100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

भारतीय आर्थिक मंदी : नौकरशाही की स्थिलता और ‘डीप स्टेट’

Lokesh Pal January 25, 2025 05:00 115 0

संदर्भ:

वैश्विक आर्थिक विस्तार के बावजूद, भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि धीमी हो रही है। इस मंदी का कारण नौकरशाही की स्थिलता और तंत्र के अंतर्गत निहित हितों (जिन्हें प्रायः “डीप स्टेट” कहा जाता है) द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ हैं।

भारत की बजट-निर्माण प्रक्रिया से संबंधित मुद्दें :

  • औपनिवेशिक विरासत (Colonial Legacy): भारत की बजट निर्माण प्रक्रिया औपनिवेशिक युग की पुरानी प्रथाओं को बनाए हुए है, जिससे यह आधुनिक अर्थव्यवस्था में अप्रासंगिक हो जाती है।
  • गोपनीयता और विशिष्टता (Secrecy and Exclusivity): भारत की बजट निर्माण प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण निर्णय गोपनीय रूप से, सीमित पारदर्शिता या सार्वजनिक चर्चा के साथ लिए जाते हैं।
    • उदाहरण के लिए: सिंगापुर और अमेरिका दोनों ही देशों में बजट निर्माण प्रक्रिया में सार्वजनिक परामर्श को शामिल किया जाता हैं, हालांँकि दोनों में इसके प्रावधान अलग-अलग हैं। 
    •  REACH प्लेटफॉर्म: सिंगापुर REACH जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से संरचित फीडबैक  का उपयोग करता है, जो दक्षता और विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। 
    • पारदर्शिता और भागीदारी: USA पारदर्शिता और भागीदारीपूर्ण बजट पर बल देता है, जिसमें कुछ क्षेत्रों में खुली चर्चा और नागरिक मतदान शामिल होता है।

भारत की GDP वृद्धि धीमी होने के प्रमुख कारण:

  • उच्च रेपो रेट (High Repo Rates): रेपो रेट/दरों में वृद्धि का अर्थ है उधार लेने की लागत में वृद्धि। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब रेपो दर में वृद्धि की जाती है, तो बैंकिंग संस्थानों के लिए उधार लेने की लागत भी बढ़ जाती है, जिसका भार खाताधारकों पर उच्च ऋण और जमा ब्याज दरों के रूप में पड़ता है।
    • यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में मंदी या कमी में योगदान देने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है, क्योंकि नौकरशाही के निर्णयों के कारण दरें प्रायः ऊंची बनी रहती हैं।
  • प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियाँ (Restrictive Trade Policies): निर्मित वस्तुओं पर उच्च टैरिफ आयात की लागत को बढ़ाते हैं, जिससे वे भारतीय बाजार में कम प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं। इससे घरेलू उद्योगों को तो संरक्षण प्राप्त होता है, लेकिन दक्षता, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कमी आती है।
    • उदाहरण के लिए: नेस्ले मामले में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद स्विटजरलैंड ने भारत के साथ अपनी कर संधि में MFN क्लॉज को निलंबित कर दिया। यह निलंबन MFN क्लॉज की अलग-अलग व्याख्याओं के कारण था।
  • नीति निर्माण में डीप स्टेट की भूमिका (Role of the Deep State in Policymaking): भारत में नीति निर्माण को उद्योगपतियों, वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों और मीडिया के प्रभावशाली लोगों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। जिसका सीधा प्रभाव आर्थिक करकों पर पड़ता है। 
    • पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नरेन्द्र मोदी दोनों ने अपने आर्थिक मॉडल के तहत नीति विशेषज्ञों को मंत्रिमंडल में पार्श्विक प्रवेश/लेटरल एंट्री (Lateral Entry) दिए जाने का तर्क दिया, परंतु अपनी पहुँच बनाए बैठे नौकरशाही हितों के प्रतिरोध के कारण यह संभव नहीं हो पाया ।
  • अत्यधिक कराधान (Excessive Taxation): विकास के स्थान पर कराधान के माध्यम से राजकोषीय घाटे को कम करने पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष उच्च व्यक्तिगत आय कर (PIT) अनुचित है।
    • भारत का पीआईटी-टू-जीडीपी (PIT-to-GDP) अनुपात (3.9%) चीन (1.1%) और वियतनाम (1.8%) जैसी अर्थव्यवस्थाओं से अधिक है।
    • अत्यधिक कराधान से करदाताओं के मध्य असंतुष्टि की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे अंततः देश का आर्थिक विकास बाधित होता है।
  • उच्च कर-से-जीडीपी अनुपात (High tax-to-GDP ratio): भारत का कर-से-GDP अनुपात (एक्स-टैक्स) वित्त वर्ष 2025 में 19% से अधिक होने की उम्मीद है, जो एक विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए उच्च मान है।
  • उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ तुलना (Comparison with Advanced Economies): संयुक्त राज्य अमेरिका और कोरिया जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में तुलनीय कर-से-GDP का अनुपात (क्रमशः 19% और 20%) है, लेकिन उनकी प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में 8 गुना अधिक है, जिससे भारतीय करदाताओं पर अधिक भार पड़ता है।
    • पूर्वी एशियाई देशों के उदाहरण : पूर्वी एशिया में कर-जीडीपी अनुपात 13.5% है जो काफी कम है, अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं:
      • चीन 15.9% 
      • वियतनाम 14.7% 
    • इन अर्थव्यवस्थाओं में आय का बेहतर स्तर होने के बावजूद भारत का कराधान स्तर इनसे बेहतर स्थिति में, है।
  • कर भार में असंतुलन (Imbalance in Tax Burden:): भारत में व्यक्तिगत आयकर (PIT) की दर उच्च है, परंतु कर क्षतिपूर्ति के अन्य तरीके वैश्विक मानकों की तुलना में अपर्याप्त हैं।
  • कर सुधार में असफलता (Failures in Tax Reform): लगभग दो दशकों से प्रत्यक्ष कर सुधार पर पर्याप्त चर्चा के बावजूद, कर सुधार की दिशा में प्रगति अपर्याप्त रही है। यही कारण है कि आयकर प्रणाली अकुशल और बोझिल बनी हुई है, जिसमें सरकारें लगातार उचित सुधारों को लागू करने में विफल रही हैं।

अत्यधिक कराधान का प्रभाव:

  • अनावश्यक सरकारी खर्च (Wasteful Government Spending): उच्च कर संग्रह प्रायः अनुत्पादक व्यय को वित्तपोषित करता है, जिसमें प्रधानमंत्री द्वारा घोषित  की गई मुफ्त सुविधाएँ भी शामिल हैं।
  • मध्यम वर्ग का असंतोष (Middle-Class Discontent): मध्यम वर्ग, जिसपर करों का भार होता है, असुविधा का सामना करता है, जो संभवतः सात माह पूर्व राष्ट्रीय चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी की लोकप्रियता में आयी कमी को इंगित करता है।
  • आर्थिक विकास में गिरावट (Economic Growth Decline): उच्च करों, सीमित विदेशी निवेश और उच्च वास्तविक ब्याज दरों ने, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को धीमा कर दिया है, जिससे आर्थिक विकास में गिरावट आती है। 

आगे की राह:

  • अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की भूमिका की जांच (Examining the role of International Experts): कराधान नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा दी गई सलाहों की गंभीरता से जांच की जानी चाहिए।
    • ऐसे उत्तरदायी संगठनों द्वारा की गई सिफारिशें, जैसे कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद के निर्णयों के मामले में देखी गई हैं, प्रायः भारत के सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में प्रासंगिकता नहीं दिखती हैं।
  • डीप स्टेट की भूमिका पर विचार (Addressing Deep State’s Role): डीप स्टेट उच्च कराधान और प्रतिबंधात्मक FDI मानदंडों जैसी नीतियों के प्रतिकूल आर्थिक प्रभावों को अनदेखा करते हुए उन्हें आकार देता प्रतीत होता है।
    • इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या ऐसे निर्णय निहित स्वार्थों से प्रेरित थे या नौकरशाही के आंतरिक सूत्रों और प्रभावशाली समूहों की दोषपूर्ण सलाह से प्रभावित थे।

निष्कर्ष:

भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि के लिए, विकास को बढ़ावा देने, भार को कम करने एवं शासन में जनता का विश्वास बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है। बदलती आवश्यकताओं के मद्देनजर यह कार्रवाई करने का यह उचित समय है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. भारत की आर्थिक नीति की रूपरेखा नौकरशाही की स्थिलता और वैश्विक आकांक्षाओं के बीच फंसी हुई प्रतीत होती है। ‘डीप स्टेट’, कराधान नीतियों और नीति निर्माण में पार्श्विक प्रवेश/लेटरल एंट्री के प्रतिरोध की परस्पर क्रिया भारत के आर्थिक विकास प्रक्षेप पथ को किस प्रकार से प्रभावित करती है, इसका आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। नीति को अधिक गतिशील बनाने व संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सुधार हेतु उपाए सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.