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आतंकवाद विरोधी भूमिका जो तर्क से परे है

Lokesh Pal September 30, 2025 05:30 32 0

संदर्भ:

आतंकवाद से जुड़े विभिन्न साक्ष्य होने के बावजूद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों की निगरानी निकाय में शामिल किया गया है।

पाकिस्तान का इतिहास और राज्य प्रायोजित आतंकवाद के साक्ष्य:

  • आतंकवादियों को पनाह देना: ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान की सैन्य अकादमी के पास से पकड़ा गया।
  • आंतकवादी समूहों को समर्थन: पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों को समर्थन और प्रशिक्षण सुविधा प्रदान करता है।
  • प्रमुख हमले: 6/11 मुंबई हमलों (लखवी द्वारा संचालित), 2019 पुलवामा हमले और 2025 पहलगाम हमले (जिसके प्रतिक्रिया के रूप में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर का संचालन किया) जैसे विभिन्न हमलों का संबंध स्पष्ट रूप से पाकिस्तान है।
  • आतंकवादियों को पुरस्कृत करना: हाफिज सईद (संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी) खुलेआम घूम रहा है।
    • ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना/पुलिस ने आतंकवादियों के अंतिम विदाई में भाग लिया और सरकार ने आतंकवादी परिवारों (मसूद अजहर के रिश्तेदारों सहित) के लिए 14 करोड़ रुपये के मुआवजे की घोषणा की, और आतंकवादियों को शहीद का दर्जा प्रदान किया।

संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद विरोधी निकायों में पाकिस्तान की भूमिका (जून-जुलाई 2025):

  • तालिबान प्रतिबंध समिति (UNSC): पाकिस्तान को इस समिति में शामिल किया गया है और इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। यह समिति तालिबान पर लगाए गए प्रतिबंधों की निगरानी करती है।
  • आतंकवाद-रोधी समिति (CTC): पाकिस्तान को इसका उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। यह समिति वैश्विक आतंकवाद-रोधी नीति निर्धारित करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता: पाकिस्तान ने जुलाई 2025 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता ग्रहण की है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ऋण: आतंकवाद के वित्तपोषण की आशंकाओं के बावजूद IMF ने मई 2025 में पाकिस्तान को 1 बिलियन डॉलर का ऋण प्रदान किया।

नियुक्तियों पर संयुक्त राष्ट्र के निर्णयों के पीछे के कारण:

  • भू-राजनीतिक प्राथमिकताएं: संयुक्त राष्ट्र ने नैतिक दुविधाओं और सुरक्षा रिकॉर्ड की तुलना में भू-राजनीतिक विचारों (संभवतः चीन जैसे शक्तिशाली देशों के समर्थन के कारण ) को प्राथमिकता दी है।
  • कमजोर जाँच प्रक्रिया: अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के पास आतंकवाद विरोधी गतिविधियों के रिकॉर्ड की उचित जाँच के लिए पर्याप्त प्रक्रियाओं का अभाव हैं।
  • सामरिक लाभ: प्रमुख शक्तियां (जैसे अमेरिका और चीन) अक्सर अपने आर्थिक या सामरिक लाभ के आधार पर पाकिस्तान का समर्थन करते हैं।
  • कूटनीतिक चालबाजी: पाकिस्तान को अपनी हरकतों को छिपाने और खुद को पीड़ित दिखाने के लिए कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल करने में महारत हासिल है, यहाँ तक ​​कि वह उन युद्धों में भी अपनी जीत का दावा करता है, जो उसने हारे थे (1965, 1971, कारगिल)।

पाकिस्तान की वैश्विक कूटनीति पर भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया:

  • भारत पर प्रभाव: पाकिस्तान इन मंचों का उपयोग स्वयं को एक जिम्मेदार देश के रूप में पेश करने और भारत को आक्रामक देश के रूप में दिखाने के लिए कर सकता है (उदाहरण के लिए, यह आरोप लगाकर कि भारत बलूचिस्तान में आतंकवाद को समर्थन देता है)। यह पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक राज्य करार देने के भारत के प्रयासों को कमजोर कर सकता है।
  • गठबंधन का निर्माण: भारत को अंतर्राष्ट्रीय निर्णयों को प्रभावित करने के लिए समान विचारधारा वाले देशों (जैसे, फ्रांस, यूके ) के साथ सहयोग करना चाहिए।
  • संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी: भारत को संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए ताकि पाकिस्तान को उजागर किया जा सके और उसके दावों का खंडन किया जा सके।
  • तालिबान से संबंध: भारत को तालिबान शासन के साथ अपने संबंध मजबूत करने चाहिए – उदाहरण के लिए, काबुल में मानवीय सहायता मिशन के माध्यम से – ताकि तालिबान प्रतिबंध समिति में पाकिस्तान के प्रभाव को कम किया जा सके।
  • अंतर्राष्ट्रीय जागरूकता अभियान: भारत को पाकिस्तान के आतंकवादी संबंधों को उजागर करने और जवाबदेही की माँग करने के लिए मीडिया, शिक्षा जगत और प्रवासी समुदाय को शामिल करते हुए एक वैश्विक अभियान सक्रिय रूप से शुरू करना चाहिए।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना: पाकिस्तान के कूटनीतिक लाभ असममित युद्ध, घुसपैठ और साइबर हमलों को प्रोत्साहित कर सकते हैं; इसलिए, भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना होगा।
  • सक्रिय कूटनीति: यद्यपि नियुक्तियों के प्रति भारत की प्रतिक्रिया सतर्कतापूर्ण रही है, फिर भी वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को बनाए रखने के लिए सक्रिय कूटनीति आवश्यक है।

निष्कर्ष:

जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है, वास्तविक खतरा आतंकवाद के प्रायोजकों के अस्तित्व में नहीं है, बल्कि विश्व की उदासीनता में है – जो यह दिखावा कर रही है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पाकिस्तान इन भूमिकाओं में है, जिससे वैश्विक सुरक्षा और जवाबदेही कमजोर हो रही है।

प्रश्न. पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण आतंकवाद विरोधी समितियों में शामिल करना, आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक ढाँचे में विश्वसनीयता की कमी को उजागर करता है। इस पर चर्चा करें। भारत को अपनी सुरक्षा और राजनयिक हितों की रक्षा के लिए क्या जवाबी कदम अपनाने चाहिए, सुझाव दें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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