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भारतीय गणतंत्र की 75वीं वर्षगांठ : सामाजिक लोकतंत्र एवं संघवाद के मुद्दे

Lokesh Pal January 25, 2025 05:15 208 0

संदर्भ:

भारतीय संविधान लागू होने की 75वीं वर्षगांठ 26 जनवरी 2025 को मनाई गई है। इस ऐतिहासिक दिवस पर भारत के निर्माताओं के सपनों को साकार करते हुए, पूर्ण भारतीय राज्य के  इस यात्राक्रम का उसके मूलभूत मूल्यों के परिप्रेक्ष्य से मूल्यांकन करना अनिवार्य है।

डॉ. अम्बेडकर के समापन भाषण का महत्त्व 

  • एकता पर बल: डॉ. अंबेडकर ने इस बात पर चिंता जाहिर की, कि क्या भारतीय जाति, धर्म और पंथ के विभाजन से ऊपर उठकर एक देश को प्राथमिकता दे सकते हैं। 
  • कालातीत सीख: उनके शब्द आत्मनिरीक्षण को प्रेरित करते हैं, नागरिकों से संविधान की रक्षा करने और स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों को बनाए रखने का आग्रह करते हैं। 
  • गणतंत्र के लिए विजन: डॉ. अंबेडकर ने अपने भाषण में, यह सुनिश्चित करने में नागरिकों की जिम्मेदारियों को रेखांकित किया कि लोकतंत्र फलता-फूलता रहे तथा यह राष्ट्र संविधान में निहित सिद्धांतों पर प्रगति करता रहे।

भारत में संघवाद के प्रमुख मुद्दें:

  • राज्य बनाम राज्यपाल विवाद (State vs. Governor Conflicts): अधिकांश राज्य सरकारों और राज्यपालों के मध्य प्रायः होने वाले विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच चुके हैं।
    •  उदाहरण के लिए: दिल्ली, पश्चिम बंगाल और केरल 
  • एक साथ चुनाव (Simultaneous Elections): एक साथ चुनाव कराने के बारे में संसद के अंदर और बाहर होने वाली बहसें राज्य की स्वायत्तता से संबंधित चुनौतियों को उजागर करती हैं।
  • राजकोषीय संघवाद (Fiscal Federalism): राज्य,  वित्त आयोग और वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था के दोहरे दबाव का सामना कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए: दक्षिणी राज्यों ने अधिक कर देने और बदले में उन्हें अन्य राज्यों की तुलना में, कम लाभ प्राप्त होने के प्रति चिंता व्यक्त की है।
  • परिसीमन (Delimitation): आगामी परिसीमन के अभ्यास से केंद्र और राज्यों के मध्य तनाव बढ़ने की संभावना है, विशेषकर उन राज्यों में जहाँ जनसंख्या वृद्धि को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया है।
    • उदाहरण के लिए: यदि परिसीमन नवीनतम जनगणना पर आधारित होगा तो दक्षिणी राज्यों में, राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कमी देखी जा सकती है, जो जनसंख्या असमानताओं को दर्शाती है।
  • क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा (Neglect Of Regional Languages): तमिल, कन्नड़, बंगाली और मराठी जैसी भाषाओं की उपेक्षा की जाती है, जिससे बहुभाषी समानता से संबंधित चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • संवैधानिक स्थिति (Constitutional Position): हालाँकि संविधान में, संघवाद का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, फिर भी न्यायालयों ने इसे मूल ढांँचे के भाग के रूप में बरकरार रखा है (उदाहरण के लिए, एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ, 1994) मामला।
  • डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण (Dr. Ambedkar’s Perspective): डॉ. अंबेडकर द्वारा इस बात पर जोर दिया गया है कि संघ और राज्य समान हैं, संघ की सर्वोच्च शक्तियाँ केवल आपात स्थितियों के लिए आरक्षित हैं।

सामाजिक लोकतंत्र के लिए चुनौतियाँ:

  • पुलिस राज्य (Police State): आलोचकों का तर्क है कि देश एक पुलिस राज्य में परिवर्तित हो रहा है, इसके लिए वे राजद्रोह कानून, गैरकानूनी गतिविधियांँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) जैसे कड़े कानूनों का हवाला देते हैं।
    • इन कानूनों को असहमति पर अंकुश लगाने और स्वतंत्रता को दबाने तथा संविधान में निहित स्वतंत्रता के सिद्धांतों के विपरीत माना जाता है।
  • सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ (Social and Economic Inequalities): निरंतर जाति-आधारित विभाजन और बढ़ती आर्थिक असमानताएँ संविधान में निहित समानता के अधिकार की गारंटी के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करती हैं।
    • इस बात को लेकर सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह हैं कि क्या विभिन्न सामाजिक समूहों ने समाज में समता या समानता की स्थिति को प्राप्त कर लिया है।
  • बंधुत्व की चुनौतियाँ (Challenges to Fraternity): जातिगत विभाजन और सामाजिक स्तरीकरण एक समेकित राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक बंधुत्व की भावना में बाधा उत्पन्न करते हैं।
    • डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की, कि जाति को समाप्त किए बिना “भारतीय राष्ट्र” (Indian Nation) एक भ्रम ही बना रहेगा, जो वर्तमान में भी प्रासंगिक है।
  • संविधान में सुधार (Revamping the Constitution): कुछ समूह या दल संविधान को हिंदू धार्मिक अवधारणाओं पर आधारित “भारतीय” दस्तावेज़ से बदलने के पक्षधर हैं।
    • यह सुझाव संविधान सभा के सामूहिक विवेक तथा संविधान में निहित समावेशिता और समानता के सिद्धांतों को कमजोर करता है।

आगे की राह:

  • संवैधानिक मूल्य (Constitutional Values): संविधान को तभी सफल माना जा सकता है जब इसके सिद्धांतों और आदर्शों का सभी लोगों अर्थात् न्यायाधीश, नौकरशाह, राजनेता, कार्यकर्ता, पत्रकार और नागरिकों द्वारा सफलतापूर्वक निर्वहन किया जाये।
  • डॉ. अंबेडकर का आह्वान (Dr. Ambedkar’s Call): नागरिकों को लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शासन संवैधानिक आदर्शों के अनुरूप बना रहे।

निष्कर्ष:

भारत को आज ऐसे संरक्षकों की आवश्यकता है जो विविधता भरे इस राष्ट्र को अपने धर्म से ऊपर रख सके। वर्तमान परिपेक्ष्य में संरक्षक के रूप में न्यायाधीशों, नौकरशाहों, राजनेताओं, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और नागरिकों से यही अपेक्षित है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न. “संघवाद भारत के संवैधानिक ढांँचे का अभिन्न अंग रहा है, भले ही संविधान के पाठ में इसका उल्लेख न हो।” राजकोषीय संघवाद पर हाल के विवादों के संदर्भ में, भारत के संघीय ढांँचे द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों और अवसरों का परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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