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16वाँ वित्त आयोग तथा उसके समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ और संभावित समाधान

Lokesh Pal May 06, 2025 05:30 14 0

संदर्भ:

कई राज्यों ने 16वें वित्त आयोग से विभाज्य कर पूल (divisible tax pool) में अपना हिस्सा बढ़ाने का आग्रह किया है, जिसमें केंद्र द्वारा बढ़ते उपकर और अधिभार के कारण वास्तविक हस्तांतरण में कमी का हवाला दिया गया है। यह माँग राजकोषीय संघवाद, स्वायत्तता और सार्वजनिक व्यय की दक्षता के संबंध में महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाती है।

राज्यों की भागीदारी बढ़ाने की माँग

  • वर्तमान हिस्सा: विभाज्य कर पूल में राज्यों का हिस्सा 41% है (जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह 42% था)।
  • विभाज्य पूल में कमी: केंद्र के कुल सकल कर राजस्व में विभाज्य कर पूल का हिस्सा 2011-12 में 88.6% से घटकर 2021-22 में 78.9% हो गया है।
  • राज्यों का तर्क: राज्यों का तर्क है, कि उपकर और अधिभार से प्राप्त होने वाली कम हुई हिस्सेदारी को संतुलित करने के लिए पूल में उनकी हिस्सेदारी बढ़ाई जानी चाहिए (50% तक), क्योंकि उपकर और अधिभार को राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है।

संबंधित चुनौतियाँ

  • केंद्र के लिए राजकोषीय बाधाएँ: राज्यों को स्थानान्तरण बढ़ाने से केंद्र के बजट पर दबाव पड़ेगा, जो पहले से ही उच्च व्यय प्रतिबद्धताओं के कारण दबाव में है।
    • राज्यों का व्यय: सामान्य सरकारी व्यय में राज्यों का हिस्सा 60% है।
  • स्थानांतरण संरचना पर पुनः कार्य करना: एक बेहतर समाधान यह हो सकता है, कि असंबद्ध स्थानांतरणों में वृद्धि की जाए, जिससे राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता मिल सके।
    • इसके लिए केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के पुनर्गठन की आवश्यकता होगी, जो एक जटिल राजनीतिक और आर्थिक प्रक्रिया हो सकती है।
  • केंद्र की व्यय प्राथमिकताएँ: कई केंद्र प्रायोजित योजनाएँ राज्य और समवर्ती सूची के उत्तरदायित्वों का अतिक्रमण करती हैं, जिससे संघ सूची की प्राथमिकताओं के लिए आवश्यक राजकोषीय स्थान बनाए बिना ही केंद्र का व्यय बढ़ जाता है।
    • संघीय सूची की मदों पर व्यय के लिए स्थान बनाने हेतु केंद्र की व्यय प्राथमिकताओं की पुनः जाँच करने की आवश्यकता है।
  • राज्य व्यय की गुणवत्ता: राज्य राजस्व घाटे का सामना कर रहे हैं, जिसके कारण उन्हें उत्पादक विकास में निवेश करने की बजाय दैनिक कामकाज, ब्याज भुगतान और सब्सिडी को पूरा करने के लिए अधिक उधार लेना पड़ रहा है।
    • बढ़े हुए असंबद्ध हस्तांतरण से आवश्यक रूप से बेहतर पूँजीगत व्यय नहीं होगा, क्योंकि उनका उपयोग बिजली और पानी जैसी गैर-योग्यता वाली सब्सिडी के लिए किया जा सकता है।
  • नकद हस्तांतरण योजनाएँ: 14 राज्यों ने आय हस्तांतरण योजनाएँ शुरू की हैं, जो उनके व्यय में सकल घरेलू उत्पाद का 0.6% जोड़ती हैं, उदाहरण: रायथु बंधु, कालिया और लाडली बहना आदि।
    • समस्या यह है, कि असंबद्ध हस्तांतरण से नकदी हस्तांतरण योजनाओं पर निर्भरता बढ़ सकती है, विशेष रूप से चुनावों के दौरान ऐसी योजनाओं के लिए राजनीतिक दबाव के कारण।

हिस्सेदारी और अभिसरण संबंधी चिंताएँ

  • अंतर-राज्यीय असमानता: बिहार जैसे राज्यों का व्यय समृद्ध राज्यों की तुलना में बहुत कम है।
  • अनटाइड ट्रांसफर्स (खुले स्थानांतरण) का प्रभाव: अनटाइड वित्त में वृद्धि से असमानता दूर नहीं हो सकती, इससे राज्यों में सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति में व्यापक असमानता पैदा हो सकती हैं।
  • स्थानीय सरकारों को हस्तांतरण: भारत की तीसरी श्रेणी (स्थानीय सरकारें) को चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की तुलना में कुल सरकारी व्यय का बहुत कम हिस्सा प्राप्त होता है।
    • राज्य स्थानीय सरकारों को शक्तियाँ और संसाधन हस्तांतरित करने में धीमे रहे हैं तथा ऐसे हस्तांतरण में वृद्धि से और अधिक हस्तांतरण को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा।

निष्कर्ष

वित्त आयोग को खुला स्थानांतरण बढ़ाने के राजकोषीय, शासन और इक्विटी प्रभावों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। इन परिवर्तनों का उद्देश्य सतत विकास, समान सार्वजनिक सेवा वितरण और सरकार के सभी स्तरों पर शक्तियों का प्रभावी हस्तांतरण सुनिश्चित करना होना चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

16वें वित्त आयोग को राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता और व्यय की गुणवत्ता के बीच प्रतिस्पर्धात्मक माँगों का सामना करना पड़ रहा है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए, कि यह राष्ट्रीय राजकोषीय स्थिरता को बनाए रखते हुए उत्तरदायी व्यय सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय असमानताओं को संबोधित करने और तीसरे स्तर के शासन को सुदृढ़ करने के साथ-साथ बढ़े हुए हस्तांतरण को किस प्रकार संतुलित कर सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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