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माइक्रोफाइनेंस के 50 वर्ष

Lokesh Pal September 13, 2025 05:00 12 0

संदर्भ:

1974 में, गुजरात में सेल्फ एम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन (SEWA) बैंक की शुरुआत हुई। इसने भारत में सूक्ष्म ऋण (माइक्रोफाइनेंस) संस्थान (MFI) आंदोलन की शुरुआत को चिह्नित किया। यह 50 वर्षों की यात्रा आशा, संघर्ष और सशक्तिकरण की कहानी है।

पृष्ठभूमि और उत्पत्ति:

  • इला भट्ट का दृष्टिकोण: इला भट्ट, जो अहमदाबाद टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के साथ काम करने वाली एक वकील थीं, ने स्व-नियोजित महिलाओं (जैसे, सड़क विक्रेता, बीड़ी बनाने वाली) के संघर्षों को देखा, जिनके पास यूनियन, संगठन, सामाजिक सुरक्षा या रोजगार की सुरक्षा का अभाव था।
  • SEWA का गठन: 1972 में, उन्होंने इन महिलाओं को आत्मनिर्भरता और रोजगार के लिए संगठित करने हेतु सेल्फ-एम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन (SEWA) की स्थापना की।
    • यह एक अनूठा विचार था, क्योंकि पारंपरिक रूप से ट्रेड यूनियन केवल कारखाने के श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित करते थे।
  • स्व-नियोजित महिलाओं के सामने समस्या: इन स्व-नियोजित महिलाओं को अपना कार्य शुरू करने या उसका विस्तार करने के लिए पूँजी की आवश्यकता होती थी, लेकिन उन्हें संपार्श्विक (Collateral) की कमी के कारण औपचारिक बैंकों द्वारा ऋण देने से इनकार कर दिया जाता था।
    • इसने उन्हें साहूकारों से अत्यधिक ब्याज दरों (200-300%) पर उधार लेने के लिए मजबूर किया, जिससे वे गंभीर ऋण जाल (Debt Traps) में फंस गईं।
  • SEWA सहकारी बैंक: इला भट्ट ने एक ऐसे बैंक की आवश्यकता महसूस की जो इन महिलाओं की भाषा और कार्यप्रणाली को समझ सके।
    • इसी के परिणामस्वरूप 1974 में श्री महिला सेवा सहकारी बैंक (SEWA Cooperative Bank) की स्थापना हुई।
    • इसका गठन 4,000 महिलाओं द्वारा किया गया था, जिनमें से प्रत्येक ने ₹10 का योगदान दिया था।
    • यह महिलाओं द्वारा, महिलाओं के लिए, महिलाओं काएक बैंक था, जिसे सहकारी कानून के तहत औपचारिक रूप से पंजीकृत किया गया था तथा RBI व राज्य सरकार दोनों द्वारा विनियमित किया जाता था।
    • इसका उद्देश्य बिना संपार्श्विक (Collateral) के आसान ऋण प्रदान करना, बचत को प्रोत्साहित करना और गरीब, स्व-नियोजित महिलाओं को वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) प्रदान करना था।
      • इस बैंक ने हजारों महिलाओं को साहूकारों के चंगुल से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा भारत में माइक्रोफाइनेंस आंदोलन की शुरुआत की।

माइक्रोफाइनेंस के बारे में:

  • सूक्ष्म + वित्त”: यह छोटे वित्तीय सेवाओं, विशेष रूप से छोटे ऋणों (जैसे, ₹10,000-₹20,000), को संदर्भित करता है, जो कम आय वाले व्यक्तियों या समूहों को प्रदान की जाती हैं।
  • संपार्श्विक मुद्दों का समाधान: बड़े बैंकों के विपरीत, जिन्हें संपार्श्विक (Collateral) की आवश्यकता होती है, माइक्रोफाइनेंस बिना सुरक्षा के ऋण प्रदान करते हैं, अक्सर संयुक्त दायित्व (Joint Liability) वाली महिलाओं के समूहों को।
  • समग्र सहायता: MFIs ऋण डदेने से आगे बढ़कर, प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, जमा की सुविधा देते हैं, और यहाँ तक कि छोटे व्यवसायों के लिए बीमा सुविधा भी प्रदान करते हैं, अनिवार्य रूप से गरीबों के लिए “बड़े प्रभाव वाले छोटे बैंकों” (Small Banks With Big Impact) के रूप में कार्य करते हैं।

माइक्रोफाइनेंस आंदोलन का प्रभाव:

  • गरीबी उन्मूलन:
    • NABARD की भूमिका: NABARD उन संस्थानों को पुनर्वित्त (Refinance) प्रदान करता है जो आगे ग्रामीण गरीबों को ऋण देते हैं।
    • स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP): NABARD का स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP) विश्व का सबसे बड़ा माइक्रोफाइनेंस कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम 17.8 करोड़ परिवारों को 144 लाख से अधिक SHGs के माध्यम से सशक्त बना रहा है।
      • SHG ऐसे समूह हैं (आमतौर पर 8-10 महिलाएँ) जो एक साथ बचत और कार्य करते हैं, जिससे वे संयुक्त दायित्व (Joint Liability) के साथ ऋण सुरक्षित कर पाते हैं।
  • उद्यमिता को बढ़ावा देना: यह कार्यशील पूँजी (Working Capital) (जैसे, सिलाई मशीन के लिए धागा) प्रदान करके छोटे व्यवसायों का समर्थन करता है।
    • लगभग 46% माइक्रोफाइनेंस ऋण उन परिवारों को दिए जाते हैं जिनकी आय ₹2,000 से कम है।
  • महिलाओं का सशक्तिकरण: महिलाओं द्वारा संचालित SHGs सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। क्योंकि बैंकों से जुड़े 88% SHGs महिलाओं द्वारा संचालित हैं। केरल का कुदुम्बश्री अपने बचत और ऋण कार्यक्रम के माध्यम से राज्य में वंचित महिलाओं की वित्तीय स्थिति सुधारने में अहम भूमिका निभा रही है।
  • वित्तीय समावेशन: MFIs बड़े बैंकों द्वारा स्थापित वित्तीय समावेशन के अंतर को कम करते हैं, जिससे पहले “वित्तीय रूप से अदृश्य” (Financially Invisible) परिवारों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाया जाता है।
    • पिछले एक दशक में, उनके ग्राहक आधार में 140 मिलियन परिवारों तक वृद्धि हुई है।
  • सामाजिक प्रभाव: उज्जीवन स्मॉल फाइनेंस बैंक की छोटे कदम पहल ने कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) और अस्पतालों का नवीनीकरण करके स्वास्थ्य-देखभाल क्षेत्र में अहम योगदान दिया है।

माइक्रोफाइनेंस संबंधित सरकारी पहल:

  • स्वयं सहायता समूह (Self-Help Group) बैंक लिंकेज कार्यक्रम: SHGs को बनाने, उत्पादन करने और बैंक ऋण तक पहुँच प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: इसके तहत लघु व्यवसायों को बिना संपार्श्विक/कुछ गिरवी रखे 20 लाख रुपये तक के ऋण प्रदान किए जाते हैं। ये ऋण माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं और अन्य सदस्य बैंकों द्वारा प्रदान किए जाते हैं। इन संस्थाओं और बैंकों को मुद्रा लिमिटेड द्वारा फंड (पुनर्वित्त) प्रदान किया जाता है।
  • RBI की नई पहल: RBI नेजमा स्वीकार नहीं करने वाली’ NBFC-MFIs को 2014 में वाणिज्यिक बैंकों के लिए बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट के रूप में कार्य करने की अनुमति दी। इससे पहले NBFCs को यह कार्य करने की अनुमति नहीं थी।
  • NABARD पुनर्वित्त (Refinance): NABARD MFIs को कम लागत वाले ऋण प्रदान करता है, जिससे वे गरीबों को सस्ते ऋण देने में सक्षम होते हैं।
  • RBI ‘माइक्रोफाइनेंस ऋणों के लिए विनियामक फ्रेमवर्क, 2022′: इसके माध्यम से माइक्रोफाइनेंस ऋण की परिभाषा, पुनर्भुगतान सीमा जैसे कई पहलुओं को स्पष्ट किया गया है।

चुनौतियाँ:

  • अधिक ऋणग्रस्तता (Over-indebtedness): उधारकर्ता प्रायः कई माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं से ऋण ले लेते हैं, जिसके कारण वे कर्ज के जाल में फंस जाते हैं और जो कभी-कभी आत्महत्या का कारण भी बनता हैं।
  • सीमित दायरा: MFIs मुख्य रूप से छोटे व्यावसायिक ऋणों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, अक्सर आवास या कृषि उपकरण जैसी अन्य महत्वपूर्ण जरूरतों की उपेक्षा करते हैं।
  • कम वित्तीय जागरूकता (Financial Awareness): कई उधारकर्ताओं में अपने ऋणों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) का अभाव होता है।
  • क्षेत्रीय असमानता: माइक्रोफाइनेंस ने उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत (जैसे, तमिलनाडु, केरल) में अधिक सफलता देखी है।

सूक्ष्म वित्त संस्थान (MFI) की प्रभावशीलता में सुधार करने संबंधित उपाय:

  • उधारकर्ता संरक्षण: एक उधारकर्ता द्वारा अत्यधिक ऋणग्रस्तता (over-indebtedness) को रोकने के लिए ऋणदाताओं की संख्या सीमित रखें।
  • सेवाओं का विविधीकरण: MFIs को क्षेत्र के आधार पर वर्गीकृत करें (जैसे, आवास, कृषि, लघु व्यवसाय) ताकि उनकी सेवाओं का विस्तार हो सके और विभिन्न उधारकर्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
  • क्षमता निर्माण: सक्रिय रूप से वित्तीय साक्षरता शिक्षा प्रदान करना, उधारकर्ताओं को सूचित वित्तीय निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाना।
  • सर्वोत्तम उदाहरणों से सीखना: तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिणी राज्यों में माइक्रोफाइनेंस वितरण नेटवर्क अच्छी तरह से विकसित हैं। देश के अन्य क्षेत्रों को भी इन संस्थाओं से सीखने की जरूरत है।
  • स्थिरता (Sustainability): यह सुनिश्चित करना कि MFIs गरीबों की सेवा जारी रखते हुए अपनी लाभप्रदता बनाए रखें।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: गति, पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए ऋण और भुगतान के लिए मोबाइल प्रौद्योगिकी का लाभ उठाएँ।
  • विनियमन: शोषण को रोकने के लिए RBI की निगरानी तंत्र को मजबूत करें, तथा यह सुनिश्चित करना कि MFIs पारंपरिक साहूकारों से अलग रहें।

निष्कर्ष:

माइक्रोफाइनेंस आंदोलन ने अब तक सराहनीय कार्य किया है। सामाजिक प्रभाव को वित्तीय व्यवहार्यता (Financial Viability) के साथ संतुलित करना माइक्रोफाइनेंस को समावेशी विकास (Inclusive Growth) का एक सच्चा साधन बनाने की कुंजी है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: गरीबी-विरोधी टीके के रूप में सूक्ष्म-वित्त का उद्देश्य भारत में ग्रामीण गरीबों के लिए परिसंपत्ति निर्माण और आय सुरक्षा स्थापित करना है। ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ इन दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने में स्वयं सहायता समूहों (SHGs) की भूमिका का मूल्यांकन करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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