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बेलगाम अधिवेशन के 100 वर्ष पूर्ण : महात्मा गांधी द्वारा कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता

Lokesh Pal December 30, 2024 05:30 63 0

संदर्भ:

दिसंबर 2024 में, कांग्रेस कार्य समिति ने कर्नाटक के बेलगावी में नव सत्याग्रह बैठक आयोजित की, जो 1924 के ऐतिहासिक 39वें कांग्रेस अधिवेशन के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में, 26-27 दिसंबर को आयोजित की गई थी।

1924 का बेलगाम अधिवेशन एक विरासत

  • भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण घटना: महात्मा गांधी की अध्यक्षता में वर्ष 1924 में कॉंग्रेस का बेलगाम अधिवेशन, भारतीय राजनीति के विकास में एक निर्णायक अध्याय बनकर उभरा। यह न केवल कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, बल्कि भारत की स्वतंत्रता के भविष्य के मार्ग के लिए भी इसके गहरे निहितार्थ थे।

9 जनवरी 1915 महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने का दिन: 

  • पहला प्रवासी भारतीय दिवस: प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) पहली बार 2003 में मनाया गया था। भारत के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को मान्यता देने के लिए 9 जनवरी, 2003 को पहला प्रवासी भारतीय सम्मेलन आयोजित किया गया था।
  • 2015 से, प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन को संशोधित प्रारूप के तहत हर दो साल में एक बार आयोजित किया जाता है।

  • बेलगाम अधिवेशन का संदर्भ: यह अधिवेशन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महत्वपूर्ण चरण के दौरान हुआ था। जनवरी 1915 में गांधी भारत लौट आए थे और 1924 के दौरान देश महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से जूझ रहा था:
    • 1919 का जलियांवाला बाग हत्याकांड, जिसने भारतीय जनता को झकझोर कर रख दिया।
    • मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों पर आधारित भारत सरकार अधिनियम, 1919 को ब्रिटिश संसद द्वारा भारत की स्वशासन की बढ़ती मांग को संबोधित करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
      • सितंबर 1920 का असहयोग आंदोलन, जिसका नेतृत्व गांधी ने किया।
    • फरवरी 1922 में चौरी-चौरा की घटना के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था, जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की और बाद में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी।
      • गांधीजी के इस कदम का कांग्रेस के एक वर्ग ने विरोध किया, जिसमें मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास शामिल थे।
    • 10 मार्च, 1922 को गांधी को यंग इंडिया में उनके लेखों के कारण राजद्रोह के लिए छह साल की सजा सुनाई गई थी।
    • 12 जनवरी, 1924 को, जब वह जेल में थे, पूना (अब पुणे) में अपेंडिसाइटिस की सर्जरी हुई। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “भारत चिंता से भरा हुआ था; हम डर के साये में इंतज़ार कर रहे थे। जब संकट (गाँधी की सर्जरी) बीत गई, तो पूरे देश से लोग उन्हें देखने के लिए पूना की ओर भागने लगे।”
    • गांधी जी को उनकी गंभीर स्वास्थ्य स्थिति के कारण 5 फरवरी 1924 को जेल से रिहा कर दिया गया। हालांकि गांधीजी जल्दी ही स्वस्थ हो गए और स्वतंत्रता के लिए अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए जल्द ही वापस लौट आए।

कांग्रेस पार्टी के भीतर राजनीतिक संघर्ष

  • कांग्रेस में अस्थिरता: सितंबर 1923 में नई दिल्ली में एक विशेष सत्र के बाद आयोजित महत्वपूर्ण बेलगाम बैठक तक, जिसका नेतृत्व मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने किया था, कांग्रेस 1920 के दशक की शुरुआत में अनिश्चितता की स्थिति में थी।
  • गया अधिवेशन: दिसंबर 1922 में गया में चित्तरंजन दास की अध्यक्षता में कांग्रेस के 37वें अधिवेशन में, मोतीलाल नेहरू और दास ने पार्टी की विचारधारा में सुधार करने और असहयोग आंदोलन को ब्रिटिश भारतीय विधायिका में विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा।
  • आंतरिक विभाजन: हालाँकि, मोतीलाल नेहरू और दास की पार्टी के प्रस्ताव को सी. राजगोपालाचारी और राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व वाले परिवर्तन-विरोधी गुट ने अस्वीकार कर दिया।
  • स्वराज पार्टी का गठन: परिणामस्वरूप, मोतीलाल नेहरू और दास के नेतृत्व में परिवर्तन-समर्थक खेमे ने जनवरी 1923 में स्वराज पार्टी का गठन किया।
    • नव गठित पार्टी ने उस वर्ष राज्य विधानमंडल चुनाव लड़ा, जिसमें गोविंद बल्लभ पंत को संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में जीत मिली और वहीं कई सीटें भी हासिल की गई।

बेलगाम अधिवेशन से ठीक पहले की घटनाएँ, 1924

  • गांधीजी की जिम्मेदारियाँ: जेल से रिहा होने के बाद गांधीजी के सामने दो प्रमुख कार्य थे:
    • कांग्रेस को एकजुट करना: गांधी को कांग्रेस के भीतर परिवर्तन के पक्षधर और विरोधी गुटों के बीच मध्यस्थता करने और पार्टी को एकजुट करने की दिशा में काम करने का एक तरीका खोजने की जरूरत थी।
    • सांप्रदायिक हिंसा को संबोधित करना: वर्ष 1924 में पूरे भारत में व्यापक सांप्रदायिक दंगे हुए, जिनमें कोहाट (वर्तमान पाकिस्तान), दिल्ली, गुलबर्गा, नागपुर, लखनऊ, अमेठी, शाहजहांपुर, संभल, इलाहाबाद और जबलपुर में महत्वपूर्ण अशांति शामिल थी।
  • गांधीजी द्वारा हिंसा के विरुद्ध उपवास की योजना : इन घटनाओं से अत्यंत व्यथित गांधीजी ने हिंसा के विरोध में 17 सितंबर 1924 को 21 दिन का उपवास शुरू किया।

कोहाट दंगे

  • कोहाट दंगे, विशेष रूप से, भयभीत करने वाले थे, जिसके परिणामस्वरूप कई हिंदुओं और सिखों की मृत्यु हो गई और बड़े पैमाने पर रावलपिंडी में पलायन हुआ। 
  • सीतारमैया ने अपनी पुस्तक में लिखा, “कोहाट दंगों ने वास्तव में भारत की रीढ़ तोड़ दी”। 
  • गांधी-शौकत अली समिति का गठन: कोहाट दंगों के पीछे के कारणों की जांच के लिए गांधी-शौकत अली समिति का गठन किया गया था।

  • जुहू सम्मेलन: मई 1924 में, गांधी ने परिवर्तन के पक्षधरों या स्वराजवादियों के साथ बातचीत की, जिसे जुहू वार्तालाप के नाम से जाना जाता है।
    • चर्चा का स्थान: यह चर्चा जुहू, बॉम्बे (अब मुंबई) में एक झोपड़ी में हुई, जहाँ गांधी उस समय रह रहे थे।
    • परिणाम: हालाँकि, गांधी द्वारा युद्धविराम समझौते के लिए बातचीत करने का प्रयास असफल रहा।
  • अहमदाबाद में औपचारिक समझौता: जून में अहमदाबाद में कांग्रेस पार्टी की बैठक के दौरान गांधी और मोतीलाल नेहरू-दास के बीच एक औपचारिक समझौता हुआ, जिसे बाद में बेलगाम अधिवेशन में संशोधित किया गया।

बेलगाम में 39वें कांग्रेस अधिवेशन का महत्व

  • गांधीजी द्वारा अध्यक्षता: यद्यपि बेलगाम अधिवेशन दिसंबर में निर्धारित किया गया था, लेकिन गांधीजी द्वारा इसकी अध्यक्षता करने के पक्ष में बहुत कम समर्थन था।
    • गांधीजी के अध्यक्ष बनने पर नेहरू का विचार : अपनी आत्मकथा में नेहरू लिखते हैं, “उनके (गांधीजी के) लिए कांग्रेस अध्यक्ष बनना एक तरह से एंटी-क्लाइमैक्स जैसा था, क्योंकि वे लंबे समय से स्थायी सुपर प्रेसिडेंट थे।”
  • स्थान और तैयारी: कांग्रेस का अधिवेशन 26-27 दिसंबर, 1924 को बेलगाम (तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा) में आयोजित किया गया था और ऐतिहासिक विजयनगर साम्राज्य के नाम पर इस स्थान का नाम विजयनगर रखा गया था।
    • खद्दर महल: खद्दर महल में, आयोजन के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी, जिसमें गांधीजी के लिए विद्यारण्य आश्रम का निर्माण भी शामिल था, जिसे वे मज़ाकिया तौर पर खद्दर महल कहते थे।
    • फ्लैग रेलवे स्टेशन की स्थापना: प्रतिनिधियों की सुविधा के लिए कार्यक्रम स्थल के पास एक फ्लैग रेलवे स्टेशन की स्थापना की गई थी, और पानी उपलब्ध कराने के लिए पंपा सरोवर नामक एक बड़ा कुआं खोदा गया था।
  • गांधीजी का अध्यक्षीय भाषण: बेलगाम अधिवेशन में अपने भाषण में गांधीजी ने 1920 के बाद कांग्रेस के भीतर घटित घटनाओं का वर्णन किया।
    • सांप्रदायिक हिंसा पर गांधीजी के विचार : उन्होंने भारत में बढ़ते सांप्रदायिक दंगों, खासकर कोहाट में हुई हिंसक घटनाओं पर चिंता व्यक्त की, जिसने उन्हें बहुत परेशान किया।
    • अन्य मुद्दों पर गांधीजी के विचार : गांधी ने अस्पृश्यता की प्रथा सहित अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बात की, जो भारत में एक प्रचलित सामाजिक समस्या बनी हुई है।
  • कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण मोड़: बेलगाम अधिवेशन कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। क्योंकि इससे पहले इसे अभिजात वर्ग का संगठन माना जाता था। 
    • इस अधिवेशन के दौरान पार्टी ने आम जनता तक पहुंचने के लिए ठोस प्रयास किए। 
  • पार्टी विवादों का समाधान: अधिवेशन की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि गांधीजी और मोतीलाल नेहरू-दास के बीच समझौते का अनुसमर्थन था, जिसने पार्टी के भीतर आंतरिक विवादों को सुलझाने में मदद की। 
  • कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में स्वराजवादी: अन्य प्रमुख निर्णयों में कांग्रेस द्वारा यह स्वीकार करना शामिल था कि सरकारी परिषदों में स्वराजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि स्वराजवादी पार्टी के सदस्य बने रहने के लिए खादी पहनने की गांधीजी की शर्त पर सहमत हुए।

निष्कर्ष: 

अतः इस प्रकार ज्ञात होता है कि 1924 का बेलगाम अधिवेशन न केवल कांग्रेस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता के व्यापक संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण मोड़ था जहाँ कांग्रेस के आंतरिक गुटों में सामंजस्य स्थापित हुआ और पार्टी ने अंग्रेजों के साथ असहयोग, सामाजिक सुधारों और बढ़ते सांप्रदायिक तनावों के सामने एकता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया।

मुख्या परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न: 1924 का बेलगाम कांग्रेस अधिवेशन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। महात्मा गांधी की अध्यक्षता में आयोजित एकमात्र अधिवेशन के रूप में इसके महत्व और जन-आंदोलन के लिए कांग्रेस की रणनीति को आकार देने में इसकी भूमिका की जांच करें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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