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एक नया पृष्ठ: पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम 2025 पर

Lokesh Pal September 06, 2025 05:00 111 0

संदर्भ:

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025 लागू किया है, जो पर्यावरण निगरानी और लेखा परीक्षा की महत्वपूर्ण गतिविधि को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अधिकार क्षेत्र से बाहर निकलने की अनुमति देता है।

वर्तमान अनुपालन फ्रेमवर्क:

  • मौजूदा संस्थान: पर्यावरण निगरानी का कार्य वर्तमान में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालयों और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/प्रदूषण नियंत्रण समितियों द्वारा किया जाता है।
  • क्षमता संबंधी बाधाएं: इन संस्थानों को जनशक्ति, संसाधन, बुनियादी ढांचे और तकनीकी क्षमता के मामले में गंभीर सीमाओं का सामना करना पड़ता है।
  • प्रभाव: भारत में संचालित बड़ी संख्या में उद्योगों और परियोजनाओं में प्रभावी निगरानी और अनुपालन प्रवर्तन सुनिश्चित करने में असमर्थ रहे हैं

नए नियमों के प्रमुख प्रावधान:

  • एजेंसियों का प्रत्यायन: नियमों में निजी एजेंसियों को पर्यावरण लेखा परीक्षक के रूप में प्रत्यायन प्राप्त करने का प्रावधान है, जिससे अनुपालन निगरानीकर्ताओं का समूह विस्तृत होगा।
  • लाइसेंसिंग मॉडल: चार्टर्ड अकाउंटेंट की तरह, पर्यावरण लेखा परीक्षकों को भी लेखा परीक्षा करने के लिए सरकार से लाइसेंस और आधिकारिक प्राधिकरण प्राप्त होगा।
  • लेखा परीक्षा के कार्य: यह मूल्यांकन करने के लिए जिम्मेदार होंगे कि क्या परियोजनाएं पर्यावरण कानूनों का अनुपालन करती हैं और क्या वे प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन में सर्वोत्तम प्रथाओं को अपना रही हैं।

पर्यावरण विनियमन का दायरा बढ़ाना:

  • दृष्टिकोण में बदलाव: पर्यावरण विनियमन अब केवल निगरानी और लेखा-जोखा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें स्थिरता और जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताएं भी शामिल हैं।
  • ग्रीन क्रेडिट लिंकेज: पर्यावरण ऑडिट का उपयोग ग्रीन क्रेडिट नियमों के अनुपालन के लिए भी किया जाएगा, जिसके तहत वनरोपण, सतत जल प्रबंधन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी गतिविधियों के लिए व्यापार योग्य क्रेडिट अर्जित किया जा सकेगा।
  • कार्बन लेखांकन: भारत में स्थापित प्रत्येक कंपनी को अनुपालन आवश्यकताओं के भाग के रूप में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के कार्बन उत्सर्जन का लेखा-जोखा रखना आवश्यक होगा।
  • विशेषज्ञता/दक्षता की आवश्यकता: जटिल कार्बन और पर्यावरण लेखांकन का यह रूप प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की पारंपरिक क्षमता से परे है और इसके लिए विशेष विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।

नए नियमों के मुख्य उद्देश्य:

  • अंतराल को कम करना: नए नियम पर्यावरण निगरानी और अनुपालन में मौजूदा जनशक्ति और बुनियादी ढांचे के अंतराल को कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • जलवायु तत्परता: वे व्यावसायिक प्रक्रियाओं में जलवायु से संबंधित जवाबदेही को शामिल करके भारत को भविष्य के जलवायु दायित्वों के लिए भी तैयार करते हैं।

नए नियमों से संबंधित चुनौतियाँ:

  • उपेक्षा का जोखिम : उच्च स्तरीय ऑडिट की ओर बदलाव, प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा जमीनी स्तर पर निगरानी की मुख्य जिम्मेदारी की कीमत पर नहीं आना चाहिए।
  • जमीनी स्तर पर उल्लंघन: सबसे गंभीर उल्लंघन आमतौर पर जिला, ब्लॉक और पंचायत स्तर पर होते हैं, जहां पर्यावरणीय क्षति अक्सर नियामक निगरानी से बच जाती है।
  • प्रवर्तन अंतराल: स्थानीय स्तर पर ये मुद्दे मुख्यतः इसलिए अनसुलझे रह जाते हैं क्योंकि नियमित निरीक्षण और प्रवर्तन करने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव होता है।

आगे की राह:

  • स्थानीय सशक्तिकरण: नई प्रणाली को जिला, ब्लॉक और पंचायत स्तर पर स्थानीय स्तर की संस्थाओं को सशक्त और मजबूत बनाना होगा ताकि जमीनी स्तर पर उल्लंघनों की अनदेखी न हो।
  • संतुलित दृष्टिकोण: एक ओर उच्च स्तरीय जलवायु और कार्बन लेखांकन तथा दूसरी ओर जमीनी स्तर पर अनुपालन जांच के बीच संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए
  • लेखा परीक्षकों का उत्तरदायित्व: हितों के टकराव को रोकने और लेखा परीक्षा प्रक्रिया में विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए निजी लेखा परीक्षकों के लिए उत्तरदायित्व उपाय लागू किए जाने चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: पर्यावरण लेखा परीक्षा नियम, 2025 का लागू होना राज्य-संचालित निगरानी से मान्यता प्राप्त निजी लेखा परीक्षा की ओर एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतीक है। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए कि यह परिवर्तन पर्यावरण प्रशासन में प्रणालीगत कमियों को कैसे दूर कर सकता है और साथ ही यह नई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत कर सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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