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संघ लोक सेवा आयोग के 100 वर्ष

Lokesh Pal September 30, 2025 05:15 15 0

संदर्भ:

इस वर्ष 1 अक्टूबर को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करेगा।

पृष्ठभूमि:

  • प्रारंभिक औपनिवेशिक नींव: प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाइयों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को एक क्षेत्रीय शासक में बदल दिया, जिससे नौकरशाही की आवश्यकता हुई।
  • मैकाले समिति (1854): खुली प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से योग्यता आधारित भर्ती की सिफारिश की गई।
  • सिविल सेवा आयोग (1855): ब्रिटेन में स्थापित; 1858 में भारत में विस्तारित; परीक्षाएँ केवल लंदन में आयोजित की जाती थीं तथा लैटिन और ग्रीक भाषा पर ध्यान केन्द्रित किया जाता था।
  • प्रथम भारतीय प्रवेश (1863): सत्येन्द्र नाथ टैगोर ICS परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले पहले भारतीय बने।
  • ली आयोग (1924): भारतीयकरण और लोक सेवा आयोग की स्थापना की सिफारिश की गई।
  • लोक सेवा आयोग (1926): भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत स्थापित ; रॉस बार्कर इसके पहले अध्यक्ष थे।
  • भारत सरकार अधिनियम (1935): इसके तहत संघीय लोक सेवा आयोग (FPSC) और प्रांतीय लोक सेवा आयोग (PPSC) की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया गया था।
    • FPSC (1937): 1 अप्रैल 1937 को स्थापित।
  • स्वतंत्रता के बाद: सरदार वल्लभभाई पटेल ने सिविल सेवाओं को स्वतंत्र भारत का “स्टील फ्रेम” कहा।
  • UPSC (1950): संविधान के लागू होने के बाद, FPSC का नाम बदलकर यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) कर दिया गया तथा अनुच्छेद 315-323 के तहत इसे एक संवैधानिक निकाय बना दिया गया।

UPSC का महत्त्व:

  • वार्षिक आवेदन: UPSC प्रतिवर्ष 33,51,000 आवेदन प्राप्त करता है और 15 परीक्षाएँ ( 11 सिविल, 4 रक्षा ) आयोजित करता है।
  • सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा: प्रत्येक वर्ष लगभग 10 लाख अभ्यर्थी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होते हैं।

सिविल सेवा सुधारों पर प्रमुख समितियाँ:

  • कोठारी समिति (1976): सिविल सेवा परीक्षा में निबंध की शुरुआत की गई।
  • सतीश चंद्र समिति (1989): साक्षात्कार प्रक्रिया को अधिक वस्तुनिष्ठ बनाने का प्रस्ताव रखा।
  • अलघ समिति (2001): सिविल सेवा योग्यता परीक्षा (CSAT) शुरू करने की सिफारिश की।
  • होता समिति और निगवेकर समिति (2004): भर्ती प्रक्रिया को आधुनिक बनाने के लिए कई सुधारों का सुझाव दिया।

वर्तमान में सिविल सेवा परीक्षा प्रणाली में विद्यमान चुनौतियाँ:

  • पुराना पाठ्यक्रम: पाठ्यक्रम, जिसे अंतिम बार 12 वर्ष पहले (2013 में) अद्यतन किया गया था, को AI और तकनीकी परिवर्तन के वर्तमान युग में अपर्याप्त माना जा रहा है, क्योंकि यह नौकरशाहों को आधुनिक चुनौतियों के लिए तैयार करने में विफल रहा है।
  • विश्वसनीयता: पूजा खेड़कर मामला (2024) में देखा गया कि मीडिया के हस्तक्षेप से पहले UPSC फर्जीवाड़े (नकली प्रमाणपत्र, कई नाम) को पकड़ने में नाकाम रहा। जिससे जनता का विश्वास कम हुआ।
  • पारदर्शिता का अभाव: साक्षात्कार प्रक्रिया को अक्सर “ब्लैक बॉक्स” के रूप में देखा जाता है, जिसमें पारदर्शिता और निष्पक्षता का अभाव होता है, जिससे व्यक्तिपरक पूर्वाग्रह की गुंजाइश बनी रहती है।
  • नैतिक विफलता: नैतिकता संबंधी पाठ्यक्रम शामिल होने के बावजूद भी, कई अधिकारी अनैतिक व्यवहार (रिश्वत लेना) प्रदर्शित करते हैं।
  • लंबी प्रक्रिया: चयन प्रक्रिया में लगभग एक वर्ष का समय लगता है।

आगे की राह:

  • आलोचनात्मक सोच पर ध्यान केंद्रित करना: पाठ्यक्रम में सुधार अर्थात रटंत ज्ञान की तुलना में सोच और विचार की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: कदाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता सुनिश्चित करने के लिए AI आधारित मूल्यांकन और साइकोमेट्रिक टेस्ट जैसे वैज्ञानिक उपकरण के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: संघ लोक सेवा आयोग अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है, ऐसे में कौन सी चुनौतियाँ इसकी विश्वसनीयता और दक्षता के लिए खतरा हैं? यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय सुझाएँ कि यह भारत की सिविल सेवाओं में एक विश्वसनीय और प्रभावी भर्तीकर्ता बना रहे।

(10 अंक, 150 शब्द)

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