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कृषि : महिला श्रम बल भागीदारी दर में वृद्धि

Lokesh Pal February 01, 2025 05:00 11 0

संदर्भ:

हाल ही में, कोविड महामारी के बाद के वर्षों में महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLPR) में वृद्धि देखी गई है।

महिलाओं की कृषि भागीदारी:

  • उच्च विकास: भारत में कृषि श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 63% है। उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, भूमि स्वामित्व, वित्त और उन्नत प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख संसाधनों तक उनकी पहुँच नहीं है, जो कि चिंता का विषय बना हुआ है।
  • महिला सशक्तिकरण पर प्रभाव: कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से जरूरी नहीं कि सशक्तिकरण हो। अनेक रिपोर्टों से ज्ञात होता है कि महिलाओं को भूमि अधिकारों और निर्णय लेने की शक्ति में लैंगिक असमानताओं का सामना करना पड़ रहा है। 
    • वित्तीय समावेशन का अभाव और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच उनकी स्वतंत्रता को और सीमित कर देता  है।
  • महिला कार्यबल भागीदारी दर (FLPR): 2004-05 में महिला कार्यबल भागीदारी दर 40.8% के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन बाद में इसमें गिरावट देखी गई है। 2017 से, महिला कार्यबल भागीदारी दर में वृद्धि हो रही है, जिसमें कोविड (COVID) महामारी के बाद उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
    • ग्रामीण महिला कार्यबल भागीदारी दर: 2022-23 में 41.5% से बढ़कर 2023-24 में 47.6% तक पहुंच गई है।
    • शहरी महिला कार्यबल भागीदारी दर: इसी अवधि में 25.4% से बढ़कर 28% हो गई है।

FLPR वृद्धि के पीछे के कारक:

  • आर्थिक सुधार: महामारी के बाद आर्थिक सुधार ने महिलाओं को रोजगार की तलाश करने के लिए प्रोत्साहित किया। आर्थिक संकट ने महिलाओं को घरेलू आय में वृद्धि के लिए काम करने के लिए मजबूर किया।
  • स्वरोजगार में वृद्धि: महिलाओं के रोजगार में वृद्धि मुख्य रूप से स्वरोजगार में वृद्धि, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में वृद्धि के कारण हुई है
  • गैर-कृषि नौकरियों की कमी: जिन राज्यों में महिला कार्यबल की भागीदारी अधिक है, वहां कृषि में महिलाओं की भूमिका अधिक है। यह प्रवृत्ति ग्रामीण महिलाओं के लिए गैर-कृषि नौकरियों के अवसरों की कमी को उजागर करती है।

भारत में कृषि के स्त्रीकरण के बारे में:

  • परिभाषा: आर्थिक साहित्य कृषि में स्त्रीकरण को दो प्रमुख तरीकों से परिभाषित करता है: अधिक महिलाएं कृषि-संबंधी कार्यों में लगी हुई हैं, या तो किसान के रूप में या कृषि मजदूरी के रूप में। 
    • भूमि स्वामित्व, संसाधनों तक पहुंच और खेती संबंधी निर्णय लेने में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी।

कृषि में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने वाले कारक:

  • पुरुषों का पलायन: आर्थिक संकट के कारण ग्रामीण पुरुष गैर-कृषि क्षेत्रों की ओर पलायन कर जाते हैं, जिससे खेतों का प्रबंधन महिलाओं को करना पड़ता है।
  • संरचनात्मक आर्थिक परिवर्तन: सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की घटती हिस्सेदारी पुरुषों को सेवा क्षेत्र की नौकरियों की ओर धकेल रही है।
  • कृषि संबंधी चुनौतियाँ: घटती उत्पादकता, बढ़ती इनपुट लागत और जलवायु जोखिम के कारण खेती पुरुषों के लिए कम आकर्षक हो गई है।
  • सीमित रोजगार विकल्प: रोजगार के सीमित विकल्प के कारण ग्रामीण महिलाएं कृषि पर निर्भर रहती हैं।
  • बदलती ग्रामीण आकांक्षाएं: युवा पीढ़ी गैर-कृषि करियर को प्राथमिकता दे रही है, जिससे खेती में महिलाओं की जिम्मेदारियां बढ़ रही हैं।

भूमि स्वामित्व में लैंगिक असमानता:

  • कृषि में महिलाओं की भूमिका: वर्तमान आँकड़ों के मुताबिक, भारत में कृषि कार्य का लगभग 80% हिस्सा महिलाएं करती हैं। वे कृषि कार्यबल का 42% से अधिक हिस्सा हैं (महिला कार्यबल भागीदारी दर 2023-24)। 76.95% ग्रामीण महिलाएँ कृषि कार्यों में संलग्न हैं।
  • भूमि स्वामित्व अंतर: अपने योगदान के बावजूद, भूमि स्वामित्व में महिलाएं काफी हद तक अदृश्य बनी हुई हैं। 
    • कृषि जनगणना (2015-16): भारत की कुल संचालित भूमि का केवल 11.72% हिस्सा महिलाओं द्वारा प्रबंधित है। 
    • महिलाओं की भूमि-जोत अधिकांशतः छोटी और सीमांत है, जो ऐतिहासिक असमानताओं को दर्शाती है।
  • भूमि स्वामित्व संबंधी बाधाएँ: भारत में महिलाएँ विरासत, उपहार, खरीद या सरकारी हस्तांतरण के माध्यम से भूमि प्राप्त कर सकती हैं। हालाँकि, ये प्रणालियाँ अक्सर उनकी समान भागीदारी के विरुद्ध होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, भूमि खरीदने के लिए महिलाओं पर पुरुषों की तुलना में आर्थिक रूप से अधिक दबाव होता है, जिससे उत्तराधिकार उनके लिए भूमि स्वामित्व का एक प्रमुख साधन बन जाता है।
  • सामाजिक मानदंड: महिलाओं से अक्सर यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने भूमि अधिकार पुरुष रिश्तेदारों को सौंप दें। इस प्रकार के प्रावधानओं से भूमि पर नियंत्रण काफी हद तक पुरुषों के हाथ में ही संकेंद्रित रहता है, भले ही कागज़ों पर इसका स्वामित्व महिलाओं के पास ही क्यों न हो।
  • लैंगिक पूर्वाग्रह: उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में, दो गांवों में 331 भूमिहीन परिवारों को भूमि आवंटित की गई।
    • सिरसी में 80 भूमि अधिकारों में से केवल 8 एकल महिलाओं को प्रदान किए गए
    • कड़कड़ में 251 भूमि अधिकारों में से केवल 16 एकल महिलाओं को प्रदान किए गए
    • कुल मिलाकर, केवल 7% भूमि स्वामित्व एकल महिलाओं को आवंटित किए गए, जो लैंगिक पूर्वाग्रह को उजागर करता है।
  • महिलाओं पर भूमि अधिकारों का प्रभाव: भूमि का स्वामित्व महिलाओं की वित्तीय स्थिरता में सुधार करता है। भूमि स्वामित्व घरेलू और कृषि संबंधी निर्णयों में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाता है।

कृषि क्षेत्र में महिलाओं के समक्ष चुनौतियाँ:

  • काम का दोहरा बोझ: महिलाओं को अक्सर वेतनभोगी नौकरी और अवैतनिक घरेलू और अन्य देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने के दोहरे बोझ का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिए पूर्ण सशक्तीकरण हासिल करना मुश्किल हो जाता है।
  • सशक्तिकरण का अभाव: यद्यपि महिलाएं कृषि क्षेत्र में पर्याप्त भागीदारी कर रही हैं, लेकिन यह हमेशा सशक्तिकरण में परिवर्तित नहीं होता है, क्योंकि अक्सर संसाधनों और निर्णय लेने की भूमिकाओं पर उनका नियंत्रण नहीं होता है।
  • सीमित निर्णय लेने की शक्ति: महिलाओं के पास महत्वपूर्ण कृषि निर्णयों, जैसे उर्वरक उपयोगभूमि संसाधन और फसल विकल्प पर न्यूनतम नियंत्रण होता है, जिससे उनका सशक्तिकरण सीमित हो जाता है।
  • पुरुष प्रवास: चूंकि पुरुष बेहतर अवसरों की तलाश में पलायन करते हैं, इसलिए महिलाएं अक्सर कृषि में खालीपन को भरती हैं, लेकिन इसे कम लाभकारी आजीविका के रूप में देखा जाता है। इस दृष्टिकोण को कृषि का स्त्रीकरण कहा जाता है ।
  • असमान भूमि वितरण: महिलाओं के पास भूमि स्वामित्व का अभाव, ऋण और सरकारी लाभ जैसे वित्तीय संसाधनों तक उनकी पहुंच को सीमित करता है।
  • वित्तीय योजनाओं की अनुपलब्धता: महिला किसानों को अक्सर किसान क्रेडिट कार्ड और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जैसी योजनाओं से बाहर रखा जाता है, जिससे उनकी वित्तीय स्वतंत्रता और खेती में निवेश करने की क्षमता कम हो जाती है।

आगे की राह:

  • पारंपरिक लिंग धारणा: किसान की छवि पारंपरिक रूप से पुरुष की रही है, जिसके कारण अक्सर कृषि में महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद महिला किसानों की अनदेखी की जाती है।
  • परिभाषा को व्यापक बनाना: कृषि का अर्थ केवल बुवाई और कटाई तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भूमि में निवेश करना उन्नत तकनीकी का इस्तेमाल करना और कृषि अर्थव्यवस्था को आकार देने वाले महत्वपूर्ण निर्णय लेना भी है।

निष्कर्ष:

कृषि नीतियों के केंद्र में, महिलाओं को शामिल करने से इस क्षेत्र में उनकी ज़रूरतों और  योगदान को पहचानने और संबोधित करने में मदद मिलेगी। महिलाओं के लिए भूमि स्वामित्व तक समान पहुँच सुनिश्चित करने से उनकी निर्णय लेने की शक्ति और संसाधनों तक पहुँच बढ़ेगी।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न: भारत में कृषि में महिलाओं का योगदान एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति को दर्शाता है। इस घटना में योगदान देने वाले कारकों पर चर्चा करें और विश्लेषण करें कि क्या यह महिलाओं के सशक्तीकरण की ओर एक प्रभावी कदम हो सकता है या कृषि में मौजूदा लैंगिक असमानताओं को मजबूत करता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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