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पश्चिम में भारत के बारे में एक स्थिर और गलत धारणा

Lokesh Pal May 27, 2025 05:00 28 0

संदर्भ: 

ऑपरेशन सिंदूर जैसे भारत के सफल सैन्य अभियानों ने इसकी क्षमताओं को प्रदर्शित किया है, फिर भी इसकी वैश्विक  छवि कमजोर बनी हुई है। चूंकि भारत के बारे में भ्रामक  सूचना लोकप्रिय मीडिया और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग के माध्यम से प्रसारित  हो रही  है, इसलिए भारत से बीबीसी, सीएनएन या अल जजीरा  जैसे  अपने स्वयं  के  अंतरराष्ट्रीय मीडिया मंच  बनाने की मांग बढ़ रही है जो भारत की आख्यान  को अपनी शर्तों पर   बता  सके।

ऐतिहासिक जड़ें और आख्यान  के समकालीन वाहक:

  • औपनिवेशिक नींव :  कैथरीन मेयो की मदर इंडिया (1927) ने भारतीयों को असभ्य, अंधविश्वासी, “सपेरों” और स्वशासन में अक्षम  के रूप में चित्रित किया। यह पुस्तक व्यापक रूप से पढ़ी गई और प्रभावशाली रही क्योंकि इसे 35 बार पुनर्मुद्रित किया गया था।
    • प्रचार का साधन: उन्होंने उपनिवेशवाद को सभ्यतागत सहायता के रूप में चित्रित करके “श्वेत व्यक्ति के बोझ” के तर्क के माध्यम से ब्रिटिश शासन को उचित ठहराने का प्रयास किया।
    • गांधीवादी खंडन: महात्मा गांधी ने कैथरीन मेयो की “मदर इंडिया” को “एक नाला निरीक्षक की रिपोर्ट के रूप में वर्णित किया, जिसे देश के नालों को खोलने और उनकी जांच करने के एकमात्र उद्देश्य से भेजा गया था।”
  • विरासत प्रभाव: इस तरह के आख्यानों ने वैश्विक संदेह और श्रेष्ठता की नींव रखी, जो भारत पर पश्चिमी रिपोर्टिंग को प्रभावित करती रही है।
  • प्रचार के रूप में सिनेमा: स्लमडॉग मिलियनेयर, होटल मुंबई और मंकी मैन जैसी फिल्में भारतीय गरीबी, अराजकता और क्रूरता के औपनिवेशिक चित्रण को पुनर्जीवित करती हैं।
    • चयनात्मक चित्रण: चरम मामलों को पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधि मानकर उजागर करना।
    • स्लमडॉग मिलियनेयर ने पश्चिमी ‘उद्धारकर्ता’ की आख्यान  के अनुरूप   भारतीय गरीबी को विशेष रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जिससे प्रशंसा तो मिली, लेकिन धारणा विकृत हो गई।

कथात्मक घाटे की समस्या:

  • स्थिर छवि: भारत को प्राय:  पुराने और रूढ़िवादी ढाँचों के माध्यम से देखा जाता है, जो इसे  अराजकअंधविश्वासी और गरीबी-ग्रस्त चित्रित करते  है।
  • संज्ञानात्मक जाल: पक्षपातपूर्ण पश्चिमी मीडिया को अनदेखा करने में जोखिम है। हम मीडिया की सटीकता के बारे में अपने संदेह को भूल जाते हैं जब हम उन विषयों के बारे में पढ़ते हैं जिन्हें हम पूरी तरह से नहीं समझते हैं। इसे गेल-मैन एम्नेसिया प्रभाव के रूप में जाना जाता है। 
  • वैश्विक नुकसान: भारत में बीबीसी, सीएनएन या अल जजीरा जैसे नेटवर्कों की आख्यान-निर्धारण शक्ति के  अनुरूप होने  के लिए वैश्विक मीडिया बुनियादी ढांचे का अभाव है।
  • प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण: भारत क्षति होने के बाद प्रतिक्रिया करता है, न कि सक्रिय रूप से इसकी कहानी पेश करता है।
  • प्रवासी भारतीयों का अशक्तिकरण: प्रभावशाली पदों पर आसीन होने के बावजूद भी प्रवासी भारतीय अक्सर भारत के नकारात्मक या गलत चित्रण के कारण रक्षात्मक स्थिति में आ जाते हैं
  • पश्चिमी कथात्मक मशीनरी: कतर जैसे देश वैश्विक धारणा को आकार देने के लिए मीडिया घरानों और थिंक टैंकों में अरबों का निवेश करते हैं।
    • वैश्विक प्रतिभा, डिजिटल ताकत और सांस्कृतिक विरासत होने के बावजूद भारत पीछे है।
  • सांस्कृतिक संदेश की उपेक्षा: हॉलीवुड से लेकर पाठ्यक्रम और विदेश नीति तक पश्चिम आख्यान कहने को शक्ति के रूप में देखता है।
    • भारत ने अपने महाकाव्यों और सभ्यतागत ज्ञान के बावजूद नारद जैसे अपने पौराणिक दूतों को महत्वहीन बना दिया है, जिससे उनकी गंभीरता कम हो गई है।

भारत क्या कर सकता है?:

  • वैश्विक मीडिया नेटवर्क स्थापित करें: दोहा के अल जजीरा जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीय भारतीय मीडिया आउटलेट में निवेश करें।
    • कई  भाषाओं में बोलें: पश्चिमीअफ्रीकी और दक्षिण-पूर्व एशियाई दर्शकों के लिए बहुभाषीतकनीक-संचालित सामग्री को प्रोत्साहित करें।
  • रक्षात्मक नहीं, बल्कि सक्रिय रहें: दूसरों की बातों पर प्रतिक्रिया करने के बजाय, पहले भारत की आख्यान बताएं। डेटा, आख्यान और सांस्कृतिक निर्यात के माध्यम से भारत की उपलब्धियोंनवाचारों और बहुलवादी लोकतंत्र को उजागर करें।
  • रणनीतिक संचारकों को प्रशिक्षित करें: पत्रकारोंफिल्म निर्माताओंराजनयिकों और प्रभावशाली लोगों  को तथ्यों और भारत के मूल मूल्यों पर आधारित आख्यान कहने के उपकरणों और सामग्री के साथ सशक्त बनाएं।
  • प्रवासी भारतीयों का लाभ उठाएं: आधुनिक भारत के बारे में बातचीत की रूपरेखा तैयार करने के लिए विश्वविद्यालयों, मीडिया, स्टार्टअप्स और कूटनीति में वैश्विक भारतीय आवाजों का समर्थन करें।

निष्कर्ष:

आख्यान  के मोर्चे पर भारत की चुप्पी अब तटस्थ नहीं बल्कि नुकसानदेह है। सही मायने में सुने जाने और सम्मान पाने के लिए, भारत को यह आकार देना होगा कि उसे कैसे देखा जाए । 21वीं सदी में, धारणा ही शक्ति है। भारत का उत्थान अधूरा रहेगा यदि इसकी कहानी दूसरों द्वारा बताई जाती रहेगी। अब समय आ गया है कि माइक और संदेश पर अपना दावा किया जाए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: ऐतिहासिक रूप से अंतर्निहित पश्चिमी मीडिया आख्यान   और वैचारिक संरचनाएँ  किस हद तक भारत की वैश्विक छवि को आकार देते हैं और इसकी भू-राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करते हैं?

(10 अंक, 150 शब्द)

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