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2047 तक ‘विकसित’ भारत बनने के लिए भारत की आवश्यक कार्रवाई

Lokesh Pal June 01, 2024 05:30 144 0

संदर्भ:

इस लेख के अंतर्गत वर्ष 2047 तक विकसित देश बनने के लिए भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों और संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है इसके अतिरिक्त वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कुछ कार्यवाहियाँ और सुझाव भी प्रस्तुत किए गए हैं।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : विश्व गरीबी घड़ी (World Poverty Clock) और गिनी गुणांक।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : भारत 2047 तक ‘विकसित’ बन जाएगा- उत्पन्न होने वाली चिंताएँ, और उठाए जाने वाले कदम।

उत्पन्न होने वाली चिंताएँ:

  • स्तर प्राप्त करना: अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन वर्तमान में 13,845 डॉलर और उससे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले देशों को विकसित देशों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • भारत की प्रति व्यक्ति आय अभी 2,500 डॉलर है (आईएमएफ, अप्रैल 2024)।
    • रुपये की भावी विनिमय दर और घरेलू मुद्रास्फीति की धारणाओं के आधार पर, भारत को प्रति व्यक्ति आय के इस स्तर को प्राप्त करने के लिए 6 से 7% की औसत वार्षिक वास्तविक वृद्धि दर की आवश्यकता है।
  • सरकारी पूंजीगत व्यय में वृद्धि: वास्तविक सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) दर में हाल की वृद्धि मुख्यतः सरकारी पूंजीगत व्यय, विशेष रूप से केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में वृद्धि के कारण हुई है।
    • सरकारी पूँजीगत व्यय में यह वृद्धि बरकरार नहीं रह सकती, क्योंकि इसके साथ ही केंद्र का राजकोषीय घाटा भी उच्च स्तर पर है, जो कोविड के बाद के तीन वर्षों में 6.7%, 6.4% और 5.9% के स्तर पर रहा है।

आवश्यक कार्रवाई:

  • निवेश आकर्षण: निजी निवेश में सकल घरेलू उत्पाद के 1 से 2% अंकों की वृद्धि की आवश्यकता है। इसे प्राप्त करने के लिए, भारत को कॉर्पोरेट और गैर-कॉर्पोरेट दोनों तरह के निजी निवेश को बढ़ाने के लिए अवसर उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक नीति को पुनः नवीनीकृत करने की आवश्यकता है: विशेषज्ञ वैश्विक घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए औद्योगिक नीति का पुनः नवीनीकृत करने का सुझाव दे रहे हैं।
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, कई पूर्वी एशियाई देशों ने निर्यात-आधारित विकास रणनीति अपनाई और तेजी से प्रगति की।
    • इसके बाद, चीन ने भी ऐसी ही नीति अपनाई और विश्व निर्यात में उसका हिस्सा 1970 में 0.6% से बढ़कर 2022 में 11.9% हो गया।
      • इसके विपरीत, यद्यपि 1970 में विश्व निर्यात में भारत की हिस्सेदारी भी 0.6% थी, लेकिन 2022 तक यह केवल 2.5% तक ही बढ़ पाई।
  • निर्यात पर ध्यान: भारत ने सेवाओं के निर्यात में अपनी उत्कृष्टता दिखाई है और अब इसे माल के संदर्भ में भी सिद्ध करने की आवश्यकता है, क्योंकि बाह्य माँग विकास के चालकों में से एक है।
  • बहुआयामी रणनीति का समय: भारत को निर्यात, सेवा, विनिर्माण, कृषि आदि पर जोर देने की आवश्यकता है। “सूर्योदय” उद्योगों की पहचान करना उपयोगी होगा। 
  • उदाहरण: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को उच्च प्राथमिकता दी जा सकती है क्योंकि यह श्रम-प्रधान है, कृषि में मदद करता है और निर्यात माँग रखता है।
  • कुशल आयात प्रतिस्थापन का पालन करने की आवश्यकता: सभी मामलों में “आयात प्रतिस्थापन” के बजाय, भारत को कुशल आयात प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। आत्मनिर्भरता को अकुशल “आयात प्रतिस्थापन” में नहीं बदलना चाहिए।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से एक महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आया। युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला में हुए में व्यवधान की वजह से, कई देशों ने “महत्त्वपूर्ण आयात” के लिए आत्मनिर्भरता के बारे में सोचना शुरू कर दिया। भारत ने भी चिपों के निर्माण के विषय में भी आत्मनिर्भर होने के विषय में अपनी सोच प्रकट की ।
  • पर्याप्त नौकरियों का सृजन: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जनरल एआई और मशीन लर्निंग का उदय चिंता और उत्साह दोनों पैदा कर रहा है। भारत को इस नई तकनीक को आत्मसात करने की आवश्यकता है, जिसके लिए आगे कौशल विकास की आवश्यकता होगी।
    • साथ ही, ऐसे क्षेत्रों का मिश्रण विकसित करने की आवश्यकता है जो विकास के साथ-साथ नौकरियों में वृद्धि को भी सुनिश्चित करेंगे।
  • समानता पर ध्यान: विकास के लाभों को समान रूप से वितरित किया जाना चाहिए। समानता के लिए सार्वजनिक व्यय के हिस्से के रूप में स्वास्थ्य और शिक्षा पर मात्रा और गुणवत्ता दोनों के संदर्भ में जोर देने की आवश्यकता है।
    • विकास हासिल करना और गरीबी तथा असमानता को कम करना अत्यंत आवश्यक है। विकास के बिना समानता एक दूर का सपना होगा और समानता के बिना विकास को बनाए नहीं रखा जा सकता है।
      • भारत की उपलब्धि: इस बात के प्रमाण हैं कि गरीबी का अनुपात कम हो रहा है। विश्व गरीबी घड़ी (World Poverty Clock) के अनुसार, भारत में अत्यधिक गरीबी को $2.15 (2017 पीपीपी) की गरीबी रेखा के साथ मापा जाता है, जो 3% की सीमा से नीचे आ गई है।
        • वास्तव में, नवीनतम अपडेट के अनुसार, यह जनसंख्या के 2% तक निचे के स्तर पर पहुँच गया है, जिसका अर्थ है कि भारत में अत्यधिक गरीबी समाप्त हो गई है।
      • 2022-23 के लिए हाल ही में किए गए उपभोग व्यय सर्वेक्षण से पुष्टि होती है कि असमानता को मापने वाला गणना किया गया गिनी गुणांक भी मामूली रूप से कम हो गया है।

निष्कर्ष: निष्कर्षतः वर्ष 2047 तक विकसित देश बनने के लिए भारत की विकास रणनीति बहुआयामी होनी चाहिए। निवेश दरों में वृद्धि, विनिर्माण, सेवाओं और निर्यात पर जोर, नई प्रौद्योगिकियों को आत्मसात करने और रोजगार-अनुकूल क्षेत्रों के मिश्रण को बढ़ावा देकर विकास को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है।

News Source: The Indian Express

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