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भारत के खनन क्षेत्र में बदलाव के लिए समग्र दृष्टिकोण

Lokesh Pal June 25, 2025 05:15 8 0

संदर्भ:

भारत का खनन क्षेत्र ऐतिहासिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। देश के पहले पोटाश ब्लॉक की हाल ही में हुई नीलामी उर्वरक आयात पर निर्भरता कम करने और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के प्रयासों को उजागर करती है।

भारत के खनन क्षेत्र का महत्व:

  • आर्थिक विकास: खनन क्षेत्र राजस्व उत्पन्न करके मुख्यतः इस्पात, सीमेंट और ऊर्जा जैसे प्रमुख उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करके भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  • रोजगार सृजन: यह खनन कार्यों में प्रत्यक्ष रोजगार तथा परिवहन, विनिर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास जैसे संबंधित क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है।
  • संसाधन सुरक्षा: यह क्षेत्र कोयला, लिथियम और पृथ्वी के दुर्लभ तत्वों सहित महत्वपूर्ण खनिजों के लिए आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • बुनियादी ढांचे का विकास: खनन सड़कों, भवनों और शहरी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति करता है, जिससे देश के समग्र विकास में सहायता मिलती है।
  • निर्यात आय: लौह अयस्क और बॉक्साइट जैसे खनिज विदेशी मुद्रा के सृजन अर्थात आय में योगदान करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत होती है।
  • औद्योगिक रीढ़: यह क्षेत्र विनिर्माण, निर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा (सौर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी भंडारण) जैसे उभरते उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है।

2014 से खनन क्षेत्र में सुधार:

  • 2014 से पूर्व की स्थिति: अस्पष्ट आवंटन, भ्रष्टाचार, कमजोर निजी भागीदारी।
  • 2015 के बाद की स्थिति: पारदर्शी नीलामी आधारित आवंटन प्रणाली शुरू की गई, जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) की शुरुआत की गई, अन्वेषण सुधार किए गए तथा महत्वपूर्ण खनिजों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • MMDR संशोधन:
    • 2015: नीलामी अनिवार्य कर दी गई।
    • 2021: कैप्टिव/नॉन कैप्टिव भेद हटा दिया गया।
    • 2023: महत्वपूर्ण खनिजों पर फोकस शुरू किया गया।
  • सुधारों के परिणाम:
    • अब तक 500 से अधिक खनिज ब्लॉकों की नीलामी की जा चुकी है, तथा अकेले पिछले वर्ष ही 119 की नीलामी की गई।
    • नीलामी और रॉयल्टी के माध्यम से राज्यों को 4 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई।

निजी क्षेत्र: खलनायक से भागीदार तक

  • 2014 से पहले की स्थिति: अवैध खनन घोटालों (जैसे, बेल्लारी लौह अयस्क घोटाला) के कारण निजी क्षेत्र को शोषक के रूप में देखा जाता था।
    • अस्पष्ट आवंटन और पर्यावरण उल्लंघनों से विश्वास की कमी।
  • सुधारों के बाद उठाए गए कदम: नीलामी पारदर्शिता से क्रोनी पूंजीवाद में कमी आई (100 से अधिक कोयला ब्लॉकों की निष्पक्ष नीलामी की गई)।
    • वाणिज्यिक खनन की अनुमति दी गई (कोई अंतिम उपयोग प्रतिबंध नहीं), जिससे निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
    • जिला खनिज फाउंडेशन फंड ने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व (CSR) को स्थानीय कल्याण से संबद्ध किया, जिससे सामुदायिक संबंधों में सुधार हुआ।
    • प्रौद्योगिकी अपनाने (एआई, ड्रोन) से अनुपालन और स्थिरता में वृद्धि हुई।
    • स्थिरता के लिए 50 वर्ष की पट्टा अवधि।
    • आसान नवीकरण और निकासी स्थानान्तरण।
    • राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET) निधि: खनिज अनुसंधान एवं विकास पर 2% रॉयल्टी।
    • राष्ट्रीय भूविज्ञान डेटा रिपॉजिटरी (NGDR): 12000+ सार्वजनिक भूविज्ञान रिपोर्ट उपलब्ध हैं।

महत्वपूर्ण खनिज: भविष्य के लिए ईंधन

  • भारत इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा और प्रौद्योगिकी उद्योगों को शक्ति प्रदान करने के लिए लिथियम, कोबाल्ट, दुर्लभ मृदा और अन्य महत्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित कर रहा है।
  • राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM):
    • उद्देश्य: भारत के स्वच्छ ऊर्जा और तकनीकी क्षेत्रों के लिए 30 महत्वपूर्ण खनिजों (लिथियम, कोबाल्ट, दुर्लभ मृदा, आदि) की सुरक्षित और टिकाऊ आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • यह नेट ज़ीरो 207, विकसित भारत 2047 विज़न को सपोर्ट करता है।
  • काबिल (खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) ):
    • खनिज सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (MECL) द्वारा संयुक्त उद्यम।
    • फोकस: वैश्विक अधिग्रहण (जैसे, अर्जेंटीना में लिथियम ब्लॉक) और घरेलू अन्वेषण।
    • लक्ष्य: आयात पर निर्भरता कम करना और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना।
  • गहरे समुद्र में अन्वेषण के लिए अपतटीय खनन: इसमें तट से परे समुद्र तल से खनिजों का निष्कर्षण किया जाता है, तथा बहुधात्विक पिंडों, कोबाल्ट-समृद्ध क्रस्ट्स और हाइड्रोथर्मल सल्फाइड जैसे मूल्यवान संसाधनों को लक्ष्य बनाया जाता है।
  • सुधार: महत्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की नीलामी और खनन को बढ़ावा देने के लिए 100% एफडीआई प्रदान करना।

सहकारी संघवाद: खनन सुधारों में केंद्र-राज्य समन्वय

  • नीलामी रूपरेखा: केंद्र सरकार ने प्रमुख खनिजों के लिए पारदर्शी नीलामी (MMDR अधिनियम) को अनिवार्य किया है, जबकि राज्य सरकारें इसे लागू करेंगी और पट्टे प्रदान करेंगी।
    • हालांकि खनन पर राज्य सरकार का नियंत्रण है, लेकिन केन्द्र सरकार भी इसमें सहयोग करती है।
  • राजस्व साझाकरण: राज्यों ने ₹ 4 लाख करोड़ की राशि जुटाई। जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) फंड स्थानीय कल्याण (राज्य द्वारा प्रबंधित) सुनिश्चित करता है।
    • जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) एक गैर-लाभकारी ट्रस्ट है जिसकी स्थापना खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत खनिज समृद्ध जिलों में की गई है।
    • इसका उद्देश्य खनन पट्टाधारकों से रॉयल्टी के प्रतिशत के रूप में एकत्रित धनराशि का उपयोग करके खनन से संबंधित कार्यों से प्रभावित लोगों और क्षेत्रों के कल्याण के लिए काम करना है।
  • महत्वपूर्ण खनिज: केंद्र रणनीतिक खनिजों (जैसे, लिथियम) की पहचान करता है, राज्य अन्वेषण में सहायता करते हैं।
  • एकल खिड़की: परिवेश पोर्टल (केंद्र) तीव्र अनुमोदन के लिए राज्य मंजूरी को एकीकृत करता है।
  • विवाद समाधान: अंतर-मंत्रालयी समूह केन्द्र-राज्य विवादों (जैसे, गोवा खनन प्रतिबंध) में मध्यस्थता करता है।
  • राज्य खनन सूचकांक: यह भारतीय राज्यों को खनन क्षेत्र में उनके प्रदर्शन के आधार पर रैंक प्रदान करता है, तथा अन्वेषण गतिविधि, खनन व्यवसाय करने में आसानी, राजस्व सृजन, स्थिरता और सुधारों के कार्यान्वयन जैसे मापदंडों का मूल्यांकन करता है।
    • इसका उद्देश्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और समग्र खनन प्रशासन में सुधार करना है।

स्मार्ट इंडिया के लिए भविष्य का खनन रोडमैप:

  • शीघ्र अनुमोदन:
    • डिजिटल क्लीयरेंस पोर्टल: तीव्र पर्यावरण/वन अनुमोदन के लिए एकीकृत मंच (90-दिवसीय लक्ष्य)।
    • अनुमोदन को स्वीकृत मान लेना: यदि अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर जवाब नहीं देते हैं तो स्वचालित मंजूरी मिल जाती है।
  • सार्वजनिक -निजी अनुसंधान एवं विकास सहयोग:
    • खनन नवाचार निधि: एआई अन्वेषण, हाइड्रोजन-संचालित खनन जैसी तकनीक के लिए संयुक्त उद्यम।
      • स्टार्टअप्स और उत्कृष्टता केन्द्र के लिए वित्तपोषण।
    • परीक्षण स्थल: ड्रोन सर्वेक्षण, स्वचालित ढुलाई प्रणालियों के संचालन के लिए खदानों को नामित करना।
  • स्थिरता उपाय:
    • हरित खनन प्रमाणन: सभी प्रमुख खदानों के लिए अनिवार्य (जल पुनर्चक्रण, >30% नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग) रूप से हरित खनन प्रमाणन प्रदान करना।
    • सामुदायिक कौशल: पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) निगरानी भूमिकाओं में स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए DMF निधि का 5% प्रत्यक्ष उपयोग किया जाएगा।
  • कार्बन फुटप्रिंट में कमी: नवीकरणीय ऊर्जा की ओर रुख करना, 2030 तक क्षेत्रीय उत्सर्जन को आधा करने के लिए अनिवार्य उत्सर्जन सीमा और हरित खनन प्रमाण-पत्र लागू करना।

निष्कर्ष:

प्राचीन भारत खनिज संपदा के लिए जाना जाता था और इसेसोने की चिड़ियाके नाम से जाना जाता था। अर्थशास्त्र में, खनन प्रशासन और राजस्व का विस्तृत विवरण दिया गया है। आधुनिक खनन नैतिक, टिकाऊ और तकनीक से प्रेरित होना चाहिए, जो 2047 तक विकसित भारत के प्रमुख स्तंभ हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (MMDRA) संशोधनों के तहत नीलामी आधारित व्यवस्था शुरू करने के महत्व पर चर्चा करें। इस बदलाव ने राज्यों के लिए संसाधन आवंटन, निजी क्षेत्र की भागीदारी और राजस्व सृजन को कैसे प्रभावित किया है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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