमान: स्थिर, पारदर्शी और लागू करने योग्य नियम स्थापित करता है, जो व्यवसायों और सरकारों को दीर्घकालिक निवेश और आपूर्ति शृंखलाओं की योजना अधिक निश्चितता के साथ बनाने में सक्षम बनाते हैं।
  • वैश्विक व्यापार में समावेशिता: विकासशील और अल्प विकसित देशों के हितों की रक्षा करता है, यह सुनिश्चित करता है कि वैश्वीकरण उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को अनुपातहीन रूप से लाभ न पहुँचाए और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य में समान भागीदारी को सक्षम बनाता है।
  • विवादों और असंतुलनों का प्रबंधन: व्यापार विवादों को सुलझाने के लिए एक संरचित बहुपक्षीय मंच प्रदान करता है, जिससे एकतरफा उपायों, प्रतिशोधात्मक शुल्कों या व्यापार युद्धों पर निर्भरता कम होती है, जो वैश्विक बाजारों को अस्थिर कर सकते हैं।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) के साथ संरेखण: खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता, जलवायु कार्रवाई और प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच का समर्थन करने वाली व्यापार प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है, वाणिज्य को वैश्विक विकास उद्देश्यों के साथ एकीकृत करता है।
  • क्षेत्रीय सुदृढ़ीकरण: SCO जैसे समूहों के लिए, विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों का पालन व्यापार नीतियों में सामंजस्य स्थापित करने, वार्ताओं का समन्वय करने और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को मजबूत करने के लिए एक साझा ढाँचा प्रदान करता है।

विश्व व्यापार संगठन-केंद्रित निष्पक्ष व्यापार प्रणाली की चुनौतियाँ

  • विवाद निपटान पक्षाघात: नियुक्तियों में रुकावट के कारण अपीलीय निकाय निष्क्रिय बना हुआ है, जिससे विश्व व्यापार संगठन के विवाद समाधान तंत्र की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता कमजोर हो रही है।
  • विकसित बनाम विकासशील विभाजन: उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ कठोर सब्सिडी नियमों की माँग कर रही हैं, जबकि विकासशील देश नीतिगत लचीलेपन की माँग कर रहे हैं, जिससे वार्ता में लगातार गतिरोध पैदा हो रहा है।
  • सुधार की धीमी प्रगति: कृषि, मत्स्यपालन सब्सिडी और डिजिटल व्यापार सुधार जैसे प्रमुख क्षेत्र सर्वसम्मति-आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया में रुके हुए हैं, जिससे विश्व व्यापार संगठन की अनुकूलन क्षमता धीमी हो रही है।
  • डिजिटल विभाजन: उभरते ई-कॉमर्स और डिजिटल व्यापार नियमों से प्रौद्योगिकी-समृद्ध देशों के प्रभुत्व को मजबूत करने का जोखिम है, जिससे सीमित डिजिटल बुनियादी ढाँचे वाली गरीब अर्थव्यवस्थाएँ हाशिए पर जा रही हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों की अनदेखी: एकतरफा प्रतिबंधों, निर्यात प्रतिबंधों और अधिमान्य व्यापार समूहों का बढ़ता उपयोग वैश्विक व्यापार को विनियमित करने में विश्व व्यापार संगठन की केंद्रीयता को कमजोर करता है।

वैश्विक व्यापार के बारे में

  • परिभाषा: वैश्विक व्यापार से तात्पर्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार वस्तुओं, सेवाओं, पूँजी और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान से है, जो राष्ट्रों के बीच आर्थिक परस्पर निर्भरता को सक्षम बनाता है।
  • संस्थाएँ: यह विश्व व्यापार संगठन (WTO), मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) और यूरोपीय संघ (EU), आसियान और SCO जैसे क्षेत्रीय समूहों जैसे ढाँचों द्वारा शासित होता है।
  • महत्त्व: वैश्विक व्यापार वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 60% है, जो इसे विकास, नवाचार और गरीबी उन्मूलन का एक महत्त्वपूर्ण कारक बनाता है।

वैश्विक व्यापार की आवश्यकता

  • आर्थिक विकास: बड़े बाजारों तक पहुँच को सुगम बनाता है, जिससे देश उत्पादन और आय में वृद्धि कर सकते हैं।
  • विशेषज्ञता और दक्षता: तुलनात्मक लाभ को बढ़ावा देता है, राष्ट्रों को उन क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जहाँ वे सबसे अधिक कुशल हैं।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: ज्ञान, नवाचार और प्रौद्योगिकी के प्रवाह को संभव बनाता है, जिससे विशेष रूप से विकासशील देशों को लाभ होता है।
  • रोजगार और आजीविका: विशेष रूप से भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में व्यापार-प्रधान क्षेत्र (आईटी, फार्मा, कपड़ा, कृषि निर्यात) लाखों रोजगार सृजित करते हैं।
  • उपभोक्ता लाभ: विश्व के उपभोक्ताओं के लिए वस्तुओं और सेवाओं की विविधता, सामर्थ्य और गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
  • भू-राजनीतिक सहयोग: आर्थिक परस्पर निर्भरता को मजबूत करता है, शांति, कूटनीति और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देता है।

वैश्विक व्यापार में उभरती चुनौतियाँ

  • बढ़ता संरक्षणवाद: देश तेजी से टैरिफ, प्रतिबंध और व्यापार बाधाएँ आरोपित कर रहे हैं।
    • उदाहरण: ब्राजील और भारत पर संयुक्त राज्य अमेरिका का 50% टैरिफ (2025) विश्व व्यापार संगठन के नियमों को कमजोर कर रहा है।
  • कमज़ोर बहुपक्षवाद: विश्व व्यापार संगठन में संस्थागत निष्क्रियता और संयुक्त राष्ट्र (UN) में राजनीतिक गतिरोध सुधारों में बाधा डालते हैं और नियम-आधारित व्यवस्था को कमज़ोर करते हैं।
  • आपूर्ति शृंखला की कमजोरी: कोविड-19 महामारी, यूक्रेन संघर्ष, चुनिंदा प्रतिबंधों और लाल सागर समुद्री संकट संबंधी तनावों ने व्यापार और ऊर्जा बाजारों की कमजोरियों को उजागर किया है।
  • खाद्य, ऊर्जा और उर्वरक असुरक्षा: विकासशील देशों को कीमतों में उतार-चढ़ाव और कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वैश्विक दक्षिण में असमानता और बढ़ रही है।
  • जलवायु-संबंधी व्यापार उपाय: यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM) जैसे उपकरण विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के विरुद्ध हरित संरक्षणवाद उत्पन्न करने का जोखिम उठाते हैं।
  • डिजिटल विभाजन: डिजिटल व्यापार ढाँचों में असमान तत्परता से विकासशील देशों के ई-कॉमर्स क्रांति में पीछे छूट जाने का खतरा है।
  • व्यापार ब्लॉकों का उदय: क्षेत्रीय और द्विपक्षीय समझौतों (RTA/FTA) के बढ़ने से बहुपक्षीय मंचों को दरकिनार करने और वैश्विक प्रणाली को खंडित करने का जोखिम है।

वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी और स्थिति (वित्त वर्ष 2024-25)

  • कुल निर्यात और वृद्धि: भारत का कुल निर्यात (वस्तुएँ और सेवाएँ) वित्त वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड 824.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2023-24 के 778.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 6.0% अधिक है।
  • यह वृद्धि मुख्यतः सेवा निर्यात (~387.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर, 13.6% की वृद्धि) के कारण हुई, जबकि व्यापारिक वस्तुओं का निर्यात अपेक्षाकृत स्थिर रहा (~437.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर, अल्प वृद्धि)।
  • सेवा निर्यात और वैश्विक रैंकिंग: भारत का सेवा निर्यात अब वैश्विक सेवा व्यापार का लगभग 4.3% है, जो वर्ष 2005 में 1.9% था।
    • विशिष्ट उप-क्षेत्रों में, भारत दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवाओं (विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा) के लिए वैश्विक निर्यात का 10.2% और अन्य व्यावसायिक सेवाओं (विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा) के लिए 7.2% रखता है।
  • व्यापार संतुलन एवं संरचना: व्यापारिक वस्तुओं का आयात बढ़कर 720.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जिसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2024-25 के लिए व्यापार घाटा 94.26 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
    • भारत का कुल व्यापार (निर्यात और आयात) 1.736 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 6.2% की वृद्धि दर्शाता है।
  • जीडीपी में हिस्सेदारी: निर्यात भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 22-23% है, जबकि कुल व्यापार GDP में लगभग 40-45% का योगदान देता है, जो वैश्विक बाजारों के साथ भारत के बढ़ते एकीकरण को दर्शाता है।

भारत के शीर्ष व्यापारिक साझेदार (वित्त वर्ष 2024-25)

  • शीर्ष निर्यात गंतव्य
    • संयुक्त राज्य अमेरिका (US): सबसे बड़ा निर्यात बाजार, लगभग 77-80 बिलियन अमेरिकी डॉलर (निर्यात का लगभग 17-18%)।
    • संयुक्त अरब अमीरात (UAE): लगभग 33-36 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 8-9% हिस्सेदारी)।
    • नीदरलैंड: लगभग 21-22 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 5-6% हिस्सेदारी)।
    • चीन: लगभग 13-17 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 3-4% हिस्सेदारी)।
    • अन्य (सिंगापुर, यूनाइटेड किंगडम, सऊदी अरब): प्रत्येक लगभग 10-15 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 2-3% हिस्सेदारी)।
  • शीर्ष आयात स्रोत
    • चीन: सबसे बड़ा आयात साझेदार, लगभग 100-104 अरब अमेरिकी डॉलर (आयात का लगभग 15%)।
    • रूस: लगभग 50-60 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 9% हिस्सा), मुख्यतः ऊर्जा और रक्षा आपूर्ति।
    • संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates- UAE): लगभग 45-50 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 7% हिस्सा), मुख्यतः पेट्रोलियम और कीमती धातुएँ।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका (United States- US): लगभग 40-45 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 6% हिस्सा)।
    • सऊदी अरब / इराक / इंडोनेशिया: प्रत्येक लगभग 25-35 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 3-5%), मुख्यतः कच्चा तेल और कच्चे माल।

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‘पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग’ संबंधी स्थायी समाधान

  • वर्ष 1995 में स्थापित विश्व व्यापार संगठन (WTO), व्यापार विवादों के लिए एकमात्र बहुपक्षीय विवाद निपटान प्रणाली प्रदान करता है।
  • इसे प्रायः WTO का “क्राउन ज्वेल’ (Crown jewel)” कहा जाता है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि व्यापार विवादों का निपटारा एकतरफा कार्रवाई या व्यापार युद्धों के स्थान पर कानूनी और पूर्वानुमेय तरीके से किया जाए।

विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body -DSB)

  • विश्व व्यापार संगठन की सामान्य परिषद, सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों के प्रबंधन और समाधान के लिए विवाद निपटान निकाय (DSB) के रूप में गठित होती है।
  • DSB के पास निम्नलिखित अधिकार हैं:
    • विशिष्ट मामलों की जाँच और विश्व व्यापार संगठन के समझौतों के अनुपालन का आकलन करने के लिए विवाद निपटान पैनल स्थापित करना।
    • ऐसे मामलों में जहाँ विशिष्ट या त्वरित निपटान की आवश्यकता हो, मामलों को समाधान के लिए मध्यस्थता के पास भेजना।
    • पैनल, अपीलीय निकाय और मध्यस्थता कार्यवाही से प्राप्त रिपोर्टों को अपनाना।
    • सदस्य राज्यों द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए निर्णयों और सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी करना।
    • यदि कोई सदस्य स्वीकृत निर्णयों का पालन करने में विफल रहता है, तो समायोजनात्मक या प्रतिशोधात्मक उपायों के निलंबन को अधिकृत करना।
      • DSB विश्व व्यापार संगठन की विवाद निपटान प्रणाली की कार्यकारी शाखा के रूप में कार्य करता है, जो व्यापार विवादों का व्यवस्थित, नियम-आधारित समाधान सुनिश्चित करता है और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की अखंडता को बनाए रखता है।
  • कार्यप्रणाली
    • परामर्श (60 दिन): पक्ष वार्ता के माध्यम से विवादों को सुलझाने का प्रयास करते हैं।
    • पैनल चरण: यदि विवाद का समाधान नहीं होता है, तो स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक विवाद निवारण पैनल स्थापित किया जाता है।
    • अपीलीय समीक्षा: पक्ष अपीलीय निकाय में अपील कर सकते हैं, जो विश्व व्यापार संगठन के सर्वोच्च न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करता है।
    • कार्यान्वयन: हारने वाले पक्ष को प्रक्रिया का अनुपालन करना होगा या जीतने वाले पक्ष को प्रतिशोधात्मक शुल्क आरोपित करने का अधिकार दिया जा सकता है।
  • प्रणालीगत व्यवधान (वर्तमान स्थिति)
    • दिसंबर 2019 से, अपीलीय निकाय निष्क्रिय है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने न्यायिक अतिक्रमण का आरोप लगाते हुए न्यायाधीशों की नई नियुक्तियों को रोक दिया है।
    • अपीलीय निकाय के बिना, पैनल के निर्णयों के विरुद्ध अपील की जा सकती है (लेकिन निर्णय नहीं हो सकता), जिससे विवाद अनसुलझे रह जाते हैं।
    • इससे एक गतिरोध उत्पन्न हो गया है, जिससे विश्व व्यापार संगठन प्रणाली में विश्वास कम हुआ है।
  • वर्तमान व्यवस्था
    • यूरोपीय संघ के नेतृत्व में कई सदस्यों ने एक अंतरिम समाधान तैयार किया: विवाद निपटान समझौते (DSU) के अनुच्छेद-25 के अंतर्गत बहु-पक्षीय अंतरिम अपील मध्यस्थता व्यवस्था (Multi-Party Interim Appeal Arbitration Arrangement- MPIA) की स्थापना।
    • लगभग 25 सदस्य (यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया सहित) इस MPIA का हिस्सा हैं।
      • हालाँकि, भारत, अमेरिका और कुछ अन्य देश इसके सदस्य नहीं हैं, जिसका अर्थ है कि वर्तमान में उनके पास कोई बाध्यकारी अपील प्रणाली नहीं है।

आगे की राह

  • विश्व व्यापार संगठन विवाद निपटान को पुनर्जीवित करना: निर्णयों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने और नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में विश्वास को मजबूत करने के लिए द्वि-स्तरीय अपीलीय निकाय की तत्काल बहाली आवश्यक है।
  • सार्वजनिक भंडारण (PSH) पर स्थायी समाधान: विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्य भंडारण कार्यक्रमों को सब्सिडी प्रतिबंधों से मुक्त करने और व्यापार को सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुरूप बनाने के लिए कानूनी स्पष्टता की आवश्यकता है।
  • संतुलित और समावेशी सुधार: भविष्य के विश्व व्यापार संगठन सुधारों में विशेष और विभेदक उपचार (S&DT) को संरक्षित रखना चाहिए, साथ ही डिजिटल वाणिज्य, स्थिरता और जलवायु संबंधी उपायों जैसे नए व्यापार मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, जिससे सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।
  • लचीली आपूर्ति शृंखलाओं  का निर्माण करना: भारत को ‘एक्ट ईस्ट नीति’ जैसी नीतियों और क्वाड आपूर्ति शृंखला पहल जैसी साझेदारियों के माध्यम से केंद्रों में विविधता लाने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए, जिससे कुछ भौगोलिक क्षेत्रों पर अत्यधिक निर्भरता कम हो।
  • बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार: भारत को विश्व व्यापार संगठन और संयुक्त राष्ट्र सुधार प्रक्रियाओं को पुनर्व्यवस्थित करने, संस्थागत निष्क्रियता से निपटने और व्यापार प्रशासन को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण एवं प्रभावी बनाने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए।
  • रणनीतिक व्यापार जुड़ाव: भारत को पड़ोसियों, विशेषकर चीन के साथ व्यापार संबंधों को पुनर्गठित करना चाहिए, साथ ही मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को स्थापित करना चाहिए, नए बाजारों की खोज करनी चाहिए और निर्यात संवर्द्धन उपायों का विस्तार करना चाहिए।
  • आत्मनिर्भर भारत को गति देना: नियामक बाधाओं को कम करने, व्यावसायिक लागत कम करने और नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करने जैसे घरेलू सुधार भारतीय उद्योग को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाएँगे।
  • वैश्विक दक्षिण का समर्थन करना: भारत को खाद्य, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं को पूरा करके ’ग्लोबल साउथ’ का समर्थन जारी रखना चाहिए, साथ ही वैश्विक जलवायु और व्यापार चर्चाओं में समावेशिता की अभिव्यक्ति के रूप में भी कार्य करना चाहिए।
  • भारत की सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रदर्शन: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (UPI, इंडिया स्टैक, ONDC), सेवा क्षेत्र और ‘एनीमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक्स’ (AVGC) उद्योग में भारत की उपलब्धियाँ समावेशी विकास के अनुकरणीय मॉडल के रूप में कार्य कर सकती हैं।

निष्कर्ष

विश्व व्यापार संगठन-केंद्रित निष्पक्ष व्यापार प्रणाली के लिए भारत का आह्वान बहुपक्षवाद, समावेशिता और लचीलेपन के उसके दृष्टिकोण को दर्शाता है। खाद्य सुरक्षा, डिजिटल नवाचार, जलवायु समानता और MSME सशक्तीकरण के साथ, भारत स्वयं को विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच एक सेतु के रूप में स्थापित करता है।

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