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वैश्विक व्यापार में WTO की भूमिका

Lokesh Pal April 26, 2025 01:20 7 0

संदर्भ

विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों की देखरेख, विवादों को सुलझाने और वार्ता को सुविधाजनक बनाने के लिए की गई थी।

  • हालाँकि, हाल के वर्षों में, इसकी प्रभावशीलता गंभीर जाँच के दायरे में आ गई है, क्योंकि यह अपने मुख्य कार्यों, विशेष रूप से बातचीत, विवाद समाधान और व्यापार निगरानी को प्रभावी ढंग से निष्पादित करने में असमर्थ रही है।

भारत और विश्व व्यापार संगठन

  • संस्थापक सदस्य: भारत ने अपनी स्थापना के बाद से ही WTO वार्ताओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है तथा समावेशी व्यापार को बढ़ावा दिया है, जो विकास लक्ष्यों का समर्थन करता है।

WTO का 13वाँ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13)

  • WTO मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC) सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, जो प्रत्येक दो वर्षो में आयोजित किया जाता है, जहाँ सभी WTO सदस्य वैश्विक व्यापार मामलों पर चर्चा करते हैं और निर्णय लेते हैं।
  • MC13 फरवरी 2024 में अबू धाबी में आयोजित किया गया था, जिसमें सभी WTO सदस्यों ने भाग लिया था, जिसमें व्यापार सुधारों एवं उभरती वैश्विक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
  • यह सार्वजनिक स्टॉक-होल्डिंग कार्यक्रम पर WTO वार्ता में गतिरोध के साथ समाप्त हुआ।
  • भारत ने WTO चर्चाओं मे लैंगिक तथा MSME जैसे गैर-व्यापार मुद्दों को शामिल करने का विरोध किया, जिसमें व्यापार विखंडन के जोखिम पर जोर दिया गया।
  • भारत ने पर्यावरण के बहाने एकतरफा व्यापार संरक्षणवाद पर भी चिंता जताई, WTO से निष्पक्ष और नियम-आधारित व्यापार प्रथाओं को बनाए रखने का आग्रह किया।

  • भारत के लिए विश्व व्यापार संगठन का समर्थन
    • स्टील विवाद में जीत: वर्ष 2016 में, WTO ने भारतीय स्टील निर्यात पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने के लिए अमेरिका के खिलाफ भारत के पक्ष में फैसला सुनाया।
    • सोलर पैनल मामले में आंशिक राहत: हालाँकि शुरुआत में सोलर मामले में भारत के खिलाफ फैसला सुनाया गया था, लेकिन WTO ने कुछ संशोधनों के साथ अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के भारत के अधिकार को बरकरार रखा।
  • भारत के लिए विवाद के क्षेत्र
    • कृषि सब्सिडी: भारत न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के माध्यम से खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता का हवाला देते हुए WTO की 10% सब्सिडी सीमा का विरोध करता है।
    • सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग: भारत ने ऐसे समझौतों का विरोध किया, जो खाद्य सुरक्षा के लिए उसके अनाज खरीद कार्यक्रम को सीमित कर सकते हैं, विशेषकर MC13 पर।
  • G-33 और G-77 में नेतृत्व: भारत वार्ता में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है, नीतिगत स्थान और न्यायसंगत व्यापार मानदंडों की वकालत करता है।
    • G33, WTO में विकासशील देशों का एक गठबंधन है, जो छोटे किसानों की रक्षा करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष सुरक्षा उपायों और सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग अधिकारों की वकालत करता है।
    • G77 विकासशील देशों के सामूहिक आर्थिक हितों का प्रतिनिधित्व करने और न्यायसंगत वैश्विक व्यापार नियमों को आगे बढ़ाने के लिए WTO वार्ता के साथ जुड़ता है।

विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय

  • स्थापना और उद्देश्य: अपीलीय निकाय की स्थापना वर्ष 1995 में WTO के विवाद निपटान समझौते (Dispute Settlement Understanding-DSU) के तहत पैनल रिपोर्टों से कानूनी व्याख्याओं पर अपील सुनने के लिए की गई थी।
  • संरचना और सदस्यता: इसमें सात सदस्य होते हैं, जिन्हें WTO सदस्यों की सर्वसम्मति से चार वर्ष के कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता है, जिसे एक बार नवीनीकृत किया जा सकता है।
    • सदस्य कानून और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विशेषज्ञ होते हैं।
  • अधिकार क्षेत्र और कार्य: अपीलीय निकाय केवल WTO पैनल के फैसलों से उत्पन्न होने वाले कानूनी प्रश्नों से संबंधित अपीलों की सुनवाई करता है; यह तथ्यात्मक निष्कर्षों की फिर से जाँच नहीं कर सकता है।
  • बाध्यकारी निर्णय: इसके फैसलों को विवाद निपटान निकाय द्वारा तब तक अपनाया जाना चाहिए, जब तक कि सभी WTO सदस्य उन्हें अस्वीकार करने के लिए सहमत न हों, जिससे इसके निर्णय प्रभावी रूप से बाध्यकारी हो जाते हैं।
  • वर्तमान शिथिलता: वर्ष 2019 से, यह निकाय अमेरिका द्वारा नियुक्तियों को अवरुद्ध करने, बैकलॉग बनाने और WTO की विवाद समाधान प्रणाली को पंगु बनाने के कारण गैर-कार्यात्मक रहा है।

  • भारत द्वारा सुधार सुझाव
    • आम सहमति का लचीलापन: भारत कृषि और बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर आम सहमति बनाए रखते हुए WTO निर्णय-प्रक्रिया में सुधार का समर्थन करता है।
    • विशेष और विभेदक उपचार (Special and Differential Treatment- S&DT) का समर्थक: भारत विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से कृषि में निष्पक्ष व्यापार के अवसर सुनिश्चित करने के लिए S&DT की लगातार वकालत करता है।
    • DSM को पुनर्स्थापित करना: भारत ने विवाद समाधान में विश्वसनीयता पुनर्स्थापित करने के लिए अपीलीय निकाय के तत्काल पुनरुद्धार का आह्वान किया है।

व्यापार युद्ध क्या है? 

  • व्यापार युद्ध तब होता है, जब देश प्रतिशोध में एक-दूसरे पर टैरिफ या अन्य व्यापार बाधाएँ लगाते हैं, जिससे अक्सर तनाव बढ़ता है और वैश्विक आपूर्ति शृंखला बाधित होती है। 
    • उदाहरण के लिए, अमेरिका और चीन के बीच हाल ही में टैरिफ युद्ध एक प्रकार का व्यापार युद्ध है।
  • व्यापक प्रभाव: वर्ष 2018 में शुरू हुए यू.एस.-चीन टैरिफ युद्ध में दोनों देशों ने एक-दूसरे के सामान पर सैकड़ों अरबों डॉलर के टैरिफ लगाए।
    • इस संघर्ष ने वैश्विक बाजारों को बाधित किया, उत्पादन लागत में वृद्धि की और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता में योगदान दिया।

व्यापार युद्धों से निपटने के लिए विश्व व्यापार संगठन तंत्र

  • विवाद निपटान तंत्र (DSM): WTO विवादों को सुलझाने के लिए एक संरचित प्रक्रिया प्रदान करता है। वर्ष 2019 में, चीन ने धारा 301 के तहत अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ शिकायत दर्ज की तथा WTO पैनल ने उन्हें WTO नियमों के साथ असंगत करार दिया।
  • अपील समीक्षा: आम तौर पर, दोनों पक्ष पैनल के फैसलों के खिलाफ अपील कर सकते हैं। हालाँकि, वर्ष 2019 से, अपीलीय निकाय गैर-कार्यात्मक रहा है, जिससे अंतिम समाधान में देरी हो रही है।
  • परामर्श और निगरानी: WTO वृद्धि से पहले प्रारंभिक परामर्श को प्रोत्साहित करता है।
    • हालाँकि, चीनी निर्यात प्रतिबंधों की देरी से निगरानी तत्काल व्यापार संघर्षों में इसकी सीमित प्रभावशीलता को दर्शाती है।
  • व्यापार नीति समीक्षा तंत्र (TPRM): यह पारदर्शिता और जवाबदेही प्रदान करता है, लेकिन चल रहे व्यापार युद्धों को रोकने के लिए प्रवर्तन शक्ति का अभाव है।

विश्व व्यापार संगठन की उपलब्धियाँ और सफलताएँ

  • मुख्य व्यापार सिद्धांतों की स्थापना: WTO ने गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार प्रथाओं को सुनिश्चित करते हुए सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र (MFN) तथा राष्ट्रीय उपचार सिद्धांतों जैसे मूलभूत मानदंडों को बरकरार रखा है।
    • इन नियमों ने वैश्विक व्यापार संबंधों में पूर्वानुमान और निष्पक्षता को बढ़ावा दिया है।
  • प्रभावी विवाद निपटान प्रणाली: विवाद निपटान तंत्र (DSM) ने वर्ष 1995 से 600 से अधिक मामलों का समाधान किया है, जिसमें विमान सब्सिडी पर EU बनाम U.S. जैसे हाई-प्रोफाइल विवाद शामिल हैं।
    • इसकी कानूनी संरचना ने हाल के गतिरोधों तक सदस्य राज्यों के बीच स्थिरता और विश्वास लाया।
  • GATT और WTO दौर के माध्यम से बाजार उदारीकरण: GATT और WTO के तहत लगातार वार्ता दौरों के माध्यम से, औसत वैश्विक टैरिफ में काफी कमी आई।
    • उदाहरण के लिए, उरुग्वे दौर (1986-1994) ने WTO के निर्माण और कृषि और सेवाओं में व्यापक प्रतिबद्धताओं को जन्म दिया।
  • व्यापार सुविधा समझौता (TFA): वर्ष 2013 में हस्ताक्षरित, TFA का उद्देश्य सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में लालफीताशाही को कम करना था।
    • WTO के अनुमानों के अनुसार, यह वैश्विक व्यापार लागत को 14% तक कम कर सकता है, जिससे विशेष रूप से छोटी और मध्यम अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा।
  • सूचना प्रौद्योगिकी पर समझौता (ITA): वर्ष 1996 के ITA ने कई तकनीकी उत्पादों पर टैरिफ को समाप्त कर दिया।
    • वर्ष 2015 में इसके विस्तार ने वार्षिक व्यापार में $1.3 ट्रिलियन से अधिक को कवर किया, जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था और वैश्विक ICT पहुँच को बढ़ावा मिला।

हाल की घटनाएँ विश्व व्यापार संगठन की विफलता को उजागर करती हैं:

  • 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13) में गतिरोध: विकसित और विकासशील देशों के बीच गतिरोध, विशेष रूप से कृषि सब्सिडी के संबंध में, गहरी असहमतियों को उजागर करता है और WTO के चल रहे शासन संकट को रेखांकित करता है।
    • सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग (PSH) कार्यक्रम जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति के बिना सम्मेलन।
  • संरक्षणवादी उपायों की वापसी: ‘पारस्परिक टैरिफ’ जैसी नीतियों के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा टैरिफ लगाए जाने सहित संरक्षणवाद का पुनरुत्थान, उदार व्यापार व्यवस्था से उलट होने का संकेत देता है।
    • ये कार्य WTO के पूर्ववर्ती GATT द्वारा परिकल्पित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को कमजोर करते हैं।

विश्व व्यापार संगठन की चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

  • दोहा दौर की विफलता और वार्ता में गतिरोध: वर्ष 2001 में शुरू किए गए दोहा विकास दौर का उद्देश्य विकासशील देशों की आवश्यकताओं को पूरा करना था, लेकिन यह सार्थक निष्कर्ष पर पहुँचने में विफल रहा।
    • कृषि सब्सिडी, बाजार पहुँच और विशेष तथा विभेदक उपचार पर असहमति के कारण वार्ता में निष्क्रियता आई।
  • विवाद निपटान प्रणाली की शिथिलता: अपीलीय निकाय, जो व्यापार विवाद समाधान के लिए सर्वोच्च संस्था है, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति को अवरुद्ध करने के कारण निष्क्रिय हो गया है।
    • इसने WTO के निर्णयों की प्रवर्तनीयता को कमजोर कर दिया है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्याय निर्णयन में एक विधिक रिक्तता उत्पन्न कर दी है।
  • पारदर्शिता की कमी और व्यापार निगरानी घाटा: कई विश्व व्यापार संगठन सदस्य अपने व्यापार उपायों की पारदर्शी ढंग से रिपोर्ट करने में विफल रहे हैं, जिससे संगठन का व्यापार निगरानी कार्य अप्रभावी हो गया है।
    • अनुपालन की यह कमी समय पर आकलन में बाधा डालती है तथा एक असमान खेल का मैदान बनाती है।
    • उदाहरण के लिए गैलियम और जर्मेनियम जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों पर चीन के निर्यात प्रतिबंधों की WTO निगरानी में देरी
  • द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का प्रभुत्व: बहुपक्षीय वार्ता के ठप होने के साथ, कई देशों ने WTO ढाँचे को दरकिनार करते हुए द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों की ओर रुख किया है।
    • ये सौदे अक्सर MFN सिद्धांत को कमजोर करते हैं और वैश्विक व्यापार व्यवस्था को खंडित करते हैं।
  • चीन की व्यापार प्रथाएँ और संरचनात्मक सीमाएँ: विश्व व्यापार संगठन को चीन के एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभरने को नियंत्रित करने में कठिनाई हो रही है।
    • इसके नियम अतिरिक्त उत्पादन क्षमता और राज्य सब्सिडी जैसी प्रथाओं को संबोधित करने के लिए डिजाइन नहीं किए गए थे, जो हमेशा WTO नियमों का उल्लंघन नहीं करते हैं, लेकिन व्यापार को विकृत करते हैं और सिस्टम की अखंडता को चुनौती देते हैं।

बदलते विश्व में WTO की प्रासंगिकता कम होने का कारण

  • MFN सिद्धांत का क्षरण: MFN सिद्धांत, जो कभी गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार की आधारशिला था, को तरजीही व्यापार समझौतों और एकतरफा टैरिफ द्वारा तेजी से कमजोर किया गया है।
    • उदाहरण के लिए, अमेरिका का मानना ​​है कि MFN उसके आर्थिक हितों को नुकसान पहुँचाता है।
  • विकासशील देशों की राजनीतिक संवेदनशीलता: भारत जैसे देशों ने घरेलू राजनीतिक संवेदनशीलताओं, विशेषकर कृषि क्षेत्र में, के कारण कुछ व्यापार सुधारों का विरोध किया है।
    • इन चिंताओं को समायोजित करने में WTO की कठोरता ने विकासशील देशों को बहुपक्षीय सहयोग से और भी अलग कर दिया है।
  • सर्वसम्मति आधारित निर्णय लेना एक अड़चन: निर्णय लेने के लिए WTO के सर्वसम्मति आधारित दृष्टिकोण ने सुधारों को लगभग असंभव बना दिया है।
    • भारत और अमेरिका जैसी प्रमुख शक्तियों ने वैकल्पिक मतदान तंत्र का विरोध किया है, जिससे प्रमुख मुद्दों पर प्रगति अवरुद्ध हो गई है।
  • समकालीन व्यापार मुद्दों को संबोधित करने में असमर्थता: डिजिटल व्यापार, श्रम अधिकार और पर्यावरणीय स्थिरता जैसी आधुनिक व्यापार संबंधी चिंताओं को WTO ढाँचे के भीतर अपर्याप्त रूप से संबोधित किया जाता है। 
    • देश अब इन मुद्दों पर द्विपक्षीय रूप से बातचीत करना पसंद करते हैं, जहाँ उन्हें अधिक लचीलापन मिलता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रभावशीलता को पुनर्जीवित करने के लिए सुधार

  • विवाद निपटान तंत्र में सुधार: WTO की विश्वसनीयता को बहाल करने के लिए एक कार्यात्मक और निष्पक्ष विवाद निपटान तंत्र की आवश्यकता है।
    • इसमें न्यायिक अतिक्रमण के बारे में अमेरिकी चिंताओं को संबोधित करना तथा अपीलीय निकाय में नियुक्तियों को फिर से शुरू करना शामिल है।
  • लचीली निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ: बहुपक्षीय समझौते या भारित मतदान जैसी वैकल्पिक निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ शुरू करने से आम सहमति के गतिरोध को दूर करने तथा तत्काल मामलों पर प्रगति को सुविधाजनक बनाने में मदद मिल सकती है।
  • FTA और अनुपालन की बेहतर निगरानी: मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) की जाँच और अनुमोदन करने की WTO की क्षमता को मजबूत करना यह सुनिश्चित कर सकता है कि वे बहुपक्षीय मानदंडों के अनुरूप हों और WTO के मूल सिद्धांतों को नष्ट न करें।
  • आधुनिक व्यापार विषयों का समावेश: प्रासंगिक बने रहने के लिए, WTO को जलवायु परिवर्तन, ई-कॉमर्स और आपूर्ति शृंखला लचीलापन जैसे मुद्दों पर अधिक सक्रिय रूप से संलग्न होना चाहिए, अपने उद्देश्यों को विकसित वैश्विक व्यापार परिदृश्य के साथ संरेखित करना चाहिए।
  • विकसित-विकासशील के बीच के अंतराल को पाटना: सब्सिडी नियमों और खाद्य सुरक्षा प्रावधानों में सुधार करके वैश्विक दक्षिण की विकासात्मक आवश्यकताओं और वैश्विक उत्तर की व्यापार निष्पक्षता संबंधी चिंताओं को संबोधित किया जा सकता है, जिससे अधिक समावेशी व्यापार वातावरण का निर्माण हो सकता है।

निष्कर्ष

विश्व व्यापार संगठन को पुनर्जीवित करने के लिए संरचनात्मक सुधार, समावेशी संवाद और उभरती व्यापार चुनौतियों के प्रति अनुकूलनशीलता की आवश्यकता है, ताकि इसकी विश्वसनीयता बहाल हो सके और सभी सदस्यों के लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और लचीली बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली सुनिश्चित हो सके।

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