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याला ग्लेशियर

Lokesh Pal January 21, 2025 04:59 17 0

संदर्भ 

नेपाल के सर्वाधिक अध्ययन किए गए ग्लेशियरों में से एक, याला ग्लेशियर (Yala Glacier) के वर्ष 2040 तक लुप्त हो जाने की आशंका है।

संबंधित तथ्य

  • WMO और यूनेस्को के अनुसार, संपूर्ण विश्व में 2,75,000 से अधिक ग्लेशियर हैं।
    • यह लगभग 7,00,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और बर्फ की चादरों से ढका हुआ है, जो वैश्विक ताजे जल का लगभग 70% संगृहीत करता है।

ग्लोबल ग्लेशियर कैजुअलिटी लिस्ट (Global Glacier Casualty List)

  • शुरुआत: यह परियोजना वर्ष 2024 में शुरू की गई थी।
  • मुख्य सहयोगी: राइस यूनिवर्सिटी, आइसलैंड यूनिवर्सिटी, आइसलैंड ग्लेशियोलॉजिकल सोसायटी और यूनेस्को।
  • उद्देश्य: दुनिया भर में ग्लेशियरों की स्थिति पर नजर रखना और ‘ग्लेशियर रिट्रीट’ के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

हिंदू कुश हिमालय (Hindu Kush Himalaya-HKH) 

  • यह मध्य एशिया में स्थित एक पर्वत शृंखला है।
  • जिसे तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है।
  • इस क्षेत्र में जमे हुए जल का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है।

याला ग्लेशियर 

  • याला ग्लेशियर मध्य नेपाल की लंगटांग घाटी में अवस्थित है।
  • महत्त्व एवं निगरानी
    • यह विश्व ग्लेशियर निगरानी सेवा (WGMS) डेटाबेस में हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र का एक प्रमुख प्रतिनिधि ग्लेशियर है।
    • गंभीर स्थिति: यह ‘ग्लोबल ग्लेशियर कैजुअलिटी लिस्ट’ (Global Glacier Casualty List) में हिमालय का एकमात्र ग्लेशियर है।
    • यह क्रायोस्फीयर के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

ग्लेशियर रिट्रीट 

  • ‘ग्लेशियर रिट्रीट’ से तात्पर्य पिघलने, वाष्पीकरण और अन्य पर्यावरणीय कारकों के कारण ग्लेशियरों के आकार एवं द्रव्यमान में कमी से है।
  • याला ग्लेशियर का पीछे हटना
    • वर्ष 1974 से वर्ष 2021 के बीच की अवधि में ग्लेशियर ने अपने कुल क्षेत्रफल का 36% खो दिया है।
  • तापन का प्रभाव
    • हिंदू कुश हिमालयी क्रायोस्फीयर वैश्विक औसत से दोगुनी गति से गर्म हो रहा है, जिसके कारण इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने और पीछे हटने की गति बढ़ रही है।
  • अन्य गंभीर रूप से संकटग्रस्त ग्लेशियर
    • पिको हंबोल्ट ग्लेशियर: वर्ष 2024 में वेनेजुएला में गायब हो गया।
    • सरेन ग्लेशियर: वर्ष 2023 में फ्राँस में विलुप्त हो गया।
    • डागू ग्लेशियर: चीन में, वर्ष 2030 तक विलुप्त होने की उम्मीद है।
    • चीनी ग्लेशियर सिकुड़न: चीनी ग्लेशियर 12,442.4 वर्ग किलोमीटर तक सिकुड़ गए हैं, जिससे उनके कुल क्षेत्रफल का 20.6% हिस्सा समाप्त हो गया है।

पिघलते ग्लेशियरों और क्रायोस्फीयर का प्रभाव

  • पारिस्थितिकी तंत्र और आजीविका में व्यवधान
    • ग्लेशियर और बर्फ की चादरें दुनिया के 70% ताजे जल को संगृहीत करती हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र और मानव अस्तित्व के लिए आवश्यक है।
    • हिंदू कुश हिमालय में 240 मिलियन लोग जल एवं आजीविका के लिए ग्लेशियरों पर निर्भर हैं।
  • ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs) का जोखिम बढ़ जाता है
    • तेजी से पिघलने से अस्थिर ग्लेशियल झीलें बनती हैं।
    • ये झीलें टूट सकती हैं, जिससे निचले इलाकों में विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
  • जलवायु प्रतिक्रिया लूप
    • ग्लेशियर पिघलने से पृथ्वी की एल्बिडो (परावर्तकता) कम हो जाती है।
    • कम परावर्तकता से ऊष्मा अवशोषण बढ़ता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में तेजी आती है।

क्रायोस्फीयर (Cryosphere)

  • क्रायोस्फीयर पृथ्वी के जमे हुए क्षेत्रों को संदर्भित करता है, जिसमें शामिल हैं:
    • बर्फ
    • बर्फ (ग्लेशियर, हिम टोपियाँ और समुद्री बर्फ)
    • जमी हुई जमीन (पर्माफ्रॉस्ट)।
  • यह पृथ्वी की जलवायु और जल चक्र को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • क्रायोस्फीयर के लिए महत्त्व
    • ग्लेशियर क्रायोस्फीयर के अध्ययन के लिए आवश्यक है, जो हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लगभग 240 मिलियन लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण जल संसाधन के रूप में कार्य करता है।

क्रायोस्फीयर की सुरक्षा के लिए पहल

  • वैश्विक प्रयास
    • संयुक्त राष्ट्र की पहल
      • वर्ष 2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया है।
      • 21 मार्च को प्रतिवर्ष विश्व ग्लेशियर दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
      • अन्य वैश्विक प्रयास
        • IUCN द्वारा हिमालयन अनुकूलन नेटवर्क।
        • WWF द्वारा लिविंग हिमालयन पहल।
  • भारत के प्रयास
    • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन: हिमालयी क्षेत्र के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (Indian National Centre for Ocean Information Services-INCOIS): ग्लेशियर से संबंधित घटनाओं की निगरानी करता है और GLOF अलर्ट जारी करता है।
    • ध्रुवीय मिशन
      • IndARC (2014): ग्लेशियर और जलवायु निगरानी के लिए आर्कटिक में भारत की वेधशाला।

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