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भारत में कृषि उत्पादकता

Lokesh Pal March 23, 2024 05:00 181 0

संदर्भ:

हाल के कृषि उत्पादकता से संबंधित आँकड़ों से इस बात की जानकारी मिलती है कि चावल और गेहूं के उत्पादन में उच्च उत्पादकता स्तर के प्राप्त कर लेने के बावजूद पंजाब अभी भी भारतीय राज्यों में कृषि मूल्य सृजन के मामले में निचले पायदान पर है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कृषि उत्पादकता, शुद्ध बोया गया क्षेत्र (NSA), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) इत्यादि के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसल तथा फसल पैटर्न एवं फसल विविधीकरण की आवश्यकता तथा चुनौतियाँ।

कृषि उत्पादकता के बारे में:

  • कृषि उत्पादकता से तात्पर्य कृषि उत्पादन और आगतों के अनुपात से है।
  • कृषि उत्पादकता को दो तरीकों से अनुमानित किया जा सकता है :
    • राज्य की कृषि-जीडीपी को शुद्ध बोए गए क्षेत्र (NSA) द्वारा विभाजित करके: इसके आधार पर आंध्र प्रदेश (AP) में सबसे अधिक उत्पादकता (6.43 लाख रुपये/हेक्टेयर) तथा इसके बाद पश्चिम बंगाल (5.19 लाख रुपये/हेक्टेयर) का स्थान आता है। पंजाब (3.71 लाख रुपये/हेक्टेयर) उत्पादकता के साथ 13वें स्थान पर है।
    • कृषि-जीडीपी को सकल फसल क्षेत्र (GCA) से विभाजित करके : इसमें भी, आंध्र प्रदेश (5.30 लाख/हेक्टेयर) सबसे अधिक उत्पादकता वाला राज्य है तथा इसके बाद तमिलनाडु (3.97 लाख/हेक्टेयर) है। पंजाब की उत्पादकता 1.92 लाख रुपये/हेक्टेयर है।

पंजाब में कम कृषि मूल्य सृजन के पीछे प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :

  • विविधीकरण का अभाव: पंजाब और हरियाणा की कृषि मुख्य रूप से चावल और गेहूं पर केंद्रित है, कुल फसल क्षेत्र के तकरीबन 84% हिस्से पर इन्हीं दो फसलों का उत्पादन किया जाता है।
    • ध्यातव्य है कि फसल के विविधिकरण की महत्ता को ध्यान में रखते हुए जोहल समिति द्वारा वर्ष 1986 और 2002 के दौरान फसल के विविधीकरण की सिफारिश की गई थी जिसे कि बड़े पैमाने पर अनुसुना कर दिया गया था ।
  • सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) संचालित कृषि: मुफ्त बिजली और सब्सिडी वाले उर्वरकों पर निर्भरता विविधीकरण को हतोत्साहित करती है जिसकी वजह से कृषि उच्च मूल्य वाली कृषि पद्धतियों की ओर स्थानांतरित हो जाती है।
  • टिकाऊ कृषि पद्धतियों का अभाव: पंजाब के 76% ब्लॉक भूजल संसाधनों के अत्यधिक दोहन की वजह से मिट्टी की लवणता बढ़ जाती है इसके अतिरिक्त कृषि में रसायनों के अधिक उपयोग से जलवायु संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

फसल विविधीकरण की आवश्यकता:

  • छोटी जोत पर आय
    • उच्च मूल्य वाली फसलों का उत्पादन: घटती भूमि जोत आकार (70% से अधिक किसानों के पास <2 हेक्टेयर भूमि) को ध्यान में रखते हुए किसानों की आय में वृद्धि के लिए उच्च मूल्य वाली फसलों, जैसे- मक्का तथा दालें इत्यादि के उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ मौजूदा फसल पैटर्न के विविधीकरण की आवश्यकता है।
    • मेरा पानी – मेरी विरासत योजना: हरियाणा सरकार द्वारा किसानों को धान के बजाय अन्य वैकल्पिक फसलों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से, किसानों को प्रति हेक्टेयर रुपये 7000 के प्रोत्साहन राशी का भुगतान किया जा रहा है।
  • संसाधन-उपयोग दक्षता में सुधार:
    • मोनो क्रॉपिंग: मोनो-क्रॉपिंग पैटर्न संसाधन-उपयोग की दक्षता को कम करता है। अतः विविध फसलों और फसल पैटर्न को अपनाए जाने की आवश्यकता है।
    • भारत के गढ़वाल हिमालयी क्षेत्र में, बारहनाजा एक वर्ष में 12 फसलों की खेती से संबंधित एक फसल विविधीकरण प्रणाली है ।
      • यह फसल विविधिकरण प्रणाली इस क्षेत्र की पारंपरिक विरासत है।
    • मृदा स्वास्थ्य क्षरण को कम करना : बार-बार दोहराए जाने वाले चावल-गेहूं फसल पैटर्न से मृदा के पोषक तत्वों तथा मृदा में उपस्थित लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या में कमी आ जाती है।
    • आर्थिक स्थिरता: फसल विविधीकरण विभिन्न कृषि उत्पादों की कीमतों में उतार-चढ़ाव की समस्या को बेहतर तरीके से हल कर सकता है इसके अतिरिक्त यह कृषि उत्पादों की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है।
    • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा: भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन ( National Food Security Mission- NFSM) के माध्यम से दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है।

फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम:

  • फसल विविधीकरण कार्यक्रम (CDP): यह हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) की एक उप-योजना है।
  • राज्य सरकार को समर्थन: भारत सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) और एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) के माध्यम से फसलों के विविधिकरण को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारों के प्रयासों में सहायता कर रही है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): अनुसंधान को बढ़ावा देने, वित्तीय सहायता प्रदान करने और विविध फसलों के लिए बाजार तक पहुँच में सुधार करने के उद्देश्य से सरकार, निजी क्षेत्र और गैर सरकारी संगठनों के मध्य साझेदारी को प्रोत्साहित कर रही है।
  • फसल बीमा योजनाएँ: राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का कार्यान्वयन, जो खाद्य फसलों, तिलहन और वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों को कवर करती है।

फसल विविधीकरण के क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ:

  • आर्थिक: छोटी जोत वाले किसानों के पैमाने के पास नई फसलों में निवेश करने के लिए आवश्यक पूँजी की कमी है।
  • बाजार तक पहुँच: गैर-पारंपरिक फसलों के लिए बाजारों तक पहुँच स्थापित करना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण: कृषक समुदायों में विशिष्ट फसलों का उत्पादन करने की परंपरा रही है, जो उन्हें लंबे समय से चली आ रही कृषि पद्धतियों को बदलने के प्रति प्रतिरोधी बनाती है।
  • पारिस्थितिकी संबंधी चुनौतियाँ: भारत के कई हिस्सों में जल की कमी की वजह से फसलों में विविधता लाना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है, खासकर उन फसलों के मामले में जिनमें जल की अधिक खपत होती है।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: सड़कों और भंडारण सुविधाओं की पर्याप्त उपलब्धता के नहीं होने तथा ग्रामीण क्षेत्रों के खराब बुनियादी ढाँचे की वजह से फसलों के वितरण और बिक्री में बाधा आती है।

आगे की राह :

  • कृषि वानिकी: कृषि वानिकी के अंतर्गत पेड़ों, फसलों और/या पशुधन को एक साथ शामिल किया जाता है, संसाधन के कुशल उपयोग के माध्यम से पारिस्थितिक संतुलन और आर्थिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
  • सरकारी सहायता: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) किसान को सहायता और वित्तीय गारंटी प्रदान करती है, बीज फसल बीमा बीज के उत्पादन से जुड़े जोखिम कारकों को कवर करता है।
  • सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन: वर्ष 2014-15 के दौरान, खेती की दक्षता, पानी के उपयोग और मृदा के स्वास्थ्य में सुधार के उद्देश्य से सतत कृषि के लिए राष्ट्रिय मिशन (NMSA) की शुरुआत की गई थी ।
  • बाजार संबंधों का निर्माण: शांता कुमार समिति ने सिफारिश की कि निजी निवेशकों को बाजार संबंधों को मजबूत करने के लिए खाद्यान्न की खरीद और भंडारण के लिए प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढाँचे में निवेश: विभिन्न फसलों के कुशल और लागत प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए कोल्ड स्टोरेज, परिवहन सुविधाओं और प्रसंस्करण संयंत्रों को मजबूत करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारतीय कृषि को पुनर्जीवित करने और किसानों की आय में वृद्धि के लिए पारंपरिक स्टेपल्स से आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त पंजाब और हरियाणा को माँग-संचालित उच्च-मूल्य वाली कृषि प्रणाली को अपनाने तथा एमएसपी-आधारित फसल प्रणाली की मानसिकता को बदलने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।

News Source:  Indian Express

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